eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | वात्स्यायन का कामसत्र ू वात्स्यायन के कामसत्र ू का हिन्दी अनव ु ाद सं्कृत श्लोक सहित
वात्सस्यायन के कामसत्र ू में कुल सात भाग
ैं। प्रत्सयेक भाग कई अध्यायों में बँटे
ैं। प्रत्सयेक अध्याय में कई श्लोक
साह त्सयप्रेममयों की सवु वधा के मलए प ले सिंस्कृत श्लोक और उसके नीचे उसका ह न्दी अनव ु ाद हदया गया म वषि वात्सस्यायन का जन्म बब ार राज्य में भी सिंपहदत ककया
ै । अथि के क्षेत्र में जो स्थान कौहटल्य का
म वषि वात्सस्यायन का कामसत्र ू ववश्व की प्रथम यौन सिंह ता प्रयोग की ववस्तत ृ व्याख्या एविं वववेचना की गई पाया
ै।
ू ि साह त्सयकारों में से एक ु आ था और प्राचीन भारत के म त्त्वपर्
म वषि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू में न केवल दाम्पत्सय जीवन का श्िंग ृ ार ककया
ैं।
ैं।
ै वरन कला, मिल्पकला एविं साह त्सय को
ै , काम के क्षेत्र में व ी स्थान म वषि वात्सस्यायन का
ै।
ै जजसमें यौन प्रेम के मनोिारीररक मसद्धान्तों तथा
ै । अधधकृत प्रमार् के अभाव में म वषि का काल ननधािरर् न ीिं
ो
ै । परन्तु अनेक ववद्वानों तथा िोधकतािओिं के अनस ु ार म वषि ने अपने ववश्वववख्यात ग्रन्थ कामसत्र ू की रचना
ईसा की तत ृ ीय िताब्दी के मध्य में की में छाया र ा
ै और आज भी कायम
भाष्य एविं सिंस्करर् भी प्रकामित
ोगी। तदनस ु ार ववगत सत्र ै । सिंसार की
ो चक ु े
िताजब्दओिं से कामसत्र ू का वचिस्व समस्त सिंसार
र भाषा में इस ग्रन्थ का अनव ु ाद
ैं। वैसे इस ग्रन्थ के जयमिंगला भाष्य को
ो चुका ै । इसके अनेक
ी प्रमाणर्क माना गया ै । कोई
दो सौ वषि पव े ी ू ि प्रमसद्ध भाषाववद सर ररचडि एफ़ बटि न (Sir Richard F. Burton) ने जब बिटे न में इसका अिंग्रज अनव ु ाद करवाया तो चारों ओर त लका मच गया । अरब के ववख्यात कामिास्त्र ‘सग ु जन्धत बाग’ पर भी इस ग्रन्थ की अममट छाप
ै।
म वषि के कामसत्र िं ृ ार ककया ू ने न केवल दाम्पत्सय जीवन का श्ग
सिंपहदत ककया
ै वरन कला, मिल्पकला एविं साह त्सय को भी
ै । राजस्थान की दल ि यौन धचत्रकारी तथा खाजरु ा ो, कोर्ाकि आहद की जीवन्त मिल्पकला भी कामसत्र ु भ ू
से अनप्र ु ाणर्त ै । रीनतकालीन कववयों ने कामसत्र ू की मननो ारी झािंककयािं प्रस्तत ु की
ैं तो गीत गोववन्द के गायक
जयदे व ने अपनी लघु पजु स्तका ‘रनत-मिंजरी’ में कामसत्र ू का सार सिंक्षेप प्रस्तत ु कर अपने काव्य कौिल का अद्भत ु पररचय हदया
ै।
काम की व्याख्या ग्रिंथ मे काम की व्याख्या द्वव-आयामी प्राप्त
ै । प्रथम सामान्य एविं द्ववतीय वविेष। सामान्य के अन्तगित पिंचेजन्िओिं द्वारा
ोने वाले आनन्द एविं रोमािंच का समावेि ककया गया
ै जजसका प्रत्सयक्ष सम्बन्ध मन एविं चेतना से जड ु ा ुआ
ै । इन् ीिं के द्वारा मनोिारीररक किया एविं प्रनतकिया का सिंचालन प्रनतपाहदत की गई सम्भोग
ोता
ै । मिश्न और योनन अत्सयन्त सिंवेदनिील स्पिेजन्िआिं
ै । वविेष के अन्तगित स्पिेजन्िओिं की भमू मका ैं। इन् ीिं का पारस्पररक ममलन एविं घषिर्
ै जजसकी अजन्तम पररर्नत चरमोत्सकषि (Climax) एविं स्खलन (Ejaculation) में
ोती
ै।
दाम्पत्सय
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | कामसत्र ू ने दाम्पत्सय उल्लास एविं सिंतजृ प्त के मलए यौन-िीडा को आधार माना उमिंग का सिंचार तभी
ोता ै जब पनत पत्सनी दोनों में मानमसक तालमेल
ै। दाम्पत्सय जीवन में उल्लास एविं
ो, दोनों एक दस ू रे के पररपरू क बनने का
प्रयास करें तथा यौन िीडा के समय पारस्पररक स योग करें और अपने अपने लक्ष्य की ओर आत्समववश्वास के साथ ननरन्तर आगे बढ़ते र ें । दाम्पत्सय जीवन में सतत रसवषाि के मलए का उद्घाटन ककया
ी म वषि ने अपने कामसत्र ू में यौन प्रेम के र स्यों
ै एविं यौन िीडा तथा तकनीक का सक्ष् ू म तथा ववस्तत ु ककया ै । ृ वर्िन प्रस्तत
काम एक अत्सयन्त िजततिाली मल ू प्रववृ ि (Instinct) ै । काम
ी जीवन का सिंपदन, जीवन का उद्गम, उसके अजस्तत्सव
तथा उसकी गनतिीलता तथा नर-नारी के पारस्पररक अकषिर् एविं सम्मो न का र स्य एविं दाम्पत्सय सख ु -िािंनत की आधारमिला
ै । काम का सम्मो न
ै । वास्तव में काम
ी वववा
ी नर-नारी को वैवाह क-सत्र ू में आबद्ध करता
अतः वववाह त जीवन में आनन्द की ननरन्तर रस-वषाि करते र ना
ी कामसत्र ू का वास्तववक उद्दे श्य
ै।
ै।
काम-ववषयक अन्य प्राचीन ग्रन्थ पिंचितय स्मरप्रदीप रनतमिंजरी रसमिंजरी अनिंग रिं ग अब भी ज़्यादातर भारतीयों का मानना
ै कक सेतस ज्ञान के मलए दस ू री िताब्दी में वात्सस्यायन द्वारा मलखी गई
'कामसत्र ू ' से बे तर कोई ककताब न ीिं ै । लेककन कामसत्र ू की प्रमसद्धध मसर्ि भारत तक ी न ीिं ै । दनु नया की कई भाषाओिं में इसका अनव ु ाद ककया गया
ै और इसने लोगों तक सेतस ज्ञान को परोसने में अ म रोल प्ले ककया
कामसत्र ू म वषि वात्ससायन द्वारा मलखा गया भारत का एक प्राचीन कामिास्त्र ग्रिंथ
ै । दनु नया भर में यौन बबमारीयों
और एड्स के बढते चलन के कारर् इस प्राचीन पस् ु तक पर लोगों का खब ू ध्यान गया में य
कार्ी लोकवप्रय ु आ
जाना जाता
ै और इसमें लोगों की उत्ससक ु ता बढी
ै।
ै । खास कर पजश्चम के दे िों
ै । कामसत्र ू को उसके ववमभन्न आसनों के मलए
ै
भाग 1 साधारणम ् वात्स्यायन के कामसूत्र के भाग 1 `साधारणम'् में कुल पााँच अध्याय िैं।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 1 शा्त्रसंग्रिः अध्याय 2 त्रत्रवगगप्रततपत्तः अध्याय 3 त्वद्यासमुद्दे शः अध्याय 4 नागरकवत ृ म् अध्याय 5 नायकसिायदत ू ीकमगत्वमशगः
अध्याय १ शाश्त्रसंग्रि श्लोक (1)- धमािथक ि ामेभ्यो नमः।। अथि- मै धमि, अथि और काम को नमस्कार करने के बाद में इस ग्रिंथ की िरु ु आत करता ूिं । भारतीय सभ्यता, सिंस्कृनत और साह त्सय का य
ब ु त परु ाना चलन र ा
ै कक ग्रिंथ की िरु ु आत, बीच और अिंत में मिंगलाचरर् ककया जाता
ै।
इसके बाद आचायि वात्ससायन ने ग्रिंथ की िरु ु आत करते ु ए अथि, धमि और काम की विंदना की ै । हदए गए प ले सत्र ू
में ककसी दे वी या दे वता की विंदना मिंगलाचरर् द्वारा न करके, ग्रिंथ में प्रनतपाद्य ववषय- धमि, अथि और काम की विंदना को म त्सव हदया अलग-अलग
ै । इसको सार् करते ु ए आचायि वात्ससाययन नें खुद क ा
ै कर्र भी आपस में जुडे ु ए
ै । भगवान मिव सारे तत्सवों को जानने वाले
उनको प्रर्ाम करके
अथि, मोक्ष और काम। धमि सबके मलए इसमलए जरूरी ोता
बद् ु धधमान
ोता ै । व
समाज के ननयम समझता
सामाजजक प्रार्ी
ै और जब व र हदन व
ो जाता
ोते
ैं- धमि, ै । अथि
दस ू रे जीवों से
ै और चलना पसिंद करता
ै।
ोना जरूरी
ै तो उसे काम-ववषयक ज्ञान को भी ननयमबद्ध
ै कक मनष्ु य ककसी खास मौसम में
ी सिंभोग का सख ु न ीिं भोगता
इस किया का आनिंद उठाना चा ता ै ।
इसी ध्येय को सामने रखते ु ए आचायि वात्सस्यायन ने काम के सत्र ू ों की रचना की
बताए गए
ै तयोंकक व
ै तो सामाजजक, धाममिक ननयमों में बिंधा ोता
ै । इन सत्र ू ों में काम के ननयम
ै । इन ननयमों का पालन करके मनष्ु य सिंभोग सख ु को और भी ज्यादा लिंबे समय तक चलने वाला और
आनिंदमय बना सकता
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै।
ै।
ै । दस ू रे जीव प्रकृनत पर ननभिर र कर
ै और समाज के ननयमों में बिंधकर चलता
ै । य ी कारर्
प्रर्ाम करने योग्य
ैं उसी प्रकार से चार आश्म भी
ैं लेककन मनष्ु य ऐसा न ीिं कर सकता
सामाजजक-धाममिक ननयमों में बिंधा
ी ववषय
ै तयोंकक इसके बगैर मोक्ष की प्राजप्त सिंभव न ीिं
ै कक मनष्ु य ग ृ स्थ जीवन में प्रवेि करता
रूप से अपनाना जरूरी बजल्क
ोता
ोते
ै तयोंकक अथोपाजिन के बबना जीवन न ीिं चल सकता
प्राकृनतक रूप से अपना जीवन चला सकते
ैं। व
ी मिंगलाचरर् की श्ेष्ठता पाई जा सकती
जजस प्रकार से चार वर्ि (जानत) िाह्मर्, िि ु , क्षबत्रय और वेश्य इसमलए जरूरी
ै कक काम, धमि और अथि तीनों
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू की िरु ु आत करते ु ए प ले काम को नमस्कार ककया
ी सत्र ू में धमि को म त्सव हदया
ै तथा धमि, अथि और
ै।
श्लोक (2)- शा्त्रो प्रकृतत्सवात ्।। अथि- आचायि वात्सस्यायन ने काम के इस िास्त्र में मख् ु य रूप से धमि, अथि और काम को म त्सव हदया नमस्कार ककया ै । भारतीय सभ्यता की आधारमिला 4 वगि इच्छाएिं इन् ी चारों के अिंदर मौजूद उनकी पनू ति ककया करते
ोती
ोते
ै और इन् े
ैं- धमि, अथि, काम और मोक्ष। मनष्ु य की सारी
ै । मनष्ु य के िरीर में जरूरतों को चा ने वाले जो अिंग
ो य
चारों पदाथि
ैं।
इसके अिंतगित िरीर, बद् ु धध, मन और आत्समा य पनू ति धमि, अथि, काम और मोक्ष द्वारा
ोती
4 अिंग सारी जरूरतों और इच्छाओिं के चा ने वाले
ोते
ै । िरीर के ववकास और पोषर् के मलए अथि की जरूरत
के पोषर् के बाद उसका झक ु ाव सिंभोग की ओर ज्ञान दे ने के साथ-साथ उसे स ी रास्ता दे ता
ोता ै । बद् ु धध के मलए धमि ज्ञान दे ता
ै । सदमागि से आत्समा को िािंनत ममलती
मोक्ष के रास्ते की ओर बढ़ने का प्रयास करता
ै। य
ननयम
र काल में एक
ैं। इनकी
ोती ै । िरीर
ै । अच्छाई और बरु ाई का
ै । आत्समा की िािंनत से मनष्ु य
ी जैसे र े
ैं और ऐसे
ी र ें गें। आहद
मानव के यग ु में भी िरीर के मलए अथि का म त्सव था। जिंगलों में र ने वाले किंद-मल ू और र्ल-र्ूल के रूप में भोजन और मिकार की जरूरत पडती थी। सिंयत ु त पररवार कबीले के रूप में पनू ति ब ु त
ी आसानी से
ोने के कारर् उनकी सिंभोग सिंबधिं धत ववषय की
ो जाती थी। मत्सृ यु के बाद िरीर को जलाया या दर्नाया इसीमलए जाता था ताकक मरे
मनष्ु य को मजु तत ममल सके। इस प्रकार अगर भोजन न ककया जाए तो िरीर बेजान सा के बबना मन किंु हठत सा
ो जाता
ै । अगर मन में किंु ठा
ोती
ै तो व
ो जाता
धमि पर असर डालती
मोक्ष के द्वार न ीिं खोल सकता। इस प्रकार से धमि, अथि, काम और मोक्ष एक-दस ू रे से परू ी तर धमि के बद् ु धध खराब
ो जाती
भी
ोता जाता
जजस तर
से बद् ु धध और ज्ञान एक
भाग पाया जाता
ोती
ी
ै उसी तर
का मोक्ष का सिंबध िं
ी ज्ञान की बढ़ोतरी
ोती
ी पदाथि के दो ह स्से
ैं।
धमि और ज्ञान भी एक
ै । धमि के ज्ञान में जजतना भाग ममलता
ै उसी के मत ु ाबबक बद् ु धध में जस्थरता पैदा
बद् िं जजस तर ु धध का सिंबध मौजद ू र ती
ै। जैसे
ै । अगर दे खा जाए तो बद् ु धध और ज्ञान एक
बढ़ने से धमि की बढ़ोतरी
ै । काम (सिंभोग)
ै और किंु हठत मन जुडे ु ए
ै और बबना मोक्ष की इच्छा ककए मनष्ु य पतन के रास्ते पर चल पडता
बद् िं बना र ता ु धध के ज्ञान के कारर् समवाय सिंबध
से धमि से
ै उसी तर
ोती
ै वैसे
ुए
ैं। बबना ै।
ी बद् ु धध का ववकास
ी पदाथि के दो भाग ै तयोंकक ज्ञान के
ै तथा ज्ञान के अिंतगित धमि का जजतना
ै।
िरीर का अथि से सिंबध िं
ै , मन का काम से सिंबध िं
ै और आत्समा
ै । इन् ी अथि, धमि, काम में मनष्ु य के जीवन, रनत, मान, ज्ञान, न्याय, स्वगि आहद की सारी इच्छाएिं
ै । अथि य
ै कक जीवन की इच्छा अथि में स्त्री, पत्र ु आहद की, काम में यि, ज्ञान तथा न्याय की, धमि
और परलोक की इच्छा मोक्ष में समा जाती
ै।
इस प्रकार चारो पदाथि एक-दस ू रे के बबना बबना अधरू े से र
जाते
ैं तयोंकक अथि- भोजन, कपडों के बगैर िरीर की
कोई जस्थनत न ीिं
ी पैदा
ो सकता ै । िरीर के बबना मोक्ष प्राप्त न ीिं
ो सकती तथा न सिंभोग के बगैर िरीर
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ो
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | सकता तथा मोक्ष की प्राजप्त के बगैर अथि और काम को स योग तथा मदद न ीिं प्राप्त मोक्ष की हदल में सच्ची इच्छा रखकर
मसर्ि धमि के द्वारा
ी काम और अथि का उपयोग करता
ै । ऐसे व्यजतत दे ि और समाज के दश्ु मन ी प्राप्त ककए गए अथि और काम
ोते
ै तो व
व्यजतत लालची
ैं।
ी मोक्ष के स ायक माने जाते
ैं। य
ै । आयि सभ्यता के मत ि अथि और काम को ग्र र् करके मोक्ष की प्राजप्त ु ाबबक धमिपव ू क ननधािररत ककया गया
ै । इस प्रकार से
ी काम और अथि का उपयोग करना चाह ए।
अगर कोई व्यजतत मोक्ष की सच्ची इच्छा रखकर और कामी माना जाता
ो सकती
धमि के ववरुद्ध न ीिं
ी मनष्ु य जीवन का लक्ष्य
ै।
आचार्यि वात्सस्यायन इस प्रकार कामसत्र ू को िरू ु करते ु ए धमि, अथि और काम की विंदना करते
ैं। आचायि वात्सस्यायन
का कामसत्र ू वासनाओिं को भडकाने के मलए न ीिं
ै बजल्क जो लोग काम और मोक्ष को स ायक मानते ै तथा धमि के
अनस ु ार स्त्री का उपभोग करते
ै । नीचे हदए गए सत्र ू द्वारा आचायि वात्सस्यायन में य ी बताने की
कोमिि की
ैं, उन् ी के मलए
ै। श्लोक (3)- तत्ससमयावबोधकेभ्यश्चाचार्य़ेभ्यः।।
अथि- इसी वज करने के काबबल व्याख्या की
ै।
से धमि, अथि और काम के मल ू तत्सव का बोध करने वाले आचायों को प्रर्ाम करता ूिं । व
नमस्कार
ै तयोंकक उन् ोने अपने समय के दे िकाल को ध्यान में रखते ु ए धमि, अथि और काम तत्सव की श्लोक (4)- तत्ससम्बऩ्धात ्।।
अथि- परु ाने समय के आचायों नें मसद्धािंत और व्यव ार रूप में य
साबबत करके बताया
करके उसको अथि और मोक्ष के मत ु ाबबक बनाना मसर्ि धमि के अधीन
ै । न रुकने वाले काम (उिेजना) को काबू में
करके तथा मयािदा में र कर मोक्ष, अथि और काम के बीच सामिंजस्य धमि ु ाबबक जीवन बबताकर मनष्ु य लोक और परलोक दोनों ु आ कक धमि के मत
यतोऽभ्यू दयाननः श्ेयसमसद्धध स धमिः क कर य
सार् कर हदया
इस सिंसार के सख िं ी परलौककक सख ु और मोक्ष सिंबध ु की मसद्धध जजतने से िरीर यात्रा और मन की सिंतजु ष्ट का गज ु ारा इसी का समथिन करते ु ए मनु क ते क ा गया
ोता
ी बना सकता ोता
ै । इसका अथि य
ै । वैिवै षक दििन में ै जजससे अथि, काम सिंबध िं ी
ै । य ािं अथि और काम से इतना
ो सके और अथि तथा काम में डूबे
ैं जो व्यजतत अथि और काम में डूबा ु आ न ीिं
ै तथा इस धमिज्ञान की जजज्ञासा रखने वालों के मलए वेद
इस बात से साबबत
ी स्थावपत कर सकता
ै कक धमि व ी
ोती
ै कक काम को मयािहदत
ी मागिदििक
ी मतलब
ोने का भाव पैदा न
ै
ो।
ै उन् ी लोगों के मलए धमिज्ञान
ै।
ै कक वैिवे षक दििन के मत से अभ्यद ु य का अथि लोकननवाि
मात्र
ी वेद अनक ु ू ल धमि
ोता
ै। धमि की मीमािंसा करते ु ए मीमािंसा दििन नें क ा बनु नयाद मानी जाती
ै । इस प्रकार य
ै कक वेद की आज्ञा
ननष्कषि ननकलता
ी धमि ै। वेद की मिक्षा
ै कक सिंसार से इतना
ी ह न्द ू सभ्यता की
ी अथि और काम मलया जाए जजससे
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
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ाथों को उठाकर और धचल्ला-धचल्लाकर क ता ूिं कक अथि और काम को धमि के अनस ु ार
ै । लेककन इस बात को कोई न ीिं मानता
वस्तत ु ः धमि एक ऐसा ननयम गया
ै।
ै जो लोक और परलोक के बीच में ननकटता स्थावपत करता
अथि, काम और मोक्ष सरलता से प्राप्त
ो जाते
ी ग्र र् करने
ै । जजसके जररये से
ैं। परु ाने आचार्यों द्वारा बताया गया य ी धमि के तत्सव का बोध माना
ै।
धमि की तर प्राप्त न ीिं
अथि भी भारतीय सभ्यता का मल ै । मनष्ु य जब तक अथिमत ू ु त न ीिं
ो सकता। जजस तर
मलए धमि की जरूरत
आत्समा के मलए मोक्ष जरूरी
ोती ै , उसी तर
इसमलए भारतीय ववचारकों ने ब ु त
की पववत्रता को सबसे अच्छा माना गया
ोता
ै , मन के मलए काम की जरूरत
िरीर के मलए अथि की जरूरत ी सावधानी से वववेचन ककया ै । मनु ने अथि सिंग्र
ो जाता तब तक उसको मोक्ष
ोती
ोती
ै, बद् ु धध के
ै।
ै । मनु के मतानस ु ार सभी पववत्रताओिं में अथि
के मलए क ा
ै कक जजस व्यापार में जीवों को बबल्कुल
भी दख ु न प ुिंचे या थोडा सा दख ु प ुिंचे उसी कायि व्यापार से गज ु ारा करना चाह ए। अपने िरीर को ककसी तर
की परे िानी प ुिं चाए बबना ध्यान-मनन उपायों द्वारा मसर्ि गज ु ारे के मलए अथि सिंग्र
करना चाह ए। जो भी परमात्समा ने हदया से मोक्ष की प्राजप्त
ोती
ै उसी में सिंतोष कर लेना चाह ए। इसी प्रकार परू ी जजिंदगी काम करते र ने
ै । इसके अलावा और कोई सा उपाय सिंभव न ीिं
ै।
वेदों, उपननषदों के अलावा आचायों ने अपने द्वारा रधचयत िास्त्रों में अथि से सिंबध िं ी जो भी ज्ञान बोध कराए उनका सारािंि य ी ननकलता ै कक मम ु क्ष ु ु को सिंसार से उतने
ी भोग्य पदाथों को लेना चाह ए जजतने के लेने से
ककसी भी प्रार्ी को दख ु न प ुिं चे। धमि और अथि की तर
का
काम को भी ह द िं ू सभ्यता का आधार माना गया
ै । धमि और अथि की तर
इसको भी मोक्ष
ी स ायक माना जाता ै । अगर काम को काबू तथा मयािहदत न ककया जाए तो अथि कभी मयािहदत न ीिं
सकता तथा बबना अथि मयािदा के मोक्ष प्राप्त न ीिं गिंभीरता से ववचार ककया
ै।
ैं
ो
ोगा। इसी कारर् से भारत के आचायों ने काम के बारे में ब ु त
दनु नया के ककसी भी ग्रिंथ में आज तक अथििद् ु धध के मल ू आधार-काम-पर उतनी गिंभीरता से न ीिं सोचा गया ै जजतना कक भारतीय ग्रिंथ में
ुआ
ै।
भारतीय ववचारकों नें काम और अथि को एक और मन को अलग रखकर ववचार ककया
ी जानकर ववचार ककया
ै उसी तर
ै लेककन भारतीय आचायों नें जजस तर
िरीर
िरीर से सिंबधिं धत अथि को और मन से सिंबधिं धत काम को एक-
दस ू रे से अलग मानकर ववचार ककया ै ।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | काम एक म ती मन की ताकत अमभव्यतत
ै । भौनतक कायों में प्रकट
ोकर 2 भागों में बिंट जाती
ै । क ीिं-क ीिं तो व
ै। य
नछतराकर काम करती
ोकर य
ताकत अन्तःकरर् की कियाओिं द्वारा
ताकत कभी भौनतक िजतत तथा कभी चैतन्य के रूप में प्रकट
ोती
ै तो क ीिं सिंवरर् रूप में काम करती ै ।
र मनष्ु य का जीवन धचत की इन् ी आिंतररक और बाह्य िजततयों के ऐसे बबखराव तथा सिंघषि-स्थल बना र ता अर्-ु अर्ु परमार्ु में मन की य
िजतत समाई ु ई
ै।
ै । इसका एक ह स्सा बा र ै तो एक अिंदर। इसमें से एक
ह स्सा तो व्यजतत को प्रववृ ि की तरर् ले जाता ै और दस ू रा ननववृ ि की तरर्। मल ू वासनाएिं
ी मन की असली प्रववृ ियािं क लाती
ै।
र तर
की वासनाओिं या मल ू प्रववृ ियों का वगीकरर् ककया
जाए तो ववतैषर्ा, दारै षर्ा और लोकेषर्ा इन तीनों ह स्सों में सभी वासनाओिं अथवा मन की मल ू प्रववृ िर्यों का समावेि
ो जाता
ै । धन, स्त्री, पत्र ु और यि आहद की इच्छा के मल ू में आनिंद का उपयोग र ता
वासनाओिं, इच्छाओिं या प्रववृ ियों का प्रार् आनिंद न ीिं तैविरीय उपननषद का मानना समद ु ाय जीववत र ते
ै कक आनिंद से
ैं तथा आनिंद में
ोते
ैं। आनिंद
ोती
स्त्री और लोक सभी कुष आनिंद को बढ़ाने की इच्छा रखते
ै, आनिंद से
ी सब कुछ
व ृ दारण्यक उपननषद के अिंतगित आनिंद का एकमात्र स्थान जननेजन्िय
ो और उनके भरर्-पोषर् के मलए धन
सी परे िाननयों को झेलकर काम करता
ै। व
चीजों में से कोई भी एक चीज उपलब्ध न ीिं
ी उत्सपन्न सारी वस्तु तथा जीव-
ै।
ै । बाकी सभी चीजें आनिंद के साधन
ै । ववि,
ैं।
स्वामी ििंकराचायि के मतानस ु ार अिंतरात्समा प ली अकेली थी लेककन कालािंतर में व स्त्री, पत्र ु
की
ोता।
ी भत ू ों की उत्त्पनत
ी लीन
ै । इसी तर
ववषयों को खोजने लगा जैसे मेरी
ो। उन् ी के मलए व्यजतत अपने प्रार्ों की परवा
न करते ु ए ब ु त
उनसे बढ़कर और ककसी चीज को स ी न ीिं मानता। यहद बताई गई ोती तो व
अपनी जजिंदगी को बेकार समझता
ै।
जीवन की पर् ि ा अथवा अपर् ि ा, सर्लता अथवा असर्लता का मापक यिंत्र आनिंद को माना जाता ू त ू त
ै । ववषयों से
ताल्लक ु रखने में मनष्ु य को भरपरू आनिंद ममलता ै । इस प्रकार य
ै कक उसके
इजच्छत ववषयों में से एक के भी समाप्त से व
अपने आपको यथाथि समझता
ोने पर व
परू ी तर
से साबबत
ो चक ु ा
मनष्ु य अपने आपका सविनाि कर दे ता
ै और उसकी उपलजब्ध
ै।
ििंकराचायि ने िह्मसत्र ू के िािंकट भाष्य के अिंतगित इस बात को स्वीकार ककया ै । उन उदा रर्ों के द्वारा य ननष्कषि ननकलता
ै कक
र व्यजतत जोडे के द्वारा अपनी पर् ि ा की इच्छा रखता ै । सजृ ष्ट की िरु ू त ु आत में जब िह्म
अकेले थे तो उनके मन में य ी सिंकल्प पैदा ु आ कक एकोऽ अपर् ि ा से पैदा ू त
ोने वाले अभाव को व्यतत को करती ै ।
र मनष्ु य रनत को तलाि करना चा ता चा ता
ब ु स्याय! एक से ब ु त सारे
ै, उसे बढ़ाने की कोमिि करता
ै, अनेक
ो जाने की ख्वाह ि
ी
ोकर आनिंद का उपभोग करना
ै।
अकेले में उसे आनिंद प्राप्त न ीिं
ोता, अकेले में ककसी तर
का आनिंद न ीिं
ै इसमलए उसे दस ू रे की जरूरत पडती
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इसके द्वारा 3 बातें मसद्ध प्रव ृ ृ्वि
ोती
ै कक एक तो य
कक दो मभन्नताओिं के बीच के सिंबध िं को काम क ते
ै जो ववषय और ववषयी को एकात्समा बनाती
दस ू री बात य
ी था। व
प ले उसने वातय क ा। मैं ूिं का बोध
ोने पर भी व
एक
ै।
ै कक काम-प्रववृ ि ववषय और रमर् की इच्छा आहद िजतत
प ले वे आत्समा से एक
ैं। य
ै। व
अकेला था इसका उसे बोध था-
परु ु ष ववध था। उसने अपने अलावा और ककसी को न ीिं पाया। मैं ूिं इस तर
खुि न ीिं ु आ इसमलए दस ू रे की इच्छा की- स द्ववतीयमैच्छत- व
कर्र ववषय ने अनेक का रूप धारर् कर मलया -
दस ू रा ववषय था।
सोऽकामयत ब ु स्याथािं प्रजायते इनत- उसने चा ा कक मै अनेक
जाऊिं, मैं पैदा करुिं ।तदै दात ब ु स्थािं प्रजायेय इनत। उसने सोचा कक मैं अनेक
ो
ो जाऊिं मैं सज ृ न करूिं।
स ऐक्षत लोकान्नु सज ृ ा इनत। उसने सोचा कक मैं लोकों की सजृ ष्ट करूिं। उसके चा ने और सोचने पर भी इसकी सभी कियाओिं के मल ू में मसर्ि काम-प्रव ृ ृ्वि
ै । उसे जैसे
ी अ मजस्म- मैं ूिं का बोध ु आ वैसे
मददगार की इच्छा करने लगा।
ी व
डरा तथा एक
जब जीव अववद्याग्रस्त ु आ तो उसे अपने अजस्तत्सव का ज्ञान ु आ कक मैं ूिं । इसके बाद उसे अपनी प ले की
जस्थनत को जानने की इच्छा ु ई जजससे उसके हदल में दस ू रे का बोध ु आ। दस ू रे के बारे में हदमाग में आते
ी व
डर गया, उसे उस तरर् से ववकषिर् ु आ और कर्र ववकषिर् से आकषिर् पैदा ु आ कक अकेले सिंभोग न ीिं ककया जा सकता इसमलए हदल में दस ू रे की इच्छा पैदा ु ई। सबसे प ले जीव को दस ू रे का बोध ोती
ै । जजस जग
पर डर पैदा
ोता ोता
ै उसके बाद डर पैदा
ोता
ै । डर तभी पैदा
ोता
ै जब मभन्नता उत्सपन्न
ै व ािं पर डर को दरू करने के मलए खोई ु ई चीज की इच्छा पैदा
ोती
दाििननक की दृजष्ट में इसी प्रेम-भय, प्रववृ ि-ननव ृ ृ्वि, आकषिर्-ववकषिर्, राग-द्वेष में अववद्या का स्वरूप जस्थर र ता परु ाने समय से अनिंत जीव-समद ु ाय इसी में र्िंसा ु आ और दस ू रों को अपने से अलग इसमलए साबबत
ोता
ै । इस तर
ै। ै।
के सभी अज्ञान के मल ू में दस ू रे के प्रनत आकषिर्
ी जानना चाह ए।
ै कक काम और आकषिर् की इच्छा
वासनाओिं के मल ू में काम मौजद ू
ी ववश्व वासना क लाती
ै । अववद्या, आकषिर् आहद सभी
ै । इसी प्रकार से वेदों, परु ार्ों में भी कायि को आहददे व क ा गया
ै।
काम िरु ु आत में पैदा ु आ। वपतर, दे वता या व्यजतत उसकी बराबरी न कर सके। िैव धमि में परू े सिंसार के मल ू में मिव और िजतत का सिंयोग माना जाता
ै।
य ी न ीिं िैव मत के अिंतगित आध्याजत्समक पक्ष में आहद वासना परु िं में प्रकामित ै तथा व ी ु ष और प्रकृनत के सिंबध भौनतक पक्ष में स्त्री और परु ु ष के सिंभोग में पररर्त
ै।
परू ी दनु नया को मिव परु ार् और िजततमान से पैदा ु आ िैव तथा िातत समझता ुआ य
जगत स्त्री पस िंु ात्समक
ी
ै । िह्म मिव
ोता ै तथा माया मिव
ै और स्त्री को प्रकृनत परमेश्वरी। जगत के सारे परु ु ष परमेश्वर
ोती
ै । परु ु ष और स्त्री के द्वारा पैदा
ै । परु ु ष को परम ईिान माना जाता
ै और स्त्री परमेश्वरी
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इन दोनों का ममथुनात्समक सिंबध िं
ी मल ू वासना
ै तथा इसी को आकषिर् और काम क ा जाता ै ।
इसके अलावा मिवपरु ार् में 8 से लेकर 12 प्रकरर् तक काम के ववषय में जो बताया गया मैथुनाववषयक काम के अथि में
ी प्रयोग ककया गया ै । उनके अनस ु ार य
ै उसमे काम को
मानना ककतना सच
ै कक ववश्वाममत्र,
सख ु दे व, श्िंग ृ ी जैसे ऋवष और श्ीराम जैसे साक्षात ईश्वर के अवतार भी काम के जाल में र्िंसे ु ए मिव परु ार् की धमि सिंह ता और वात्ससायायन के कामसत्र ू में मलखा र ती
ै कक सिंकल्प के मल ू में ववषय आसजतत
ी बनी
ै।
काम को मन का आधार माना जाता सकता
ै।
ै जो बच्चे के कोमल हृदय में सबसे प ले सपिंहदत
ै जो सच्चाई को दे खने की इच्छा रखता
ोता
ै । इसको व ी जान
ै।
श्लोक (5)- प्रजापततहिं प्रजाः सष्ृ टवा तासां स््ितततनबंधनं त्रत्रवगग्य साधनमध्यायानां शतसि्त्रेणाग्रे प्रोवाच।। अथि- प्रजापनत ने प्रजा को रचकर और उनके रोजाना कायि धमि, अथि और काम के साधन भत ू िास्त्र का सबसे प ले 1 लाख श्लोकों में प्रवचन ककया
ै।
भारतीय मसद्धान्त के मत ु ाबबक जब तक द्विंद (अिंदरूनी लडाई) को ननकालकर र्ैं क दे ना चाह ए। भगवान मिव के समान दस ू रा कोई न ीिं न ीिं
ै । मनष्ु य का गम्य स्थान भारतीय दाििननकों नें इसे
करने के मलए
ी ुआ
ै । िह्मववद्या के अिंतगित य
ी क ा
ै तब तक दख ु भी र े गा। इसमलए दख ु ै । इन तीनों ववषयों की ज्वाला य ािं पर
ै । भारतीय वागिंमय का ननमािर् भी इसी को प्राप्त
सारी ववद्याएिं मौजूद
ै।
सारे दे वताओिं से प ले परू े सिंसारे की रचना करने वाले प्रजापनत िह्मा की उत्सपवि ु ई। िह्मा ने अपने
सबसे बडे पत्र ु अथवि के मलए िह्मववद्या का ननमािर् ककया जो कक सार् पता चल जाता
र ववद्या में सबसे बढ़कर
ै कक िह्मववद्या के अिंतगित कामिास्त्र को भी म त्सव हदया गया
ै । इससे इस बात का
ै।
आचायि वात्ससायायन के मतानस ु ार बह्मा ने प्रजा को उनके जीवन को ननयममत बनाने के मलए कामसत्र ू के बारे में बताया था- जो कक सस िं त और परिं परागत माना गया ु ग साधन मानकर इसकी रचना की भी मोक्ष को प्राप्त करना
ी
ै । बह्मा ने कामसत्र ू को काम, अथि और धमि का
ै तयोंकक इन तीनों का आणखरी पडाव मोक्ष
ी ै और मनष्ु य के जीवन का मकसद
ै । इसमलए जब तक मोक्ष की असली पररभाषा को ब ु त अच्छी तर
जाएगा तब तक इसको प्राप्त करना ब ु त
ी ज्यादा मजु श्कल
ै।
िह्मा के मलए कामिास्त्र का ननमािर् करना इसमलए जरूरी
ै कक काम आहददे व
ै, इसकी िजतत अपार
ै । जब तक काम का ननयममत साधन न ीिं ककया जाता तब तक मानव जीवन भी ननयममत न ीिं उसकी कहठन से कहठन तपस्या पर भी पानी र्ेर सकता
से समझा न ीिं
ो सकता और
ै।
योगवमिष्ठ के मतानस ु ार- िाह्मर्ों को जीवनमत ु त, नारदिऋवष, इच्छा से रह त, ब ु ज्ञ तथा ववरागी समझा जाता व
दे खने में आकाि की तर
कोम, वविद और ननत्सय
ोते ै , लेककन कर्र भी व
काम के विीभत ू ककस प्रकार
गए।
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ै। ो
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | तीनों लोकों के जजतने भी प्रार्ी द्वयात्समक
ोता
ै । जब तक िरीर मौजद ू
ै चा े व
मनष्ु र्य
ो या दे वता, उन सभी लोगों का िरीर स्वभाव से
ै तब तक िरीर धमि स्वभाव से
ै उसको ननरोध के द्वारा न ी दबाया जा सकता तयोंकक तया काम।
ी जरूरी
र जीव प्रकृनत के अनस ु ार
ै । जो वासना प्राकृनतक
ी चलता
ोती
ै तो कर्र ननग्र
का
प्रकृनत याजन्त भत ू ानन ननग्र ः कक कररष्यनत। इसी प्रकार मल ू भत ू प्रववृ ियों का ननरोध करना बेकार कामसत्र ू की सबसे ज्यादा जरूरत मानते ु ए इस कथन के द्वारा
ै । आचायि वात्ससयायन के मतानस ु ार मानव जीवन में
ी सबसे प ले िह्मा जी ने कामसत्र ू की रचना की थी। इसके साथ
ी ग्रिंथ की प्रामाणर्कता साबबत
ो जाती
ी
ै।
श्लोक ( )- त्यैकदे शशकं मनःु ्वायम्भव ु ो धमागधधकाररकं पि ृ क् चकार।।
अथि- बह्मा के द्वारा रचे गए 1 लाख अध्यायों के उस ग्रिंथ के धमि ववषयक भाव को स्वयम्भू के पत्र ु मनु ने अलग ककया। श्लोक (7)- बि ृ ्पततिागधधकाररकम ्।। अथि- अथििास्त्र से सिंबधिं धत ववभाग को ब ृ स्पनत ने अलग करके अपने अथििास्त्र का ननमािर् ककया। श्लोक (8)- मिादे वानच ु रश्च नन्दी सि्त्रेणाध्यायानां पि ू ं प्रोवाच। ृ क् कामसत्र अथि- इसके बाद उस िास्त्र में से 1000 अध्याय वाले कामसत्र ू को म ादे व के अनच ु र नन्दी ने अलग कर हदया। श्लोक (9)- तदे व तु पञ्ञशभरध्यायशतैरौद्दालककः श्वेतकेतःु सस्ञ्ञक्षेप।। अथि- उद्यालक के पत्र ु श्वेतकेतु ने नन्दी के उस कामसत्र ू को 500 अध्यायों में करके परू ा कर डाला। श्लोक (10)- तदे व तु पन ु रध्यध़ेनाध्यायशतेन साधारण-साम्प्रयोधगककन्यासम्प्रयक् ु तकभायागधधकाररक-पारदाररकवैशशकऔपतनषहदकैः सप्तशभरधधकरणैबागभ्रव्यः पाञ्ञालञ्ञक्षेप।। अथि- इसके बाद पाञ्ञाल दे ि के बभ्रु के बेटे ने श्वेतकेतु के 500 अध्यायों वाले कामसत्र ू को 100 अध्यायों में साधारर् साम्प्रयोधगक, कन्या सम्प्रयत ु त, भायािधधकाररक, पारदाररक, वैमिक और औपननषहदक नाम के 7 अधधकरर्ों में जोडकर पेि ककया। मानव जीवन के मकसद को ननधािररत करने के मलए और उसे काबू करने के मलए िह्मा ने एक सिंववधान बनाया जजसके अिंदर लगभग 1 लाख अध्याय थे। इन अध्र्यार्यों में जीवन के
र प लू का वविद्, सिंयमन और ननरूपर्
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | का उल्लेख था। मनु ने उस वविाल ग्रिंथ को मथकर आचारिास्त्र का एक अलग सिंस्करर् पेि ककया जो मनस् ु मनृ त या धमििास्त्र के नाम से प्रचमलत
ै।
मनु ने जो मनस् ु मनृ त रची थी व सिंक्षक्षप्त वववरर्
असली रूप में उपलब्ध न ीिं
ै । प्रचमलत स्मनृ त उसी स्मनृ त का
ै जजसे मनु ने पेि ककया था। आचायि ब ृ स्पनत ने भी उसी वविाल ग्रिंथ के द्वारा अथििास्त्र ववषयक
भाग अलग करके बा िस्पत्सयम अथििास्त्र की रचना की। कौहटल्य के अथििास्त्र में ब ृ स्पनत के अथििास्त्र के अिंतगित दे खने को ममलते
ी
ै।
िह्मा से लेकर बाभ्रव्य तक की कामिास्त्र की रचना पर वव िं गम दृजष्ट डालने से ग्रिंथ रचना पद्धनत की परिं परा और उसके इनतवत ृ का भी बोध बताया
ै । इससे य
बात साबबत
ोता
ो जाती
ै । कामिास्त्र को िह्मा ने न ीिं रचा उन् ोने तो मसर्ि इसके बारे में ै कक रचनाकाल से
ी कामसत्र ू का प्रवचन काल िरू ु
ोता
ै।
कामसत्र ू के छठे और सातवें अध्याय से पता चल जाता ै कक िह्मा के प्रवचन िास्त्र से प ले मनु ने मानवधमि को अलग ककया, उसके बाद ब ृ स्पनत ने अथििास्त्र को अलग ककया, इसके बाद कर्र नन्दी ने इसको अलग ककया।
इसके बाद अथििास्त्र और मनस् ु मनृ त की रचना ु ई तयोंकक ब ृ स्पनत और मनु ने कामसत्र ू की रचना न ीिं
की बजल्क इसे मसर्ि अलग ककया
ै । इसके बाद
ी श्वेतकेतु और नन्दी ने इसके 1000 अध्यायों को छोटा करके
500 अध्यायों का बना हदया। इस बात से सार् जाह र
ो जाता
ै कक िह्मा द्वारा रधचत िास्त्र में से नन्दी ने
कामववषयक सत्र ू ों को एक स स्त्र अध्यायों में बािंट हदया। उसने अपनी ओर से इसमें कुछ भी बदलाव न ीिं ककया तयोंकक व
प्रवचन काल था। उसने जो कुछ भी पढ़ा या सन ु ा था व
काल में सिंक्षक्षप्तीकरर् का प्रचलन प्रर्ाली प्रचमलत
ऐसे
ी मिष्यों और जानने वालों को बताया। लेककन श्वेतकेतु के
ो चुका था और बाभ्रव्य के काल में तो ग्रिंथ-प्रर्यन और सिंपादन की एक मजबत ू
ो गयी। पािंचाल द्वारा तैयार ककए गए 7 अधधकरर् इस प्रकार ै -
•साधारर् अधधकरर् •साम्प्रयोधगक अधधकरर् •कन्या सम्प्रयत ु तक अधधकरर् •भायािधधकाररक अधधकरर् •पारदररक अधधकरर् •वैमिक अधधकरर् •औपननषहदक अधधकरर् ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (11)- त्यं षष्ठं वैशशकमधधकरणं पाटशलपत्रु त्रकाणां गणणकानां तनयोगाद् दतक पि ृ क चकार।। अथि- आचायि दिक ने बाभ्राव्य द्वारा सिंक्षक्षप्त ककए गए कामसत्र ू के छठे भाग वैमिक नामक अधधकरर् को अलग कर हदया। उन् ोने य
सब पाटमलपत्र ु की गणर्काओिं द्वारा अनरु ोध करने पर
ी ककया था।
श्लोक (12)- तत्सप्रसगांत ् चारायणः साधारणमधधकरणं पि ु णगनाभः साम्प्रयोधगकम ्। घोटकमख ु ः ृ क् प्रोवाच। सव कन्यासम्प्रयक् ु तकम ्। गोनदीयो भायागधधकाररकम ्। गोणणकापत्र ु ः पारदाररकम ्। कुचुमार औपतनषहदकशमतत।। अथि- आचायि चारायर् ने इसी प्रसिंग से साधारर् नाम के अधधकरर् का पथ ृ क प्रवचन ककया। साम्प्रयोधगक नाम के अधधकरर् को आचायि सव ु र्िनाभ ने अलग ककया। कन्यासम्प्रयत ु तक नाम के अधधकरर् को आचायि घोटकमख ु ने अलग ककया। आचायि गोनदीय ने भायािधधकाररक नाम के अधधकरर् को अलग ककया। पारदाररक नाम के अधधकरर् को गोणर्कापत्र ु ने कामसत्र ू से अलग ककया और औपननषहदक नाम के अधधकरर् को आचायि कुचुमार ने अलग ककया। श्लोक (13)- तत्र दतकाहदशभः प्रणीतानां शा्त्रावयवानामेकदे शत्सवात ् मिहदतत च बाभ्रवीय्य दरु ध्येयत्सवात ् संक्षक्षप्य सवगमिगमल्पेन ग्रंिेन कामसत्र ू शमदं प्रणीतम ्। अथि- दिक आहद आचायों ने ववमभन्न प्रकार के अधधकरर्ों को लेकर अपने-अपने ग्रिंथों की रचना की। इस प्रकार ये खिंड समग्र िास्त्र के
ी भाग माने जाते
मनष्ु यों के मलए दरु ध्येय
ैं और आचायि बाभ्रव्य का मल ू ग्रिंथ वविाल
ोने की वज
ै । इसमलए उस म ान ग्रिंथ को वात्सस्यायन ने सिंक्षक्षप्त करके थोडे
से साधारर्
ी में सारे ववषयों से
सिंपन्न कामसत्र ू की रचना की। मानव जानत की तरतकी और उसकी परिं परा को बनाए रखऩे के मलए िह्मा ने काम, अथि और धमि तीनों परु ु षाथों को प्राप्त करने के मलए 100 अध्यायों में उपदे ि हदए
ैं। उस प्रवचन में से धमािधधकाररक भागों को लेकर
मनु ने मनस् ु मनृ त की रचना की। ब ृ स्पनत ने अथिपरू क ववषयों को लेकर अथििास्त्र की स्वतिंत्र रचना की। कर्र उसी प्रवचन में से काम के ववषय के भागों को लेकर नन्दी ने एक स स्त्र अध्यायों में कामसत्र ू की रचना की। िह्मा से लेकर नन्दी तक की परिं परा को दे खकर य
पता चलता
ै कक कामसत्र ू िह्मा द्वारा सजृ ष्ट की
रचना करने से प ले भी था। सजृ ष्ट की रचना के बाद उन्ननत और मानवी परिं परा को बनाए रखने के मलए िह्मा ने कामसत्र ू का भी उपदे ि हदया जो धमि और अथि से सिंबधिं धत था। उस वविाल प्रवचन के आधार पर
ी नन्दी ने स स्त्र
अध्यायों के एक स्वतिंत्र कामिास्त्र की रचना की अथाि कामसत्र ू के प्रवतिक नन्दी ै । आचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू ग्रिंथ की िरु ु आत में सम्यक समावेि ककया गया
ी दावा ककया था कक इसमें सभी प्रयोजनों का
ै।
श्लोक (14)- त्यायं प्रकरणधधकरणसमद् ु दे शः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- कामसत्र ू के प्रकरर्, अधधकरर् और समाद्वेि की सच ू ी इस प्रकार ोगा उसे प्रकरर् करते
ैं जजसके प्रकरर्
ोते
ैं उसे अधधकरर् क ते
ै- अधधकार पव ि ववषय ज ािं िरु ू क ु
ैं तथा सिंक्षक्षप्त कथन को समद ु द्वेि क ते
ैं।
श्लोक (15)- शा्त्रसंग्रिः। त्रत्रवगगप्रततपत्तः। त्वद्यासमद् ु दे शः। नागरकवत ू ीकमगत्वमशगः। इतत साधारणं ृ म ्। नायकसिाय-दत प्रिमाधधकरणम ् अध्यायाः पञ्ञ। प्रकरणातन पञ्ञ।।
अथि- कामसत्र िं न अधधकरर् अध्याय और प्रकरर् के रूप में ककया गया ै । प ले अधधकरर् का ू का अनब ु ध नाम साधारर् इस कारर् से रखा गया
ै कक इस अधधकरर् में ग्रिंथातगित- सामान्य ववषयों का पररचय
मसद्धान्त की व्याख्या अथवा ताजत्सवक वववेचन न ीिं ककया गया
ै, ककसी
ै।
प ला प्रकरर्, प ला अध्याय- िास्त्र-सिंग्र । य ािं पर िास्त्र-सिंग्र
का अथि
ै इस िास्त्र की सच ू ी। ग्रिंथ
मलखने से प ले लेखक एक ववषय सच ू ी तैयार करता ै और उसी सच ू ी के द्वारा ग्रिंथ की रचना करता ै । इसी प्रकार आचायि वात्सस्यायन ने अपने ग्रिंथ की ववषय सच ू ी का नाम िास्त्र सिंग्र िामसत ु आ
रखा
ै अथाित व
सिंग्र
जजससे य
ग्रिंथ
ै। दस ू रा प्रकरर्, दस ू रा अध्याय- बत्रवगि प्रनतपावि। काम, धमि और अथि य
की प्राजप्त का नाम प्रनतपावि
ै । इस अध्याय और प्रकरर् में य
प्रकार प्राप्त ककया जा सकता
ै।
भी बताया गया
3 बत्रवगि क लाए जाते
ैं। बत्रवगि
ै कक धमि, अथि और काम को ककस
तीसरा प्रकरर्, तीसरा अध्याय- ववद्यासमद् ु दे ि। य ािं पर सारी ववद्याओिं की नाम की सच ू ी को ववद्या समद् ु दे ि का नाम हदया गया
ै । इस अध्याय का मख् ु य मकसद
ै कक मानव को स्मनृ त, श्नु त, अथि ववद्या और उसकी
अिंगभत ू ववद्या दिं डनीनत के अध्ययन के साथ कामसत्र ू का अध्ययन जरूर करना चाह ए। य ािं पर ववद्याओिं की नामसच ू ी का अथि सिंभोग की 64 कलाओिं से
व्यजतत से
ैं।
चौथा प्राकरर् चौथा अध्याय- नागरकवत ू कार का अथि ववदग्ध अथवा रमसक ृ । नागरक से काम सत्र
ोता
ै और वि ृ का अथि आचरर् न ीिं बजल्क हदनचयाि समझना चाह ए।
कामसत्र ू के मत ु ाबबक मनष्ु य का सबसे प ले ववद्या पढ़नी चाह ए, कर्र अथोपाजिन करना चाह ए और इसके बाद वववा
करके ग ृ स्थ जीवन में प्रवेि करके नागरक वि ृ का आचरर् करना चाह ए। कोई भी मनष्ु य जब
तक कामकलाओिं की मिक्षा प्राप्त न ीिं कर लेता ै तब तक उसको वववा को स ी तरीके से चलाने के मलए अथि सिंग्र
जरूरी
स ी तरीके से चलाने में सक्षम ु आ करता
ै।
करने का कोई
ै । समु िक्षक्षत, धन-सिंपन्न मनष्ु य
क न ीिं
ै । ग ृ स्थ जीवन
ी अपने वैवाह क जीवन को
पािंचवािं प्रकरर्, पािंचवािं अध्याय- नायक स ायदत ू ी- कमि- ववमिि। आचायि वात्सस्यायन के मतानस ु ार वववा से प ले वर्ि धमि के मत िं स्थावपत करना चाह ए। अगर इस तर ु ाबबक स्त्री और परु ु ष का चुनाव करके प्रेम सिंबध प्रेम सिंबध िं ों को स्थावपत करने में ककसी तर
की रुकावट आती
के
ै तो मदद के मलए स्त्री या परु ु ष को जररया बनाना
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | चाह ए। स्त्री-परु ु ष ककस तर
के सिंबध िं स्थावपत करें , ककस तर
अिंतगित इन् ी बातों का उल्लेख ककया गया
के व्यजतत को अपना जररया बनाएिं, इस अध्याय के
ै।
श्लोक (1 )- प्रमाणकालाभावेभ्यो रताव्िापनम ्। प्रीततत्वशेषाः। आशलंगनत्वचाराः। ,चुम्बनत्वकल्पाः। नखरदनजातयः। दशनच्छे द्यत्वधयः। दे श्याउपचाराः। संवेशनप्रकाराः। धचत्ररतातन। प्रिणयोगाः। तद्यक् ु ताश्च। सीत्सकृतोपक्रमाः।
परु ु षातयतम ्। परु ु षोपसप्ृ तातन। औपररष्टकम ्। रतारम्भावसातनकम ्। रतत्वशेषाः। प्रणयकलिः। इतत साम्प्रयोधगकं द्त्वतीयमधधकरणम ्। अध्याया दश। प्रकरणातन सप्तदश।।
अथि- दस ू रे अधधकरर् में अध्यायों और प्रकरर्ों को इस प्रकार से बताया गया ै -
•प्रमार्, भावों और काल के मत ु ाबबक सिंभोग किया की व्यवस्था करना। •प्रनतभेद। •आमलिंगन। •चुिंबन प्रकार। •नखच्छे दन-प्रकार। •दिं तच्छे दन-प्रकार। •अलग-अलग प्रदे िों के लोगों की अलग-अलग प्रववृ ियािं। •सिंभोग के प्रकार। •ववधचत्र प्रकार के ववमिष्ट रत। •मट् ु ठी मारना। •अलग-अलग स्रोकों से पैदा ु ई सी-सी करना। •थकने के बाद परु ु ष का स्त्री के समान व्यव ार करना। •परु ु ष का पास आना। •औपररष्टक (मख ु मैथन ु )। •सिंभोग किया की िरु ु आत और आणखरी में कििव्य। •उिेजना के प्रकार। •प्रर्य कल । इस अधधकरर् के अिंतगित य
17 प्रकरर् हदए गए
ैं और 10 अध्याय
ैं।
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इस दस ू रे अधधकरर् का नाम साम्प्रयोधगक ोने की वज
से इस ग्रिंथ में य
ै । सम्प्रयोग से मतलब य ािं सिंभोग से
खासतौर से बताया गया
ैं। कामसत्र ू का ग्रिंथ
ै परु ु ष अथि, धमि और काम नामक तीनों वगों की प्राजप्त
के मलए जस्त्रयसाधयत अथाित स्त्री को प्राप्त करें । आचायि वात्सस्यायन स्त्री को पाने का सबसे बडा लक्ष्य सिंभोग को मानते
ैं। लेककन जब तक सिंभोग किया की परू ी जानकारी न
मजु श्कल
ै और न
ी ककसी तर
की आनिंद की प्राजप्त
ो तब तक इसमें परू ी तर
ैं। य
कोई खास ववषय न ीिं
काम का मख् ु य भाग आकषिर्
ै या कर्र आकषिर् का खास अिंग काम ोता
ै, तब व
ै , बराबर वालों के प्रनत ममत्रता, प्यार और स योगी के रूप में ोता
ै व
कामसत्र ू की उपर्यत ुि त सिंभोग कियाओिं के
ैं। आध्याजत्समक नजररये से भी जगदवैधचन्य मैथुनात्समक और कामात्समक
य ी आकषिर् जब बडो के प्रनत के रूप में प्रकट
से कामयाबी ममलना
ोगी।
ऋग्वेद में सिंभोग के जजन 10 उपायों को बताया गया अिंतगित
ै।
ोता
ै, अपने से छोटों के प्रनत दया और अनक ु िं पा आहद ै । व ीिं काम मािं के स्तनों में वात्ससल्य के रूप में
प्रेमी का आमलिंगन करते समय कामरूप में और व ी काम दीन-दणु खयों के प्रनत कृपा के रूप में अवतररक
आकषिर्। इसी वज परु ु ष काममय
ी मानमसक भाव प्रवाह त र ता
से ब ृ दारण्यक उपननषद में बताया गया
ै । काम मन की जरूरत
ै।
श्द्धा, भजतत आहद सम्मान के भावों में हदखाई पडता
ै और बच्चों के प्रनत वात्ससल्य भाव बनता
मगर इन सारे रूपों में एक
ी
ै, व
ोता
ोता
ै।
ै ममथन िं - काम या ु का सिंबध
ै-
ै।
श्लोक (17)- वरणत्वधानम ्। सम्बन्धतनणगयः। कन्यात्व्त्रम्भणम ्। बालायाः। उपक्रमाः। इंधगताकारसच ू नम ्। एकपरु ु षाशभयोगः। प्रयोज्य्योपावतगनम ्। अशभयोगतश्च कन्यायाः। प्रततपत्तः त्ववाियोगः। इतत कन्यासम्प्रयक् ु तकं तत ृ ीयाधधकरणम ्। अध्यायाः पञ्ञ। प्रकरणातन नव।। अथि- इसके बाद कन्या सम्प्रयत ु त नाम के तीसरे अधधकरर् के प्रकरर्ों का ननदे ि ककया जा र ा
ै-
•कन्यावरर्। •वववा करने के बारे में र्ैसला करना •कन्या को भरोसा हदलाना। •कन्या में प्यार पैदा करने का ढिं ग। •इिारों आहद को समझना। •इिारों, कोमििों या ककसी ब ाने से दे खी ु ई कन्या से वववा करने की कोमिि। ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | •कन्या द्वारा अपने च ेते को अपनी ओर आकवषित करना। •अपने प्रेमी को अमभयोगों द्वारा प्राप्त करना। इस अधधकरर् के 9 प्रकरर् सख ु ी दािंपत्सय जीवन की किंु जी माने गए वववा
को धाममिक बिंधन मानते ु ए हदल का ममलाप स्वीकार करता
जानकर मनचा े खूिंटे पर बािंधने का समथिन करता प्रदान करता
ै । इसमलए इसका ववधान
ै और न
ै। व
ैं। कामसत्र ू के रधचयता वात्सस्यायन
लडककयों को न तो मसर्ि भेड-बकरी
ी उन् े उच्छखल और व्यमभचाररर्ी बनने की स्वतिंत्रता
ै कक लडककयािं और लडके अपनी यव ु ावस्था में प ुिं चने पर सिंभोग की 64
कलाओिं का अध्ययन करें तथा अपना जीवन साथी तलाि करने में अपने हदल और बद् ु धध का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें । इस बात की सच्चाई से इिंकार न ीिं ककया जा सकता कक एक-दस ू रे से ववमिष्ट
ैं। इनमें से एक तकिपर् ू ि ववृ ि
मनष्ु य चा ती य
ै।
ी मनष्ु र्य का मन
भी सच्चाई
र समय भटकता र ता
ोने पर जब इच्छाएिं परू ी न ीिं
ोती तो व
मन में जमा
इच्छामात्र
ै।
ै । इच्छाएिं
मेिा परू ी
ोना
ोकर ववक्षोभ उत्सपन्न करती ो जाती
ै । जजसका नतीजा य
ै और अगर व ोता
ै कक उस व्यजतत
ै।
श्लोक (18)- एकचाररणीवत ग ावत ु भगवत ु ग ृ म ्। प्रवासचयाग। सपलीषु ज्येष्ठावत ृ म ्। कतनष्ठावत ृ म ्। पन ृ म ्। दभ ृ म ्।
आन्तःपरु रकम ्। परु ग धधकरणम ्। अध्यायौ द्वो प्रकरणान्यषटौ।। ु ष्य बह्वीषु प्रततपत्तः। इतत भायागधधकाररकं चति ु म
अथि- इस अधधकरर् का नाम भायािधधकाररक
ै।
ालात के बिंधन से अथवा राजदिं ड के
ै तो उसकी इच्छा किया रूप में जमा
ोती तो एक तर् ू ान के रूप में मन में समा जाती
के मन और मजस्तष्क का सिंतल ु न बबगड जाता
र प्रार्ी समू
ै।
ै ककसी व्यजतत को उसकी मनचा ी चीज दे ि, काल, समाज या
डर से न ममलकर ककसी दस ू रे को ममल जाती इच्छाएिं परू ी न ीिं
ै । दििनिास्त्र के अनस ु ार
र समय अपनी इच्छाओिं को परू ी करने की कोमिि में लगा र ता
ालात अनक ु ूल
ैं जो
ै और दस ू री ववचारिन् ू य ववृ ि। य ी ववृ ि अपने को काम-सिंभोग,
भख ू -प्यास और ब ु त सी इच्छाओिं के रूप में प्रकट करती इच्छाओिं के कारर्
र आदमी के अिंदर ऐसे 2 तत्सव र ते
ै । इसके अिंतगित 8 प्रकरर् और 2 अध्याय
ै-
•मसर्ि अपने पनत पर ी अनरु ाग रखने वाली पत्सनी का कििव्य। •पनत के क ीिं दरू जाने पर पत्सनी का कििव्य। •सबसे बडी पत्सनी का अपनी से छोटी सौतनों के साथ बतािव। •सबसे छोटी पत्सनी का अपनी से बडी सौतनों के साथ बतािव। •दस ू री बार वववाह त ववधवा का र्जि। ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | •अभाधगनी पत्सनी का अपनी सौतनों और पनत को खुि रखने का ववधान। •अिंतःपरु (म लों में र ने वाले) के र्जि। •पनत का अपनी ब ु त सारी पजत्सनयों के प्रनत कििव्य। वववा ोती
के बाद
र कन्या, कन्या न क लाकर पत्सनी क लाती
ै । इसके अिंतगित इन दोनों प्रकार की पजत्सनयों के कििव्य हदए जा र े
चलाने के ननयमों को आचायि वात्सस्यायन अच्छी प्रकार जानते एक छोटी सी धचिंगारी
ैं। ग ृ स्थ जीवन को सख ु -सिंपन्न रूप से
ैं। उसे इस बात की जानकारी भी
ै जो परू े घर को जलाकर राख कर दे ती
करता ु आ इस अधधकरर् द्वारा सझ ु ाव पेि करता
ै । पत्सनी और सप्तनी 2 प्रकार की भायाि
ै। व
ै कक व
कौन सी
घर को सख ु ी बनाने के मलए मिंगल कामना
ै।
श्लोक (19)- ्त्री-परु ु षशीलाव्िापनम ्। व्यावतगनकारणातन। ्त्रीषु शसद्धाः परु ु षाः। अयन्तसाध्या योत्षतः। पररचयकारणातन। अशभयोगाः। भावपरीक्षा। दत ू ीकमागणण। ईश्वरकाशमतम ्। अंतःपरु रकं दाररक्षक्षतकम ्। इतत पारदाररकं पञ्ञममधधकरणम ्। अध्यायाः षट् प्रकरणातन दश। अथि- पारदाररक नाम के पािंचवें अधधकरर् के प्रकरर्ों का ननदे ि करते
ैं। इसमें 6 अध्याय और 10 प्रकरर्
ै।
•परु ु ष और स्त्री के िील की व्यवस्थापना। •पराए परु िं बनाने में रुकावट डालने वाले कारर्। ु ष के साथ सिंबध •जस्त्रयों को अपने वि में करने में ननपर् ु परु ु ष। •अपने आप ी वि में ोने वाली जस्त्रयािं। •पररचय प्राप्त करने के ननयम। •अमभयोग। •भावों की परीक्षा। •दत ू ीकमि। •ऐश्वयििाली परु ु षों की इच्छाओिं को परू ी करने के उपाय। •व्यमभचारी परु ु षों से जस्त्रयों की रक्षा। इस अधधकरर् का मख् ु य मकसद ककन पैदा
ोता
ै, बढ़ता
ै और टूट जाता ै । ककस तर
की रक्षा की जा सकती
ालातों में पराए परु िं ु ष और पराई स्त्री का आपस में प्रेम सिंबध परदार इच्छा परू ी
ोती
ै और ककस प्रकार व्यमभचारी से जस्त्रयों
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | परु ु ष और स्त्री के बीच एक का क ीिं कोई बीज
ोता
ै तो व
ी िजतत ब ु त से रूपों में मौजूद र ती ै जजसको प्रेम क ते
मसर्ि सिंभोग की इच्छा
ी
ै।
दाििननक दृजष्ट से प्रेम का मख् ु य मकसद सिंभोग को माना जाता वाले
ै व
सब सिंभोग-प्रेम में अिंतह त ि
ैं। अगर प्रेम
ै । जजतने व्यव ार प्रेम से सिंबध िं रखने
ै और इससे अलग न ीिं ककये जा सकते- जैसे आत्समप्रेम, मातवृ पत ृ प्रेम, मििु
वात्ससल्य, मैत्री, ववश्व-प्रेम, ववषर्य-वासनाओिं से प्रेम और भावनाओिं के प्रनत श्द्धा आहद। मनष्ु र्य जगत की
र वासना खासतौर पर ववतैषर्ा, दारै षर्ा और लोकैषर्ा इन 3 भागों में बिंटी
बारीकी से दे खा जाए तो सारी वासनाएिं मसर्ि दारै षर्ा में का सार
ोता
ै और स्त्री-परु ु ष के ममलन में आकषिर्
ी अिंतभत ूि ी पररर्त
ो जाती ै तयोंकक आकषिर्
ै और इसी को मल ू प्रेरक िजतत माना जाता
सािंसाररक जीवन में सिंभोग पराकाष्ठा का आनिंद समझने में ककसी तर
की आपवि न ीिं
ी स्त्री की कामना
ो जाया करता ै ।
धन, स्त्री और यि की इच्छा मसर्ि आनिंद के मलए की जाती ी
ै । अगर
ै । सारी तर
की वासनाओिं की जड आनिंद
ै । इसका स्थूल अनभ ु व सिंभोग के द्वारा ै इसमलए सभी तर
ामसल ककया जा सकता
ै।
के आनिंदों को सिंभोग आनिंद का रूपािंतर
ोनी चाह ए।
श्लोक (20)- गम्यधचन्ता। गमनकारणातन। उपावतगनत्वधधः। कान्तानव ु तगनम ्। अिागगमोपायाः। त्वरस्क्तशलंगातन। त्वरक्तप्रततपत्तः। तनष्कासनप्रकाराः। त्वशीणगप्रततसंधानम ्। लाभत्वशेषः। अिागनिागनब ु न्धसंशयत्वचारः। वेश्यात्वशेषाश्च इतत वैशशकं षष्ठमधधकरणम ्। अध्यायाः षट्। प्रकरणातन द्वादश।। अथि-
म इस वैमिक नाम के छठे अधधकरर् के प्रकरर्ों का ननदे ि करते
और 12 प्रकरर् हदए गए
ैं। इस अधधकरर् के अिंतगित 6 अध्याय
-ैं
•गम्य परु ु ष ववचार। •ककसी एक व्यजतत के साथ सिंभोग करने के कारर्। •अपनी तरर् आकवषित करने का तरीका। •वेश्या का अपने प्रेमी के साथ उसकी वववाह त पत्सनी की तर व्यव ार करना। •अथोपाजिन के तरीके। •ववरतत परु ु ष के ननिान। •ववरतत परु ु ष की दब ु ारा प्राजप्त। •ननकालने के उपाय। •ननकाले ु ए के साथ दब ु ारा सिंधध करना। •लाभ वविेष का ववचार। ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | •अथि, धमि और अधमि के अनब िं सिंयम सिंबध िं ी ववचार। ु ध •वेश्याओिं के भेद। इन 12 प्रकरर्ों से यत ु त वैमिक नाम का य उनके समागम उपायों को बताया गया उनका क ना
छठा अधधकरर्
ै । आचायि वात्सस्यायन नें वेश्यागमन को एक तर
ै कक वेश्यागमन से िरीर और अथि दोनों का नाि
ै इसमलए उसका उपयोग समाज करता
य
तो अनभ ु व की बात
जब भी उन्नयन
ोता
ै कक काम एक िजतत
मनष्ु य की जो इच्छाएिं ग्रिंधथ का रूप ले लेती
ै और व ोती ै ।
सिंवेग जरूर पैदा
ोता
ी उत्सपवि
ैं। य
बात वाकई अनभ ु वमसद्ध
ै।
चा ता
ै कक सिंग से काम
ोता
ोते
ै । य ी भाव बढ़ते-बढ़ते
ै । जजतने भी वासना व्यू ी रूप
ोते
ी सिंवग े के साथ कामिजतत बह मख ुि
ोती
ोती
ी जागत ृ
ी कामिजतत के प्रेरक स्र्ुमलिंग
ोते ोते
ैं। ैं।
ै।
ोते ु ए भी उसका हृदय
र मनष्ु य को भावों को बदलने की इच्छा
ै सभी के
ैं। ज्ञान के कारर्
ैं। मनचि में सोई ु ई अतल ु कामिजतत, प्रेरक स्र्ुमलिंगों को पाकर
मेिा नई सिंवद े नाओिं की तलाि में नीचे उतर
ै । मनष्ु य स्वभाव से
ी बदलाव, सद िंु रता और नएपन को
ै। अगर गौर से दे खा जाए तो नवीनता का दस ू रा नाम अमभरुधच
र ती
ै । इस िजतत का
ै कक ववषयों के सजन्नकषि से कोई न कोई भाव अथवा
मारी धचि ववृ ि के भावमय. ज्ञानमय और कियामय- तीन
मनष्ु य के ववचार चोटी पर ै।
ोती
ै । वासनाओिं के इसी वेग को
ी भाव क लाती
बाह्य अथवा आभ्यिंतर उद्दीपकों से पैदा सिंवेदनाएिं और ज्ञानात्समक मनोभाव
आता
ोती
ै।
ी भाव और सिंवग े जागत ृ
इनसे प्रेरर्ा पाकर
ी अिंग
ै । ववषयों की स्मनृ त से अथवा सिा से या कर्र कजल्पत ववषयों से भी डर. प्रेम आहद
इसका समथिन गीता में भी ककया गया साथ सिंवेग जुडा र ता
ब ु त ज्यादा चिंचल
ै व ीिं वासना क ी जाती
ैं। व्यजतत के हदल में अनक ु ू ल या प्रनतकूल वेदना
के सिंवेग जागत ृ ु आ करते
ै । लेककन वेश्या समाज का
ै और
ै।
ै तब तक भावों और सिंवेगों की उत्सपवि
सिंवेग का रूप धारर् कर लेता
ो जाता
का बरु ा काम माना
ै । साधारर् मनष्ु यों और वेश्याओिं की भलाई को ध्यान में रखते ु ए लेखक
इस अधधकरर् में वेश्याओिं के चररत्र का वविद् वववेचन ककया
सिंवेग क ते
ै । इस अधधकरर् के अिंतगित वेश्याओिं के चररत्र और
ै । ज ािं पर नवीनता
ै व ीिं रमर्ीयता
ै। रमर्ीयता का व ी रूप
प्रनतक्षर् बदला करती
ै जो पल-पल में नएपन को प्राप्त करता
ै । प ले तो उत्ससक ु ता जागत ृ
व्यजतत के हदल में सिंवेग परू ी तर
से जागत ृ
जब सिंवेग के अवरोधक परू ी तर बढ़ जाती
ै . मन में उथल-पथ ु ल
ोने लगती
ोती
ै। सिंवेग के कारर्
ै और इसके बाद तष्ृ र्ा जागत ृ
ोती
ी
मारी कियाएिं
ै । जजस समय
ो जाता ै उसी समय उसे 1 हदन 1 साल के जैसा लगता
ै।
अमभव्यजतत न ीिं
ै, धचिंताएिं
ोने दे ते तब मन में बेचैनी
ोने लगती
ै । सामाजजक ननयमों के अनरू ु प काम का ननरोध-अवरोध तो जबरदस्ती
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | करना पडता
ै । जबकक य
अनभ ु व समाज यग ु -यग ु से करता आ र ा
पाया जा सकता। समाज का ननयिंत्रर् य ीिं तक सीममत र ता मानमसक द्वन्द्व भले
ी मजबत ू
ोता
से काबू न ीिं
ै कक वासना िारीररक किया में पररर्त न
ोने पाए।
ै।
मनष्ु य जजन वासनाओिं को ननरोध से दबाना चा ता ककसी न ककसी रूप में अपना असर डालती र ती को करने के मलए मन में बेचैनी बढ़ती र ती
ै व
ै । असल बात य
कभी न ीिं दबती, बजल्क सल ु गने लगती
ै और
ै कक जजस बात को मना ककया जाता ै उसी
ै । िास्त्र और समाज की दृजष्ट से पराई स्त्री के साथ सिंबध िं बनाना
अधमि ै और उसके साथ सिंभोग करने को गलत माना जाता स्त्री का रस रसोिम माना जाता
ै कक काम वासना पर परू ी तर
ै । इस तर
की रोक का नतीजा य
ोता
ै कक पराई
ै।
श्लोक (21)- सभ ं करणम ्। वशीकरणम ्। वष्ृ याश्च योगाः। नष्टरागप्रत्सयानयनम ्। वद् ु ग ृ धधत्वधयः। धचत्राश्च योगाः। इत्सयौपतनषहदकं सप्तममधधकरणम ्। अध्यायौ द्वौ। प्रकरणातन।
अथि-
•गर् ु , रूप आहद को बढ़ाना। •यिंत्र, तिंत्र और मिंत्र द्वारा वि में करना। •वाजीकरर् (काम-िजतत बढ़ाना) प्रयोग। •नष्टराग (खत्सम ु ई उिेजना) को दब ु ारा पैदा करना। •मलिंग को बढ़ाने वाले प्रयोग। •धचत्र-ववधचत्र प्रयोग। इन 6 प्रकरर्ों से यत ु त औपननषहदक नाम का य अध्याय
सातवािं अधधकरर्
ै और इसके अिंतगित 2
ै।
श्लोक (22)- एवं षट्त्रत्रश ं दध्यायाः। चतःु षस्ष्टः प्रकरणातन। अधधकरणातन सप्त। सपादं श्लोकसि्त्रम ्। इतत शा्त्र्य संग्रिः।। अथि- इस प्रकार से कामसत्र ू में 36 अध्याय, 64 प्रकरर्, 7 अधधकरर् और 1250 श्लोक
ै।
श्लोक (22)- संक्षेपशममक्षुक्त्सवा्य त्व्तरोऽतः प्रवक्ष्यते। इष्टं हि त्वदष ु ां लोके समासव्यासभाषणम ्।। अथि- इस तर जा र ा
अधधकरर्, अध्याय, प्रकरर् आहद की ववषर्य सच ू ी सिंक्षेप में बताकर अब उसी को ववस्तार से पेि ककया
ै तयोंकक सिंसार में ववद्वानों के मलए सिंक्षेप तथा ववस्तार दोनों की जरूरत
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन ने इस सातवें अधधकरर् के अिंतगित अधधकरर् का नाम औपननषहदक रखा औपननषहदक का स्थूल अथि टोटका
ोता
ै।
ै । इस अधधकरर् के अिंतगित कामवासना को परू ा करने के साधन तथा
भौनतक जीवन की कामयाबी के तरीकों को ब ु त
ी ववस्तार से समझाया जा र ा ै ।
तिंत्र औषधध आहद के रूप में जो टोटके पेि ककए जा र े
और असामाजजकता, अमिष्टता, ननदि यता की भावना न पैदा
ो, य
ैं, उनके अिंतगित स्वेच्छाचाररता, उच्छग्खलात
वववेक भी रखा गया
ै।
श्लोक- इततश्री वात्स्यायनीय कामसत्र ू े साधारणे, प्रिमधधकरे ण शा्त्र संग्रि प्रिमोध्यायः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 2 त्रत्रवगग प्रततपत्त प्रकरण श्लोक (1)- शतायव ु ैं परु ु षों त्वभज्य कालमन्योन्यानब ु द्धं पर्पर्यानप ु घातकं त्रत्रवगग सेवेत।। अथि- िािंत जीवन बबताने वाला मनष्ु य अपने परू े जीवन को आश्मों में बािंटकर धमि, अथि, काम इन तीनों का उपयोग इस प्रकार से करें कक य
तीनों एक-दस ू रे से सिंबधिं धत भी र े तथा आपस में ववघ्नकारी भी न
मनष्ु य की उम्र 100 साल की ननधािररत की गई
ो।
ै । अपने इस परू े जीवन को सख ु ी और स ी रूप से चलाने
के मलए िह्मचयि, ग ृ स्थ, वानप्रस्थ और सन्यास नाम के चार भागों में बािंटकर धमि, अथि और काम का साधन, सिंपादन इस प्रकार से करना चाह ए कक धमि,अथि, काम में आपस में ववरोध का आभास न
ो तथा वे एक-दस ू रे के परू क
बनकर मोक्षप्राजप्त के साधन बन सकें। इस सिंसार के सभी मनष्ु य लिंबे जीवन, आदर, ज्ञान, काम, न्याय, और मोक्ष की इच्छा रखते मिक्षा
ी ऐसी
ैं। मसर्ि वेदों की
ै कक जो मनष्ु यों के लिंबे जीवन की सवु वधा के दृजष्टगत सभी व्यजततयों को इन इच्छाओिं में वववेक
पैदा कराके और बराबर अधधकार हदलाकर सबको मोक्ष की ओर अग्रसर करती आचायि वात्सस्यायन नें ितायव ु े परु ु ष मलखकर इस बात को सार् ककया
ै। ै कक कामसत्र ू का मकसद मनष्ु य को
काम-वासनाओिं की आग में जलाकर रोगी और कम आयु का बनाना न ीिं बजल्क ननरोगी और वववेकी बनाकर 100 साल तक की परू ी उम्र प्राप्त करना
ै।
लिंबी जजिंदगी जीने के मलए सबसे प ला तरीका साजत्सवक भोजन को माना गया
ै। साजत्सवक भोजन में घी,
र्ल, र्ूल, दध ू , द ी आहद को िाममल ककया जाता ै । अगर कोई मनष्ु य अपने रोजाना के भोजन में इन चीजों को िाममल करता
ै तो व
मेिा स्वस्थ और लिंबा जीवन बबता सकता
ै।
साजत्सवक भोजन के बाद मनष्ु य को लिंबी जजिंदगी जीने के मलए पानी, वा और िारीररक पररश्म भी मह्तवपर् ू ि भमू मका ननभाते ै । रोजाना सब ु
उठकर ताजी
वा में घम ू ना ब ु त लाभकारी र ता
ै । इसके साथ
ी खुले
और अच्छे मा ौल में र ने और िारीररक मे नत करते र ने से भी स्वस्थ और लिंबी जजिंदगी को जजर्या जा सकता इसके बाद लिंबी जजिंदगी जीने के मलए स्थान आता लोग ोता
ोते
ैं जो अपनी परू ी जजिंदगी धचिंता में
ै लेककन इनमें भी धचिंता को
ै हदमाग को
ी घल ु कर बबता दे ते
ी धचता से बडा माना गया
ै लेककन धचिंता तो जीते जी इिंसान को रोजाना जलाती र ती रखों तो जजिंदगी को कार्ी लिंबे समय तक जजया जा सकता
रदम तनाव से मत ु त रखने का। ब ु त से
ैं। धचिंता और धचता में मसर्ि एक बबिंद ू का
ै । तयोंकक धचता तो मसर्ि मरे ै । इसमलए अपने आपको जजतना
ी र्कि
ु ए इिंसानों को जलाती ो सके धचिंता मत ु त
ै।
इसके बाद लिंबी जजिंदगी जीने के मलए िह्मचयि का पालन करना भी ब ु त जरूरी
अनस ु ार िह्मचयि प्रनतष्ठायािं वीयिलाभः अथाित िह्मचयि का पालन करके
ै।
ोता
ै । योगिास्त्र के
ी वीयि को बढ़ाया जा सकता
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै और वीये
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | बा ु बलम ृ् वीयि से िारीररक िजतत का ववकास
ोता
ै । वेदों में क ा गया ै कक बद् ु धधमान और ववद्वान लोग
िह्मचयि का पालन करके मौत को भी जीत सकते
ैं।
सदाचार को िह्मचयि का स ायक माना जाता चररत्र को अपनाए र ते
ै । जो लोग ननष्ठावान, ननयम-सिंयम, सिंपन्निील, सत्सय तथा
ैं, व ी लोग िह्मचयि का पालन करते ु ए लिंबी जजदिं गी को प्राप्त करते
अपनाकर कोई भी मनष्ु य अपनी परू ी जजिंदगी आराम से बबता सकता
ैं। सदाचार को
ै।
कोई भी बच्चा जब िह्मचयि अपनाकर अपने गरु ु के पास मिक्षा लेता
ै तो व
4 म त्त्वपर् ू ि बातें सीखता
ै । कई प्रकार की ववद्याओिं का अभ्यास करना, वीयि की रक्षा करके िजतत को सिंचय करना, सादगी के साथ जीवन बबताने का अभ्यास करना, रोजाना सन्ध्योपासन, स्वाध्याय तथा प्रार्ायाम का अभ्यास करना, भारतीय आयि सभ्यता की इमारत इन् ी 4 खिंभों पर आधाररत
ै । िह्मचयि जीवन को सर्ल बनाने वाली जजतने बाती
ै , सभी प्राप्त
ोती
ै। िह्मचयि जो कक उम्र का प ला चरर्
ै, जब पररपतव
ो जाए तो मनष्ु य को िादी कराके ग ृ स्थ आश्म में
प्रवेि करके अथि, धमि, काम तथा मोक्ष का सम्पादन ववधधवत ृ् करना चाह ए। य ािं पर वात्सस्यायन इस बात का सिंकेत करते
ैं कक अथि, धमि तथा काम का उपयोग इस प्रकार ककया जाए कक आपस में सिंबद्ध र ें और एक-दस ू रे के प्रनत
ववघ्नकारी साबबत न
ो।
एक बात को बबल्कुल सार् अधूरा, क्षुब्ध और असर्ल
ी र ता
का पालन ववधध से करने से
ै कक अगर स ी तर ै । इसी वज
से
से िह्मचयि का पालन ककया जाए तो ग ृ स्थ आश्म
र प्रकार की जस्थनत में
ी कामयाबी ममलती ै ।
िह्मचयि जीवन को ग ृ स्थ आश्म से जोडने का अथि य ी
अगर िह्मचयि आश्म में स ी तर प्रेय सिंपादक बन सकता बाधा के
ो सकता
से ककया गया
ोता
र आश्म में प ुिं चकर उसके ननयमों
ै कक वीयिरक्षा, सदाचरर्, िील, स्वाध्याय
ै तो ग ृ स्थआश्म में दाम्पत्सय जीवन अकलष ु आनिंद तथा श्ेय
ै । ग ृ स्थआश्म को धमिकमि पव ि बबताने पर वानप्रस्थ का साधन िािंनत से और बबना ककसी ू क
ै और कर्र वानप्रस्थ की साधना सन्यास आश्म में प ुिं चकर मोक्ष प्राप्त करने में मदद करती श्लोक (2)- वयोद्वारे ण कालत्वभागमाि-बाल्ये त्वद्याग्रिणादीनिागन ्।।
अथि- अब िमिः उम्र के ववभाग के बारे में बताया गया
ै।
बचपन की अवस्था में ववद्या को ग्र र् करना चाह ए।। श्लोक (3)- कामं च यौवने।। अथि- जवानी की अवस्था में
ी काम चाह ए।
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (4)- ्िात्वरे धमग मोक्षं च।। अथि- बढ़ ु ापे की अवस्था में मोक्ष और धमि का अनष्ु ठान करना चाह ए। श्लोक (5)- अतनत्सयत्सवादायष ु ो यिोपपादं वा सेवेत ्।। अथि- लेककन जजिंदगी का कोई भरोसा न ीिं
ै इसमलए जजतना भी इसको जी सकते
ो जी लेना चाह ए।
श्लोक ( )- ब्रह्मचयगमेव त्सवा त्वद्याग्रिणात ्।। अथि- ववद्या ग्र र् करने के बाद िह्मचयि का पालन करना चाह ए। धमि, अथि और काम परु ु षाथि के 3 भेद
ोते
र इिंसान की उम्र 100 साल ननधािररत की गई
ैं। बाल्यावस्था, यव ु ावस्था और वद् ृ धावस्था 3 अवस्थाएिं
ोती
ै।
ै । आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक 100 वषि की उम्र को 3 भागों में
बािंटकर परु ु षाथों का उपभोग तथा उपाजिन करना चाह ए। वात्सस्यायन के मत ु ाबबक जन्म से लेकर 16 साल तक की उम्र को बाल्यावस्था, 16 साल से लेकर 70 साल तक की उम्र यव ु ावस्था और इसके बाद की उम्र को वद् ृ धावस्था क ते
ैं। इसी वज
से बाल्यावस्था में ववद्या ग्र र्
करनी चाह ए। यव ु ावस्था में अथि और काम का उपाजिन तथा उपभोग करना चाह ए। इसके बाद बढ़ ु ापे की अवस्था में मोक्ष और धमि की प्राजप्त के मलए प्रयास करना चाह ए। इसके बावजद ू आचायि वात्सस्यायन का क ना और जब भी सिंभव
ै कक जजिंदगी का कोई भरोसा न ीिं
ो जजन-जजन परू ु षाथों की प्राजप्त
अब एक सवाल और उठता ो इस वज
ो सके कर लेनी चाह ए।
से उन् ोने स्पष्ट ककया
आचायि वात्सस्यायन दे ते
ैं। इस बारे में ककसी तर
की ििंका आहद
ै लेककन आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक इसकी 3
ै । उन् ोने अपने ववचारों में प्रौढ़ावस्था का जजि न ीिं ककया
उम्र 50 साल के बाद की मानते
ोता) समझकर बाल्यावस्था में
ै-
धमि िास्त्रकारों में इिंसान की उम्र को 4 भागों में बािंटा अवस्थाएिं बताई
ै इसी कारर् से ककसी भी समय
ै कक जीवन को माया (जजसका कोई भरोसा न ीिं
ी काम का उपाजिन और उपभोग करने की सला न पैदा
ै । िरीर ममट्टी
ै । दस ू रे आचायि सन्यास लेने की स ी
ैं लेककन आचायि वात्सस्यायन ने इसकी स ी उम्र 70 साल के बाद की बताई
ै।
ववद्या ग्र र् करने की उम्र में िह्मचयि का पालन परू ी सख्ती और ननष्ठापव ि करना चाह ए। ू क आचायि कौहटल्य के मत िंु न सिंस्कार ु ाबबक मड उपनयन
ो जाने पर धगनती और वर्िमाला का अभ्यास करना चाह ए।
ो जाने के बाद अच्छे ववद्वानों तथा आचायि से त्रयी ववद्या लेनी चाह ए। 16 साल तक की उम्र तक ब ु त
ी सख्ती से िह्मचयि का पालन करना चाह ए और इसके बाद वववा मिक्षा को बढ़ाने के मलए असली कारर्
ोती
के बारे में सोचना चाह ए। वववा
र समय बढ़े -बढ़ ू ों के साथ में र ना चाह ए तयोंकक ऐसे लोगों की सिंगनत
ी ववनय का
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
के बाद अपनी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | वात्सस्यायन और कौहटल्य दोनों और िह्मचयि पर जोर हदया मान, मद और
ी ने जीवन की िरू ु आती अवस्था अथाित बाल्यवस्था में ववद्या ग्र र् करने
ै तयोंकक ववद्या और ववनय के मलए इजन्िय जय
ोती
ै इसमलए काम, िोध, लोभ.
षि ज्ञान से अपनी इजन्ियों पर ववजय पानी चाह ए।
श्लोक (7)- अलौकककत्सवाद्ृष्टािगत्सवादप्रवत ृ ानां यज्ञदीनां शा्त्रात्सप्रवतगनम,् लौककत्सवाृष्टािगत्सवाञ्ञ प्रवत ृ ेभयश्च मांसभक्षणाहदभ्यः शा्त्रादे व तनवारणं धमगः।।
अथि- जो लोग पारिं पररक तथा अच्छा र्ल दे ने वाले यज्ञ आहद के कामों में जल्दी िाममल न ीिं का िास्त्र के आदे ि से इस तर
के कायों में िाममल
मािंस आहद खाते ै उनका िास्त्र के आदे ि से य ै। म ाभारत में भी इस बारे में बताया गया को धारर् करते
ैं जो धारर् के साथ-साथ र ता
इस बात से य
साबबत
ो जाता
ोते ऐसे लोगों
ोना तथा इसी जन्म में अच्छा र्ल ममलने के काऱर् जो लोग
सब छोड दे ना- य ी प्रववृ ि तथा ननववृ ि रूप में 2 प्रकार का धमि
ै धारर् करने से लोग इसे धमि के नाम से बल ु ाते ै व ी धमि क लाता
ै कक धमि ब ु त
ै- य
ी व्यापक िब्द
ननजश्चत
ैं। धमि प्रजा
ै।
ै । ग्रिंथकोि में धमि के अथि ममलते
वैहदक ववधध, यज्ञाहद सक ु ृ त या पण् ु य न्याय यमराज स्वभाव आचार सोमरस का पीने वाला और िास्त्र ववधध के अनस ु ार कमि के अनष्ु ठान में पैदा
ोने वाले र्ल का साधन एविं रूप िभ ु अदृष्ट अथवा
पण् ु यापण् ु य रूप भाग्य। श्ौत और स्मनत धमि। ववह त किया से मसद्ध
ोने वाले गर् ु अथवा कमिजन्य अदृष्ट।
आत्समा। आचार या सदाचार। गर् ु ।
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | स्वभाव। उपमा। यज्ञ। अह स िं ा। उपननषद्। यमराज या धमिराज। सोमाध्यायी। सत्ससिंग। धनष ु । ज्योनतष में लग्न से नौंवे स्थान या भाग्यभवन। दान। न्याय। धमि िब्द का अथि ननरुततकार ननयम को बताया गया ै और धमि िब्द का धातग ु त अथि धारर् करना ै । इन दोनों अथों का तालमेल करने से य ी अथि ननकलता व
धमि
ी
ोता
ै कक जजस ननयम ने इस सिंसार को धारर् कर रखा
ै
ै।
िास्त्रों के अनस ु ार धमि से ै । धन से धमि
ोता
ै और धमि से
ी सख ु की प्राजप्त
ोती
ै और लोकमत भी इस बारे में िास्त्रों का समथिन करता
ी सख ु ममलता ै ।
श्लोक (8)- तं श्रुतध े म ग ज्ञ ग समवायाच्च प्रततपद्येत।। अथि- उपयत ु त सातवें सत्र ू में बताए गए धमि को ज्ञानी मनष्ु य वेद से और साधारर् परु ु ष धमिज्ञ परु ु षों से सीखें । कामसत्र ू के रधचयता ने िास्त्रों के मत पर स मनत जताते ु ए क ा
धमि की मिक्षा ग्र र् करनी चाह ए। मनु के अनस ु ार सारे वेद धमि के मल ू श्ी मद्धगवतपरु ार् में तो य ािं तक क ा गया क ा गया
ै व
ै कक ज्ञानी मनष्ु य को वेदों के द्वारा
ै।
ै कक जो वेद में क ा गया
ै व ी धमि ै और जो उसमे न ीिं
अधमि ै ।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन नें ज्ञानी व्यजततयों को वेदों से धमि आचरर् सीखने की सला का तत्सव गु ा में मौजद ू
ोता
ोता
ै जो ननह त प्रच्छन्न तत्सवों को प चानता
काम का असली वववेचन और ववश्लेषर् करना
ी
ै । कामसत्र ू का मख् ु य धमि
ै । काम के तत्सव को व ीिं मनष्ु र्य प चानता
ै जो धमि के तत्सव को
ै। य ािं पर साधारर् परु ु षों से अथि उन लोगों से
ै जो स्वयिं वे वेदाध्ययन, श्वर् मनन में असमथि ै, मगर
स्मनृ तयों द्वारा बताए गए धमिज्ञों द्वारा ननहदि ष्ट पथ पर सवार र ते श्ुनत दोनों का समन्वय करते गया
ै तयोंकक धमि
ै । इसी तत्सव को प्राप्त करने के मलए मनष्ु र्य को आत्सम-ननरीक्षर्, श्वर्, मनन और
ननद्ध्यासन करना जरूरी ै । ज्ञानी व ी प चानता
इसमलए दी
ैं। मतलब य
ैं। य ािं पर कामसत्र ू के रधचयता स्मनृ त और
ै कक श्नु त के द्वारा जो बताया गया
ै व ी धमि स्मनृ त में भी बताया
ै। ऐसा व
अिंतगित
कौन सा धमि ै जो स्मनृ त में बताया गया ै तथा श्ुनतरागव
ै । इसका समाधान मनस् ु मनृ त के
ै। श्ुनत और स्मनृ त के अिंतगित बताया गया सदाचार
वाले व्यजतत को
मेिा सदाचार से यत ु त
आचायि वात्सस्यायन नें ब ु त
के लोगों के मलए य
ब ु त जरूरी
ी परम धमि क लाता
ी र ना चाह ए।
ी कम िब्दों में ब ु त बडी बात क ी
ै कक व
ै । इसमलए अपने आपको प चानने
ै कक ववद्वान और सामान्य दोनों तर
सदाचारी बन जाए तयोंकक सदाचार
ी काम की पष्ृ ठभमू म
ै।
श्लोक (9)- त्वद्याभशू महिरण्यपशध ु ान्य भाण्डोप्करशमत्रादीनामजगनमस्जगत्य त्ववधगनमिगः।।
अथि- आचायि वात्सस्यायन ने धमि के लक्षर् बताने के बाद अथि की पररभाषा को पेि ककया
ै-
ववद्या, भमू म, सोना, जानवर, बतिन, धन आहद घर की चीजें और ममत्रों तथा कपडों, ग नों, घर आहद चीजों को धमिपव ि प्राप्त करना तथा प्राप्त ककए ु ए को और बढ़ाना अथि ै । ू क जीववका
आचायि चार्तय नें कौटलीय अथििास्त्र के अिंतगित अथि की पररभाषा बताते ु ए बताया
ै कक लोगों की
ी अथि ै ।
इस ववषय में कौहटल्य और वात्सस्यायन का एक दििन को बताया
ी मत
ै तथा य ी अथि कामसत्र ू कार का भी ै ।
जजस प्रकार से बद् िं धमि से ै उसी तर ु धध का सिंबध आत्समा का सिंबध िं मोक्ष से का समावेि
ै । कौहटल्य ने अथििास्त्र मलखने का अथि तत्सव
ो जाता
से िरीर का सिंबध िं अथि से, काम का सिंबध िं मन से और
ै। इन् ी अथि, धमं, मोक्ष और काम में मनष्ु य की सभी लौककक और परलौककक कामनाओिं
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | कामसत्र ू कार का मन्तव्य य ी मालम ू पडता स ी न ीिं र
ै कक जजस तर
सकता, सिंभोगकला के बबना िरीर पैदा न ीिं
सकता। उसी तर
अथि, वस्त्र, भोजन आहद के बबना िरीर बबल्कुल
ो सकता और िरीर के बबना मोक्ष को पाना सिंभव न ीिं
ो
से बबना मोक्ष का रास्ता ननधािररत ककए बबना काम और अथि को भी स ायता न ीिं ममल सकती
जब तक मोक्ष की सच्ची कामना न ीिं की जा सकती तब तक अथि और काम का स ी उपयोग न ीिं
ै।
ो सकता।
श्लोक (10)- तमध्यक्षप्रचाराद्वातागसमयत्वद्धयो वणणग्भयश्चेतत।। अथि- अथि को सीखने के बारे में जो बताया जा र ा
ै उसे जानने में अतसर ब ु त से टीकाकारों को व म
ोता
ै।
कामसत्र ू के रधचयता का अध्यक्षप्रचार से अथि कौहटल्य अथििास्त्र के अध्यक्षप्रचार अधधकरर् से ै । इस अधधकरर् के अिंदर कौटल्य ने भमू म-सरिं क्षर्, राज्य-सरिं क्षर्, नागररकों के सरिं क्षर् के ननयम और दग ु ों के ननमािर् का ववधान, राजकर की वसल ू ी, आय-व्यय ववभाग के ननयम तथा उसकी व्यवस्था, िासन प्रबिंध रत्सन की पारखी, धातओ ु िं के पारखी, सन ु ारों के कििव्य और ननयम, कठोर तथा उसके अध्यक्ष के कायि वविय ववभाग के ननयम, यव ु नतयों की सरु क्षा, तोलमाप का ननरूपर्, िस्त्रागार की व्यवस्था, चुिंगी के ववमभन्न प्रकार के ननयम आहद 36 ववषयों के बारे में बताया गया ै । श्लोक (11)- श्रोत्रत्सवक्चक्षुस्जह्वाघ्राणानामात्समसंयक् ु तेन मनसाधधष्ठतानां ्वेषु ्वेषु त्वषयेष्वानक ु ू ल्यतः प्रवत्ृ तः कामः।। अथि- आचायि वात्सस्यायन नें काम के लक्षर् बताते ु ए क ा
ै कक आिंख, जीभ, कान, त्सवचा और नाक पािंचों की इिंहियों
की इच्छानस िं अपने इन ववषयों में प्रववृ ि ु ार िब्द स्पिि, रूप और सग ु ध
ी काम
ै या कर्र इजन्ियों की प्रववृ ि
भारतीय दििन के मसद्धान्त के अनस ु ार ववद्या और अववद्या य ी दो प्रमख ु बीज मात्रा में एकसाथ ममलते साक्षी माने जाते जब व
ैं तब तीसरा बीज भी पैदा
ै तब अववद्या क लाता
ै तब व
ववद्या का रूप ले लेता
ै और
ै । य ी अववद्या ववद्यारूप आत्समा का ऐसा
ै जो कक बा र के पदाथों को अपने में ममला मलया करता
तथा सववषयक इन रूपों में बिंट जाता
दोनों जब बराबर
ै । वाक, मन और प्रार् तीनो अव्यव तथा जगत के
ैं। इनमें से मन को ज्यादा मात्रा में प्रार् ग्र र् करता
वाक को ज्यादा मात्रा में लेता
स्वाभाववक ववकार
ो जाता
ै। य
ै।
ै जजसके कारर् से ज्ञान ननववषियक
ै।
श्लोक (12)- ्पशगत्वशेषत्वषयात्त्व्यात्रबमातनकसख ु ानत्ु वद्धा तलवत्सयिगप्रतीततः प्राधान्यात्सकामः।। अथि- आचायि वात्सस्यायन नें इस सत्र ू में काम के बारे में बताते ु ए क ा
ै कक आमलिंगन, चिंब ु न आहद सिंभोग सख ु के
साथ गोल, ननतिंब, स्तन आहद खास अिंगों के स्पिि करने से आनिंद की जो झलवती प्रतीत क ते
ोती
ै उसकी को काम
ैं। इस सत्र ू में र्लवती अथिप्रतीनतः इस िब्द में गिंभीर भाव मौजद ू
ी समझना स ी
ै । इसका खास मकसद सय ु ोग्य सिंतानोप्दान
ोगा तयोंकक वेद और उपननषद भी इसी आिय को व्यतत करते
1- आरो तल्पिं सम ु नस्यमाने
ैं-
प्रजािं जनस्य पत्सये अस्मै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इन्िार्ीव सव ु ध ु ा बध् ु यमाना ज्योनतरुग्रा उपसः प्रनतजागरामस।। अथि-
े वधू तू खुि
इिंिार्ी की तर
ोकर इस पलिंग पर लेट जा और अपने इस पनत के मलए सिंतान को पैदा कर तथा
े सौभाग्यवती चतरु ता से सब ु
अथाित- सिंभोग किया रात के समय म सस ू न
ी
सरू ज ननकलने से प ले
ी जाग जा।
ोनी चाह ए जजससे मन में ककसी तर
का डर, सिंकोच या िमि आहद
ो।
2- दे वा अग्रे न्यपद्यन्त पत्सनीः समस्पि ृ न्त तन्वस्तनमू भ। सय ू ेव नारर ववश्वरूपा मह त्सवा प्रजावती पत्सया सिंभवे
।।
अथि- ववद्वान परु ु ष प ले भी अपने पत्सनी को प्राप्त ु ए
से ममलाया
ै । इस वज
से
ै तथा अपने िरीर को उनके िरीर से अच्छी तर
े म ान सद ुिं रता वाली तथा प्रजा को प्राप्त करने वाली स्त्री तू भी अपने पनत से ममल
जा। अथाित- सिंभोग किया करने से प ले आमलिंगन और चुिंबन आहद जरूरा कर लेने चाह ए जजससे कक दोनों को आनिंद की प्राजप्त
ो सके और आमलिंगन करने से िरीर में जो बबजली सी दौडती ै उससे न मसर्ि िमि
बजल्क एक अजीब सा ,सक ु ू न भी ममलता
ी दरू
ी
ोती
ै।
3- तािं पष ू िं नछवतमामरे यस्व यस्यािं बीजिं मनष्ु यािं वपजन्त या न ऊरू ववश्यानत यस्यामश्ु नतः प्र रे म िेषः।। अथिद्वारा व
े जग को पालने वाले ईश्वर, जजस स्त्री के अिंतगित आज बीज को बोना
मारी इच्छा करती ु ई अपनी जािंघों को र्ैलाती ु ई तथा
की योनन पर कर सके।
अथाित- परु ु ष और स्त्री दोनों को
म इच्छा करते ु ए अपने मलिंग का प्र ार स्त्री
ी अपनी खि ु ी से सिंभोग किया करनी चाह ए। इस किया को करते समय
दोनों को इस बात का ध्यान रखना चाह ए कक स्त्री के योनन पथ को ककसी तर योनन में एक ब ु त
ी बारीक णझल्ली
ोती
ै उसे जागत ृ कर। जजसके
ै जो अतसर प ले
पर ध्यान रखना चाह ए कक स्त्री को ककसी प्रकार की परे िानी न
की
ी सिंभोग में टूट जाती
ानन न प ुिं चे तयोंकक जस्त्रयों की ै । इसमलए परु ु ष को खासतौर
ो।
4- प्रत्सवा मञ् े ाः। ु ञामम वरुर्स्य पािाद् येन त्सवा सववता सि ु व ऊरू लोकिं सग ु मत्रपन्थािं कृर्ोमम तभ् ु यिं स पल्यै वध।ु । अथि-
े स्त्री मै तेरे पनत के जररए जािंघों के बीच के योननमागि को सरल बनाता ूिं तथा तझ ू े वरुर् के उस
उत्सकृष्ट बिंधन से मत ु त करता ूिं जजसको सववता ने बािंधा था।
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ै
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथाित- सिंभोग करते समय जो प्राकृनतक आसन
ोते
ैं उन् ी को आजमाना चाह ए तयोंकक अप्राकृनतक
आसनों को सिंभोग करते समय आजमाने से सिंतान ववकलािंग पैदा 5- आ रो ोरुमप ु धत्सस्व प्रजा कृण्वाथामम अथि-
ोती
ै।
स्त पररष्वजस्व जायािं सम ु नस्यामानः।
मोदमानौ दीघि वामायःु सववता कृर्ोत।ु ।
े परु ु ष तू जािंघ के ऊपर चढ़ जा, मझ ु े अपनी बािं ों का स ारा दें , खुि
ोकर पत्सनी को धचपका लें तथा
खुिी मनाते ु ए दोनों सिंतानों को पैदा करो जजसे सववता दे व तम् ु ारी उम्र को लिंबी बनाए। अथाित- सिंभोग किया के सिंपन्न ककसी िरीर को ककसी तर
ोने के बाद स्त्री और परु ु ष दोनों को
ी स्नान कर लेना चाह ए तयोंकक इससे
के रोग और गिंदगी से मजु तत ममलती ै ।
6- यद् दष्ु कृतिं यच्छमलिं वववा े व तौ च यत ृ्। तत ृ् सिंभलस्य किंबले मज् ृ म े दरु रतिं वयम ृ्।। अथि- इस वैवाह क कायि के द्वारा जो ममलनता चाह ए। अथाित- इस बात से सार् पता चलता का अथि सिंतान को पैदा करने की दृजष्ट रखकर
म दोनों से ु ई उस किंबल के दागों को
में छुडा लेना
ै कक आचायि वात्सस्यायन ने चुिंबन, आमलिंगन से र्लवती अथि प्रतीनत ी इस सत्र ू की रचना की ै ।
श्लोक (13)- तं कामसत्र ू ात्रागररकजनसमवायाच्च प्रततपद्येत।।
अथि- उस कामववज्ञान को कामसत्र ू जैसे िास्त्रो से और काम व्यव ार में ननपर् ु नागररको के
ामसल करना
चाह ए। कामसत्र ू के रधचयता अथाित आचायि वातस्यायन ने क ा आचायों को आकर ग्रिंथो से मह्तविा बताई गई
ी करना चाह ए या ककसी योग्य नागररक से। य ािं पर िास्त्र और आचायि दोनों की
ै । अगर ककसी भी ववषय को जानना
आचायि की िरर् लेनी चाह ए। गीता में क ा गया न तो मसद्धध प्राप्त कर सकता सकता
ै कक कामिास्त्रो का अध्ययन कामसत्र ू के जैसे
ै और न
ै या उसपर योग्यता
ामसल करनी
ै तो ककसी िास्त्र और
ै कक जो मनष्ु य िास्त्र ववधध को छोडकर इधर-उधर भागता
ी लौककक सख ु को
ी ग्र र् कर सकता
ै। व
ै व
कभी मोक्ष को भी पा न ीिं
ै।
श्लोक (14)- यः शा्त्रत्वधधमत्सृ ्सज् ु न परांगततम।। ृ य वतगते कामकारतः। न स शसद्धधमवाप्नोतत न सख
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ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- य ािं पर कामिास्त्राकार का नागररक जन से अथि ै कक ववद्घधजन अथवा कामिास्त्र का आचार्यि। आचायि व ी ोता
ै जो अपने मिष्र्यों को ऐसी मिक्षा दे कक व
अपने मिष्य को परू ी तर
धमि-अथि-काम को आसानी से प्राप्त कर सके। उपननषद का ज्ञाता
से मिक्षा दे ने के बाद उसे उपदे ि दे ता
ै-
श्लोक- सत्सय वद, धमि चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः प्रजातिम ु ा व्यवच्द्वेत्ससीः। अथि- धमि का पालन करो, मेिा सच बोलो, अप्रमि
ोकर स्वाध्याय करते र ो।
ग ृ स्थ आश्म में प्रवेि करने के बाद सिंतान परिं परा को न ीिं तोडना चाह ए। सिंतान परिं परा को टूटने से बचाने के मलए िह्मचारी को ग ृ स्थ आश्म में प्रवेि करने से प ले ववधध पव ि ू क
कामिास्त्र का अध्ययन कर लेना चाह ए। इसके बाद वववा
करके ग ृ स्थ आश्म में प्रवेि करना चाह ए।
अथि, धमि और काम के लक्षर् तथा उनको पाने के साधन बताकर वात्सस्यायन इनकी उिरोिर उत्सकृष्टता तथा
प्रामाणर्कता को बता र े
ैं-
एषािं समवाये पव ू ःि पव ू ो गरीयान ृ्।। अथि- काम, अथि और धमि में से काम से ज्यादा श्ेष्ठ अथि को माना गया सत्सय, असत्सय, अह स िं ा, काम-िोध, लोभ से रह त करना- य
सभी वर्ों के सामान्य धमि माने जाते
ै तथा अथि से धमि को।
ोना, प्राणर्यों की वप्रय तथा ह तकाररर्ी कोमिि में तैयार
ैं।
समाज व्यवस्था और स अजस्तत्सव को अह स िं ा
ी कायम ऱखती
ै . सिंसार में जो कुछ भी
ै व
इसी प्रकार सत्सय सवोपरर धमि ै तथा अह स िं ा को अपनाना चाह ए। अह स िं ा को छोड दे ने पर सच्चाई भी
सत्सय
ै।
ाथ न ीिं
लगती। चोरी न करने को का व्यव ार आधाररत
ी अस्तेय क ा जाता
ै । अस्तेय सत्सय का
ै । सच के इसी भाग पर समाज
ै।
जब जरूरत से ज्यादा वस्तओ ु िं का उपयोग करने की इच्छा न ी मनष्ु य को अपनी इच्छाएिं और जरूरतों को सीममत
ोती
ै तो उसे अकाय क ते
ै।
ै।
र व्यजतत को अपने अिंदर के कोध्र को जानना ब ु त
सविभत ू ह त की भावना मनष्ु य के जीवन को ऊपर उठाने में सबसे ऊपर मानी जाती अकाम आहद सभी इसके अिंतगित आते साधना
ैं अथाित
ी रखना चाह ए।
अह स िं ा के दस ू रे रूप में अिोध को जाना जाता जरूरी
ी एक भाग
ैं। सवाित्समभाव
मारी जजिंदगी का मकसद
ै । अह स िं ा, अिोध और
ोना चाह ए तथा सविभत ू ह त
ोनी चाह ए।
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मारी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन नें इन् ी वज ों से काम से बे तर अथि और धमि को माना भमू मकाओिं को स्वीकार कर लेता
ै । जो मनष्ु य धमि की इन
ै उसके मलए काम और अथि करतल गत माने जाते
ैं।
आचायि वात्सस्यायन का मख् ु य मकसद कामिास्त्र की म त्सविा की व्याख्या तथा उसकी व्यव ाररक उपयोधगता व्यतत करना सकता
ै । मगर जब तक मनष्ु य धमि के तत्सव को न ीिं जानता तब तक व
ै।
काम की द लीज पर न ीिं प ुिं च
श्लोक (15)- अिगश्च राज्ञः। तन्मल ू त्सवाल्लोकयात्रायाः। वेश्यायाश्चेतत त्रत्रवगगप्रततपत्तः।।
अथि- इस तर
के साधारर् ननयम के बाद काम, धमि और अथि के वविेष ननयमों का उल्लेख करते
जीवन का अथि मल ू सत्र ू माना जाता
ै । इस वज
से राजा के मलए काम और धमि से ज्यादा जरूरी अथि
वेश्या के मलए सबसे ज्यादा काम और अथि की जरूरत साधन खत्सम
ोते
ैं। सािंसाररक
ोती
ोता
ै।
ै । काम, धमि और अथि के लक्षर् तथा उनकी प्राजप्त के
ैं।
चार्तय के अनस ु ारधमिस्य मल ू मथि- धमि का मल ू धमि ै । अथिस्य मल ू राज्यम- अथि काम मल ू राज्य
ै।
राज्यमल ू ननन्ियजय- राज्य का मल ू इजन्िजय
कौटल्य के द्वारा राजा की अथि प्रधान ववृ ि उपलब्ध कर सकता
ै।
ोनी चाह ए। उसके द्वारा व
ै तथा राज्य को भी मजबत ू बना सकता
ववचार ब ु त ज्यादा ममलते-जल ु ते
राज्य तथा धमि दोनों को
ै । कौटल्य के इन ववचारों से आचायि वात्सस्यायन के
ै।
श्लोक (1 )- धमग्यालौकककत्सवातदशभदायक शा्त्र यक् ग त्सवादिागशसद्धः। उपायप्रततपत्तः शा्त्रात ्। ु तम ्। उपायपव ू क अथि- आचायि वात्सस्यायन धमि का बोध करने वाले िास्त्र की जरूरत बताते ु ए क ते धमि परमाथि का सिंपादन करता भी। अथिमसद्धध के मलए कई तर जरूरत
ोती
ैं-
ै , इस प्रकार धमि का बोध कराने वाले िास्त्र का
के उपाय करने पडते
ैं इस वज
ोना जरूरी
ै तथा उधचत
से इन उपायों को बताने के मलए अथििास्त्र की
ै।
धमि का ज्ञान 3 प्रकार से
ोता
ै - प ला तो धमाित्समा ववद्वानों की मिक्षा, दस ू रा आत्समा की सच्चाई को
जानने की इच्छा और तीसरा परमात्समा प्राकेत ववद-ववद्या का ज्ञान। अथविवद े धमि का लक्षर् बताते ु ए क ता
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ै-
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | यज्ञ, दम, िम, दान और प्रेमभजतत से तीनों लोकों में व्यापक िह्म की जो उपासना की जाती क ा जाता तप
ोता
ै । तत्सव मानने, सत्सय बोलने, सारी ववद्याओिं को सन ु ने, अच्छे स्वभाव को धारर् करने में लीन र ना
ी
ै। सत्सय को ऋत भी क ते
सत्सय से
ै उसे तप
ै। सच्चे भाषर् और सत्सय की रा
ी रोजाना मोक्ष सख ु और सािंसररक सख ु ममलता
पर बढने से बढ़कर कोई भी धमि न ीिं
ै तयोंकक
ै।
मन,ु अबत्र, ववष्र्,ु ाररत, याज्ञवल्तय, यम, सिंवति, कात्सयायन, परािर, व्यास, ब ृ स्पनत, ििंख मलणखत दक्ष, गौतम, िातातप वमिष्ठ समेत य
सारे ऋवष धमििास्त्र को रचने वाले
ैं। इन सभी धमििास्त्रकारों नें य ी बताया
करना, इजन्ियों पर काबू करना, सदाचार, अह स िं ा, दान, वेदों का स्वाध्याय करना य ी परम धमि धमि का मकसद मसर्ि इतना इस वज
ी
ोता
ै।
ै कक ववषयोधचत ववृ ियों का ननरोधकर आत्समज्ञाम प्राप्त करा जाए।
से वात्सस्यायन नें धमि को पारमाधथिक क ा ै ।
धमि और मोक्ष से ज्यादा अथि के क्षेत्र को ज्यादा व्यापक माना जाता की, बद् ु धध के मलए धमि की तथा मन के मलए काम की जरूरत ोती
ोता
ै कक यज्ञ
ै । मनष्ु य को
ी धमि और मोक्ष की जरूरत पडती
मकोडे तथा तर् ु ारा न ीिं ृ पल्लव ककसी का भी गज मनोरिं जन को भी त्सयागा जा सकता
ोती
ै । जजस तर
ै । इसी तर
से आत्समा के मलए मोक्ष
िरीर के मलए भी अथि की जरूरत
ै लेककन काम तथा अथि के बबना तो मनष्ु य पि,ु पक्षी, कीडे-
ो सकता। काम के बबना भी एकबार काम चल सकता
ै और
ै।
जजस अथि पर प्राणर्मात्र के िरीर जस्थर
ै , सभी की जजिंदगी ठ री ु ई
ै, उस अथि की प्रधानता का अिंदाजा
अनायास ककया जा सकता ै । उसकी मममािंसा भी ब ु त सावधानी के साथ करना चाह ए तयोंकक उसके अनधु चत सिंग्र के द्वारा मोक्ष मागि बबगड सकता की रचनाएिं ु ई
ै । आयि सभ्यता में इस वज
ै।
जीवन की
र समस्या का
से अथि की म त्सवता स्वीकार करते ु ए अथििास्त्रों
ल अथििास्त्र के द्वारा सभी दृजष्टयों से ककया जा सकता
उसकी सरु क्षा के मलए प्राचीन आचायों ने जजतने भी अथििास्त्रों की रचना कौटल्य ने कौटलीय अथििास्त्र की रचना की कामसत्र ू की रचना की
ै, अतसर उन सभी को इकट्ठा करके
ै , इस कौटलीय अथििास्त्र की लेखनप्रर्ाली को अपनाकर वात्सस्यायन ने
ै।
आपस्तिंब धमिसत्र ू में अथि तथा धमि में कुिल राजपरु ोह त तक का वववरर् ववषय धमि अथवा ववधान
ी
ै । धमिसत्र ू ों का मख् ु य प्रनतपाद्य
ै लेककन अथििास्त्र के अिंतगित सभी आधथिक मसद्धािंतों तथा ननयमों को बताया गया
अथििास्त्र का खास ववषय राजनीनत मौजद ू
ै । ज्ञान को पाने तथा
ै । मनष्ु य के सभी लौककक कल्यार्ों का स्वरूप अथििास्त्र के अिंतगित
ै । इसमलए जीवन के सभी प्रयोजनों की मसद्धध अथििास्त्र के अिंतगित दी गई
ै।
श्लोक (17)- ततयगग्योतनष्वत्प तु ्वयं प्रवतत्सवात ् काम्य तनत्सयत्सवाच्च न शा्त्रेण कृत्सयम्तीत्सयाचायागः।।
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- पि-ु पक्षी को अतसर बबना कुछ मसखाए ोने से य
साबबत
ोता
ी सिंभोग किया करते ु ए दे खा जा सकता
ै कक इस ववषय का िास्त्र बनाने की जरूरत न ीिं
ै। य
ै और काम के अववनािी
कुछ आचायों का मत ै -
श्लोक (18)- संप्रयोगपराधीनत्सवात ् ्त्रीपस ुं योरुपायमपेक्षते।। अथि- आचायि वात्सस्यायन नें इसका समाधान करते ु ए क ा सिंभोग किया करते समय करती
ै-
ारने पर स्त्री और परु ु ष को इस
ार से बचने के मलए िास्त्र की अपेक्षा ु आ
ै।
जो लोग धमि के व्यापक रूप को, उसके प्रच्छन्न राज को समझने की कोमिि न ीिं करते का ववरोध करते
ैं। सिंभोगकिया को स्वाभावमसद्ध मानकर सिंभोगकिया में व्यजतत और जानवर को बराबर मानने
वाले नीनतकारों नें कामिास्त्र की उपयोधगता पर ध्यान न ीिं हदया लेककन आचायि वात्सस्यायन क ते िास्त्र के अिंतगित बताया गया ोती
ै।
ैं कक सिंभोग करने के मलए िास्त्रज्ञान जरूरी इसमलए
परु ु ष दोनों में से कोई भी भयभीत, लज्जाजन्वत या की जरूरत
ारता
ै तो उसको उपायों की जरूरत
ै । इन उपायों को
ै।
ज्ञान दे ते
जानकारी जरूर
ोती
ै कक अगर स्त्री या
ै । सिंभोग सख ु या वैवाह क जीवन को खुि ाल बनाने के मलए सिंभोग की 64 कलाओिं
अथििास्त्र या धमििास्त्र के द्वारा ऐसी कलाओिं और उपायों का ज्ञान न ीिं वात्सस्यायन य
ैं व ी कामिास्त्र
ोता। इस वज
से आचायि
ैं कक ग ृ स्थ जीवन को सख ु ी, सिंपन्न और आनिंददायक बनाने के मलए कामसत्र ू की
ोनी चाह ए।
कामिास्त्र के द्वारा इस बात की जानकारी ममलती ै कक सिंभोग किया का सवोिम तथा आध्याजत्समक उद्दे श्य
ै पनत-पत्सनी में आध्याजत्समकता, मानव प्रेम तथा परोपकार और उदाि भावनाओिं का ववकास। इस मकसद का
ज्ञान पि-ु पक्षक्षयों, कीडे-मकोडे को न ीिं ककया करते
ो सकता। जो लोग सिंभोग के बारे में न ीिं जानते व
सिंभोग
ैं।
कामसत्र ू के द्वारा मनष्ु य को इस बात का ज्ञान प्रकार से
जानवरों की तर
ोता ै कक सिंभोग का असली सख ु तया
ै। य
सख ु इस
-ैं
मनष्ु य जानत का उिरदानयत्त्व। सिंभोग, सिंतान पैदा करना, जननेजन्दय और काम से सिंबधधत समस्याओिं के प्रनत आदििमय भाव। अपनी स भागी के प्रनत उच्चभाव, अनरु ाग, श्द्धा और भले की कामना से इन तीनों पर ननभिर र े । दाम्पत्सय प्रेम या अपनी प्रेममका की आजत्समयता के बबना वववा
करना या प्रेम करना असर्ल
ोता
ै।
दम्पवियों के बीच में आपसी तलेि, सिंबध िं ों का टूटना, अनबन, गप्ु त व्यमभचार, वेश्याववृ ि, स्त्री का अप रर्, अप्राकृनतक
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | व्यामभचार आहद ब ु त से बरु े पररर्ामों और घटनाओिं का असली कारर् कामसत्र ू को पसिंद न करना या उसके बारे में जानकारी
ोना
ै।
श्लोक (19)- सा चोपायप्रततपत्तः कामसत्र ू ाहदतत वात्स्यायनः।।
अथि- पनत-पत्सनी के धाममिक और सामाजजक ननयम की मिक्षा कामसत्र ू के द्वारा ममलती मत ु ाबबक अपना जीवन व्यतीत करते
ै उनका जीवन यौन-दृजष्ट के परू ी तर
जजिंदगी एक-दस ू रे के साथ सिंतष्ु ट र कर बबताते आकािंक्षा कभी पैदा का मत
ै।
ी न ीिं ु आ करती
ोता
ै । ऐसे दम्पनत अपनी परू ी
ैं। उनके जीवन में पत्सनीव्रत या पनतव्रत को भिंग करने की कोमिि या
ै तथा उपायों द्वारा प्राप्त व
कामसत्र ू के द्वारा इस बात के बारे में जानकारी ममलती सीत्सकार और उपसगि। इनके अलावा 3 तर
सख ु ी
ै । जो दम्पनत कामिास्त्र के
ज्ञान कामसत्र ू से प्राप्त
ोगा। य
ै कक सिंभोग की 3 मख् ु य कियाएिं
के परु ु ष, 3 प्रकार की जस्त्रयािं, 3 तर
वात्सस्यायन
ोती
का सम सिंभोग, 6 तर
ै- ववलास, का ववषम
सिंभोग, सिंभोग के 3 वगि, वगि भेद से 9 प्रकार के सिंभोग, काल भेद से 9 प्रकार के सिंभोग तथा सिंभोग के सभी 27 प्रकार
ै । सिंभोग करते समय परु ु ष और स्त्री को कब और ककस तर
समय ककस तर
की परे िानी
ोती
आसनों से ककस प्रकार के लाभ
ै , स्त्री पर स्खलन का तया प्रभाव पडता
ोते
ममला दे ती
ै , प ली बार सिंभोग करते
ै, सिंभोग करते समय ववमभन्न प्रकार के
ैं।
जो लोग सेतस किया के बारे में न ीिं जानते धगरफ्त में प ुिंचा दे ते
का आनिंद ममलता
ैं व
अपनी पत्सनी के साथ सेतस करके उन् े ब ु त से रोगों की
ैं। कामसत्र ू द्वारा ऐसी ब ु त सी ववधधयािं पाई जाती
ै जो स्त्री और परु ु ष को आपस में ऐसे
ै जैसे कक दध ू में पानी। इसमलए आचायि वात्सस्यायन के अनस ु ार सिंभोग के मलए िास्त्र उसी तर
जैसे अथि और धमि के मलए
ोता
जरूरी
ै।
श्लोक (20)- ततयगग्योतनषु पन ग त्सवाच्च प्रवत ु रावत ु धधपव ू क ु ायः प्रत्सययः।। ृ त्सवात ् ्त्रीजातेश्च, ऋतो यावदिग प्रवत ृ ेबद् ृ ीनामनप अथि- स्त्री और परु ु षों में तो स्त्री जानत स्वाधीन और बिंधनरह त ोती इच्छा
ोता र ती
ै । उसकी सिंभोग के प्रनत रुधच
ोने से तथा वववेक बद् ु धध न
ी काम-प्रववृ ियों को परू ा करने के मलए स ी उपाय
ोती
ै । जजसके कारर् ऋतक ु ाल
ी में व
तप्ृ त
ोने से पि-ु पक्षक्षयों के मलए स्वाभाववक सिंभोग की
ै।
वात्सस्यायन के मतानस ु ार मनष्ु य रूप में पैदा ु ई स्त्री तथा नतयिग्योनन में पैदा ु ई धचडडया में कार्ी र्कि
ै । स्त्री धचडडया की तर
न तो आजाद
ोती
ै और न वववेकिन् ू य। व
ै । इसके अिंतगित लोकलज्जा, कुललज्जा तथा धमिभय र ता
खास स्त्री के साथ सिंबध िं
ोने से ब ु त सी मजु श्कलें पैदा
पि-ु पक्षक्षयों की तर
ो सकती
समाज और विंि की मयािदाओिं से बिंधी
ै । इसमलए ककसी खास तर
के परु ु ष का ककसी
ै।
मनष्ु य की सिंभोग करने की इच्छा मसर्ि पािववक धमि न ीिं ै । व्यजतत को धमि, अथि,
सिंतान को पैदा करना, विंि को बढ़ाना जैसे कई तर
के मकसदों को सामने रखना पडता
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इसके अलावा भी पि-ु पक्षक्षयों में भाई-ब न, माता-वपता के सिंबध िं ों का वववेक पैदा न ीिं दाम्पत्सय जीवन परू ी जजिंदगी र ता ोती
ोता और न
ी उनका
ै । वैवाह क जीवन को परू ी जजिंदगी चैन से बबताने के मलए कामसत्र ू की जरूरत
ै।
श्लोक (21)- न धमागश्चरे त ्। एष्यल्तलत्सवात ्। सांशतयकत्सवाच्च।। अथि- धमि का आचरर् कभी न करें तयोंकक भववष्य में ममलने वाला र्ल िक र ता
ी अननजश्चत
ोता
ै । उसके ममलने में भी
ै। श्लोक (22)- को ह्यबाशलशो ि्तगतं परगतं कुयागत ्।।
अथि- कौन सा व्यजतत इतना मख ू ि
ोता
ै जो
ाथ में आई ु ई चीज को दस ू रे के
ाथ में सौंप दे गा।
श्लोक (23)- वरमद्य कपोतः श्वो मयरू ात ्।। अथि- अगर व
सख ु ममलना ननजश्चत भी
आज ममलने वाला कबत ू र
ी अच्छा
ो तब भी य
लोकोजतत चररताथि
ी
ोती
ै - कल ममलने वाले मोर से
ै।
श्लोक (24)- वरं सांशतयकात्रत्रकादसांशतयकः काषागपणः। इतत लौकायाततकाः।। अथि- नाजस्तक लोगों को मानना वाले सोने के बतिन से अच्छा
ै कक क ना
ै कक असिंहदग्ध रूप से ममलने वाला तािंबे का बतिन ििंका से प्राप्त
ोने
ै।
आचायि वात्ससयायन के मतानस ु ारधमों का पालन जरूर करना चाह ए तयोंकक धमि का उपदे ि करने वाले वेद तथा िास्त्र ईश्वर कृत तथा मिंत्रदृष्टा
ऋवषयों द्वारा बनाए गए
ै इसमलए व
ननश्चय
ी स ी
ैं।
िास्त्रों के अनस ु ार क े गए अमभचार कायों और िािंनत, पजु ष्टवद्िधक कामों के र्लों का ए सास इसी जन्म में ो जाता
ै।
ै। नक्षत्र, सय ू ,ि चिंि, तारागर् तथा ग्र -चिों की प्रववृ ि भी लोगों की भलाई के मलए बद् ु धधवाद्-सिंपन्न जान पडती
मनष्ु य का जीवन वर्ािश्य धमि पर आधाररत
ै-
तत्र सिंप्रनतपविमा -
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (25) शा्त्र्यानशभशंग-यत्सवादशभचारानव्ु यािारयोश्च कधचत्सतलदशगनात्रक्षत्र-चंद्रसय ग ाराग्रिचक्र्य लोकािग ू त बद् ग शमवप्रवेतेदगशन ग ाद्वणागश्रमाचारस््ितत-लक्षणत्सवाच्च लोकयात्राया ि्तगत्य च बीज्य भत्वष्यतः स्याि़े ु धधपव ू क त्सयागदशगनाच्चरे द्धमागतनतत वात्स्यायनः।। अथिोता
ाथ में आए ु ए बीज को अनाज ममलने की आिा में त्सयाग दे ना बेवकूर्ी न ीिं
ै । उसी तर
भावी मोक्ष की आिा ऱखकर धाममिक कायों को करना स ी
मोक्ष के रास्ते खुलते
ै तयोंकक बीज से
ी अन्न पैदा
ै तयोंकक धाममिक कायों के जररए
ी
ैं।
धमि के आचरर् के मलए वात्सस्यायन वेद और िास्त्र को ईश्वरकृत और ऋवष प्रर्ीत क कर इन् े सच मानते
ैं। इनकी सत्सयता साबबत वेद ईश्वरकृत
ोने पर व
धमि को भी प्रामाणर्क मानते
ै- इसके प्रमार् स्वयिं वैहदक ग्रिंथ
ैं।
-ैं
श्लोक- अरे अस्य म तो भत ू स्य ननःश्वमसतमेतद्। यद्दग्वेदो यजुवद े ः सामवेदोऽथवािधगिंरसः।। श्लोक- त्रयोवेदो वायोः सामवेदः आहदत्सयात ृ्।। त्रयो वेदा अजायन्त आग्नेऋग्वेदः। वायोयिजुवेदः सय ू ाित ृ् सामवेदः।। अग्नेऋरचो वायोयिजूिंवष सामान्याहदत्सयात ृ्। तस्माथज्ञात्ससवि ु तः ऋचः सामानन जक्षज्ञरे । छन्दािंमस जक्षज्ञरे तस्माद्यजस् ु तस्माद्जायत।। यजस्मन्नच ृ ः सामयजिंवू ष यजस्मन ृ् प्रनतजष्ठता रथनाभा वववाराः। सस्माद्दचो अपातक्षन ृ् यजय ि मादपारुषन ृ्। ु स् सामानन यस्य लोमान्यथवािधगिंरसो मख ु म ृ्।। अथि- ऊपर हदए गए उदा रर्ों से ऋग्वेद, यजव ुि ेद, सामवेद तथा अथिववेद की अपौरूखषेयता और ईश्वरदिता साबबत
ोती
प्रकट ककए मिंत्र क ते
ै । ववधध और मिंत्र जजसके अिंतगित आते ैं कक प्रेरर्ादायक लक्षर् वाला अथि
ैं व ी वेद
ोते
ैं। मीमािंसा दििन ने इस बात पर अपने ववचार
ी धमि ै । ववधध तथा मिंत्र का एक
ी अथि ै तयोंकक प्रेरर्ात्समकों को
ैं।
इसके द्वारा आचायि वात्सस्यायन के इस मत की पजु ष्ट
ो जाती
ै वेद ईश्वरीय ज्ञान
ै तथा उनमें धमोपदे ि
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | य ािं पर वात्सस्यायन का अथि िास्त्र से मतलब धमििास्त्र
ै । धमििास्त्र में यादों को प्रमख ु माना जाता
मन,ु याज्ञवल्तय आहद साक्षात ृ् कृतधमाि ऋवष-मनु नयों नें यादों में जो धमि के उपदे ि हदए साविजनीन
ै, उनके द्वारा बताए गए रास्ते पर धमि का आचरर् करना स ी
मनष्ु य जो भी िभ ु या अिभ ु कायि करता ोते
ैं।
ोम करना रोजाना का काम
आदे ि के रूप में
ोते
के मलए ककया जाता यज्ञ
ोता
ोम का प्राकृनतक और लाभकारी र्ल वायम िं ल की िद् ु ड ु धध
आस-पास की वायु को गमि करके ऊपर की ओर धकेलती ै तथा गमि
रोजाना, नैममविक तथा काम्य 3
ोकर व
ोते
को समन् ु नत बनाता
ोता
ै । जलती ु ई आग अपने ऊपर की ओर
ै । िन् ू य को परू ा करने के मलए इधर-उधर से ठिं डी
भी ऊपर आ जाती
ै उससे वायम िं ल तरु िं त ु ड
ै। य
चतकर चलता र ता
चुकी
ी िद् ु ध
ोता
ै तथा धमि से व
कायि अमभप्रेत
ैं। मीमािंसा के मतानस ु ार र्ल मनष्ु य के मलए
इसमलए की जाती ै कक ऐसा कमि कल्यार्कारी सख ु का मेल
ो। पाप और दख ु का मेल
अिभ ु कामों के र्ल अिभ ु ममलते
ोता ै ।
ै और मनष्ु य कमि के मलए
ै कक सय ू ि
ै । कमि की प्रेरर्ा भले
ी ी
ै कक पण् ु य काम तथा
ैं।
ी सब प्रजाओिं का प्रार्
ी
ोती
ै। सय ू ि के द्वारा ी ग रा सिंबध िं
ोता
ै । श्नु त के मिंत्र भाग के अिंतगित कई स्थानों ी सभी प्राणर्यों की उत्सपवि ु ई
ै । ववषव ु त ृ्
ै । इस ववषय के बारे में ऐतरे य िाह्मर् में
ै-
इस तर अपर् ि ा के र ू त
ैं।
ो। इस मसद्धान्त का पक्षपाती जेममनी ै । िभ ु कामों के र्ल िभ ु और
वि ृ तथा िािंनत वत ृ का िरीर की बनावट के ब ु त बताया गया
ैं। इस
र्ल की प्राजप्त के मलए
मारी नैनतक भावना की मािंग य
ग्र , नक्षत्र आहद की प्रववृ ि मनष्ु य की भलाई की मलए पर बताया गया
ै।
ै जजसकी ववधधयािं वेदों में बताई जा
ै । इन कमों का र्ल जरूर ममलता ै । य ी न ी कमि अगर ककए जाते ै तो व
ककए जाते
ो जाते
वा
ै , मिंत्रों का पाठ यज्ञ करने वाले
ै । मीमािंसाकार के मत से यज्ञों का जो र्ल ै उसका सिंबध िं वतिमान से
धमि जजज्ञासा पव ि ीमािंसा का ववषय ू म
दोनों
।ैं
इस किया में इधर-उधर उडते ु ए, पडे ु ए खतरनाक जीव किंु ड से गज ु रते ु ए भस्म
पररवतिन क्षेत्र में जो कोई भी बदलाव
ै। य
ै । उिेजजत कायों को खास ककस्म की इच्छाओिं को परू ा करने
र कायि में कुछ अिंि प्रधान तथा कुछ अिंि गौर्
वन-किंु ड की तरर् णखिंची आती
ै, व
ै । नैममविक कामों को ककसी खास मौकों पर ककया जाता
ैं और इनको करना जरूरी ै।
ै।
ै िास्त्रों के द्वारा उसका र्ल उसे इसी जजिंदगी में भग ु तना पडता
ै । मीमािंसा के अनस ु ार श्ुनत के द्वारा जजन कायों को करने की आज्ञा ममलती के
साविकामलक तथा
ै । उनका धमि उपदे ि यथाथि की पष्ृ ठभमू म पर सामाजजक अभ्यद ु य तथा पर लौककक कल्यार् के मलए ु आ
ै । इस प्रकार यादें सच
तर
ैं व
ै।
प्रमार् से य
साबबत
ो जाता
ै कक मनष्ु य की आत्समा अधेन्ि अथाित इिंि का आधा भाग
ै।
जाने पर मनष्ु य आहद प्राणर्यों का आत्समा इन्ि अपने आपको अपर् ू ि व अपयािप्त समझता ै तयोंकक
अकेला प्रार्ी कभी भी सिंभोग न ीिं कर सकता- तस्मादे काली न रमते तद द्ववतीयमैच्छत। व मलए दस ू रे प्रार्ी का इच्छा करता
ै। य
जीवन का ननयम
ोता
मनोववनोद िीडा ा़ के
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इसीमलए ब ु त सी श्नु तयों का क ना
ी माना जाता
ै । वाजजश्ुनत का क ना
ै कक जब तक परु ु ष दार-सिंग्र
ै कक जजन दो स्त्री-परु ु षों का ममलन
जब तक एक अद्िध का दस िं न ीिं ू रे से ममथुन सिंबध स्त्री को
धमि पर
ो जाता
ामसल न ीिं ककया जा सकता तब तक सजृ ष्ट न ीिं आचायि वात्सस्यायन का य
वैश्य माने जाते
ैं व
ोते
तब तक परू े न ीिं
ोती
ै । इस तर
िाह्मर् क लाते
ो सकते
से जब तक
ै। ी मालम ू पडता
ै । उनके मतानस ु ार िाह्मर्ाहद वर्ि मसर्ि मनष्ु य में
ै कक वर्ािश्म
ी न ीिं बजल्क परू े
ैं।
ैं। जो ऐन्ि
ैं और पष ू दे वता के पदाथों को िि ु क ते
अलग-अलग प्रकृनत के पैदा
ै व
स्त्री आधा भाग
ो सकती
सिंसार में वतिमान चेतन-अचेतन सभी पदाथि 4 वर्ों में बिंटे ोते
ै। य
ोता
न ीिं करता तब तक उसे अधूरा
कथन सिंकुधचत और सीममत नजररये से अलग
ी लोगों को जीवन ननभिर करता
जो पदाथि आग्नेय
वववा
ोते
ैं व
क्षबत्रय
ोते
ैं। जो ववश्वदे व
ैं व
ैं। सारे पदाथि अजग्न, इिंि, ववश्वदे व और पष ू दे वता से
ैं। इसमलए सारे पदाथों में क्षबत्रय, िाह्मर् आहद चारों ववभाग
ोते
ैं। मानव की
इसी बनु नयादी प्रकृनत को ध्यान में रखकर आचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू में परु ु ष और स्त्री का बिंटवारा, गर् ु -कमि, स्वभाव के मत ु ाबबक करके उनके मलए सिंभोगकला का ननदे ि हदया धमि को नैनतक जीवन की बनु नयाद माना गया छान्दोग्य उपननषद के द्वारा सनत्सकुमार का क ना यज्ञ जैसा
ै और व
ै । धमि का आचरर् कभी त्सयाज्य न ीिं क ा जा सकता
ै कक सख ु में समग्र
ै , अल्प (थोडे) में सख ु न ीिं
ै।
ै । नैनतक जीवन
दस ू रों को अपने अिंदर ममला लेता ै ।
छान्दोग्य उपननषद धमि की उपमा वक्ष ृ से करते ु ए क ते दान, यज्ञ और अध्ययन प ला स्किंध तप दस ू रा सकिंध
ै।
ैं- धमि के 3 स्किंध
ै-
ै।
ै।
िह्मचारी का आचायि कुल में तीसरा सकिंध
ै।
दान दे ना, यज्ञ करना और वेदाहद धमिग्रथ िं ों को पढ़ना मनष्ु य का कििव्य बनता यज्ञ और दान व ीिं मनष्ु य कर सकता दे ने की इच्छा रखता
ै जो कमाने की काबमलयत रखता
ो। अगर जीवन को सर्ल बनाना
न ीिं ममलते बजल्क उन् े तो
का तप
ी
ै।
ो और जो कमाए उसमें से कुछ भाग दान
ै तो उसके मलए तप जरूरी
मे दस ू रों से लेना पडता ै और इसके मलए
कोमिि करने का समय िह्मचारी आचायि कुल में बबताता
ै। स्वाध्याय एक तर
ै । अच्छे आचरर् जन्म लेते
र मनष्ु य को कोमिि करनी पडती ै । य ी
ै ज ािं पर नैनतक आचार की बनु नयाद पडती
ै।
वात्सस्यायन के मतानस ु ार मनष्ु य यज्ञ, तप, दान, स्वाध्याय और िद् ु ध आचरर् का पररत्सयाग न करके रोजाना इनका उपयोग करता र े । श्लोक (2 )- नािागश्चरे त ्। प्रयत्सनतोऽत्प ह्येतऽे नष्ु ठीयमाना नैव कदातयत्सम्यःु अननष्ु ठीयमाना अत्प यद्दच्छया भवेयःु ।। अथि- इसके अिंतगित िास्त्राकार अथि प्राजप्त के सिंबध िं में ननम्नमलणखत 5 सत्र ू ों द्वारा सिंदे
प्रकट करते
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
-ैं
ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि को प्राप्त करने के मलए कभी भी प्रयत्सन न ीिं करना चाह ए तयोंकक कभी-कभी परू ी तर भी अथि प्राप्त न ीिं
ोता और कभी-कभी बबना कोमिि के भी प्राप्त
ो जाता
प्रयत्सन करने के बाद
ै।
श्लोक (27)- तत्ससवग कालकाररतशमतत।। अथि- तयोंकक य
सब कुछ समय पर ननभिर करता
ै।
श्लोक (28)- काल एव हि परु ु षानिागनिगयोजगयपराजययोः सख ु दःु खयोश्च ्िापयतत।। अथि- समय
ी
ै जो मनष्ु य को अथि और अनथि में, जय और पराजय में तथा सख ु और दख ु में रखता
ै।
श्लोक (29)- कालेन बेशलरे न्द्रः कृतः। कालेन व्यपरोत्पतः। काल एव पन ु रप्येनं कत़ेतत कालकारणणकाः।। अथि- समय इस तर
ी था जजसने बामल को इिंि के पद पर ला हदया और कर्र समय ने
समय
ी सब कमों का कारर्
ी उसे इिंि के पद से धगरा हदया।
ै।
श्लोक (30)- परु ग त्सवाद् सवग प्रवत ु पकारपव ू क् ु ायः प्रत्सययः।। ृ ीनामप अथि- आचायि स्वयिं
ी ननम्नमलणखत 2 सत्र ू ों द्वारा अपनी
लेककन सब कामों के मे नत द्वारा कामयाब
ी ििंका का
ल कर र े
ैं-
ोने के उपायों को समझ लेना भी काम साधन कारर्
ै।
श्लोक (31)- अवश्यगभात्वनोऽप्यिग्योपायपव ग त्सवादे व। न तनष्कमगणो भद्रम्तीती वात्स्यायनः।। ू क
अथि- आचायि वात्सस्यायन के मतानस ु ार ककसी भी काम को कोमिि करने पर परू ा
ो जाने के बाद य
साबबत
ोता
ै
कक ननतकमा आदमी कभी भी सख ु को प्राप्त न ीिं कर सकता। आचायि वात्सस्यायन के इस मसद्धान्तवाद का समथिन ऐतरे य िाह्मर् के िन ु ः िेप आख्यान के उस सिंचरर् गीत से के मिंु
ोता
ै जजसका अिंतरा चरै नत बरै वनै त
ै । इस गीत को इिंि नें परु ु ष के वेि में आकर राजा
में प ुिं चे पत्र ु को सन ु ाकर उसे लिंबी जजिंदगी प्रदान की थी।
ररश्चिंि के मत्सृ यु
आचायि वात्सस्यायन और ऐतरे य िाह्मर् के ववचारों की अगर एक-दस ू रे से तल ु ना की जाए तो उससे य ी पता चलता
ै कक चलने का नाम
ी जीवन
ै, रुकने का न ीिं। ऐसे लोग
रास्ते पर आलसी बन कर रुक जाना, थककर सो जाना ब ु त बडी मख ि ा ू त अपने जीवन में ककसी तर तर
के सिंकल्प पर अडडग न ीिं र ते व
से डटकर अथि को प्राप्त करने की रा
पर चल पडता
ी अथि की प्राजप्त कर सकते ै । उपननषदों में क ा गया
ैं। जीवन के ै कक जो व्यजतत
कभी भी आत्समदििन न ीिं कर सकते। जो मनष्ु र्य परू ी
ै , इिंि भी उन् ी के साथ
ै - इिंि इधरत सखा।
श्लोक (32)- न कामाश्चरे त ्। धमागिय ग ोः प्रधानयोरे वमन्येषां च सतां प्रत्सयनीकत्सवात ्। अनिगजनसंसगगमसद्वयवसायमशौचमनायततं चैते परु ु ष्य जनयस्न्त।।
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ैं-
प्रधानभत ू धमि तथा अथि और सज्जनों के ववरुद्ध
ै । काम
मनष्ु य में बरु े आदममयों का सिंसगि, बरु े काम, अपववत्रता और कुजत्ससत पररर्ामों को पैदा ककया ै । श्लोक (33)- तिा प्रमादं लाघवमप्रत्सययमग्राह्यतां च।। अथि- तथा काम-प्रमाद, अपमान, अववश्वास को पैदा करता
ै तथा कामी आदमी से सभी लोग नर्रत करने लगते
ैं।
श्लोक (34)- बिवश्च कामवशगाः सगणा एव त्वनष्टाः श्रूयन्ते।। अथि- तथा ऐसा सन ु ा जाता ै कक ब ु त से काम के वि में आकर अपने पररवार सह त समाप्त
ो जाते
ैं।
श्लोक (35)- यिा दाण्डक्यो नाम भोजः कामाद् ब्राह्मणकन्यामशभमन्यमानः सबन्धुराष्रो त्वननाश।। अथि- जजस प्रकार भोजविंिी दािंडतय नाम का राजा काम के वि में अपने पररवार और राज्य के साथ नष्ट
ोकर िाह्मर् की कन्या से सिंभोग करने के कारर्
ो गया।
श्लोक (3 )- दे वराजश्चािल्यामततबलश्च कीचको द्रौपदी रावणश्च सीतामपरे चान्ये च बिवो द्दश्यन्ते कामवशगा त्वनष्टा इत्सयिगधचंतकाः।। अथि- रावर् सीता पर, इन्ि अ ल्या पर और म ाबली कीचक िौपदी पर बरु ी नजर रखने के कारर् कामक ु भाव रखने के कारर् नष्ट ु ए। ऐसे और भी ब ु त से लोग
ै जो काम के वि में
ोकर नष्ट
ोते दे खे गए
ैं।
श्लोक (37)- शरीरस््िातिे तत्सु वादािारसधमागणो हि कामाः। धमागिय ग ोः।। अथि- आचायि वात्सस्यायन अपने स्वयिं के हदए ु ए तकि का समाधान करते ैिरीर की जस्थनत का
े तु
ोने से काम भोजन के समान
ै और धमि तथा अथि का र्लभत ू भी य ी
आचायि वात्सस्यायन ने हदए गए 6 सत्र ू ों के द्वारा उदा रर् प्रस्तत ु करके य बरु ा, नघनौना और दयनीय बनाकर आणखरी में उसका नाि कर दे ता व
का
अथि धचिंतकों के
बताया
ै।
ै कक काम मनष्ु य को
ै । इस तकि के मत में जो उदा रर् हदए गए
ै
ैं।
कौहटल्य ने भी राजा को इिंहियों को जीतने वाला बनने का मिवरा दे ते ु ए मलखा
े त,ु इिंहियों को जीतने वाला
ै कक ववद्या तथा ववनय
ै । इसमलए िोध, काम, लोभमान, मद, षि और ज्ञान से इिंहियों को जीतना चाह ए।
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अध्याय 3 त्वद्यासमद् ु दे शः श्लोक-1. धमागिागग्ङत्वद्याकालाननप ु रोधयन ् का्मसत्र ू ं तदग्ङत्वद्याश्च परु ु पोऽधीयीत 1।। अथि- अथििास्त्र, धमििास्त्र और इनके अिंगभत ू िास्त्रों के अध्ययन के साथ
ी परु ु ष को कामिास्त्र के अिंगभत ू िास्त्रों
का अध्ययन करना चाह ए। व्याख्यामनु न वात्सस्यायन ने इस श्लोक में “ववद्या” िब्द का उपयोग ककया
ै । धमिववद्या और उसकी अिंगभत ू
ववद्याओिं को पढ़ने के साथ कामिास्त्र तथा उसकी अिंगभत ू ववद्याओिं को पढ़ने की सला य
चौद
ववद्याओिं तथा सात मसद्धािंतों पर आधाररत
ै । इन् ी चौद
दी गयी
ै।
ववद्याओिं के ववमभन्न प्रकार बाद में
ववमभन्न िास्त्रों तथा मसद्धािंतों के रूप में प्रचमलत ु ए। याज्ञवल्यतय स्मनृ त के द्वारा चार वेद, छ का वर्िन
ववद्याओिं
ै । इसके अनतररतत पाञ्चरात्र, कावपल, अपरान्तरतम, िह ष्ट, ै रण्यगभि, पािप ु ात तथा िैव इन सात मसद्धािंतों
का भी उल्लेख
ै।
इन चौद ोते
िास्त्र, मीमािंसा, न्याय परु ार् तथा धमििास्त्र- इन चौद
ैं। य
ववद्याओिं के 70 म ातिंत्र और 300 िास्त्र
ैं। म ातिंत्र की तल ु ना में िास्त्र ब ु त छोटे और सिंक्षक्षप्त
ववद्या ववस्तार मिव (वविालाक्ष) ने क ा था। म ाभारत में य
मलखा
ै कक िह्म के नतवगि िास्त्र से
मिव (वविालाक्ष) ने अथि भाग अथाित अथििास्त्र को मभन्न ककया था। उस अथिभाग में ववमभन्न ववषय थे। बाद में उन् ी के आधार पर ववमभन्न ग्रिंथ मलखे गये
ैं जो ननम्न
ैं-
1. लोकायव िास्त्र। 2. धनव ु ेद िास्त्र। 3. व्यू
िास्त्र।
4. रथसत्र ू । 5. अश्वसत्र ू । 6.
जस्तसत्र ू ।
7.
स्त्सवायव ु ेद्।
8. िामल ोत्र।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 9. यिंत्रसत्र ू । 10. वाणर्ज्य िास्त्र। 11. गिंधिास्त्र। 12. कृवषिास्त्र। 13. पािप ु ताख्यिास्त्र। 14. गोवैध। 15. वक्ष ु ेद। ृ ायव 16. तक्षिास्त्र। 17. मल्लिास्त्र। 18. वास्ति ु ास्त्र। 19. वाको वातय। 20. धचत्रिास्त्र। 21. मलवपिास्त्र। 22. मानिास्त्र। 23. धाति ु ास्त्र। 24. सिंख्यािास्त्र। 25.
ीरकिास्त्र।
26. अदृष्टिास्त्र। 27. तािंबत्रक श्नत। 28. मिल्पिास्त्र। 29. मायायोगवेद। 30. मार्व ववद्या। 31. सद ू िास्त्र।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 32. िव्यिास्त्र। 33. मत्सस्यिास्त्र। 34. वायस ववद्या। 35. सपि ववद्या। 36. भाष्य ग्रिंथ। 37. चौर िास्त्र। 38. मातत िं । ृ त्र उपयत ुि त दी गयी 38 तर वेद के छ
की ववद्याएिं
ैं। इनमें से अधधकतर जानकारी कौटलीय अथििास्त्र में ममलती
अिंगों में से एक अिंग कल्प को माना गया
ै । कल्प िब्द का अथि ववधध, ननयम तथा न्याय
ऐसे िास्त्र जजनमें ववधधा़ , ननयम तथा न्याय के सिंक्षक्षप्त, सारभत ू तथा ननदोष वातय समू
र ते
ै। ै।
ैं उन् ें कल्पसत्र ू के
नाम से जाना जाता ै । कामसत्र ू के तीन भेद ककया गया
ै । ग ृ सत्र ू ों में जन्म से लेकर मत्सृ यु तक के सभी लौककक और पारलौककक कतिव्यों तथा अनष्ु ठानों के बारे
में उल्लेख ककया गया गया
-ैं श्ौत, गह् ू ों में यज्ञों के ववधान तथा ननयम के बारे में वणर्ित ृ य और धमि। श्ौतसत्र
ै । धमिसत्र ू ों में अनेक धाममिक, सामाजजक, राजनीनतक कतिव्यों और दानयत्सवों का वर्िन ककया
ै। कामसत्र ू के समान
ी धमििास्त्र भी श्ौत धमििास्त्र तथा स्माति धमििास्त्र- दो भागों में ववभाजजत
धमििास्त्रों का मल ू उद्दे श्य कमिर्ल में ववश्वास, पन ु जिन्म में ववश्वास तथा मजु तत पर आस्था
ै । सभी
ै । इन् ीिं तीन बातों का
ववस्तार जीवन के ववमभन्न अिंगों तथा उद्दे श्यों को लेकर धमििास्त्रों में ककया गया ै । आचायि वात्सस्यायन का उद्दे श्य अथििास्त्र तथा धमििास्त्र के इसी व्यापक क्षेत्र का अध्ययन ी कामसत्र ू और उसके अिंगभत ू िास्त्र (सिंगीत िास्त्र) के मलए व अथििास्त्र तथा धमििास्त्र की का ववस्तार से वर्िन ककया गया
ी तर
सला
दे ता
ै । इसके साथ
ै।
कामिास्त्र में भी जीवन के मलए उपयोगी भावनाओिं तथा प्रनतकियाओिं
ै । वात्सस्यायन के अनस ु ार अथििास्त्र तथा धमििास्त्र के अध्ययन के अलावा कामसत्र ू
का अध्ययन भी जीवन के मलए उपयोगी
ोता ै ।
आचायि वात्सस्यायन ने कामिास्त्र न मलखकर उसके स्थान पर कामसत्र ू मलखा जजस प्रकार अथििास्त्र के क्षेत्र में केवल कौटलीय अथििास्त्र
ी एक उपलब्ध ग्रिंथ
में प्राचीन ग्रिंथों का अभाव ै जजसके कारर् वात्सस्यायन का य
कामसत्र ू
ै। इसका कारर् य
ै। उसी तर
ी वविेष उपयोगी
से कामिास्त्र के क्षेत्र ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै कक
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | कामसत्र ू कार कामसत्र ू के साथ-साथ इसके अिंगभत ू िास्त्र अथाित सिंगीत को भी पढ़ने की सला प्रकार कामिास्त्र सजृ ष्ट-रचना का स ायक समझने का एक मख् ु य साधन
दे ता
ै । उसी प्रकार से सिंगीतिास्त्र की नादववद्या भी सिंसार के र स्यों को
ै । सिंगीत के स्वरों से दे वता, ऋवष, ग्र , नक्षत्र, छिं द आहद का ग रा सिंबध िं
वाद्ययिंत्रों को सिंगीत का स ायक माना जाता काम को बत्रवगि क ा जाता ै । य
बत्रवगि
ै । जजस
ै । सिंगीत िह्मनिंद का स ोदर माना गया
ी मोक्ष प्राजप्त का साधन
कामिास्त्र तथा सिंगीत िास्त्र के अध्ययन की सला
ोता
ै।
ै । अथि, धमि तथा
ोता ै । वात्सस्यायन के अथििास्त्र, धमििास्त्र,
का अथि मोक्ष की प्राजप्त समझना चाह ए।
श्लोक-2. प्राग्यौवनात ् ्त्री। प्रता च पत्सयरु शभप्रायात ।।2।। अथि- इन चौद
ववद्याओिं तथा सात मसद्धािंतों का अध्ययन केवल परु ु ष को
ी न ीिं, बजल्क स्त्री को भी करना चाह ए।
व्याख्यायव ु ावस्था से प ले
ी स्त्री को अपने वपता के घर में अथििास्त्र, धमििास्त्र, कामिास्त्र तथा सिंगीतिास्त्र का
अध्ययन करना चाह ए। वववा
ोने के बाद स्त्री को अपने पनत से आज्ञा लेकर
ी कामसत्र ू का अध्ययन करना
चाह ए। श्लोक-3. योत्षतां शा्त्रग्रिण्याभावादनिगकशमिशा्त्रे ्त्रीशासनाशमत्सयाचायाग।।3।। अथि- िास्त्रों का अध्ययन करना जस्त्रयों के मलए स ी न ीिं
ै । इस सत्र ू में बारे में
कुछ आचायों के अनस ु ार जस्त्रयों में िास्त्र का भ्रम समझने का अभाव और उसकी अिंगभत ू ववद्याओिं का अध्ययन कराना ननरथिक
ोता
ोता
ै । इसमलए जस्त्रयों को कामसत्र ू
ै।
श्लोक -4. प्रयोगग्रिणं त्सवासाम। प्रयोग्य च शा्त्रपव ग कत्सवाहदतत।।4।। ू क अथि- आचायि वात्सस्र्यायन जी क ते तो
ै
ैं कक जस्त्रयों को कामसत्र ू के मसद्धािंतों के कियात्समक प्रयोग का अधधकार
ी तथा कियात्समक प्रयोग के बबना िास्त्र के बारे में परू ी जानकारी प्राप्त न ीिं की जा सकती
के मलए कामसत्र ू का अध्ययन करना अनधु चत
ोता
ै।
सेतस किया का उद्दे श्य केवल वासनाओिं की और आध्याजत्समक उद्दे श्य तो सभी जीवधाररयों में प्राणर्यों में एक
ी अिंतर
ोता ोती ोता
ै। य
सच
ी तजृ प्त
ी न ीिं
ै , बजल्क इससे भी अधधक इसका सामाजजक
ै कक जस्त्रयों में सेतस की स्वाभाववक प्रववृ ि र ती
ै । पि-ु पक्षी, जलीय प्रार्ी आहद सभी जीव सेतस कियाएिं करते ै व
ै वववेक का। यहद मनष्ु य भी वववेकिन् ू य
उसमें और पिओ ु िं में कोई भी अिंतर न ीिं र
जाता
ै । इसमलए जस्त्रर्यों
ै लेककन य
प्रववृ ि
ैं। मनष्ु य तथा अन्य
ोकर सेतस किया करने लगे तो
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | मनष्ु य और अन्य जीवधाररयों के बीच के इसी अिंतर को दरू करने के मलए तथा काम के चरम उद्दे श्य की पनू ति के मलए कामिास्त्र की मिक्षा स्त्री तथा परु ु ष दोनों को समान रूप से आवश्यक जब अगर-मगर की जस्थनत उत्सपन्न
ोती
ै तो उस समय कामसत्र ू की मिक्षा
ोती
ै । सेतस किया के समय
ी उपयोग में आती
ै।
तस्माच्छािंस्त्र प्रमार्न्ते कायािकायिव्यवजस्थतौ। अथि- इस प्रकार की दवु वधा में िास्त्र
ी स ी मागि हदखाता
सिंपर् ू ि जानकारी
ोती
में आसानी
ै । ऐसी स्त्री कभी-भी दवु वधा में न ीिं र्िंस सकती
ोती
ै । जजस स्त्री को कामिास्त्र अथाित सेतस सिंबध िं ी
ै उस स्त्री को अपने कौमािवस्था में या दाम्पत्सय जीवन में उधचत और अनधु चत का ववचार करने ै।
मीमािंसा दििन के अनस ु ार जजस प्रकार ववद्यत ु िजतत में आकषिर् और ववकषिर् की िजतत यहद दोनों को परस्पर ममला दें तो प्रकाि तथा गनत सिंचामलत से सजृ ष्ट का सिंचालन
ोता ै । यहद दोनों अलग-अलग
कामिास्त्र का य ी उद्दे श्य दें और व
ै कक व
ोते
ोती
ोती
ै लेककन
ै । उसी प्रकार परु ु ष तथा स्त्री के परस्पर स योग
ैं तो ननजष्िय बने र ते
ैं।
स्त्री तथा परु ु ष को परस्पर ममलाकरके मोक्ष प्राजप्त का अधधकारी बना
स्त्री तथा परु ु ष की की अनधु चत कियाओिं, पािवु वक प्रववृ ियों को ननयिंबत्रत करके दोनों की िारीररक,
मानमसक, बौद्धधक, लौककक तथा पारलौककक उन्ननत में योग दे तथा दोनों को परस्पर ममला करके उनकी पर् ि ा का ू त आभास करा दे । स्त्री तथा परु िं स्थावपत ु ष दोनों में कामसत्र ू के अध्ययन के द्वारा ज्ञान प्राजप्त से मधुर सिंबध उनके मन में पववत्रता बनी र ती बनी र ती
ोते
ैं। इससे
ै । जजससे सामाजजक तथा राष्रीय जीवन की सव्ु यवस्था, सख़ ु , स्वास््य तथा िािंनत
ै।
इसके अनतररतत स्त्री तथा परु ु षों में मौणखक भेद
ोने से दोनों की प्रकृनत तथा प्रववृ ि में भी अिंतर
ोता
कामिास्त्र के अध्ययन के द्वारा स्त्री को परु ु ष की तथा परु ु ष को स्त्री की प्रकृनत के बारे सिंपर् ू ि जानकारी प्राप्त जाती
ै । इस प्रकार वे दोनों अलग
ोते ु ए एक-दस ू रे में पानी की तर
ममल जाते
वात्सस्यायन के अनस ु ार कामिास्त्र का अध्ययन स्त्री के मलए ब ु त
ै। ो
ैं।
ी आवश्यक
ै।
श्लोक-5. तत्र केवलशमिै ब। सवगत्र हि लोके कततधचदे व शा्त्रज्ञः। सवगजनत्वषयश्स प्रयोगः।।5।।
अथि- इसके अिंतगित िास्त्र के परोक्ष प्रभाव को ववमभन्न उदा रर्ों द्वारा प्रस्तत ु कर र े कामिास्त्र के मलए य
बात न ीिं
प्रयोगों के बारे में सभी लोगों को जानकारी
ैं।
ै , बजल्क सिंसार में सभी िास्त्रों की सिंख्या कम ै तथा िास्त्रों के बताए ु ए ै।
श्लोक - . प्रयोग्य च दरू ्िमत्प शा्त्रमेव िे त।ु । ।। अथि- तथा दरू
ोते ु ए भी प्रयोग का
े तु िास्त्र
ी
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक -7. अस््त व्याकरणशमत्सयवैयाकरण अत्प याक्षज्ञका ऊिं क्रतष ु ।ु ।7।। अथि- व्याकरर् िास्त्र के
ोते ु ए भी अवैयाकरर्ा याक्षज्ञक यज्ञों में ववकृनतयों का उधचत प्रयोग करते
ैं।
श्लोक -8. अस््त ज्यौततषशमतत पण् ु यािे षु कमग कुवगत।े ।8।। अथि- ज्योनतष िास्त्र के करते
ोते भी ज्योनतष न जानने वाले लोग व्रत पवों में सिंपन्न
ोने वाले वविेष कार्यों को ककया
ैं। श्लोक -9. तिाश्वारोिा और गजारोिाश्वाश्वान ् गजांश्वानधधगतशा्त्रा अत्प त्वनयन्ते।।9।।
अथि- तथा म ावत और घड ु सवार कर लेते
जस्तिास्त्र तथा िामल ोत्र का अध्ययन ककये बगैर साधथयों तथा घोडों को वि में
ैं। श्लोक-10. तिास््त राजेतत दरू ्िा अत्प जनपदा न मयागदामततवतगन्ते तद्वदे तत।।10।।
अथि- जजस प्रकार दिं ड दे ने वाले राजा की उपजस्थनत मात्र से प्रजा राज्य के ननयमों का उल्लिंघन न ीिं करती प्रकार य
कामिास्त्र
ै जजसका अध्ययन ककए बगैर
ी लोग उसका प्रयोग करते
ै। उसी
ैं।
श्लोक-11. सन्तत्प खलु शा्त्रप्रितबद् ु धयो गणणका राजपत्र्ु यो मिामादहु ितरश्च।।11।। अथि- जस्त्रयों में िास्त्र को समझने की अतल न ीिं
ोती
ै । इस आक्षेप का ननराकरर् करते ु ए सत्र ू कार का मत
इस प्रकार की मणर्काएिं, राजपबु त्रयािं तथा मिंबत्रयों की पबु त्रयािं कामिास्त्र तथा सिंगीतिात्र में भी कुिल और ननपर् ु
ोती
ैं जोकक मसर्ि प्रयोगों में
ै-
ी न ीिं बजल्क
ैं।
राजपबु त्रयों तथा मणर्काओिं के कामिास्त्र तथा उसके अिंगभत ू सिंगीतिास्त्र की व्याव ाररक तथा ताजत्सवक मिक्षा प्रदान करने की भारतीय प्रर्ाली ब ु त तथा आकषिर् के साथ
ी प्राचीन
ै । भारतीय समाज में वेश्याओिं का सम्मान उनके रूप, आयु
ी उनकी ववद्वता तथा योग्यता आहद कारर्ों से
ोता ै ।
बौद्ध जातकों की “अम्बपाली” तथा भास के नाटक दररि चारुदि की “बसिंतसेना” रूप तथा गर् ु में आदिि स्त्री मानी जाती थी। उनके इसी रूप तथा गर् ु के कारर् बडे-बडे राजा-म ाराजा और साध-ु सिंत उनके पास जाया करते थे। राजपबु त्रयों में उज्जनयनी के राजा प्रद्योत-वण्डम ासेन की पत्र िंु र और कला में ु ी वासवदिा ब ु त अधधक सद
कुिल थी। राजा प्रद्योत-वण्डम ासेन ने कौिाम्बी के राजा उदायन को छल करके इसमलए बिंदी बनाया था ताकक व उसकी पत्र ु ी को वीर्ा बजाने की अद्ववतीय कला मसखा दे । प्राचीन काल में सामाजजक मिष्टाचार तथा कला की मिक्षा प्राप्त करने के मलए राजा अपने पत्र ु और पबु त्रयों को मणर्काओिं के पास भेजते थे।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | भारतीय समाज में ववद्वान और रूपवती गणर्काएिं आदरर्ीय थी। इसी कारर् से उन् ें मिंगलामख ु ी के नाम से भी जाना जाता दििन मिंगलसच ू क माना जाता
ै । ककसी भी यज्ञ के
ै । ज्योनतष के अनस ु ार यात्रा के समय गणर्काओिं का
ोने पर ऋवष-मनु न गणर्काओिं को भी बल ु ाते थे।
भारतीय समाज में गणर्काएिं एक प्रमख ु अिंग मानी जाती को सम्मान की दृजष्ट से दे खा जाता
ी न ीिं बजल्क मिंगल सामग्री भी मानी जाती
ैं। िासन और जनता दोनों के द्वारा गणर्काओिं
ै । इस प्रकार की गणर्काएिं और लमलत कला तथा सिंगीत कला की जानकारी
रखने वाले व्यजतत बडे-बडे लोगों के सिंतानों को मिक्षा दे ने का कायि करते
ैं।
श्लोक -12. त्माद्वैशसकाञ्जनाद्रिशस प्रयोगाञ्छा्त्रमेकदे शं वा ्त्री गह् ृ वीयात।।12।। अथि- इस कारर् से स्त्री को एकािंत स्थान पर सभी प्रयोगों की, कामिास्त्र की, सिंगीतिास्त्र की और इनके आवश्यक अिंगों की मिक्षा अवश्य ग्र र् करनी चाह ए। श्लोक -13. अभ्यासप्रयोज्यांश्च चातःु षस्ष्टकान ् योगान ् कन्या रि्येकाकक-न्यभसेत।।13।। अथि- अभ्यास के द्वारा सर्ल
ोने वाली चौसठ कलाओिं के प्रयोगों का अभ्यास कन्या को ककसी एकािंत स्थान पर
करना चाह ए। श्लोक -14. आचायाग्तु कन्यानां प्रवत ु षसंप्रयोगा सिसंप्रवद् ू ा वा तनरत्सययसम्भाषणा सखी। ृ परु ृ धा धात्रेतयका। तिाभत सवयाश्च मातष्ृ वसा। त्व्त्रब्धा तत्स्िानीया वद् ग स ं ष्ृ टा वा शभक्षुकी। ्वसा च त्वश्वास च त्वश्वासू स ृ धदासी। पव प्रयोगात।।14।।
अथिववश्वस्त स्त्री-मिक्षक्षका का ननदे ि करते
-ैं
ननम्नमलणखत 6 प्रकार की आचायािओिं में से कोई एक, कन्याओिं की आचायि 1. परु ु ष के साथ सेतस का अनभ ु व प्राप्त कर चक ु ी
ो सकती
ै।
ो ऐसी, साथ में पली-पोसी खेली ु ई धाय की पत्र ु ी।
2. सार् हदल की ऐसी सखी या स े ली जो सेतस का अनभ ु व प्राप्त कर चक ु ी
ो।
3. अपने समान उम्र की मौसी। 4. मौसी के
ी समान ववश्वासपात्र बढ़ ू ी दासी।
5. अपनी बडी ब न। 6. पररवार, िील स्वभाव से प ले से पररधचत, मभक्षुर्ी- सिंयामसनी।
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ो पाते
ैं लेककन जस्त्रयों को
ैं। इसीमलए आचायि वातस्यायन
ने उपरोतत 6 प्रकार की औरतों में ककसी एक औरत से कामिास्त्र की मिक्षा लेने की सला
दी
ै।
कामिास्त्र की मिक्षा के मलए इस प्रकार के ननवािचन में ववश्वास, आत्समीयता तथा पववत्रता ननह त प्रकार की औरतो को सीखने और मसखाने में ककसी भी प्रकार का िमि या सिंकोच न ीिं
ोता
ै । कामसत्र ू के िास्त्रकारों
ने उपरोतत 6 प्रकार की आचायों का चुनाव कामिास्त्र की 64 कलाओिं की मिक्षा के मलए ककया की मिक्षा के मलए ननरिं तर अभ्यास करने की आवश्यकता इसके अलावा कामसत्र ू के िास्त्रकारों ने य
ोती
भी सला
ै । इस
ै । इन 64 कलाओिं
ै। दी
ै कक यहद ककसी कारर्वि सभी 64 कलाओिं की
मिक्षा प्राप्त करने के मलए कोई योग्य आचायि न ममल सके, तो जजतना भी समय ममले उतने
ी में और आधी, नत ाई,
चौथाई कलाओिं को जानने वाली जो भी आचायि ममल सके उससे कामसत्र ू की कलाएिं सीख लेनी चाह ए। श्लोक -15. गीतम ्1, वाद्यम ्2, नत्सृ यम ्3, आलेख्यम ्4, त्वशेषकच्छे द्यम ्5, तण्डुलकुसम ु वशलत्वकाराः , पष्ु पा्तरणम ्7, दशनवसनाड्गरागः8, मणणभशू मकाकमग9, शयनकचनम ्10, उदकवाद्यम ्11, उदकाघातः12, धचत्राश्च13, योगाः,माल्यग्रिनत्वकल्पाः14, शेखरकापीडयोजनम ्15, नेपथ्यप्रयोगाः1 , कणगपत्रभंगा17, गन्धयस्ु क्तः18, भष ू णयोजनम ्19, ऐन्द्रजालाः20, कौचुमारश्च योगाः21, ि्तलाघवम ्22, त्वधचत्रशाकयष ू क्ष्यत्वकारकक्रया23, पानकरसरागासवयोजनम24, सच ू ीवानकमागणण25, सत्र ू क्रीडा2 , वीणाडमरुवाद्यातन27, प्रिे शलका28, प्रततमाला29, दव ु ागचकयोगाः30, प् ु तकवाचनम ्31, नाटकाख्यातयकादशगनम ्32, काव्यसम्यापरू णम ्33, पट्हटकावाननेत्रत्वकल्पाः34, तक्षकमागणण35, तक्षणम ्3 , वा्तत्ु वद्या37, रूप्यपरीक्षा38, धातव ु ादः39, मणणरागाकरज्ञानम ्40, वक्ष ु ़ेदयोगाः41, मेषकुक्कुटलावकयद् ु धत्वधधः42, ृ ायव सक ु साररकाप्रलापनम ्43, उत्ससादने संवािने केशमदग ने च कौशलम44, अक्षरमस्ु ष्टकाकिनम ्45, म्लेस्च्छतत्वकल्पाः4 , दे शभाषात्वज्ञानम ्47, पष्ु पशकहटका48, तनशमतज्ञानम ्49, यंत्रमातक ृ ा50, धारणमातक ृ ा51, सम्पाठय्म ्52, मानसी काव्यकक्रया53, अधधधानकाशः54, छं दोज्ञानम ्55, कक्रयाकल्पः5 , छशलतकयोगाः57, व्त्रगोपनातन58, द्यत ू त्वशेषः59, आकषगक्रीडा 0, बालक्रीडनकातन 1, वैनतयकीनाम ् 2, वैजतयकीनाम ् 3, व्यायाशमकीना 4, च त्वद्यानां, इतत चतःु षस्ष्टरं गत्वद्याः। कामसत्र ू ्यावयावयत्वन्यः।।15।।
अथि- इसके अिंतगित आपको उपायभत ू 64 कलाओिं के नाम बताये जा र े
-ैं
1. गीतम- गाना 2. वाद्यम- बाजा बजाना 3. नत्सृ यम ृ्- नाचना 4. आलेख्यम ृ्- धचत्रकारी 5. वविेषकच्छे द्यम ृ्- भोजन के पिों को नतलक के आकार में काटना।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 6. ताण्डुलकुसम ु वमलववकाराः- पज ू न के मलए चावल तथा रिं ग-बबरिं गे र्ूलों को सजाना। 7. पष्ु पास्तरर्म ृ्- घर अथवा कमरों को र्ूलो से सजाना। 8. दिनवसनाड्गरागः कपडों, िरीर और दािंतों पर रिं ग चढ़ाना। 9. मणर्भमू मका कमि- र्िि पर मणर्यों को बबछाना। 10. ियनकचनम ृ्- िैया की रचना। 11. उदकावाद्यम ृ्- पानी को इस प्रकार बजाना कक उससे मरु जनाग के बाजे की ध्वनन ननकले। 12. उदकाघात- जल िीडा करते समय कलात्समक ढिं ग से छीिंटे मारना। 13. धचत्रयोगा- अनेक औषधधयों, तिंत्रों तथा मिंत्रों का प्रयोग करना। 14. माल्यग्रथनववकल्पा- ववमभन्न प्रकार से मालाएिं गथ ू ना। 15. िेखर कापीड योजनम ृ्- आपीठकिं तथा िेखरक नाम के मसर के आभष ू र्ों को िरीर के स ी अिंगों पर धारर् करना। 16. नेप्यप्रयोगाः- अपने को या दस ू रे को सद ुिं र कपडे प नाना। 17. कर्िपत्रभिंगः - ििंख तथा
ाथीदािंत से ववमभन्न आभष ू र्ों को बनाना।
18. गन्धयजु ततः- ववमभन्न िव्यों को ममलाकर सग िं तैयार करना। ु ध 19. भष ू र्योजनम ृ्- आभष ू र्ों में मणर्यािं जडना। 20. ऐन्िजालायोगः- इन्िजाल की िीर्ाएिं करना। 21. कौचम ु ारश्च योगाः- कुचम ु ार तिंत्र में बताए गये बाजीकरर् प्रयोग सौंदयि वद् ृ धध के प्रयोग। 22.
स्तलाघवम-
ाथ की सर्ाई।
23. ववधचत्रिाकयष ू क्ष्यववकारकिया- ववमभन्न प्रकार की साग-सजब्जयािं तथा भोजन बनाने की कला। 24. पानकरसरागासवयोजनम- पेय पदाथों का बनाने का गर् ु । 25. सच ू ीवानकमािणर्- जाली बन ु ना, वपरोना और सीना। 26. सत्र ू िीडा- मकानों, पि-ु पक्षक्षयों तथा मिंहदरों के धचत्र
ाथ के सत ू से बनाना।
27. वीर्ाडमरुवाद्यानन- वीर्ा, डमरु तथा अन्य बाजे बजाना। 28. प्र े मलका- प े मलयों को बझ ू ना।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 29. प्रनतमाला- अन्त्सयाक्षरी प्रनतयोधगता का कौिल। 30. दव ु ािचकयोग- ऐसे श्लोक क ना जजनके उच्चारर् तथा अथि दोनों कहठन
ो।
31. पस् ु तकवाचनम- ककताब पढ़ने की कला। 32. नाटकाख्यानयकादििनम- नाटकों तथा ऐनत ामसक कथाओिं के बारे में जानकारी। 33. काव्यसमस्यापरू र्म- कववताओिं के द्वारा समस्यापनू ति। 34.पट्हटकावाननेत्रववकल्पाः- बेंत और सरकिंडे आहद की वस्तए ु िं बनाना। 35. तक्षकमािणर्- सोने-चािंदी के ग नों तथा बतिनों पर ववमभन्न प्रकार की नतकािी। 36. तक्षर्म- बढ़ईगीरी। 37. वास्तवु वद्या- घर का ननमािर् करना। 38. रूप्यपरीक्षा- मणर्यों तथा रत्सनों की परीक्षा। 39. धातव ु ाद- धातओ ु िं को ममलाना तथा उनका िोधन करना। 40.मणर्रागाकरज्ञानम- मणर्यों को रिं गना तथा उन् ें खानों से ननकालना। 41.वक्ष ु ेदयोगा- पेडों तथा लताओिं की धचककत्ससा, उन् ें छोटा और बडा बनाने की कला। ृ ायव 42.मेषकुतकुटलावकयद् ु धववधधः- भेडा, मग ु ाि तथा लावको को लडाना। 43. सक ु साररकाप्रलापनम- तोता-मैना को पढ़ाना। 44. उत्ससादने सिंवा ने केिमदि ने च कौिलम- िरीर तथा मसर की मामलि करने की कला। 45.अक्षरमजु ष्टकाकथनम- सािंकेनतक अक्षरों के अथि की जानकारी प्राप्त कर लेना। 46. म्लेजच्छतववकल्पा- गप्ु त भाषा ववज्ञान। 47. दे िभाषाववज्ञानम- ववमभन्न दे िों की भाषाओिं की जानकारी। 48. पष्ु पिकहटका- र्ूलों से रथ, गाडी आहद बनवाना। 49. ननममिज्ञानम- िकुन-ववचार। 50. यिंत्रमातक ृ ा- स्वयिं चामलत यिंत्रों को बनाना। 51. धारर्मातक ृ ा- स्मरर् िजतत बढ़ाने की कला।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 52. सम्पाठय्म- ककसी सन ु े ु ए अथवा पढे
ा़
ु ए श्लोक को ज्यौ का त्सयौं दो राना।
53. मानसी काव्यकिया- ववक्षक्षप्त अक्षरों से श्लोक बनाना।
54. अधधधानकोि - िब्दकोषों की जानकारी। 55.छिं दोज्ञानम- छिं दों के बारे में जानकारी। 56. कियाकल्प- काव्यालिंकार की जानकारी। 57. छमलतकयोगा- ब ु रूवपयापन। 58.वस्त्रगोपनानन- छोटे कपडे इस प्रकार प ने कक व
बडा हदखाई दे तथा बडे कपडे इस प्रकार प ने कक व
छोटा हदखाई दे । 59. द्यत ू वविेषः- ववमभन्न प्रकार की द्यत ू कियाओिं की कला। 60. आकषििीडा- पासा खेलना। 61. बालिीडनकाननः- बच्चों के ववमभन्न खेलों की जानकारी। 62.वैजनयकीनािं ववद्यानािं ज्ञानम- ववजय मसखाने वाली ववद्याएिं, आचार िास्त्र। 63.वैजनयकीनािं ववद्यानािं ज्ञानम- ववजय हदलाने वाली ववद्याएिं तथा आचायि कौहटल्य का अथििास्त्र। 64. व्यायाममकीना ववद्यानािं ज्ञानम - व्यायाम के बारे में जानकारी। कामसत्र ू की अिंगभत ू ये 64 ववद्याएिं
ैं।
आचायि वात्सस्यायन ने य ािं पर कलाओिं का वगीकरर् न ीिं बजल्क उनका पररगर्न ककया गर्ना के बारे में सबसे अधधक प्रचमलत तथा प्रमसद्ध सिंख्या 64 64
ी
ै । कलाओिं की
ै । तिंत्रग्रिंथों और िि ु नीनत में भी कलाओिं की सिंख्या
ै । क ीिं-क ीिं इन कलाओिं का उल्लेख सोल , बिीस, चौसठ तथा चौसठ से अधधक नाम से भी ममलता प्रमसद्ध ग्रिंथ लमलत ववस्तार में कामकला के रूप में 64 नाम हदये गये
ैं। प्रबिंधकोष के अिंतगित इसकी सिंख्या 72 दी गयी
ै।
ैं तथा कामकला के रूप में 23 नाम
ै। इसके अलावा कला ववलास पस् ु तक में सबसे अधधक कलाओिं के
बारे में जानकारी दी गयी
ै, जजनमें से 32 धमि, अथि, काम, मोक्ष की प्राजप्त, 64 लोकोपयोगी कलाएिं तथा 32 मात्ससयि
िील प्रभाव तथा मान की
ै।
लोगों को आकवषित करने की 10 भेषज कलाएिं, 64 कलाएिं वेश्याओिं की तथा 16 कायस्थों की कलाएिं इसके अनतररतत गर्कों की कलाओिं तथा 100 सार कलाओिं का वर्िन
ै।
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अन्य कामिाजस्त्रयों तथा आचायि वात्सस्यायन द्वारा बतायी गयी कलाओिं पर ध्यान दे ने से य प्राप्त
ोती
जानकारी
ै कक उस समय के आचायि ककसी भी ववषय अथवा कार्यि में ननह त कौिल को कला के अिंतगित रखते
आमतौर पर लमलत तथा उपयोगी दोनों प्रकार की कलाएिं कलाकोहट में पररगणर्त कला िब्द का सबसे प ले प्रयोग ऋग्वेद में
ुआ
ोती
ैं।
ैं।
ै । ववमभन्न उपननषदों में भी कला िब्द का प्रयोग ममलता
ै । इसके अलावा वेद (ऋग्वेद, यजुवेद और अथवेद), सािंख्यायनिाह्मर्, तैिरीय, ितपथ िाह्मर्, षडवविंििाह्मर् और आरण्यक आहद वैहदक ग्रिंथों में भी कला िब्द का प्रयोग ममलता
ै । भरत के नाट्य िास्त्र से प ले कला िब्द का
अथि लमलत कला में प्रयोग न ीिं ु आ था। कला िब्द का वतिमान अथि जो
ै उस अथि का द्योतक िब्द िास्त्र से
प ले मिल्प िब्द था।
सिंह ताओिं तथा िाह्मर् ग्रिंथों में मिल्प िब्द कला के अथि में प्रयोग ककया जाता र ा
ै । पाणर्नी द्वारा
रधचत अष्टाध्यायी तथा बौद्ध ग्रिंथों के अिंतगित मिल्प िब्द उपयोगी तथा लमलत दोनों प्रकार की कलाओिं के मलए ोता
ै। आचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू की जजन 64 कलाओिं का वर्िन ककया
क ते
ै । उन् ें कामसत्र ू की अिंगभत ू ववद्या
ैं। आचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू में जजन 64 कलाओिं का वर्िन ककया
उल्लेख यजुवेद के तीसवें अध्याय में ककया गया
ै । उन सभी कलाओिं के नाम का
ै।
यजुवेद के इस अध्याय में 22 मिंत्रों का उल्लेख ककया गया उन् ीिं कलाओिं तथा कलाकारों के बारे में जानकारी दी गयी
ै जजनमें से चौथे मिंत्र से लेकर बाइसवें मिंत्र तक
ै।
श्लोक-1 . पान्चाशलकी च चतःु षस्ष्टरपरा। त्याः प्रयोगानन्ववेत्सय सांप्रयोधगके वक्ष्यामः।। काम्य तदात्समकत्सवात।।1 ।।
अथि- प ले वणर्ित 64 कलाओिं से मभन्न पािंचाल दे ि की 64 कलाएिं वर्िन आगे साम्प्रयोजजक अधधकरर् में ककर्या गया
ैं। वे पािंचाली कलाएिं कामात्समक
ैं, इसमलए उनका
ै।
श्लोक-17. आशभरभ्यस्ु च्िता वेश्या शीलरूपगण ु ास्न्वता। लभते गणणकाशब्दं ्िानं च जनसंसहद।।17।। अथि- गर् ु िील तथा रूप सिंपन्न वेश्या इन कलाओिं के द्वारा उत्सकषि प्राप्त कर गणर्क का पद प्राप्त करती समाज में आदर प्राप्त करती
ै और
ै।
श्लोक-18. पस्ू जता या सदा राज्ञा गण ु वद्धधश्च सं्तत ु ा। प्रािगनीयाशभगम्या च लक्ष्यभत ू ा च जायते।।18।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इन गणर्काओिं का सम्मान राजा करता कलाएिं सीखने के मलए प्राथिना करते
ै, उसकी प्रििंसा गर् ु वान लोगों के द्वारा
ैं। इस प्रकार से व
ोती
सभी का केन्ि ववन्द ु बन जाती
ै । आम लोग उससे ै।
श्लोक-19. योगज्ञा राजपत्र ु ी च मिामात्रसत ु ा तिा। सि्त्रान्तःपरु मत्प ्वनशे कुरुते पततम ्।।19।। अथि- राजाओिं और मिंबत्रयों की जो पबु त्रयािं कामसत्र ू की 64 कलाओिं का ज्ञान प्राप्त कर लेती सेतस करने की क्षमता रखने वाले परु ु ष को भी वि में कर लेती
ैं। वे
जारों जस्त्रयों से
ैं।
श्लोक-20. तिा पततयोग च व्यसनं दारुणा गता। दे शोन्तरे ऽत्प त्वद्याशभः सा सख ै जीवतत।।20।। ु ेनव अथि- ऐसी जस्त्रयािं ककसी कारर्वि पनत से ववमत ु त जाना पडे तो व
ोने पर या ककसी सिंकट में र्िंस जाने पर उसे अिंजान जग
अपनी कामसत्र ि व्यतीत कर सकती ू की 64 कलाओिं के द्वारा अपना जीवन सख ु पव ू क
पर
ै।
श्लोक-21. नरः कलासु कुशलो वाचालश्चाटुकारकः। असं्तत ु ोऽत्प नारीणां धचतमाश्चेव धचन्दतत।।21।। अथि- ऐसी जस्त्रयों की कला की वविेषता बताने के बाद परु ु षों के गर् ु ों के बारे में बताया जा र ा ननपर् ु , चाटुकार परु ु ष यहद कुिल कलाकार
ै । बातचीत करने में
ो तो अपने से घर् ृ ा करने वाली जस्त्रयों का मन भी आकवषित कर लेता
श्लोक-22. कलानां ग्रिणादे व सौभाग्यमप ु जायते। दे शकालौ त्सवपेक्ष्यासां प्रयोगः संभवेत्र वा।।22।। अथि- कलाओिं की जानकारी प्राप्त कर लेने से इन कलाओिं के प्रयोगों की सर्लता में आििंका
ी सौभाग्य जागत ृ ो जाती
ो जाता
ै लेककन दे ि तथा समय प्रनतकूल
ै।
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ो तो
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 4 नागरकवन्ृ त प्रकरण (रशसकजन के कायग) श्लोक-1. गि ृ ं वत़ेत।।1।। ृ ीतत्वद्यः प्रततग्रिजयक्रयतनगशाधधगतैरिैरन्वयागतैरुभयैवाग गािग्थ्यमधधगम्य नागरकमवत
अथि- ववद्या अध्ययन के समय िह्मचयि का पालन करना चाह ए। इसके बाद पैतक ृ सिंपवि या दान, ववजय, व्यापार और श्म आहद द्वारा धन एकत्र करके वववा की तर
जीवन व्यतीत करना चाह ए।
करके ग ृ
व्याख्या- कामसत्र ू तथा उसकी अिंगभत ू ववद्याएिं
प्रवेि करना चाह ए। इसके बाद सामान्य नागररकों
ी ववद्या प्राप्त करने का मख् ु य अथि
ैं। आचार्यि वात्सस्यायन
के अनस ु ार अप रर् बलात्सकार द्वारा स्त्री को प्राप्त करने की कोमिि अव्यव ाररक तथा असामाजजक पालन करते ु ए कामिास्त्र तथा 64 कलाओिं का अध्ययन करने के बाद वववा
करने के बाद घर चलाने के मलए धन की आवश्यकता
चाह ए। इसीमलए वात्सस्यायन ने स्वयिं क ा
ी ग्र स्थ आश्म में प्रवेि करना चाह ए। ोती
ै जजसके मलए उधचत उपाय करने
ै कक कामसत्र ू और 64 कलाओिं की मिक्षा प्राप्त करने के बाद
कुिलता और श्म के द्वारा धन कमायें। धन कमाने के बाद कर सकते
ै । िह्मचयि का
ी वववा
ी अपनी
करें । इसके अलावा पैतक ृ सिंपवि का प्रयोग भी
ैं। ग ृ स्थ आश्म में प्रवेि करने के बाद सभ्य लोगों के समान जीवनयापन करें ।
श्लोक-2. नगरे पतने खवगटे महित वा सज्जनाश्रये ्िानम ्। यात्रावशाद्वा।।2।। अथि- वववा
करने के बाद नागररकों को नगर में, खविट में , पिन में या म त में सभ्य लोगों के बीच ननवास करना
चाह ए। इसके अनतररतत जीवन चलाने के मलए परदे ि में र
सकते
ैं।
श्लोक-3. तत्र भवनमासत्रोदकं वक्ष ृ वाहटकावद्त्वभक्तकमगकक्षं द्त्ववास-गि ृ ं कारयेत ्।।3।। अथि- व ािं जल के ननकट वक्ष ृ वाहटका के पास घर का ननमािर् करें जजसमें र ने के मलए दो वासस्थान रखना चाह ए। एक बह
प्रकोष्ठ, दस ू रा अिंतः प्रकोष्ठ।
आचायि वात्सस्यायन नागररकों को ऐसे स्थान पर र ने की सला उपलब्ध
दे ते
ैं ज ािं पर जीवन सिंबध िं ी सभी उपयोगी साधन
ो। इस प्रकार की सवु वधा पिन (राजधानी) में , नगरों (म तीपरु ी) में, खविट (त सील) में तथा म त अथाित
जजले के केन्िों में आसानी से उपलब्ध
ोते
ैं।
इन साधनों में ज ािं पर दै ननक उपयोग और उपभोग की चीजें उपेक्षक्षत सौंदयि की अपेक्षा
ोती
ैं। व ीिं लोगों को इससे अधधक प्राकृनतक
ै । इसमलए लोग घरों का ननमािर् प्रकृनत के आस-पास करवाते
ैं।
श्लोक-4. बाह्ये च वासगि ु लक्ष्णमभ ु योपधानं मध्ये त्वनतं शक् ु लोतरच्छदं शयनीयं ्यात। प्रततशस्य्यका च। त्य ृ े सश्र शशरोभागे कूचग्िानम ् वेहदका च। तत्र रात्रत्रशेषमनलेपनं माल्यं शसक्ि करण्डकं सौगस्न्धकपहु टका
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | मातल ु ड ु गत्सवच्ताम्बल ू ाितन च ्यःू । भम ु कः। य ृ ौ पतद्ग्रिः नागदं तावसक्ता वीणा। धचत्रतलकम ्। वततगकासमद्र कश्चतप् ु तकः कुरण्टकामालाश्च नाततदरू े भम ू ौ वत ू तलकं च। त्य बहिः ृ ा्तरणं सम्तकम ्। आकषगकतलकं द्यत क्रीडाशकुतनपञ्जराणण। एकांते च तक्षतक्षण्िानमन्यासां च क्रीडानाम ्। ्वा्तीणाग पेड्खदोला वक्ष ृ वाहटकायां सप्रच्छाया। ्िस्ण्डलपीहठका च सकुसम ु ते त भवनत्वन्यासः।।4।।
अथि- य ािं बह ःप्रकोष्ठ की सजावट का ननदे ि हदया गया
ै-
घर के बा री प्रकोष्ठ (जजसमें नागररक स्वयिं र ता चाह ए। मसर तथा पैर दोनों तरर् तककये लगे स्वच्छ चादर
ै ) में अधधक नमि, मल ु ायम, सग ु धिं धत बबस्तर लगा
ोने चाह ए। पलिंग बीच में से झुकी
ोनी चाह ए तथा ऊपर मच्छरदानी तनी
ोना
ोनी चाह ए। पलिंग के ऊपर सार्,
ोनी चाह ए।
उसी पलिंग के बराबर में उसी के समान एक और पलिंग लगी के मसर ाने पर पलिंग की ऊिंचाई के बराबर वेहदका रखी
ोनी चाह ए जोकक सेतस किया के मलए
ै । उस पलिंग
ो। वेहदका में रात का बचा ु आ लेपन, र्ूल-मालाएिं, मोमबिी,
अगरबिी, मातल ुिं वक्ष ृ ग ृ की छाल तथा पान रखे ु ए
ोने चाह ए। पलिंग के पास जमीन पर पीकदान (थक ू ने का बतिन)
और िीघ्र न मरु झाने वाली कुरण्टक पष्ु प की माला
ो।
रखा
ो।
ाथी-दािंत की खट ूिं ी पर टिं गी ु ई वीर्ा, धचत्र बनाने का बत्रर्लक, तमु लका तथा रिं ग के डडब्बे, सजी ु ई ककताबें
पलिंग के पास की जमीन पर एक गोल आसन बबछा मलए एक गाव तककया अथवा मनसद
ोना चाह ए जजसके पीछे की तरर् मसर तथा पीठ के
ो। बा री प्रकोष्ठ के बा र खूिंहटयों पर पालतू पक्षक्षयों के वपिंजरे टिं ग र े
ो और
ककसी एकािंत स्थान पर अपिव्य बनाने तथा बढ़ईगीरी का कायि करने तथा अन्य प्रकार के आमोद-प्रमोद के मलए स्थान
ो। वक्ष िंु र और सवु वधायत ु त ृ वाहटका भी सार्, सद
ोना चाह ए।
श्लोक-5. स प्रातरुत्सिाय कृततनयतकृत्सयः गि ु ेपनं धूपं ्त्रजशमतत च गि ृ ीतदं तधावनः, मात्रयानल ृ ीत्सवा शसक्िकमलक्तकं च, ृष्टवादश़े मख ु म,् गि ु ावासताम्बल ू ः, कायागण्यनतु तष्ठे त।।5।। ृ ीत्समख
अथि- इस सत्र ू में नागररक की हदन तथा रात की कियाओिं का वर्िन ककया गया सब ु
जागकर, िौच आहद कियाओिं से फ्री
ै। सबसे प ले उस नागररक को
ोकर, दािंतों को सार् करके उधचत मात्रा में मस्तक में चिंदन आहद का लेप
करके, बालों को धप ू से सव ु ामसत कर तथा सग ु धिं धत माला आहद को प नकर मसतथम (मोम) तथा अलरततक (अलता) का उपयोग करके िीिे में चे रे को दे खकर सग ु धिं धत तम्बाकू आहद खाकर दै ननक कायों को करना चाह ए। श्लोक- . तनत्सयं ्नानम ्। द्त्वतीयकमत्सु सादनम। तत ग मायष्ु यम। पञ्चमकं दशमकं वा ु क ृ ीयकः तेनकः। चति प्रत्सयायष्ु यशमत्सयिीनम ्। सातत्सयाच्च संवत ृ कक्षा्वेदापनोदः।। ।। अथि- ननर्यममत स्नान करें , र दस ू रे हदन परू े िरीर की मामलि करें । तीसरे हदन साबन ु का प्रयोग करें । चौथे हदन दाढ़ी तथा मछ िंू ों के बाल कटवायें तथा पािंचवे हदन या दसवें हदन गप्ु त अिंगों के बाल सावधानी से काटे । ढकी ु ई कािंखों के पसीनों को
मेिा सग ु धिं धत पाउडर का प्रयोग करके सख ु ायें।
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ोता
ै कक प्राचीन काल में भारत के नागररक ववद्या तथा कला का उपयोग जजस
सावधानी के साथ करता था, उस प्रकार व सब ु
जागने के बाद
ाथ-मुिं
धन का उपयोग न ीिं करता था। उसकी हदनचयाि से प्रकट
ोता
ै कक व
धोकर दातन ू से दािंतों को सार् करता था। उसकी दातन ू भी कुछ वविेष प्रकार की
थी जजसका वर्िन व ृ तसिंह ता में ममलता
ै-
सविप्रथम दातन ू को उसके परु ोह त एक सप्ता दे ते थे। इसके मलए दातन ू को
ोती
प ले सग ु धिं धत िव्यों से सव ु ामसत करने की प्रकिया िरू ु कर
रडयत ु त तरल में एक सप्ता
तक मभगोकर रख दे ते थे। इसके बाद इलायची,
दालचीनी, तेजपात, अिंजन,ु ि द और कालीममचि से सव ु ामसत जल में डुबोते थे। इस प्रकार से तैयार की गयी दातन ू को मिंगलदानयनी समझा जाता था। उस समय के लोग दातन ू का उपयोग मसर्ि दािंतों की सर्ाई के मलए न करके मािंगमलक कायों के मलए भी ककया करते थे। इसमलए वे अपने परु ोह तों से य
पछ ू लेते थे कक कौन-से पेड की दातन ू
ककस ववधध से करें । दातन ू के बाद लोग लेप का प्रयोग करते थे। कामसत्र ू के वविेषज्ञों के अनस ु ार िरीर पर मसर्ि चिंदन का लेप लगाना चाह ए। ववमभन्न ग्रिंथों में य ववपरीत
ी
बताया गया ै कक चिंदन को िरीर पर उल्टा-सीधा लेप लेना ननयमों के
ै। प्राचीन समय में लोग चिंदन के अनतररतत अन्य ववमभन्न प्रकार के िव्यों के भी अनल ु ेप तैयार करते थे।
इनमें कस्तरू ी, अगरू ु और केसर आहद के साथ दध ू अथवा मलाई के लेप प्रमख ु
ैं। इस प्रकार के लेपों की सग िं कार्ी ु ध
दे र तक
।ैं
ोती
ै । इन लेपों के प्रयोग से िरीर के अिंग जस्नग्ध और धचकने
ोते
अनल ु ेपन के बाद केिों को धूप से धवू पत करने की प्रकिया की जाती थी, ऐसा करने पर बाल न ीिं उडते थे, बाल सर्ेद न ीिं
ोते
ैं तथा धचकने और मल ु ायम बने र ते
ैं। वरा ममह र के ग्रिंथ व ृ त्ससिंह ता में उल्लेख ममलता
ै
कक अच्छे से अच्छे कपडे प नों, सग ु धिं धत माला धारर् करो तथा कीमती ग नों से अपने िरीर के अिंगों को सजा लो। लेककन यहद बाल सर्ेद
ो गये
ो तो सभी आभष ू र् र्ीके पड जाएिंगे। इससे स्पष्ट
के ननवासी बालों को काला बनाये रखने के मलए
ोता
ै कक प्राचीन काल में भारत
मेिा प्रयत्सनिील र ते थे।
व ृ त्ससिंह ता के अिंतगित बालों को धप ू दे ने की ननम्न ववधध बतायी गई
ै । कपरू तथा केसर या कस्तरू ी से
सग ु धिं धत उतारी जाती थी, उस सग ु धिं ध से बालों को सव ु ामसत करके कुछ दे र तक उन् ें छोड हदया जाता
ै । इसके बाद
स्नान ककया जाता था। बालों के सव ु ामसत चन ु ाव में भी उसकी रुधच
ो जाने के बाद लोग र्ूलों की माला धारर् करते थे। माला को बनाने और र्ूलों के ोती थी। उस समय के लोग चम्पाजु ी और मालती आहद र्ूलों की मालाएिं धारर् करते थे
लेककन सेतस किया करने के समय वविेष प्रकार से तैयार की गयी माला धारर् करते थे ताकक सेतस के दौरान आमलिंगन, चिंब ु न आहद के समय र्ूल धगरकर मरु झाएिं न ीिं।
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समारो
ोता
िीिे में अपना मुिं
दे खता था। प्राचीन काल के धनी लोगों के घरों में कािंच के िीिे का
ै । सोने अथवा चािंदी के िीिों का उपयोग ककया जाता
ै । िीिे में चे रा दे खने के बाद लोग पान
ैं। भारतीय सिंस्कृनत में ताम्बल ु को सािंस्कृनतक िव्य माना जाता
से लेकर दे वताओिं की पज ू ा तक में ककया जाता
कक ताम्बल ु (पान) के सेवन से मुिं में भी वद् ृ धध
ोती
में चमक बढ़ती
ै । चे रे की सद ुिं रता भी बढ़ती
ै । ताम्बल ु का उपयोग साधारर् स्वागत
ै । वरा ममह र के ग्रिंथ व ृ त्ससिंह ता में उल्लेख ककया गया
ै तथा सग िं प्राप्त ु ध
ोती
ै , आवाज में मधुरता आती ै । अनरु ाग
ै तथा कर् जननत ववकार दरू
ोते
ैं।
स्किंदपरु ार् के कई अध्यायों के अिंतगित ताम्बल ू का ववमभन्न तरीके से वर्िन ककया गया लगाना तथा ताम्बल ू खाना अपने आप में एक ब ु त बडी कला
ै
ै । ताम्बल ू का बीडा
ै । भारत में प्राचीन काल में धनी लोगों के य ािं
ताम्बल ू वाह काएिं इस कला की वविेष ममिज्ञ ु आ करती थी। ताम्बल ू का बीडा लगाने की ववधध का वर्िन करते ु ए वरा ममह र ने क ा
ै कक- सप ु ारी, कत्सथा तथा चूना का उपयोग मख् ु य रूप से ताम्बल ू में
ोता
ै । इसके अलावा
ताम्बल ू के साथ उपयोग ककये जाने वाले कत्सथा, चूना तथा सप ु ारी की मात्रा सिंतमु लत
ोनी चाह ए। यहद
ववमभन्न प्रकार के सग ु धिं धत पदाथि और मसाले आहद भी छोडे जाते
ताम्बल ू में कत्सथा की मात्रा अधधक
ो जाती
ै तो लाली कामलमा में बदल जाती
यहद सप ु ारी की मात्रा अधधक
ो जाती
पान में चूने की अधधक मात्रा
ोने से जीभ कट जाती ै तथा मुिं
मात्रा अधधक
ै तो पान की लाली र्ीकी पड जाती
ो तो पान की सग िं खराब ु ध
तथा हदन में सप ु ारी की मात्रा अधधक
ैं।
ै , ोंठों का रिं ग भद्दा
ै तथा
ो जाता
ै।
ोठों की सद ुिं रता बबगड जाती
का सग िं बबगड जाता ु ध
ै।
ै । यहद पान के पवियों की
ो जाती ै । इसमलए रात के पान में पिे की सिंख्या अधधक
ोनी चाह ए
ोनी चाह ए। पान का सेवन करने के बाद लोग अपने कायों में लग जाते थे।
आचार्यि वात्सस्यायन ने स्नान करने के बारे में कोई भी वर्िन न ीिं ककया
ै । इसका कारर् य
ै कक उस
समय स्नान करने की कोई भी प्रचमलत ववधध न ीिं थी तथा उसका कोई भी वविेष म त्सव न ीिं था। मारे दे ि में प्राचीन काल में लोग ककस प्रकार स्नान करते थे। इसकी जानकारी प्राचीन, काव्यों, नाटकों, कथा-ग्रिंथों में ब ु त अधधक मात्रा में ममलती
ै । कादम्बरी में स्नान करने की ववधध का वर्िन इस प्रकार से ककया गया
ै।
लोग दोप र से थोडे समय प ले कायों को ननपटाकर स्नान करने के मलए तैयार प ले लोग कुछ
ो जाते थे। स्नान करने से
ल्के व्यायाम करते थे। व्यायाम करने के बाद सोने-चािंदी के बतिनों से स्नान करते थे। स्नान के
समय लोग अपनी सेववकाओिं से िरीर की मामलि ककसी सग ु धिं धत तेल से कराते थे तथा बालों में आिंवले का तेल लगाते थे। स्नान के दौरान लोग अपनी गदि न की मामलि हदमागी तिंतओ ु िं को स्वस्थ बनाने के मलए करते थे। स्नान ा़ करने के बाद लोग िरीर को सार् कपडे से पोछकर कपडे प नता था। इसके बाद व पज ू ाघर में जा करके िाम की पज ू ा का उपासना करता था।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | कामसत्र ू में वणर्ित स्नान की ववधध व्यव ाररक तथा वैज्ञाननक दृजष्टकोर् से अधधक उपयोगी
ोती
ै । वैसे तो
स्नान प्रनतहदन करना चाह ए लेककन िरीर का उत्ससादन एक-एक हदन का अिंतर करके करना चाह ए। िरीर की स्वच्छता तथा कोमलता के मलए साबन ु का उपयोग अवश्य करके
ी करना चाह ए। लेककन साबन ु का उपयोग प्रनतहदन न
र तीसरे हदन करना चाह ए। उस समय के लोग अपने दािंतों, नाखूनों और बालों की सर्ाई ब ु त अच्छी तर
काटने की कला की चचाि वैहदक कालीन साह त्सय में भी ममलती
से करते थे। नाखूनों के
ै । सिंस्कृत साह त्सय के अध्ययन से ज्ञात
ोता
ै कक
लोग नाखूनों को बत्रकोर्ाकार, चिंिाकार, दािंतों के समान तथा अन्य ववमभन्न आकृनतयों में काटते थे। कुछ लोगों को लिंबे नाखून पसिंद थे। कुछ लोगों को छोटे आकार के तो कुछ लोगों को मध्यम आकार के नाखून रखने के िौक था। आचायि वात्सस्र्यायन के अनस ु ार कराने तथा नाखून काटने की प्रथा ब ु त पर वविेष ध्यान दे ते
र चौथे हदन पर सेवविंग करना चाह ए। भारत में ी परु ानी ै । वैहदक काल में भी लोग
जामत (सेवविंग करना)
जामत (सेवविंग करना) तथा नाखून
ैं।
वैहदक साह त्सय के अिंतगित क्षुर और नखकृन्तक िब्द का प्रयोग से बाद के साह त्सय में नाखून को श्मश्ु क ा जाता ग्रिंथों में मसर के बालों का वर्िन ममलता
ी प्रमाणर्त
ै तथा मसर के बालों को केि क ते
ै । वेदों का अध्ययन करने पर ज्ञात
ोता
ै । ऋग्वेद तथा उसके
ैं। यजुवेद, अथवेद औऱ िाह्मर्
ोता
ै कक वैहदक काल में आयों में
बालों के बारे में ववमभन्न प्रयोग ममलते
ैं। अथविवद े के अिंतगित ववमभन्न मिंत्र ऐसे
ोते
बारे में औषधधयों का वर्िन ककया गया
ै लेककन ऐसे प्रयोग मसर्ि औरतों के मलए
ी
ैं जजनमें बालों के बढ़ने के ैं।
अधधकािंि ऋवष-मनु न मसर पर लिंबे बाल रखते थे तथा बालों को ववमभन्न तरीके से गथ ूिं कर रखते थे। कुछ ऋवष-मनु न बालों का जूडा बनाकर रखते थे तो कुछ बालों को समेटकर रखते थे। इसके अलावा कुछ ऋवष-मनु न बालों को कपाल की ओर झक ु ाकर बािंधते
ैं।
इस प्रकार के बालों को वेदों में कपदि के नाम से जाना जाता
ै । ऋग्वेद में एक स्थान पर यव ु ती को
“चतष्ु कपदाि” तथा एक स्थान पर मसनी वाली दे वी को सक ु पदाि क ा गया ै । इसी प्रकार जस्त्रयािं भी बालों को वविेष प्रकार से बालों को सिंवारती
ैं।
ऋग्वेद में वमिष्ठ ऋवषयों को दक्षक्षर्तः कपदाि अथाित दाह नी तरर् जटा वाले क ा जाता ऋवष-मनु न लिंबे बाल रखते
ै । कुछ दे वता और
ैं लेककन बालों में गािंठ न ीिं बािंधने दे ते थे, उन् ें पल ु जस्त के नाम से जाना जाता ै । जो
दे वता और ऋवष-मनु न बाल, दाढ़ी और मछ िंू बढ़ाये र ते
ैं उन् ें ऋग्वेद में मोटी दाढ़ी और मछ िंू वाला क ा गया
श्लोक-7. पव ू ागह्वयोभोजनम। सायं चारायण्य।।7।। अथि- स्नान करने के बाद भोजन तथा हदन में सोने का ववधान-
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | भोजन दोप र के प ले और दोप र के बाद दो बार करना चाह ए। लेककन आचायि चारायर् के अनस ु ार दस ू रा भोजन िाम के समय का
ी उपयोगी
ोता
ै।
श्लोक-8. भोजनानन्तरं शक ु साररकाप्रलापनव्यापारजः। लावककुक्कुटमेषयद् ु धातन ता्ताश्च कला कीडाः। पीठमदग त्वदष ू कायता व्यापाराः हदवाशय्या च।।8।। अथि- भोजन करने के बाद लोग तोता-मैना को बोलते और पढ़ाते थे, उनसे बाते करते थे, लावक तथा मग ु ों की लडाई दे खना तथा ववमभन्न प्रकार की कलाओिं और कीडाओिं द्वारा मनोरिं जन करना तथा उनके वप्रय कायों को मददगार पीठमदि, ववट तथा ववदष ू क के सप ु द ु ि ककये गये कायों की ओर ध्यान दे ना चाह ए। इन सभी कायों के उपरािंत सोये। प्राचीन काल में भारत के नागररक तया खाते थे। इसके बारे में प्रबिंधकोष, षि चररत्र, कादम्बरी आहद ग्रिंथों के वर्िनों से
ो जाती
ै।
कादम्बरी का अध्ययन करने से य एविं पीने योग्य पदाथि िाममल
ोते
जानकारी प्राप्त
ोती
ै कक उस समय के भोजन में सभी तर
के खाने
ैं। इनमें गे ूिं , चावल, जौ, चना, दाल, घी और मािंस आहद सभी चीजें रसोई में प्रयोग
की जाती थी। भोजन, नमकीन पदाथों से िरू ु ककया जाता
ै तथा ममठाइयों से समाप्त
ोता था।
भोजन के बाद लोग सक ु -साररकाओिं से बातें करते थे। प्राचीन काल में भारत में सक ु -साररकाओिं का सम्मान राजम ल से लेकर ऋवष-मनु नयों के आश्म तक था। श्लोक (9)- गि ृ ीतप्रसाधन्यापराह्णे गोष्ठीत्विाराः।। अथि- इसके हदवाियन के बाद तीसरे प र (िाम के समय) की हदनचयाि बताई जाती वस्रालिंकार से ववमिंडडत नागरक गोष्ठी-वव ारों में मौजद ू
ै - तीसरे प र (िाम के समय)
ो।
श्लोक (10)- प्रदोषे च संगीतकातन। तदन्ते च प्रसाधधते वासगि ृ े संजाररतसरु शभधूपे ससिाय्य शय्यायामशभसाररकाणां प्रतीक्षणम ्।
अथि- तथा िाम के समय सिंगीत की म कर्ल में िाममल बैठकर अमभसाररका के आने का इिंतजार करें ।
ोने के बाद सजे ु ए वासग ृ में अपने स ायकों के साथ
श्लोक (11)- दत ू ीनां प्रेषणम,् ्वयं वा गमनम ्।।
अथि- दे र
ो जाने पर दत ू ी को बल ु ाने के मलए भेजे या स्वयिं
ी उसे बल ु ाने जाएिं।
श्लोक (12)- आगतानां च मनोद्दरै रालापैरुपचारै श्च ससिाय्योपक्रमाः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- आई ु ई नानयकाओिं को दोस्तों के साथ अच्छी बातचीत और रसमय बतािव करके सम्माननत करें । श्लोक (13)- वषिप्रमष्ृ टनेप्यानािं दहु दि नामभसाररकार्ािं स्वयमेव पन ु मिण्डनम,ृ् ममत्रजनेन वा पररचरर्ममत्सया ोराबत्रकम ृ्।।
अथि- अगर बाररि के कारर् नानयका के कपडे भीग जाते और ममत्रों से स ायता लें। इस तर
सला
ैं तो स्वयिं
ी उसके कपडे बदलकर उसका साज-श्िंग ृ ार करें
से नागरक की हदनचयो तथा राबत्रचयाि समाप्त
ोती
ै।
आचायि वात्सस्यायन नागरक की हदनचयाि के बारे में बताते ु ए उसे सजधज कर गोष्ठी वव ार में जाने की
दे दे ते
ैं। प्रसाधन से तात्सपयि साज-श्िंगार से
ै जो कपडो और अलिंकारों के द्वारा परू ा माना जाता ै । प्राचीन
भारत के नागररक के वस्त्रालिंकार ककस प्रकार के थे। इसका अिंदाजा परु ानी मनु तियों के द्वारा ककया जा सकता ै । भरतमनु न ने भी नाट्यिास्त्र इसके बारे में कुछ सिंकेत ककए कापािस, कौषेय तथा ििंगव 4 तर
के कपडे प नते
ैं। उनके मत ु ाबबक, अमभजात्सय नागररक क्षौभ,
ैं। अलसी के रे िों को ननकालकर उनसे जो कपडे बनाए जाते थे,
उनको क्षौम क ा जाता था। क्षौम के कपडों को छाल से भी बनाया जाता था। कपास (रुई) से बने कपडे कोिेय तथा ऊन के बने ु ए
कपडे रागिंव क लाते थे। य
चारों प्रकार से कपडे, ननबन्धनीय, प्रक्षेप्य तथा आरोप्य। इन प्रकारों से प ने जाते थे।
साडी, पगडी आहद ननबिंधीनीय क लाते थे। चोलक तथा चोली प्रक्षेप्य और उिरीय, चादर, दप ु ट्टा आहद आरोग्य थे। इस तर 9 तर
के कपडे प नने के बाद नागररक अलिंकार धारर् करता था। वरा ममह र ने 13 तर
के सोने से बने ग नों का उल्लेख व ृ त्ससिंह ता के अिंतगित ककया
के रत्सनों तथा
ै । वज्रमत ु ता, पद्मराग, मरकत, इन्िनीली,
वैदय ू ,ि पष्ु पराग, किंकेतन, पल ु क, रुधधरक्ष, भीष्म, स्र्हटक तता प्रवाल इन 13 प्रकार के जवा रातों से नागररक के कई अलिंकार बनते
ैं।
जाम्बन ू द, िातकौम्भ, ाटक, वेटक, श्िंग ृ ी, िजु ततज, जातरूप, रसववद्ध तथा आकरउद्धत- इन 9 तर
की जानतयों और रत्सनों को ममलाकर ननम्नमलणखत अलिंकार बने
के सोने
ोते थे।
आवेध्य, ननबन्धनीय, प्रक्षेप्य, आरोप्य। अिंग को छे दकर प ने जाने वाले ग ने आवेध्य क लाते
ैं। अिंगद वेर्ी,
मिखाद्दहदका, श्ोर्ी सत्र ू , चड ू ामणर् आहद बािंधकर प ने जाने वाले ग ने ननबिंधलीय के नाम से भी जाने जाते अननिका कटक, वलय, मिंजीर आहद अिंग में डालकर प ने जाने वाले अलिंकार प्रक्षेप्य क ा जाता नक्षत्रमामलका आहद आरोवपत ककए जाने वाले ग ने आरोग्य क लाते
ै।
ार
ैं।
रत्सन अलिंकारों तथा कपडो को प नने के बाद माल्य-अलिंकार धारर् करता था। व
माल्य 8 प्रकार के
थे। उद्धववित, वववत, सिंघाट्य ग्रिंधथमत, अवलिंबबत. मत ु तक, मिंजरी तथा स्तवक। मालाओिं को प नने के बाद व िव्यों से मिंडडत
ैं।
ोता था।
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ोते
मिंडन
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ोकर वव ार गोजष्ठयों में जाता था।
आचायि वात्सस्यायन ने अपने कामसत्र ू में जजन 64 कलाओिं के बारे में बताया बौद्धधक अथवा साह जत्सयक था। व
ै । हदत्सयािय्या के बाद कपडे अलिंकार से ववमिंडडत नागररक जजन गोजष्ठयों में भाग लेता
गोजष्ठया ज्यादातर बौद्धधक तथा साह जत्सयक
साथ प्रधान अिंग
ै उनमें से 2 नत ाई कलाएिं
ी ु आ करती थी। उच्चकोहट के श्ीमिंत नागररक की गोष्ठी के
ोते थे।
ववद्वान, भाट, मसखरे , कवव, गायक, परु ार्ज्ञ और इनत ासज्ञ- ये सातों अिंग बौद्धधक तथा काव्यिास्त्र ववनोदों में भाग मलया करते थे। आचायि वात्सस्यायन के अनस ु ार अच्छी या बरु ी 2 प्रकार की गोष्ठी जमती थी। 1-2 मनचले लोगों की गोष्ठी- जजसमें जआ िं ा आहद कुकमि िाममल थे। दस ु ,ह स ू रे भले मनष्ु यों की गोष्ठी जजसमें खेल और ववद्याएिं िाममल थी। परु ाने समय में पदगोष्ठी, जलगोष्ठी, गीतगोष्ठी, नत्सृ यगोष्ठी, काव्यगोष्ठी, वीर्ागोष्ठी, वाद्यगोष्ठी आहद कई प्रकार की गोजष्ठयों में नागररक भाग लेते थे। इन गोजष्ठयों के ववषय, क ाननयािं, कलाएिं, काव्य, गीत, नत्सृ य, धचत्र और वाद्य आहद
ोते थे। ववद्यागोष्ठी की अिंगभत ू गोजष्ठयािं काव्यगोष्ठी, पदगोष्ठी और जलगोष्ठी थी। ववद्यागोष्ठी का
खास समादरर् था। काव्यगोजष्ठयों में काव्य-प्रबिंधो का आयोजन
ोता था। जलगोष्ठी में आख्यान, आख्यानयका, इनत ास और
परु ार् आहद सन ि ाद आहद प्रकार की बद् ु ाए जाते थे। पदगोष्ठी में अक्षरच्यत ु क, मात्राच्यत ु क, बबन्दम ु ती, गढ़ ू चतथ ु प ु धध बढ़ाने वाली प े मलयािं र ती थी। षिचररत के अिंतगित बार् ने वीरगोजष्ठयों के बारे में भी बताया की क ाननयािं क ी और सन ु ी जाती थी। इस तर ोती थी। इसके साथ
ी मनोरिं जन भी
था।
ै जजसमें रर्भमू म में साका करने वाले वीरों
की गोजष्ठयों में भारत के परु ाने नागररक के बद् ु धधचातय ु ि की परीक्षा
ोता था। गोष्ठी ववनोद के बाद िाम के समय सिंगीत का आयोजन ु आ करता
नागररक सिंगीत गोष्ठी को खत्सम करके वासग ृ
में प ुिं चकर अमभसाररका की प्रतीक्षा करता ै । प्रसाधधत
वासग ृ े का मतलब टीकाकारों नें धप ू से खि ु बद ू ार ककया ु आ कमरा बताया राजा, अमीरों तथा सिंपन्न नागररकों के य ािं वासाग ृ कम सिंपाहदत ु आ करता था। वासाग ृ
बने ु ए
ै लेककन य
ोते थे। ज ािं पर वववा
गलत
ै । परु ाने समय में
के बाद दल् ू ा-दल् ू न का चतथ ु ी
के अिंतगित दल् ु ा-दल् ु न तथा प्रेमी-प्रेममका के बैठकर प्यार भरी बातें, आमलिंगन, चिंब ु न आहद रनत-
कियाएिं करने के मलए एक
ी पलिंग ु आ करता था।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | दरवाजों के पल्लों पर कामदे व की दोनों जस्त्रयों प्रीनत और रनत की आकृनतयािं बनी ु आ करती थी। दोनों
ी
पल्लों पर मिंगल-दीप जला करते थे। एक तरर् र्ूलों से बोणझल रतत-अिोक के नीचे धनष ु पर बार् रखे ु ए ननिाना साधे रखी
ु ए कामदे व का धचत्र बना ु आ र ता था। सर्ेद रिं ग की चादर से ढके ु ए पलिंग की बाजू में कािंचन आचामरुक
ोती थी और दस ू री तरर्
ाथीदािंत का डडब्बा मलए ु ए सोने की पि ु मलका खडी र ती थी। मसर ाने पर पानी से
भरा ु आ चािंदी का ननिाकलि रखा ु आ र ता था। वासाग ृ
की मभवियों पर गोल-गोल िीिे लगे ु ए
ोते थे, जजनमें वप्रयतमा के ब ु त सारे प्रनतबबिंब पडे र ते
थे। 11वीिं िताब्दी में ऐसे वासग ृ ों को आदिि भवन क ा जाने लगा था तथा बाद में ये िीिम ल या अरसी म ल क लाने लगे थे।
श्लोक (14)- घटातनबंधनम,् गोष्ठीसमवायः, समापानकम,् उद्यान गमनम, सम्या क्रीडाश्च प्रवतगयेत ्।। अथि- इसमें 5 तर
के सामहू क ववनोदों के बारे में बताया गया
ै । घटाननबिंधन गोष्ठी समवाय, समापानक,
उद्यानगमन तथा समवयस्क ममत्रो के साथ खेल खेलना- इन 5 प्रकार की िीडाओिं में नागररक को यथावसर प्रवि ृ ोना चाह ए।
घटाननबिंध- घटाननबिंधन दे वायतन में जाकर सामहू क नत्सृ य-गान करने अथवा गोष्ठी का बोधक भारत का नागररक
ैं। परु ाने
र मौसम में ब ु त से उत्ससवों का आयोजन करता था। िरद, बसिंत, े मत िं तथा बाररि के मौसम के
अनेक उत्ससवों का वववरर् परु ाने ग्रिंथों में ब ु त ज्यादा मात्रा में ममलता दस ू रे मनोरिं जन को गोष्ठीसमवाय बताया गया
ै । इस तर
ै।
की गोजष्ठयों को नागररक अपने घर पर
ी
आयोजजत ककया करते थे या ककसी गणर्का के घर पर। ववद्या तथा कला में माह र कन्याएिं गोष्ठी समवाय में जरूर ह स्सा लेती थी तथा परु ु षों की तर
कई प्रकार की काव्य समस्याओिं, मानसी, काव्यकिया, पस् ु तक वाचक, दव ु ािचस योग,
दे िभाषाववज्ञान, छिं द, नाटक आहद बौद्धधक तथा उपयोगी कलाओिं में भाग लेती थी और साथ रसालाप द्वारा मौजद ू सभ्यों का मनोववनोद भी ककया करती थी। तत ृ ीय मनोरिं जन समापानक
ै । अच्छी तर
ी गीत, नत्सृ य और
से जी भरकर िराव का सेवन करना समापानक
समापानक मनोरिं जन साल में एकाध बार ककए जाते थे तयोंकक कौहटल्य अथििास्त्र के द्वारा पता चलता जमाने में भई िराब बनाने, पीने और बेचने पर ब ु त ज्यादा ननयिंत्रर् था। आज की तर
ै । इस तर
के
ै कक उस
उस समय का भी सरकार
का आबकारी ववभाग िराब के ठे कों तथा िराब के बनाने आहद की व्यवस्था करता था। इस तर
के प्रबिंध करने वाले व्यजतत को सरु ाध्यक्ष क ते थे जो िराब के बनवाने और बेचने का प्रबिंध
काबबल व्यजततयों द्वारा ककया करता था। सवु वधा के अनस ु ार िराब के ठे के भी व ी दे ता था। अगर कोई व्यजतत गैर-कानन ू ी तरीके से िराब बेचते ु ए पकडा जाता था तो उसे सजा ममलती थी। िराब के
मिंगवाने या भेजने पर ननयिंत्रर् र ता था। खल े म िराब की बबिी पर प्रनतबिंध लगा ु आ था। जो व्यजतत िराब ु आ
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | पीकर दिं गा-र्साद करता था उसे पकड मलया जाता था। िराब को उधार न ीिं बेचा जाता था। मद्यिालाओिं को बनवाने के मलए सरकारी नतिे तैयार ककये जाते थे और कर्र उन् ी के आधार पर उनका ननमािर् कायि अलावा सरकारी गप्ु तचर ववभाग का काम य
था कक व
ोता था। इसके
रोजाना बबकने वाली िराब को नोट कर लें।
समापानक जैसे उत्ससवों के मौके पर मद्यननमािर् और मद्यपान का अलग से सरकारी कानन ू था। इन मौकों पर मसर्ि श्वेतसरु ा, आसव, मेदक और प्रस्सना नाम की िराब
ी पी जाती थी।
सरु ाध्यक्ष की इजाजत से नागकरर् इन िराबों को अपने घर पर म ोत्ससव आहद खास तर
ी तैयार कर मलया करते थे। मदन
के मौकों पर मसर्ि 4 हदनों तक खुलकर सामहू क रूप से सरकार की तरर् से िराब पीने
की छूट दी जाती थी। ऐसे मौकौं पर सरु ाध्यक्ष से व्यजततगत रूप से सामहू क रूप से इजाजत लेने की जरूरत न ीिं पडती थी। कामसत्र ू में बताया गया
ै कक उन हदनों राजभवनों में अतसर आपानकोत्ससव या पान गोष्ठी के आयोजन
ु आ करते थे। इन मौकों पर बा र के प्रेमी लोग बबना ककसी रोक-टोक के राजभवन में प्रवेि ककया करते थे। चौथा मनोववनोद उद्यानगमन मनोववनोद ककस तरीके से सिंपाहदत हदन नागररकगर् सब ु य
से
ै । आचायि वात्सस्यायन नें स्विंय बताया
ै कक उस समय उद्यानगमन
ोता था। उद्यान यात्रा के मलए प ले से एकहदन तय कर मलया जाता था। उस
ी परू ी तर
सजधज कर तैयार
यात्रा ककसी उद्यान या वन की
ी की जाती
ो जाया करते थे। ै जो नागररकों के ननवास-स्थान से इतनी दरू ी पर
ो कक
िाम तक घर पर वावपस प ुिं च सके। इन उद्यान यात्राओिं में कभी-कभी अन्तःपरु रकाएिं भी साथ में र ती थी और कभी-कभी गणर्काओिं को भी ले जाया जाता था। उद्यान यात्रा एक तर
का गोठ अथवा वपकननक
आख्यानयतका, बबिंदम ु ती आहद अनेक तर
ोती थी। ऐसे अवसरों पर ह न्दोल लीला, समस्यापनू ति,
की प े मलयािं खेला करती थी। कुतकुट, लाव, मेष, बटे र आहद पि-ु पक्षक्षयों की
लडाईयािं कराई जाती थी। इसी मौके पर क ीिं-क ीिं िीडैकिाल्मली खेल खेला जाता था। सेमल के पेड के नीचे
ी इस
खेल को खेला जाता था। यिोधर के अिंतगित ववदभि प्रदे ि के नागररक इस खेल में ज्यादा िौक रखते थे। पािंचवािं मनोववनोद समस्या िीडाओिं का
ै जो सामहू क रूप से खेली जाती थी। य
अतसर उत्ससवों में स्थान पाती थी लेककन कभी-कभी खासतौर पर इसी ववषय के दिं गल खासतौर पर ननम्नमलणखत काव्य-िीडािं
काव्य-कला सिंबध िं ी िीडाएिं
ोते थे। इस ववनोद में
ोती थी।
मानसीकलाइस ववनोद के अिंतगित श्लोक के अक्षरों की जग थे और उन पिंखडु डयों से पर अनस् ु वार
पर कमल या ककसी दस ू रे र्ूल की पिंखडु डयों को बबछा दे ते
ी श्लोक पढ़ा जाता था। इसका दस ू रा रूप य
ै, क ीिं पर ववसगि ै । बस इतने सी
भी था कक अमक ु स्थान पर य
ी उसे परू ा श्लोक बनाना पडता था।
प्रनतमाला-
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
मात्रा
ै , क ीिं
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इसको अिंतयाक्षरी भी क ते
ैं। एक पक्ष श्लोक पढ़ता था और दस ू रा पक्ष श्लोक के अिंत्सयाक्षर से िरू ु करके
दस ू रा श्लोक पढ़ता था। अक्षरमजु ष्ठय क लाता
समस्या 2 तर
की
ोती थी-सभासा और ननरवभाषा। ककसी नाम को सिंक्षक्षप्त करके बोलना सभासा
ै जैसे र्ाल्गन ु , चैत्र, वैिाख को छोटा करके र्ा-चै-वै बोलना। गप्ु त तरीके से बातचीत करना ननरवभासा के
मलए अनेक प्रकार के इिारे काम में लाए जाते बािंधी जाती र ी
ै । चवगि के मलए
इसका ववधान य
ैं। इसमें एक ववधध अक्षरमजु ष्द
ै । इसमें कवगि अक्षरों के मलए मट् ु ठी
थेली र्ैला दी जाती थी।
ै कक जो कुछ भी बोलना
ोता
ै प ले उसके अक्षरों के वगों के सिंकेत ककए जाते
वगि बताने के बाद उिं गमलयों को उठाकर वगि अक्षर बताएिं जाते
ैं।
ैं जैसे अगर क ना ै ग तो प ले वगि बताने के मलए
मट् ु टी बािंधी गई और इसके बाद तीसरी उिं गली उठाकर अक्षर बतला हदया गया। वगि तथा अक्षर बताने के बाद पैर उठाकर अथवा चुटकी बजाकर मात्राएिं बताई जा सकती उस समय का
ै।
र नागररक इस प्रकार के काव्य ववनोदों को अभ्यास प्रयत्सनपव ि करता था तयोंकक यि, ू क
कीनति और लाभ के स्रोत भी ऐसे खेल माने जाते थे। इनके अलावा अक्षरिीडा, द्यत ू समाद्वय, जलिीडा उदक्ष्वेडडका, कुसम ु ावचय आहद िीडािंए
ोती थी
श्लोक (15) पक्ष्सय मास्य वा प्रज्ञातेऽितन सर्वत्सया भवने तनयक् ु तानां तनत्सयं समाजः।।
अथि- प ली सच ू ना के मत ु ाबबक 15वें हदन या एक म ीनें में ननजश्चत हदन में सरस्वती के मकान में नागरकगर् इकट्ठा
ो।
श्लोक (1 ) कुशीलवाश्चागंतवः प्रेक्षणकमेषां दद्यःु । द्त्वतीयेऽितन तेभ्यः पज ू ा तनयतं लभेरन ्। ततो यिाश्रद्धमेषां दशगनमत्सु सगगो वा। व्यसनोत्ससवेषु चैषां पर्पर्यैककायगता।।
अथि- स्थायी ननयत ु त नट, नतिक आहद कलाकार समाज उत्ससव में भाग लें। बा र से आए ु ए नट, नतिक भी दििकों को अपनी कला-कुिलता का पररचय दें तथा दस ू रे हदन वे स ी परु स्कार प्रनत सम्मान का भाव
ामसल करें । इसके बाद अगर नागररकों में उनके
ो तो उन् े कला-प्रदििन के मलए रोका जा सकता
कलाकारों में आपसी स योग तथा एकता की भावना
ै । आगिंतक ु कलाकारों तथा स्थानीय
ोनी चाह ए।
दव ु ािचनयोगइसमें ऐसे मजु श्कल िब्दों के श्लोक ु आ करते थे जजन् े आसानी से पढ़ा न ीिं जा सकता था। श्लोक (17)- आगन्तन ू ां च कृतसमवायानां पज ू नमभ्यप ु त्तश्च। इतत गणधमगः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- समाज उत्ससव दे खने के मलए सरस्वती भवन में आयोजजत अगर ऐसे लोग आएिं जो गोष्ठी के सदस्य न बा र से आए ु ए
ो तो उनकी अभ्यचिना तथा मे मानों का सत्सकार यथाववधध करना चाह ए। ककसी तर
आने पर उनकी मदद भी करनी चाह ए। इसी गर्धमि
ोता
ो तथा
की मस ु ीबत
ै।
आचायि वात्सस्यायन के समयमें 5 तारीख की रात को सरस्वती जी के मिंहदर में समाजोत्ससव मनाया जाता था। उस समय के उत्ससवों में इस प ले दजे का उत्ससव माना जाता था। इन उत्ससवों के समय ब ु त ज्यादा भीड-भाड ु आ करती थी। इन उत्ससवों में व ािं के नट-नाहटयों के अलावा
बा र से भी नट-नाहटयािं, नतिक, कुिीलव आहद अपनी-अपनी कला का प्रदििन करने के मलए आया करते थे।
र
कलाकार अपनी कला द्वारा दििकों को खुि तथा मिंत्रमग्ु ध करने की कोमिि करता था। बा र से आए ु ए कलाकारों के रुकने के मलए भोजन आहद के प्रबिंध का कायि एक-एक व्यावसानयक श्ेर्ी पर छोड हदया जाता था। 5 तारीख (पिंचमी) के अलावा अन्यान्य दे वालयों में इस तर समाज आयि जानत का ब ु त
था जजसे एक तर
का समावजोत्ससव मनाया जाता था।
ी परु ाना और सिंभवतः आहद उत्ससव
ै । वैहदक काल में समाज का नाम समन
का मेला क ा जाता था। इन समनों के अिंतगित परु ु षों के अलावा जस्त्रयािं भी आती थी जो हदल
ब लाने के मलए कार्ी सिंख्या में उपजस्थत
ोती थी। कवव, धनध ु रि और रे स के घोडे भी इनाम पाने की
व ािं पर प ुिं चते थे। इनके अलावा गणर्काएिं भी नाम और धन पाने की
सरत रखकर
सरत रखकर अपनी कला हदखाने के मलए
व ािं पर प ुिं चा करती थी।
इस मेले की एक खामसयत य सिंख्या में भाग लेती थी। य
थी कक इसमें अपना मनचा ा वर पाने के मलए वयस्क कुमारी कन्याएिं कार्ी
मेला परू ी रात चलता था।
कामसत्र ू तथा उससे प ले पररवती साह त्सय के अध्ययन से य
पता चलता
ै कक समाज उत्ससव प ले ननदोष
आमोद-प्रमोद का एक सामद ु ानयक आयोजन था। बाद में इसका एक दस ू रा रूप भी बन गया जजसके अिंतगित िराब पीना, मािंस खाना, केमल-िीडाएिं भी
ोने लगी।
इस प्रसिंग में गर्भोज की भी व्यवस्था की गई थी जजसमें कई प्रकार के व्यिंजन, अनाज और सजब्जयािं आहद बनी ु ई थी। इनके साथ मािंस का भी परू ा प्रबिंध
ोता था। भगवान ने उन मल्लों को म िं गे कपडे तथा मि ु ाएिं दे कर
सम्माननत ककया था।
कदाधचत ह स िं ामल ू क खाने वाले पदाथों तथा चररत्र ीनता बढ़ने के कारर् वप्रयदिी अिोक ने अपने मिलालेखों में ऐसे मिलालेखों में ऐसे समाजोत्ससव की ननिंदा की
ै।
श्लोक (18)- एतेन तं तं दे वतात्वशेषमद् ु हदश्य संभात्वतस््ितयो घटा व्याख्याताः।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इस प्रकार, मिव, सरस्वती, यज्ञ, कामदे व आहददे वताओिं के आलयों में यथासिंभव जुटने वाली सामद ु ानयक गोजष्ठयोंमेलों का वववरर् पेि ककया ै । श्लोक (19)- गोष्ठीसमवायमाि वेश्याभवने सभायामन्यतम्योद्वशसते वा समानत्वद्याबद् ु धधशीलत्वतवयसां सि वेश्याशभरनरु ु पैरालापैरासनबंधो गोष्ठी।
अथि- इसके अिंतगित गोष्ठी समवाय की व्याख्या की गई
ै-
बद् ु धध, सिंपवि, ववद्या, उम्र और िील में अपने समान ममत्रों, स चरों के साथ वेश्या के घर में, म कर्ल में अथवा ककसी नागररक के ननवास स्थान पर गोष्ठी समवाय का आयोजन करना चाह ए। श्लोक (20)- तत्र चैषां काव्यसम्या कलासम्या वा।
अथि- व ािं सय ु ोग्य वेश्याओिं के साथ बैठकर मधुर तथा मनोरिं जक बातचीत करें । काव्य व अन्य बौद्धधक, साह जत्सयक गोजष्ठयों में भाग लेकर काव्य चचाि, कला चचि तथा साह त्सय चचाि करें । साह त्सय, सिंगीत और कला जैसे ववषयों पर आलोचनात्समक, तल ु नात्समक धचिंतन ककया जाना चाह ए।
श्लोक (21)- त्यामज् ु ज्वला लोककान्ताः पज् ू याः। प्रीततसमानाश्चािाररतः। अथि- और इस प्रकार की गोष्ठी समवाय में सजम्ममलत प्रनतभािाली कलाकार का अच्छा सम्मान करना चाह ए और बल ु ाए गए मे मानों तथा कलाकारों का खासतौर पर सम्मान करना चाह ए। श्लोक (22)- पर्परभवनेषु चापानकातन।। अथि- एक-दस ू रे के घर पर जाकर सरु ापान, मैरेथ और मधु का पान करना चाह ए। श्लोक (23)- तत्र मधम ै ेसरु ावास्न्तत्वधलवणतलिररतशाकततक्तकटुकामलोपदं शान्वेश्याः पाययेयरु नत्ु पबेयश्ु च।। ु प अथि- इसके अिंतगित मध,ु मैरीय, सरु ा और आसव आहद िराबों को अनेक प्रकार के लवर्, र्ल, री सजब्जयािं, चरपरे , कडवे तथा खट्टे मसालों के साथ नागररकों को वेश्याओिं को स्विंय
ी वपलाना चाह ए तथा इसके बाद खद ु पीना
चाह ए।
श्लोक (24)- एतेनोद्यानगमनं व्याख्यातम ्।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इस तर जाती
से उद्यान यात्रा में भी समापानक
ै उसे मधु क ा जाता
ै । इसके कावपिायन तथा
को सार् करवाकर पीता था।
ोना चाह ए। अिंगरू अथवा दाख के रस से जो िराब बनाई ार ू रक ये 2 नाम और ै । भारत का रमसक रईस मधु िराब
मरोड की र्ली, पलाि, छो , भारक, मेढ़ामसिंगी, करिं जा, क्षीरवगि के कहद की भावना हदया गया खादार ितकर का चूरा और उसका आधा लोध, चीता, वायववडिंग, परम, मोथा, कमलिंग, जौ, दारु ल्दी, कमल, सौंर्, धचधचडा, सतपर्ि आक का र्ूल को एकसाथ पीसकर चूर्ि बनाकर इकट्ठा करके एक मट् ु ठी मसाला एक सारी पररमार् िराब में डालकर िराब को इस प्रकार सार् बनाया जाता था कक पीने वाले खि ु
ो जाते थे। कभी-कभी स्वाद को बढ़ाने के मलए इसमें 5 पल
राब भी ममला दी जाती थी। मैरेय िराब को तैयार करने के मलए मेढ़ामसिंगी की छाल का काढ़ा बनाया जाता था और कर्र उसमें गड ु , पीपल और कालीममचि को ममलाया जाता था। कभी-कभी पीपल की जग उस समय में सरु ा (िराब) 4 प्रकार की
बत्रर्ला का प्रयोग कर मलया जाता था।
ोती थी-
1. सरु ा, 2. रसोिरा, 3. स कार, 4. बीचोिरा तथा सम्भारकी साधारर् सरु ा (िराब) में अगर आम का रस ननचोड हदया जाता था तो व अगर साधारर् सरु ा में गड ु की चािनी ननचोड दी जाती ै तो व साधारर् सरु ा में बीजबिंध बहू टयािं छोड दे ने पर म ासरु ा बनती
स कार सरु ा बनती थी।
रसोिर िराब बनती
ै।
ै।
मल ु ठी, दध ू , केिर, दारु ल्दी, पाठा, लोध, इलायची, इत्र र्ुलेल, गजपीपल, पीपल और ममचि आहद को साधारर् सरु ा में ममला दे ने से सम्भाररकी सरु ा बनती थी।
आसव को बनाने में 100 पल कैथे का सार, 500 पल राब और एक प्रस्थ ि द का प्रयोग ककया जाता था। इसमें पडने वाला मसाला, दालचीनी, चीता, गजपीपल, वायववडिंग 1-1 कषि और और 2-2 कषि सप ु ारी, मल ु ठी, लोघ और मोथा लेकर आसव में ममलाया जाता था।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इन िराबों को पीने के साथ-साथ कई तर
के लवर्, सब्जी के अलावा खट्टे -मीठे , चरपरे पदाथि खाए जाते
थे। आचायि वात्सस्यायन नें ऐसे पदाथों को उपदिं ि मलखा
ै । उपदिं ि िब्द का अथि मलखते ु ए
लायध ु कोष ने क ा
ै
कक मद्यपान रोचक भोज्य िव्यम अथवा िराब पीने के स ाये रोचक भोज्य पदाथि।
आषानक गोजष्ठयों में वेश्याओिं की उपजस्थनत अपेक्षक्षत मानी जाती थी। वे रमसक नागरक को चषक भरकर िराब वपलाती तथा स्वयिं भी वपया करती थी। उद्यान यात्राओिं में भी गणर्काएिं साथ जाया करती थी और व ािं भी मद्यपान
ोता था।
श्लोक (25)- पव ू ागह्ण एव ्वलंकृता्तरु गाधधरूढा वेश्याशभः सि पररचारकानग ु ता गच्छे यःु । दै वशसकीं च यात्रां तत्रानभ ु य ू कुक्कुटयद् ु धद्यत ू ःे प्रेक्षाशभरनक ु ू लैश्च चेस्ष्टतैः कालं गमतयत्सवा अपराह्णे गि ु यानोपभोगाधचह्ना्तिैव ृ ीततदद् प्रत्सयाव्रजेयःु ।।
अथि- इसके अिंतगित िीडा उत्ससवों और िीडाओिं के बारे में बताया जाता सब ु -सब ु
ी ग ने-कपडे प नकर तथा घोडे पर सवार
यात्रा पर जाना चाह ए। य
उद्यान यात्रा इतनी दरू की
ै-
ोकर गणर्काओिं और सेवकों को साथ लेकर उद्यान
ोनी चाह ए कक िाम तक वावपस प ुिं च जाए। उद्यान में
जाकर रोजाना के कामों से ननपटकर लावक तथा मेढ़ों की बाजी लगाई गई लडाईयािं दे खें, नत्सृ य नाटक दे खें, जुआ खेलें, सिंगीत का आनिंद लें, मनोरिं जक खेलों को खेलें। िाम से प ले उद्यान यात्रा के स्मनृ त-धचन् आहद लेकर जजस तर
आए थे उसी तर
र्ल, र्ूल, पिे, स्तबक
घर पर वावपस लौटना चाह ए।
श्लोक (2 )- एतेन रधचतोदग्रािोदकानां ग्रीष्मे जलक्रीडागमनं व्याख्यातम ्।। अथि- इस तर
गमी की जल िीडाओिं में लीन
ो जाना चाह ए। गमी के मौसम का उिम मनोववनोद जल-िीडा ा़ ोता
ै । जजस समय जमीन और आसमान तेज लू से धधकने लगते थे, उस समय परु ाने भारत का श्ीमिंत नागरक सपिननभीक के बराबर म ीन वस्त्रों, सग ु धिं धत कपरू का चूर्,ि चिंदन का लेप तथा पाटल-र्ूलों से सस ु जज्जत धाराग ृ
का
प्रयोग हदल खोलकर करता था।
जब ववलासननयािं ग ृ वावपकाओिं में जल-िीडा ककया करती थी तो कान में घस ु ाए ु ए मिरीष-कुसम ु पानी में
छा जाते थे। चिंदन तथा कस्तरू रका के आमोद से और नाना रिं ग के अिंगरागों से तथा श्िंगार-साधनों से पानी रिं गीन जाता
ो
ै। जल-स्र्लन से पैदा ु ए जल बबिंदओ ु िं से आसमान में मोनतयों की लडी बबछ जाती थी। तालाब के अिंदर से
गज िंू ते ु ए मद ु ृ िं ग घोष को, बादल के स्वर जानकर, सोचे-ववचारे मयरू उत्ससक पल्लवों से कमल-दल धचबत्रत द्वारा य
ो उठते थे। बालों से णखसके ु ए अिोक-
ो उठते थे तथा आनिंद कल्लोल से हदकमण्डल मख ु ररत
जलकेमल, मनोरम भाव अिंककत
ो उठता था। प्राचीन धचत्रों के
ै।
श्लोक (27)- यक्षरात्रत्रः। कौमद ु ीजागरः। सव ु संतक।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
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अथि- इसके अिंतगित समस्या िीडाओिं का पररचय हदया जाता
ै-
यक्षराबत्र कौमद ु ी जागर तथा सन ु सिंतक उत्ससवों में समस्या िीडाएिं रचाई जाती
ै-
आचायि वात्सस्यायन के समय में यज्ञ रात का उत्ससव का आयोजन ककया जाता था। दीपावली उत्ससव का उल्लेख परु ार्ों, धमिसत्र ू ों, कल्पसत्र ू ों में ववस्तत ृ रूप से ममलता दीपावली का कोई उल्लेख न
ै । लेककन
ोकर रात के यज्ञ का जजि ककया गया
उस समय, उस हदन यज्ञ की पज ू ा
ोती र ी
ै रानी की बात य
ै कक कामसत्र ू के अिंतगित
ै । राबत्र यज्ञ से इस बात का पता चलता
ोगी तथा द्यत ू -िीडा रचाई जाती
ै कक
ै।
अगर व्याकरर् का आधार लेकर अथि ननकाला जाए तो यज्ञ यते पज् ू यते इनतयज्ञ-छञ-यज्ञः तथा यज्ञ राबत्र ननष्पन्न
ोता
ै।
मन ु ककन
ै इसी अथि को लेकर दीपावली का नाम उस समय यज्ञराबत्र रखा गया
दीपावली उत्ससव िास्त्रीय अथवा धाममिक रूप में न ीिं मनाया जाता र ा कोई वववरर् न ीिं ो जाता
ै तयोंकक वेदों, िाह्मर् ग्रिंथों के अिंतगित इसका
ै । स्कन्दपरु ार् तथा पद्मपरु ार् में इस पवि का परू ा वववरर् पाया जाता
दीपावली के उत्ससव का प्रचलन अब तक सार्
ो। परु ाने समय में िायद ै । उसी के आधार पर
ै । कानतिक की अमावस्या के साथ यज्ञ िब्द जोडने का तात्सपयि श्ीसत ू त से
ै । श्ीसत ू त ऋग्वेद के पररमिष्ट भाग का एक सत ू त
ै । इस सत्र ू के एक मिंत्र में मणर्ना स
क ा गया
ै। इस वातय से पता चल जाता सिंबध िं
ै कक लक्ष्मी का सिंबध िं मणर्भि यज्ञ से
ोने से कामसत्र ू के समय तक दीपावली की रात यज्ञराबत्र क लाती ननसिंदे
के बाद से िरू ु
इतना तो क ा जा सकता ोता
ै । मणर्भि यज्ञ से लक्ष्मी का घननष्ठ
ै।
ै कक दीपावली का आधनु नक रूप में जो प्रचलन
ै और आचायि वात्सस्यायन के समय इसी के प ले सनु नजश्चत ै । य
ै व
ईसवीिं तीसरी िती
अनम ु ान ककया जा सकता
ै कक वात्सस्यायन के समय में कानतिक की अमावस्या की रात में लक्ष्मी को पज ू ने और द्यत ू -िीडा की प्रथा र ी
ोगी।
कौमद ु ी जागरर्उत्ससव अनम ु ानतः िरू ु में वविद् ु ध लोकोत्ससव र ा पणू र्िमा को बबल्कुल भी म त्सव न ीिं हदया गया आजश्वन पणू र्िमा की रात में य
ोगा तयोंकक सिंह ताओिं तथा िाह्मर् ग्रिंथों में आजश्वन
ै।
ोने वाला य
उत्ससव पामल ग्रिंथों में कौमदीय-चातम ु ासनीय छन बतलाया गया ै ।
उत्ससव मौसम बदलाव के मलए मनाया जाता था। कामसत्र ू कार ने इसी को कौमद ु ी जागरर् मलखा ग सत्र ू ों में अश्वयज ु की पू ृ्णर्िमा को कार्ी म त्सव हदया गया
ै । ग सत्र ू ों के द्वारा पता चलता
ै। ै कक इन
उत्ससव के मौके पर उस वर्ि के लोग भडकीले कपडे प नकर बडे उल्लास के साथ अश्वयज ु ी उत्ससव मनाते थे।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | पिप ु नत, इिंि, अजश्वन आहद दे वताओिं को खुि करने के मलए यज्ञ
वन भी ककए जाते थे तथा खीर का भोग लगाया
जाता था। आयििरू के द्वारा मलणखत जातक माला में मिववराज्य की राजधानी में उस हदन नगर भर में च ल-प ल र ती थी। सडको, चौमु ननयों में पानी का नछडकाव ककया जाता था, उन् े सजाया-सिंवारा जाता था। सार्-सथ ु रे धरातल पर र्ूल बबखेर हदए जाते थे। चारों तरर् झिंड,े पताका तथा वन्दनवार ल राए जाते गीत वाद्य के जमघट लगे
ोते थे।
मात्सस्य सत ू त के द्वारा सव ु सिंतक के हदन ोती
ैं। जग -जग
ी बसिंत ऋतु का अवतरर्
ै । वसन्तावतार को आजकल वसन्तपिंचमी क ा जाता
ोता
पर नत्सृ य-नाटक,
ै । इसी रोज मदन की प ली पज ू ा
ै । सरस्वती कण्ठाभरर् से पता चलता
ै कक सव ु सिंतक
के हदन ववलामसननयािं कण्ठ में कुवलय की माला तथा कानों में दष्ु प्राप्य नवआम्रमिंजरी खोसकर गािंव को रोिन कर दे ती
ै। ऋतस ु िं ार से य
पता चलता
ै कक बिंसत का मौसम आते
ी ववलामसननयािं गमि कपडो का भार उतार र्ैं कती
थी। लाक्षा रिं ग अथवा किंु कुम से रिं जजत और सग ु धिं धत कालगरू ु से सव ु ामसत
ल्की लाल साडडया प नती थी। कोई
कुसभ ुिं ी रिं ग से रिं गे ु ए दक ु ू ल धारर् करती थी तथा कोई-कोई कानों में नए कणर्िकार के र्ूल, नील अलकों में लाल अिोक के र्ूल तथा स्तनों पर उत्सर्ुल्ल नवमजल्लका की माला प नती थी। गरुर् परु ार् के इन सझ ु ावों से य से सिंबधिं धत
पता चलता
ै कक य
एक व्रत
ै जो समू
से सिंबधिं धत न
ोकर व्यजतत
ै।
श्लोक (28)- सिकारभस्ज्जका, अभ्यष ू खाहदका, त्रबसखाहदका, नवपत्रत्रका, उदकक्ष्वेडडका, पाञ्ञालानय ु ानम,् एकशाल्मली, कदम्बयद् ु धातन, ता्ताश्च क्रीडा जनेभ्यो त्वशशष्टामाचरे यःु । इतत संभय ू क्रीडाः।। अथि- इसके अिंतगित दस ू रे क्षेत्रीय िीडाओिं का वर्िन ककया जाता
ै-
स कार भजन्जका, अभ्यप ू खाहदका, ववसखाहदका, नवपबत्रका, उदकक्ष्वेडडका, पान्चालानय ु ान, एकिाल्ममल कदम्बयद् ु ध- इन स्थानीय तथा साविदेवषक िीडाओिं में नागरक लोग अपनी-अपनी इच्छा के अनस ु ार िीडाओिं का वर्िन खत्सम
ोता
ी खेलें। सामहू क
ै।
आचायि वात्सस्यायन ने बसिंत के मौसम में खेली जाने वाली िीडाओिं के नाम य ािं पर बताए
ैं। कामसत्र ू की
जयमिंगला टीका में उनके अलावा उद्यान यात्रा, खमलल िीडा, पष्ु पावचनयका, नवाम्रखादननका और आम तथा माधवीलता का वववा - इन िीडाओिं को बसिंत के मौसम में उसके बाद ननदाध में खेलने का समथिन ककया गया ै । इसके अिंतगित आचायि वात्सस्यायन एकािंकी व ऐश्वयि ीन नागररकों के मनोरिं जन का सझ ु ाव पेि कर र े
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-ैं
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (29)- एकचाररणश्च त्वभवसामथ्यागद्।।
अथि- दभ ु ािग्यवि नागररकों से रह त नागरक अगर अकेले में ववचार करता
ै तो व
अपनी ताकत के अनक ु ूल
ी
िीडा करे । श्लोक (30)- गणणकाया नातयकायाश्च सखीशभनागगरकैश्च सि चररतमेतने व्याख्यातम ्।। अथि- इसी तर
से एकािंककनी
ो जाने पर गणर्काएिं तथा नानयकाएिं भी नागररकों तथा स े मलयों के साथ मौसम सिंबध िं ी
िीडाएिंा़ करें । श्लोक (31) अत्वभव्तु शरीरमात्रो मस्ल्लकातेनककषायमात्रपररच्छदः पज् े े ू याद्दे शादागत कलासु त्वचक्षण्तदप ु दे शन गोष्ठयां वेशोधचते च वत ृ े साधयेदात्समानशमतत पीठमदग ः।। अथि- इसके अिंतगित उपनागरकों का पररचय दे ते ु ए उनके आचरर् के बारे में बताया गया ककसी सािंस्कृनतक स्थान से आया ु आ कालाववचक्षर् नागररक अगर गरीब
तथा कषाय मात्र
ी बाकी बचे
ो तो व
ै-
ो, उसके पास मजल्लका, र्ेनक
नागररकों की सिंभाओिं, उत्ससवों में जाकर और वेश्याओिं के य ािं जाकर उनको
ह तकर उपदे ि दे कर अपनी जीवीका कमानी चाह ए। उनका आचायि बनकर पीठमदि पदवी
ामसल करनी चाह ए।
आचायि वात्सस्यायन के मत िं ी ु ाबबक अमीर-गरीब समद ु ाय, सम्पन्न अथवा एकािंकी सभी लोगों को मौसम सिंबध मनोरिं जनों और उत्ससवों में भाग लेना चाह ए। इससे भारतीय सभ्यता तथा सिंस्कृनत का मल ू उद्दे श्य तथा स्वरूप आसानी से समझा जा सकता
ै।
कामसत्र ू की गवा ी से जान पडता क ीिं भी न ीिं
ै कक भारतीय सिंस्कृनत तथा साह त्सय में असद ुिं र तथा वविो
का भाव
ै । भारतीय नागररक पन ु जिन्म तथा कमिर्ल के मसद्धािंतों को स्वीकार कर सािंसररक ववधान के साथ
सामन्जस्य बनाए रखने के मलए कोमिि करता ै । व
दख ु में भी असिंतष्ु ट अथवा कर्िमिंद न ीिं ु आ करता तयोंकक
उसकी मान्यता ै कक मनष्ु य अपने कामों का र्ल भोगने के मलए
ी जन्म लेता ै ।
मारी सभ्यता मनोववनोदों, उत्ससवों, नत्सृ यो-नाटकों को मसर्ि मनोरिं जन का साधन धमि, काम तथा मोक्ष की प्राजप्त का मख् ु य साधन समझती जजस जस्थनत का, जजस वगि अथवा रिं ग का
ै । य ी वज
ी न ीिं मानती बजल्क अथि,
ै कक वात्सस्यायन ने
ो, उत्ससवों, मनोववनोदों में भाग लेने का सझ ु ाव हदया
र व्यजतत को चा े व ै।
श्लोक (32)- भक् ु तत्वभव्तु गण ु वान ् सकलत्रो वेशे गोष्ठयां च बिुमत्तदप ु जीवी च त्वटः।।
अथि- जो व्यजतत सिंपन्न नागररकों के सभी सख ु ों का उपभोग कर चक ु ा गया
ो और सभी नागरक गर् ु ों से सिंपन्न
ै, कलावान
ो लेककन ककसी वज
े ववभव ीन
ै , गणर्काओिं तथा नागरकों के समाज में लब्धप्रनतष्ठ
वेश्याओिं तथा नागरकों के सिंपकि से जीववका चलाएिं। ऐसा आदमी ववट क लाता
ै।
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ै, व
ो
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (33)- एकदे शत्वद्य्तु क्रीडनको त्वश्चा्यश्च त्वदष ू कः। वैिाशसको वा।
अथि- लेककन जो लोग ककसी कला अथवा ववद्या में परू ी बना र ता जाता
ै । कदाधचत व
ै।
ामसल ककए
ो व
अधूरा कलाकार लोगों के बीच णखलौना
ववश्वस्त ु आ दो ववदष ू क क लाएगा अथवा िं साते र ने की वज
से वै ामसर भी क ा
श्लोक (34)- एते वेश्यानां नागरकाणां च मस्न्त्रणः सस्न्धत्वग्रितनयक् ु ताः
अथि- ऐसे लोग वेश्याओिं तथा नागररकों के बीच सिंधध-ववग्रह क बनते
ैं।
श्लोक (35)- तैशभगक्षक् ु यः कलात्वदग्धा मण् ु डा वष ृ ल्यो वद् ृ धगणणकाश्च व्याख्याताः।। अथि- ववट-ववदष ू क की तर सकती
कला ननपर् ु मभक्षुकी नायक तथा नानयका के बीच सिंधध-ववग्रह क बनकर जीवन बबता
ै। उपयत ुि त 3 सत्र ू ों द्वारा आचायि वात्सस्यायन ने पीठमदि, ववट, ववदष ू क और इन् ी की तर
ववधवा, बढ़ ू ी वेश्या आहद के जीवनयापन का ववधान बताया
मभक्षुर्ी, बािंझस्त्री,
ै।
सख ु -सिंपन और ननधिन नागररकों के इस वगीकरर् से वात्सस्यायन कालीन समाज व्यवस्था का सधचत्र पररचय प्राप्त
ोगा। इसके अिंतगित क ीिं भी इस बात का उल्लेख न ीिं ककया गया ै कक उच्च वर्ि के लोग ज्यादा समद् ृ ध
ोते थे और नीच वर्ि के लोग कम। ऐसा लगता
ै कक समद् ृ ध
जाता था। िाह्मर् मसर्ि वेद पाठी क्षबत्रयों की भी बात य ी
ोने के बाद श्ेष्ठी अथवा सामन्त पदवी ी न ीिं
ामसल
ो जाती थी, िि ु पद ववलीन
ो
ोते थे बजल्क दे ि-दे िान्तर का व्यापार करके श्ेजष्ठ भी बन जाते थे।
ै कक वे मसर्ि राजा या योद्धा
ी न ीिं
ोते थे बजल्क उच्चकोहट के व्यवसायी तथा सेठ भी
ोते थे। मत्सृ षकहटक नाटक की गवा ी के अिंतगित जाना जाता ै कक चारुदत िाह्मर् वास करता
ै तथा सभी कलाओिं का समादरर् करने वाला उिम नागररक
ै । गरीब
अननन्ध सध िंु री, गणर्का तथा सभी नागररकों के प्रेम तथा श्द्धा का भाजन बना र ता
ोते ु ए भी श्ेजष्ठ-चत्सवर में
ो जाने पर भी वसन्तसेना जैसी ै।
आचायि वात्सस्यायन द्वारा बताई गई ववट की पररभाषा का मनष्ु य मच् ू रा िाह्मर् ृ छकहटक का एक दस
ववट क ा जाता
ै । राजा के साले की चापलस ू ी करता ै , गणर्काओिं का सम्मान करता
ै और उन् े खि ु रखता
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ै जो ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (3 )- ग्रामवासी च सजातास्न्वचक्षणान ् कौति ू शलकान ् प्रोत्ससाह्या नागरकजन्य वत ृ ं वणगयञ्श्रद्धां च जनयं्तदे वानक ु ु वीत। गोष्ठीश्च प्रवतगयेत ्। संगत्सया जनमनरु ञ्ञयेत। कमगस च सािाय्येन चानग ु ह् ृ णीयात ्। उपकारयेच्च। इतत नागरकवत ृ म ्।।
अथि- इसके अिंतगित गािंव के लोग नागरक के वि ृ का वर्िन करते
-ैं
अगर नागरक गािंव में जीवनयापन करने या ककसी दस ू रे मकसद को परू ा करने के मलए ननवास करता
ै तो
सिंजातीय, बद् ु धधमान तथा जाद,ू खेल-तमािा जानने वाले लोगों को रोचक घटनाएिं सन ु वाकर अपना भतत बना लें तथा नागरक जीवन बबताने के मलए उन् े प्रोत्ससाह त करें । उनके मनोरिं जन के मलए उत्ससवों और यात्राओिं का आयोजन ककया जाए, अपने सिंपकि से उन् ें प्रमहु दत बनाकर रखें । उनके काम में स ायता प्रदान करें तथा उन पर अनग्र ु ै। नागरकवि ृ से इस बात का पता चलता जाता
करता र ें । य ािं पर नागरकवि ृ का प्रकरर् समाप्त
ोता
ै कक उस समय की भारतीय प्रजा, ऐश्वयि, समद् ृ धध तथा पौरुष
सिंपन्न थी। सद ुिं रता तथा सक ु ु मारता की रक्षा करने में
मेिा जागरुक र ती थी। योग तथा भोग, प्रववृ ि तथा ननव ृ ृ्वि
का सामन्जस्य तथा सिंतल ु न बनाए ऱखने में परू ी तर
काबबल और सावधान थी। उसका अपना भी दृजष्टकोर् व
जीवन दििन था जजसके द्वारा व
इजन्ियों की व ृ ृ्वि को पािववकता की तरर् उन्मख ु न ीिं
ोने दे ती थी।
श्लोक (37)- नात्सयंत सं्कृतेनव ै नात्सयंत दे शभाषया। किां गोष्ठीषु कियंल्लोके बिुमतो भवेत ्।।
अथि- इसके अिंतगित गोजष्ठयों में भाषा तथा सिंभाषर् सिंबध िं ी ननयमों की व्याख्या करते सभाओिं तथा गोजष्ठयों में न मसर्ि सिंस्कृत में
सविमान्य तथा सविसम्माननत न ीिं
ो सकता
ी बोला जाए और न
ैं-
ी मसर्ि भाषा में । ऐसा करने से वतता
ै।
श्लोक (38)- या गोष्ठी लोकत्वद्त्वष्टा या च ्वैरत्वसत्पगणी. परहिंसास्त्समका या च न तामवतरे द्वधः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- जजस गोष्ठी में जलने वाले लोग र ते लगाए जाते जाना चाह ए।
ों तथा ज ािं पर स्वच्छिं द कायिवा ी
ो या दस ू रों को नक ु सान प ुिं चाने की कोमिि की जाती
ोती
ो और दस ू रों पर इल्जाम
ो उस गोष्ठी में बद् ु धधमान व्यजतत को न ीिं
श्लोक (39)- लोकधचतानव ु ततगन्या क्रीडामात्रैकाकायगया। गोष्ठया सिचरस्न्वद्वांल्लोके शसद्धध तनयच्छतत।। अथि- जो लोग इस प्रकार की गोजष्ठयों से ताल्लक ु रखते पर मसर्ि ववनोदों या मनोरिं जनों का
चा ता
ी मा ौल र ता
ों, जो जनरुधच का प्रनतननधधत्सव करते
ो व
व्यजतत कामयाबी और ख्यानत को प्राप्त कर सकता
आचायि वात्सस्यायन के भाषा सिंबध िं ी ववचार ब ु जनह ताय
ै और न
ै। व
ी गिंवारपन। उनकी भाषा नीनत मध्यम वगि का अवलिंबन करती ै । वात्सस्यायन द्वारा
ै । सिंस्कृत के साथ-साथ जनभाषा में भी साह त्सय का प्रर्यन उस समय
जाए जो कक आसान सब ु ोध
ोने के साथ
आयोजन ख्यानत तथा लोकवप्रयता
ोता र ा
ै।
ामसल करना
ै।
बोझ को उतारकर हदल और हदमाग के मलए बौद्धधक खुराक ो। ऐसे मा ौल मे सिंपन्न
कामयाबी और ख्यानत भी अनग ु मन करती
ी उपयोग ककया
ो। गोजष्ठयों में भाग लेने, भाषर् दे ने का
बद् ु धधमान लोगों को इस प्रकार के उत्ससवों में जाना चाह ए जो लोकधचिानु वनतिनी स्ने मय मा ौल
ै तथा प्राकृत जनभाषा
ै कक सभाओिं तथा गोजष्ठयों में साधारर्तयः िाम का
ी साह जत्सयक गर् ु ों से भी सिंपन्न
जारों साल
ै।
आचायि वात्सस्यायन के समय में सिंस्कृतननष्ठ, समु िक्षक्षत अथवा साह त्सय की भाषा र ी
आचायि वात्सस्यायन ने ननयम बताया
ै।
जन समाज के बीच न तो कठोर पाजण्डत्सय
प ले ननधािररत की ु ई भाषानीनत आज के भाषा वववाद के मलए एक उपाय र ी
ो और जजस जग
ों। ज ािं अपने हदल के
ामसल की जा सके। आनन्ददायक सौ ादि मय तथा
र किया, र ववचार तथा भावना र्लवती
ो सकती
ै । इसके साथ
ी
ै।
श्लोक- इतत श्री वात्स्यायनीये कामसत्र ू े साधारणे, प्रिमेऽधधकरणे नागरक वत ु ोऽध्याय।। ृ ं चति
अध्याय 5 नायकसिायदत ू ीकमगत्वमशगः श्लोक (1)- कामश्चतष ु ुग वण़ेषु सवणगतः शा्त्रतश्चानन्यपव ू ागयां प्रयज् ु यमानः पत्र ु ीयो यश्यो लौकककश्च भवतत।।
अथि- इसके अिंतगित परु ु ष तथा स्त्री के दास और दामसयों के करने वाले कायों को बताया गया अपनी जानत की स्त्री से रीनत-ररवाज के अनस ु ार वववा
ै । इसमें सबसे प ले
की जरूरत पर रोिनी डाली जाएगी।
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ोती
ै व
ी जानत की स्त्री से वववा
सिंसार में उनका नाम रोिन करती
आचायि वात्सस्यायन के अनस ु ार इस बात के दो अथि ननकलते
करना चाह ए। इससे
ै। ैं- प ला- अपनी
ी जानत की स्त्री से वववा
करना और दस ू रा सिंतान को पैदा करके लोकधमि को ननभाना। इसमलए भारतीय जानत व्यवस्था में वववा
पद्धनत पर ब ु त
ी ननयिंत्रर् रखा जाता
ै । बच्चे के जन्म लेने
के बाद के अधधकारों को ववकमसत और पररपतव बनाने के मलए परू ी मिक्षा-दीक्षा तथा अच्छे मा ौल की जरूरत पडती ै । लेककन अगर जन्म से
ी उन गर् ु ों को पाने की कोमिि न ी की जाती तो खानदानी परिं परा का और पररवार के
मा ौल का असर बच्चे पर ज्यादा न ीिं पडता। आचायि वात्सस्यायन की क ी बातें य ािं पर बबल्कुल ठीक प्रतीत सिंतान पैदा की जाए तो य
सिंसार की मयािदा के अिंतगित आता
ोती
ै । अगर अपनी पत्सनी से सिंभोग करके
ै।
श्लोक (2)- तद्त्वपरीत उतमवणागसु परपररगि ु भष ूग ु च न शशष्टो ृ ीतासु च। प्रततत्षद्धोऽवरवणाग्वतनरवशसतास।ु वेश्यासु पन न प्रततत्षद्धः। सख ु ािगत्सवात ्।।
अथि- इसमें वववा
के समय तया करना चाह ए और तया न ीिं करना चाह ए इस बात को बताया गया
अपनी से ऊिंची जानत या पराई स्त्री से सिंभोग की इच्छा िास्त्रों के अनक ु ू ल न ीिं ै । इसी तर नीची जानत की जस्त्रयों सें सिंभोग की इच्छा रखना गलत तयोंकक उनके साथ जो सिंभोग किया की जाती
ै व
ैसे अपने से
ै । परिं तु वेश्याओिं तथा पन ु भुि जस्त्रयों से सिंभोग करना स ीिं
मसर्ि िरीर की आग को िािंत करने के मलए
ोती
ै न कक
सिंतान आहद पैदा करने के मलए। आचायि वात्सस्यायन अपनी करने को गलत ठ राते
ी जानत में वववा
करने का
ी समथिन करते
ैं तयोंकक व
ैं। आज के समय में आधनु नक ववज्ञान भी इस बात को मानने लगा
जानतयों के जीवों के आपस में ममलने से एक तीसरे प्रकार के जीव की उत्सपवि
ोती
दोगली जानत पैदा
ै कक दो अलग-अलग
ै।
श्लोक (3)- तत्र नातयकास््त्त्रः कन्या पन ु भव ूग ़ेश्या च इतत।।
अथि- 3 प्रकार की जस्त्रयािं
ोती
ै कन्या, पन ु भुि और वेश्या।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन के मत िं जोडने चाह ए। प ली स्त्री ु ाबबक इन तीनों प्रकार की जस्त्रयों से परु ु ष को प्रेम सिंबध अथाित कन्या को सबसे अच्छा माना जाता ै । अब सवाल य
उठता
लडकी की िादी न ीिं
ै । पन ु भुि स्त्री को उससे नीचा और वेश्या स्त्री को सबसे नीचा माना गया
ै कक आचायि वात्सस्यायन नें पन ु भुि और वेश्या को कन्या से नीचा तयों बताया
ोती उसे कन्या क ा जाता
ै । जो लडकी िादी से प ले ककसी परु ु ष के साथ सिंभोग करती
तो उसे पन िं बनाने वाली स्त्री को वेश्या क ा जाता ु भुि तथा कई परू ु षों के साथ सिंबध इससे एक बात परू ी जाह र अपनी पसिंद के यव ु क से वववा
ो जाती
करने की परू ी छूट थी।
ै।
र यव ु क अपनी खबू बयों के बल पर यव ु ती को पाने की इच्छा
में बिंधने से प ले यव िं द्वारा ु क तथा यव ु ती को आपसी प्रेम सिंबध
ो जाना चाह ए।
जजस यव ु क में सारे गर् ु
ोते
ैं ऐसे यव ु क के मलए कन्या स्त्री उससे नीचे यव ु क के मलए पन ु भुि तथा सबसे
नीचे यव ु क के मलए वेश्या स्त्री को चुनने का मकसद स ी पर भरोसा रखना और कर्र वववा
ोता
ै । सबसे प ले आपस में प्रेम बढ़ाना, कर्र एक-दस ू रे
करना आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक स ी
ै।
आचायि वात्सस्यायन ने इसमें यव ु क की पात्रता के अनक ु ू ल वेश्या नानयका का ववधान बनाया मतलब य चली आ र ी
ै कक बरु े यव ु क के मलए बरु ी यव ु ती। इनत ास में वेश्र्याओिं की जस्थनत और व ै य
ै
ै कक आचायि वात्सस्यायन के समय में भी किंु वारी यव ु नतयों को भी
रखता था। आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक वववा एक-दस ू रे से पररधचत
ै । जजस
बताया गया
ककतनी परु ासे समय से
ै । सभी परु ाने ग्रिंथों में वेश्याओिं के बारे में मलखा ु आ ममलता
वेश्याओिं के सिंबध िं में अलग ग्रिंथ भी बने ु ए
ै । इसका
ै । इसी के साथ
ी
ैं।
वेश्याओिं को परु ाने समय में समाज का एक जरूरी अिंग माना जाता था। प ले के समय में वेश्याओिं को इस प्रकार की मिक्षा दी जाती थी कक िारीररक और मानमसक ववकास कैसे की मिक्षा से दरू रखा जाता था। परु ाने समय से
ी वेश्याएिं
ोता
ै । लेककन दस ू री जस्त्रयों को इस प्रकार
र चीज में ननपर् ु
ोती थी। य ीिं न ीिं ऊिंची जानत की
जस्त्रयािं भी इनकी मिक्षा-दीक्षा से लाभ उठाया करती थी। आचायों नें कामसत्र ू के अलावा दस ू रे ग्रिंथों में भी कई प्रकार की जस्त्रयों के लक्षर् बताए
ैं-
1- धचबत्रर्ी 2- परकीया 3- सामान्या 4- स्वकीया 5- पदममनी 6-
जस्तनी
7- ििंणखनी
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 8- मग्ु धा 9- ज्ञातयौवना 10- मध्यमा 11- प्रौढ़ा 12- आरूढ़ यौवना मग्ु धा 13- नवलअनिंग 14- लज्जावप्रया मग्ु धा 15- लब्ु धपवि प्रौढ़ा 16- प्रगल्भव चना मध्या 17- आिममता प्रौढ़ा 18- सरु तववधचत्रा मध्या 19- ववधचत्र-ववभ्रमा प्रौढ़ा 20- समस्तरत कोवव प्रौढ़ा 21- कल ातररता 22- धीरा 23- उत्सकजण्ठता 24- धीरा-धीरा 25- स्वाधीन पनतका 26- प्रादभ ि मनोभवा मध्या ु त 27- सम्सयाबन्धु 28- खिंडडता 29- स्वयिंदनू तका 30- प्रोवषतापनतका
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | 31- कुलटा 32- लक्षक्षता 33- लघम ु ानवती 34- महु दता 35- अयि ु यना 36- मध्य मानवती 37- अनढ़ ू ा 38- गरू ु मानवती 39- रूपग्रवविता 40- ग्रवविता 41- अन्य सिंभोग दःु णखनी 41- कुलटा 42- कननष्ठा 43- अहदव्या 44- वचनववदग्धा 45- कियाववहदग्धा 46- हदव्या 46- हदव्या हदव्या 47- कामगवविता 48- मध्यमा 49- उिमा 50- प्रेमगवविता 51- रूपगवविता
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (4)- अन्यकारणवशात्सपरपररगि ु ीतत गोणणकापत्र ु ः।। ृ ीतात्प पाक्षक्षकी चति
अथि- इसके अिंतगित ब ु त से आचायों द्वारा बताई गई जस्त्रयों का उल्लेख ककया जाता ब ु त से कारर्ों से पराई स्त्री को भी चौथी स्त्री बनाया जा सकता
ै।
ै।
श्लोक (5)- य यदा मन्यते ्वैररणीयम ्।।
अथि- जजन कारर्ों से पराई जस्त्रयों को नानयका बनाया जा सकता परु ु ष जब इस बात को समझ ले कक पराई स्त्री पनतव्रता न ीिं
ोती
ै व
ननम्नमलणखत
ै-
ै।
श्लोक ( )- अन्यतोऽत्प बिुशो व्यवशसत चाररत्रा त्यां वेश्यायाशमव गमनमत ु मवणणगन्यामत्प न धमगपीडां कररष्यतत पन ु भरुग रयम ्।।
अथि- आचायि स्वैररर्ी पराई स्त्री से सिंबध िं बनाने के औधचत्सय को बताते
की भी
ब ु त से लोगों द्वारा उनके चररत्र को प ले से
ैं-
ी खराब ककया जा चक ु ा ै इसीमलए अगर व
ो तब भी उसके साथ सिंभोग किया करना वेश्या के अमभगमन की तर
धमि के ववरुद्ध न ीिं
अच्छी जानत ोगा।
श्लोक (7)- अन्यपव ू ागवरुद्धा नात्र शगंस््त।।
अथि- व तर
स्त्री प ले
ी दस िं बनाती ू रे परू ु षों के साथ नाजायज सिंबध
ै इसमलए उससे सिंबध िं बनाने में ककसी
की ििंका न ीिं करनी चाह ए। श्लोक (8)- पतत वा मिान्तीमीश्चरम्मदशमत्रसंसष्ृ टशमयमवगह् ृ म प्रभत्सु वेन चरतत। सा मया संसष्ृ टा ्नेिादे नं व्यावतीतयष्यतत।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- यहद उस स्त्री का पनत नामी-धगरामी स्त्री से मेरा सिंबध िं
ो जाने पर व
मेरे मो
जस्तयों में आता
ै और मेरे दश्ु मन से उसका सिंबध िं
ै तो उस
में पडकर अपने पनत का मेरे दश्ु मन से सिंबध िं तड ु वा दे गी।
श्लोक (9)- त्वरसं वा मतय शक्तमपकतक ुग ामं च प्रकृततमापादतयष्यतत।।
अथि- इसका अथि य नक ु सान प ुिं चा र े
ै कक मेरे परु ाने दोस्त जो कक ककसी कारर् से मेरे दश्ु मन बन गए
ो तो व
द्वारा मझ ु े ककसी प्रकार की
ो और मझ ु े
स्त्री उससे मेरी दब ु ारा से दोस्ती करा दे गी और यहद दोस्त न भी बना पाई तो उसके ानन भी न ीिं
ोने दे गी।
श्लोक (10)- तया वा शमत्रीकृतेन शमत्रकायगमशमत्रप्रतीघातमन्यद्वा दष्ु प्रततपादकं कायग साधतयष्याशम।। अथि- अथाित उससे सिंबध िं बन जाने पर उसके द्वारा दोस्ती या दश्ु मनी के कामों को या ककसी भी मजु श्कल काम को मैं परू ा कर लग ूिं ा। श्लोक (11)- संसष्ृ टो वानया ित्सवा्याः पततम्मद्धाव्यं तदै श्चयगमेवमधधगशमष्याशम।। अथि- न ीिं तो उस स्त्री से मेरे सिंबध िं बन जाने पर उसके पनत को मारकर उसके द्वारा छीनी गई मेरी सम्पवि को मैं
ामसल कर लग िंू ा। श्लोक (12)- तनरत्सययं वा्या गमनमिागनब ु द्धम ्। अिं च तनःसारत्सवात्सक्षीणवत्त्ृ यप ु ायः। सोऽिमनेनोपायेन तद्धनमततमिदकृच्िादधधगशमष्याशम।।
अथि- धन के लालच में पराई स्त्री के साथ िारीररक सिंबध िं बनाना कोई बरु ी बात न ीिं मेरे पास कमाई का कोई साधन न ीिं कर लग िंू ा।
ै । इसमलए मैं इस उपाय से उस स्त्री के धन को ब ु त
ै तयोंकक मैं गरीब ूिं ,
ी आसानी से
ामसल
श्लोक (13)- ममगज्ञा वा मतय ढृढमशभकामा सा मामतनच्छन्तं दोषत्वख्यापनेन दत्ू षतयष्यतत।। अथि- या व करूिं तो व
मझ ु पर परू ी तर
से मोह त
ै , मेरे राजों को जानती
मेरी बरु ाईयों को सबको बताकर मझ ु बदनाम कर सकती
ै, अगर मैं उससे स ी तर
ै इसमलए मेरे मलए य
से बात न
ी स ी
ै कक मै उसके
साथ सिंबध िं बना ल।िंू श्लोक (14)- असद्धत ू ं वा दोषं श्रद्धेयं दष्ु पररिारं मतय क्षेप्सयतत येन में त्वनाशः ्यात ्।। अथि- या मझ ु से खर्ा तब तो मेरा सविनाि
ोकर व ी
मझ ु पर कोई ऐसा सिंगीन आरोप लगा दें कक मझ ु े उससे बचना मजु श्कल
ो जाएगा। इसमलए उसके साथ सिंबध िं बनाना
ी मेरे मलए स ी
ै।
श्लोक (15)- आयततमन्तं वा वश्यं पततं मतो त्वशभद्य द्त्वषतः संग्राितयष्यतत।।
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ी
ो जाए
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- या व
अपने प्रभाविाली पनत को मेरे णखलार् भडकाकर मेरे दश्ु मनों के साथ ममला दे गी। इसमलए
उसके साथ सिंबध िं बनाना
ी स ी
ै।
श्लोक (1 )- ्वयं वा तैः सि संसज् ृ येत। मदवरोधानां वा दत्ू षयाता पततर्या्तद्यािमत्प दारानेव दष ू यन्तप्रततकररष्याशम।।
अथि- या तो व
स्वयिं
ी मेरे दश्ु मनों के साथ ममल जाए या उसका पनत मेरी पत्सनी को य
चा े कक इसने मेरी पत्सनी के साथ गलत सिंबध िं बनाए इसके साथ सिंबध िं बनाना
ैं तो मैं भी इसकी पत्सनी के साथ ऐसा
सोचकर र्िंसाना
ी करूिंगा। इसमलए
ी उधचत ै ।
श्लोक (17)- यामन्यां कामतयष्ये सा्या वशगा। तामनेन संक्रमेणाधधगशमष्याशम।। अथि- या जजस दस ू री स्त्री को मैं चा ता ूिं व
उसके वि में
ै और इसकी वज
से मै उसे
ामसल कर लग ूिं ा।
श्लोक (18)- कन्यामलभ्यां वात्समाधीनामिगरूपवतीं मतय संक्रामतयष्यतत।। अथि- या कर्र जजस धनवान, खूबसरू त यव ु ती से मैं िादी करना चा ता ूिं व
मझ ु े बबना इसकी स ायता के
न ीिं ममल सकती।
श्लोक (19)- इतत सािशसक्यं न केवलं रागादे व। इतत परपररग्रिगमनकारणातन।। अथि- ककसी खास कारर् के बबना मसर्ि स्त्री के िरीर को पाने के मलए इतने ज्यादा खतरे उठाना बबल्कुल ठीक न ीिं
ै । य ािं पर पराई स्त्री के साथ सिंबध िं बनाने का अध्याय समाप्त
ोता ै ।
श्लोक (20)- एतैरेव कारणैमि ग ामात्रसंबद्धा राजसंबद् ं धा वा तत्रैकदे शचाररणी काधचदन्या वा कायगसप ं ाहदनी त्वधवा पञ्ञमीतत चारायणः।। अथि- आचायि चारायर् के अनस ु ार कन्या, पन ु भ,ुि वेश्या और पराई स्त्री के अलावा ववधवा पािंचवीिं नानयका
ै जो
राजा, मिंत्री और उनके घरवालों के सिंबध िं बना लें या दस ि अपने सारे कायों ू री कोई ऐसी ववधवा स्त्री ै जो सर्लतापव ू क को कर सके। श्लोक (21)- सैव प्रव्रस्जता षष्ठीतत सव ु णगनाभः।। अथि- आचायि सव ु र्िनाभ के मत ु ाबबक पररवाजजका ववधवा छठे प्रकार की नानयका
ोती
ै।
श्लोक (22)- गणणकाया दहु िता पररचाररका वानन्यपव ू ाग सप्तमीतत घोयकमख ु ः अथि- आचायि घोटकमख ु दासी को सातवें प्रकार की स्त्री बताते
ैं।
श्लोक (23)- उत्सक्रान्तबालभवा कुलयव ु ततरुपचारान्यत्सवादष्टमीतत गोनदीयः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- आचायि गोनदीय के मत ु ाबबक जो यव ु ती बचपन को पार करके जवानी में प ुिं चती मे नत करनी पडती
ै व
आठवें प्रकार की नानयका
ोती
ै और जजसे पाने में ब ु त
ै।
श्लोक (23)- कायागन्तराभावादे तासामत्प पव ू ाग्वेवोपलक्षणम,् त्माच्चत्त्र एव नातयका इतत वात्स्यायनः।। अथि- चारायर् से लेकर गोनदीय तक जजन आचायों नें 4 तर कन्या, पन ु भ,ूि वेश्या तथा पराई स्त्री के अन्तगित समाह त
की नानयकाओिं के बारे में बताया
ै उनके अलग न ीिं
ै व
सब
ै । इसमलए मसर्ि 4 प्रकार की नानयकाएिं
ै। आचायि वात्सस्यायन ने गोणर्कापत्र ु के हदए ु ए मत को स्वीकार करके बाकी दस ू रे आचायों को ब ु त
चतरु ाई से गलत साबबत कर हदया
ी
ै।
श्लोक (24)- शभन्नत्सवातत ृ ीया प्रकृततः पञ्ञमीत्सयेके।। अथि- आचायों के अनस ु ार परु ु ष तथा स्त्री से अलग तीसरे प्रकृनत अथाित (ककन्नर) पािंचवीिं नानयका
जाता
ै।
इस तीसरी प्रकृनत (ककन्नर) को पोटा, तलीव, नपस ुिं क, वषिधर, षण्व, उभय-व्यिंजन आहद के नामों से भी जाना
ै । वैसे नपस ुिं क और ह जडों में कार्ी र्कि मलिंग में परू ी उिेजना न
ोता ै ।
ोने और वीयि के पयािप्त मात्रा में न
करने में असमथि र ता
ै उसे नपस ुिं क क ा जाता
की गलनतयों के कारर्
ो जाते
ोने के कारर् जो परु ु ष स्त्री के साथ सिंभोग
ै । कुछ परु ु ष जन्म से
ैं। नपस ुिं क को तलीव भी क ा जाता
ी नपस ुिं क
ोते ै और कुछ अपनी जवानी
ै।
श्लोक (25)- एक एव तु सावगलौककको नायकः। प्रच्छन्न्तु द्त्वतीयः। त्वशेषालाभात ्। उतमाधममध्यमतां तु गण ु ागण ु तो त्वद्यात ्। तां्तभ ु योरत्प गण ु ागण ु ान्वैशशकै वक्ष्यामः।। अथि- इसमें नानयकाओिं के लक्षर् बताने के बाद परु ु ष के लक्षर् बताए गए
ै-
स्त्री के जीवन में सबसे बढ़कर जो परु ु ष
ी
परु ु ष उसे क ा जाता ज्यादा या कम
ोता
ै व
उसके पनत के रूप में
ोता
ै । इसके अलावा दस ू रा
ै जो मसर्ि िारीररक सख िं बनाता ै । इनमें से गर् ु के मलए उसके साथ सिंबध ु तथा दोषों के
ोने के अनस ु ार सबसे अच्छे , मध्यम और नीच परु ु ष क लाते
ैं।
श्लोक (2 )- अगम्या्तवेवत ै ाः- कुष्ठन्यन्ु मता पततता शभन्नरि्या प्रकाशप्राधिगनी गतप्राययौवगनाततश्वेताततकृष्णा दग ु न्ग धा संबस्न्धनी सखी प्रव्रस्जता संबस्ं न्धसणखश्रोत्रत्रयराजदाराश्च।।
अथि- इसके अिंतगित 13 तर में बताया गया में लगती
ै य
जस्त्रयािं
की अगम्या जस्त्रयों (जजन जस्त्रयों के साथ सिंभोग न ीिं ककया जा सकता) के बारे
ै - पागल, कोहढ़न, बेिमि, ज्यादा उम्र की, िरीर से बदबू आने वाली, ककसी तर
के ररश्ते
ो, ज्यादा सर्ेद रिं ग की या ज्यादा काली रिं ग की, बचपन की स े ली, जो ककसी राज को न छुपा पाती
सन्यामसनी।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ो,
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (27)- ृष्टपञ्ञपरु ु षा नागम्या काधचद्तीतत बाभ्रवीयाः।। अथि- बाभ्रवीय आचायों के मत िं बनाती ु ाबबक अगर कोई स्त्री 5 परू ु षों के साथ सिंबध न ीिं
ै तो व
अगम्या स्त्री
ै। श्लोक (28)- संबधं धसणखश्रोत्रत्रयराजदारवजगशमतत गोणणकापत्र ु ः।।
अथि- बाभ्रवीय आचायि के मत में आचायि गोणर्कापत्र ु ने अपना एक मत और जोडकर उसका समथिन करते परू िं बनाने के बाद भी ररश्तेदार, ममत्र, िाह्मर् और राजा की स्त्री अगम्य ु षों के साथ सिंबध आचायि वात्सस्यायन ने जजस तर मानमसक दृजष्ट से सबसे ज्यादा ननवषद्ध
की 13 जस्त्रयों के नाम बताए
ैं व
ैं- 5
ै।
धाममिक, सामाजजक, िारीररक और
ै । िरीर ववज्ञान तथा विंिानि ु म-ववज्ञान से अगर दे खा जाए तो पागल,
कोहढ़न, िरीर से बदबू आने वाली, ज्यादा काली यव ु ती या ज्यादा गोरी लडकी से सिंभोग करना भयिंकर तथा विंि परिं परागत ववकारों को जानबझ ू कर बल ु ावा दे ना िरीर को नक ु सान प ुिंचाना
ी
ोता
ै । ज्यादा उम्र की स्त्री के साथ सिंभोग करना हदल और हदमाग तथा
ै।
इसके साथ बडी कोमिि से रक्षा करने लायक, वीयि का नाि करने के समान
ी ै । अगर धाममिक दृजष्ट से
दे खा जाए तो अपने कुल या गौत्र की स्त्री, दोस्त की पत्सनी, राजा की पत्सनी तथा सन्यामसनी के साथ सिंभोग करना जानवर पिंती समझी जाती ै अथाित जो परु ु ष ऐसा करता
ै व
मनष्ु य न क लाकर जानवर क लाने के लायक
ी
ै। श्लोक (29)- सिपांसक्र ं धं समानशीलव्यसनं सिाध्यातयनं यश्चा्य ममागणण रि्यातन य त्वद्यात,् य्य ु ीडडतमप ु कारसंबद् चायं त्वद्याद्वा धात्रपत्सयं सिसंवद् ृ ध शमत्रम ्।। अथि- इसमें य साथ परू े हदन खेलते तर
बताया गया
ै कक कैसे लोगों को अपना वप्रय ममत्र बनाना चाह ए जैसे बचपन में जजनके
ों, जजस पर ककसी तर
ो, जजससे ककसी तर
का ए सान ककया
के राज को ना छुपाया गया
ो, स्वभाव या गर् ु आहद में जो बबल्कुल अपनी
ो और जो एक
ी मािं की गोद में खेलकर पले-बढ़े
ी
ों।
श्लोक (30)- त्पतप ै ामिमत्वसंवादकमद्दष्टवैकृतं वश्यं ध्रव ु मलोभशीलमपररिायगममन्त्रत्व्त्रावीतत शमत्रन्संपत ्।। ृ त अथि- जजससे खानदानी प्यार-दल ु ार चला र ा लालची न
ो, जजन लोगों से लडाई-झगडा न
ोता
ो, जो स्वभाव से चिंचल न
ो,
ो, ककसी के ब कावे में न आए और ककसी के द्वारा बताई गई बातों को दस ू रों के सामने न खोले। इस
प्रकार के लोगों के साथ दोस्ती रखनी चाह ए। श्लोक (31)- राजकनात्पतमालाकारगास्न्धकसौररकशभक्षुकगोपाल कताम्बशू लकसौवणणगकपीठमदग त्वटत्वदष ू कादयो शमत्राणण। तद्योत्षस्न्मत्राश्च नागरकाः ्यरु रतत वात्स्यायनः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इनके अलावा कुछ कारोबार से सिंबध िं रखने वाले लोग भी नायक के दोस्तों में िाममल
ो सकते
ैं जैसे
धोबी, नाई, माली, मभखारी, दध ू वाला, तमोली, सन ु ार आहद। आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक धोबी, नाई, माली आहद की पजत्सनयों को भी दोस्त बनाया जा सकता
ै तयोंकक य
तयोंकक इनका सिंबध िं म ल में र ने वाली राननयों से
परू ु षों से ज्यादा नायक की ज्यादा मदद कर सकती ै । ोता
ै और य
ककसी भी समय उनके म ल में आ जा सकती
ै। श्लोक (32)- यादभ ु योः साधारणमभ ु यत्रोदारं त्वशेषतो नातयकायाः सत्ु व्त्रब्धं तत्र दत ू कमग।। अथि- जो लोग स्त्री और परु ु ष दोनों के मलए ववश्वास पात्र
ो व
ी मन में अच्छी भावना रखते
दत ू कायि के मलए बबल्कुल ठीक र ता
ो खास करके स्त्री का ज्यादा
ै।
श्लोक (33)- पटुता धष्टायगशमधगंताकारज्ञता प्रतारणकालज्ञता त्वषह्यबद् ु धधत्सवं लध्वी प्रततपत्तः सोपाया चेतत दत ू गाणाः।। अथि- बातचीत में चतरु ाई, ढीटपना, इिारों को समझना, नानयका को ककस समय ब काया जा सकता काल ज्ञान, सिंकट अथवा िक म सस ू
ोने पर जल्द
ी र्ैसला लेने वाली आहद दत ू के गर् ु ों में िम ु ार
ै , इसका
ोते
।ैं
श्लोक (34)- भवतत चात्र श्लोकः- भवतत चात्र श्लोकः- आत्समवास्न्मत्रवान्यक् ु तो भावज्ञो दे शकालत्वत ्। अलभ्यामप्ययत्सनेन स््त्रयं संसाधयेन्नरः।। अथि- इस ववषय के बारें में एक परु ाना श्लोक
ै-
जो परु ु ष आत्समननभिर तथा दोस्त बनाने वाले गर् ु ों से सिंपन्न मन के भावों को परखने वाला आसानी से पा लेता
ोता
ै , जो वि ु ृ में ननपर्
ै , स्थान और समय के म त्सव को समझता
ै।
इस अध्याय का नाम दत ू ीकमि वविेष ककया गया
ोता
ोता
ै, जस्त्रयों के
ै, व ी अलभ्य स्त्री को भी ब ु त
ै लेककन दत ू ीकमि से ज्यादा इसमे दत ू कमि का
ै । नानयका को नायक से ममलाने में दत ू ी जजतनी ज्यादा मदद कर सकती
ी ज्यादा इस्तेमाल
ै उतनी दत ू न ीिं कर सकता।
आचायि वात्सस्यायन ने वैसे तो दस ू रे काम-िास्त्र के आचायों की राय को स ी बताते ु ए दत ू कमि का कायि करने वाले परू ु षों की पजत्सनयों को भी दत ू ीकायि में स योग करने की राय दी पडती कक जजतने प्रकार के दत ू बताए गए
सारी बातें समीचीन इसमलए न ीिं जान
ैं उन सभी की पजत्सनयािं दत ू ीकायि के मलए स ी न ीिं र ती। परु ाने इनत ास
में स्त्री और परु ु ष के बारे में प्रेम के बारे में पढ़ने पर ज्ञात कायों में जस्त्रयािं
ै, लेककन व
ी ज्यादा सर्ल साबबत ु ई
इस अध्याय को जो नाम हदया गया
ोता
ै कक स्त्री और परु ु ष के बीज तलेि पैदा कराने वाले
ै परु ु ष दत ू न ीिं। ै उसके अनस ु ार इस ववषय का वववेचन न के बराबर ु आ
ववषयािंतर का समावेि समीक्षक हदमाग में उलझने पैदा करता
ै।
ै । इस अध्याय में दत ू ीकायि को छुआ तक न ीिं गया
बजल्क इसके मक ु ाबले दस ू रे ग्रिंथों में इस ववषय के बारें में परू ी जानकारी ममलती ै । आचायि वात्सस्यायन ने एक परु ाने श्लोक को उदा रर् के रूप में बताते ु ए क ा ै कक जजस परु ु ष के पास
आत्समबल और ब ु त सारे भरोसेमद िं ममत्र
ोते
ैं और व
नागरकववृ ि में ननपर् ु तथा मन के भावों को समझने वाला
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | ोता
ै। व
अनायास, अलभ्य जस्त्रयों को
ामसल कर सकता
ै।
इस अध्याय के अिंतगित नायक परु ु ष के जो गर् ु और वविेषताएिं बताई गई ामसल करने में
ी कामयाबी न ीिं हदलाती बजल्क जीवन के
ै व
मसर्ि अलम्भ जस्त्रयों को
र क्षेत्र और काम-काज में परू ी तर
से कामयाब बनाती
ै। जो परु ु ष कायर न ीिं सकता
ोता उसी को आत्समवान क
ै । मन के भावों को समझने वाला व ी व्यजतत
मनौवैज्ञाननक नजररया
ो और व्यव ारकुिल व्यजतत
इस श्लोक से य ी पता चलता
सकते
ो सकता
ैं। जजसका हदल सार्
ोता
ै व ी सच्चा ममत्र बन
ै जजसके अिंदर समीक्षात्समक हदमाग तथा
ी दे िकालववत
ो सकता ै ।
ै कक काम-िास्त्र का ज्ञाता परु ु ष नछछोरा, लर्िंगा और मनचला न ीिं
बजल्क कुलीन, समझदार, लोकवप्रय, स्वामभमानी, आत्समननष्ठ और कलाकुिल
ोता
ोता
ै।
श्लोक- इतत श्री वात्ससयायनीये कामसत्र ू े साधारणे प्रिमेऽधधकलणे पंचमोऽध्यायः प्रिम अधधकरण (साधारण) समाप्त।
भाग 2 साम्प्रयोधगक अध्याय 1 रताववं्िापन प्रकरण (प्रमाणकालभावेभ्यो रतअव्िापनम ् ) श्लोक-1. शशो वष ु मग ृ ोऽश्वइतत शलंगतो नायकत्वशेषः। नातयका पन ृ ी वडवा िस््तनी चेतत। अथि- छोटे , बडे या मध्यम आकार के मलिंग के आधार पर परु ु ष को िि (खरगोि), बैल और घोडे की सिंज्ञा दी गई स्त्री की योनन कम ग री, ज्यादा ग री या साधारर् ग री
ोने के आधार पर उसे मग ृ ी (ह रनी), घोडी तथा
सिंज्ञा दी जाती
ै।
श्लोक-2. तत्र सद्दशसंप्रयोगे समपतातन त्रीणण।। अथि- अपने जोडे के स्त्री और परु ु ष के सिंभोग करने को समरत क ते
ैं। य
3 प्रकार का ोता ै-
िि (खरगोि) परु ु ष का मग ृ ी (ह रनी) स्त्री के साथ। वष ु ष का बडवा (घोडी) स्त्री के साथ। ृ (बैल) परु
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ै।
धथनी की
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अश्व (घोडा) परु ु ष का
जस्तनी ( धथनी) स्त्री के साथ।
श्लोक-3. त्वपयगयेण त्वषमाणण षट्। त्वषमेष्वत्प परु ु षाधधक्यं चेदनन्तरसंप्रयोगे द्वे उच्चरते। व्यवहितमेकमच् ु चरतम ्। त्वपयगये पन ु द्गवे नीचरते। व्यवहितमेकं नीचकतररतं च। तेषु समातन श्रेष्ठातन। तरशब्दाधगंते द्वे कतनष्ठे । शेषाणण मध्यमातन।। अथि- सिंभोग किया करने के मलए एक जोडे के सदस्य का दस ू रे जोडे के सदस्य के साथ बदलकर सिंभोग करना जैसे िि (खरगोि) परु ु ष का बडवा (घोडी) स्त्री या
जस्तनी स्त्री के साथ सिंभोग करना, वष ु ष का मग ृ (बैल) परु ृ ी (ह रनी)
स्त्री के साथ सिंभोग करना और अश्व (घोडा) परु ु ष का मग ृ ी (ह रनी) स्त्री या बडवा (घोडी) स्त्री के साथ सिंभोग करना। य
6 तर के ोते ैं। इस तर की सिंभोग कियाओिं में भी ज्यादा बडे मलिंग वाले परु ु ष का छोटी योनन वाली स्त्री के
साथ तथा मध्यम आकार के मलिंग वाले परु ु ष का साधारर् योनन वाली स्त्री के साथ सिंभोग करना उच्चरत क लाता ै । बडे मलिंग वाले परु ु ष का छोटी योनन वाली स्त्री के साथ सिंभोग करना उच्चरत योनन वाली
ोता
ै । इसके ववपरीत ज्यादा ग री
जस्तनी स्त्री के साथ मध्यम आकार के मलिंग वाले वष ु ष के साथ, छोटे मलिंग वाले िि परु ु ष का ृ परु
ज्यादा साधारर् योनन वाली स्त्री के साथ नीचरत तथा ज्यादा ग री योनन वाली परु ु ष का सिंभोग करना नीचरत माना जाता
ै । इन सब तर
जस्तनी स्त्री से छोटे मलिंग वाले िि
की सिंभोग कियाओिं में अपने बराबर के जोडे के परु ु ष के
साथ सिंभोग करना चाह ए। उच्चतर और नीचतररत को सबसे नीची सिंभोग किया माना जाता
ै।
श्लोक-4. साम्येऽष्यच् ु चाङ नीचाङाञ्ञयायः। इतत प्रमाणतो नवरतातन।।
अथि- मध्यम सिंभोग में भी अश्व परु ु ष का बडवा स्त्री के साथ, वष ु ष का मग ृ परु ृ ी स्त्री के साथ सिंभोग करना कुछ तक ठीक
ै । लेककन
द
जस्तनी स्त्री से वष ु ष का या बडवा स्त्री का िि परु ु ष से सिंभोग करना ककसी भी मायने में ृ परु स ी न ीिं क ा जा सकता।
अगर मसर्ि सिंभोग करने में ममलने वाले सख ु को य
तीन कियाएिं सिंभोग में प्रमख ु मानी जाती
ी सामने रखकर ववचार करते
ैं तो सीत्सकार, ववलास और उपसगि
ैं। लेककन सिंभोग किया का असली आनिंद स्त्री और परु ु ष के स्वभाव,
िरीर की बनावट और जननेजन्ियों की बनावट पर ज्यादा ननभिर करता के अनस ु ार 3 तर
ै । आचायि वात्सस्यायन ने जननेजन्ियों के नाप
के परु ु ष बताए
ैं-
िि (खरगोि)- ऐसे परु ु षों का मलिंग लगभग 6 इिंच का वष ृ (बैल)- इस तर
के परु ु षों का मलिंग 8 इिंच का
अश्व (घोडा)- इनका मलिंग लगभग 12 इिंच का
ोता ोता
ोता
ै। ै।
ै।
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ऐसी
ी जस्त्रयों में भी
ोता ै -
मग ृ ी (ह रनी) स्त्री। बडवा (घोडी) स्त्री। जस्तनी ( धथनी) स्त्री।
परु ु ष के मलिंग का मापन लिंबाई तथा मोटाई के आधार पर ककया जाता तथा चौडाई से
ोता
ै । जजन स्त्री और परु ु षों के मलिंग और योनन का माप एक
सिंभोग करने की किया को सम क ा जाता अदल-बदलकर सिंभोग करना मख् ु यताः 6 तर बडवा स्त्री के साथ और अश्व परु ु ष का किया
ोती
ै और स्त्री की योनन का मापन उसकी ग राई
ै । िि परु ु ष का बडवा तथा
ै । सम सिंभोग मख् ु यताः 3 तर का
का
ी आकार में ोता
ोता
ै उनके आपस में
ै और ववषम सिंभोग अथाित
ोता ै । सम अथाित िि परु ु ष का मग ु ष का ृ ी स्त्री के साथ, वष ृ परु
जस्तनी स्त्री के साथ सिंभोग करना। इस तर जस्तनी स्त्री के साथ, वष ु ष का मग ृ परु ृ ी या
परु ु ष का बडवा स्त्री के साथ सिंभोग करना। इस तर
से य
से य
3 तर की सिंभोग
जस्तनी स्त्री के साथ और अश्व
6 तर की सिंभोग किया ोती ै।
श्लोक-5. य्य संप्रयोगकाले प्रीततरुदासीना वीयगमल्पं क्षतातन च न सिते न मन्दवेगः।।
अथि- इसके अिंतगित कामजन्य मानमसक आवेि के अनस ु ार परु ु ष और स्त्री के सिंभोग करने के भेद बताए जा र े सिंभोग किया के समय जजस व्यजतत की काम-उिेजना ब ु त कम
ोती
ै, वीयि कम ननकलता
ै और जो स्त्री के द्वारा
अपने िरीर पर नखक्षत (नाखन ू ों को गढ़ाना) और दन्तक्षत (दािंतों को गढ़ाना) आहद प्र ारों को स ने में असमथि तो व
ैं-
ो
मन्दवेग क लाता ै ।
श्लोक-6. तद्त्वपयगयौ मध्यमचण्डवेगौ भवतः। तिा नातयकात्प।।
अथि- इसके ववपरीत मध्यम और तेज सिंभोग करने की इच्छा रखने वाले परू ु षों को चण्डवेग क ा जाता सिंभोग की इच्छा के मत ु ाबबक जस्त्रयािं भी 3 प्रकार की
ोती
ै । इसी तर
ैं- मिंदवेग, मध्यम वेग और चिंडवेग।
श्लोक-7. तत्रात्प प्रमाणवदे व नवरातातन।।
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अथि- मलिंग प्रमार् के प्रकार के अनरू ु प बताए जा र े 9 प्रकार के रतों की तर की सिंभोग किया
ोती
य ािं भी 9 प्रकार के स्त्री और परु ु ष
ै।
श्लोक-8. तद्वत्सकालतोऽत्प शीघ्रमध्यधचरकाला नायकाः।।
अथि- मलिंग की लिंबाई, मोटाई और सिंभोग करने की इच्छा की तर ा़ धचरकाल 3 भेद
समय से भी स्त्री और परु ु ष के िीघ्र, मध्य और
ोते
ैं।
श्लोक-9. तत्र स््त्रयां त्ववादः।। अथि- स्त्री के बारे में य ािं पर आचायों में मतभेद
ैं।
श्लोक-10. न ्त्री-परु ु षवदे व भावमधधगच्छतत।। अथि- परु ु ष की तर
ी स्त्री को सिंभोग किया में सख ु न ीिं ममलता
ै।
श्लोक-11. सातत्सयात्त्व्याः परु ु षेणा कण्डूततरपनवद्यते।। अथि- कर्र स्त्री ककस कारर् से सिंभोग किया में लीन परु ु ष के साथ सिंघषिर् (सिंभोग करने से)
ोती
ोने से स्त्री की खज ु ली दरू
ै। ो जाती ै ।
श्लोक-12. सा पन ु राशभमातनकेन सख ु ेन संसष्ृ टा रसान्तरं जनयतत तस््मन ् सख ु बद् ु धधर्याः।। अथि- यहद स्त्री को केवल अपनी खज ु ली
ी दरू करनी ै तो उसके मलए उसके पास दस ू रे उपाय भी
चम् ु बन, आमलिंगन और प्र ार आहद उिेजना पैदा करने वाली कियाओिं की वज चरम सख ु की प्राजप्त
ैं। स्त्री को तो
से परु ु ष के साथ सिंभोग किया करने में
ोती ै ।
श्लोक-13. परु ु षप्रीतेश्चानशभज्ञत्सवात्सकिं ते सख ु शमतत प्रष्टमशक्यत्सवात।। अथि- स्त्री और परु ु ष को सिंभोग किया में जो आनिंद प्राप्त से ककसी को न ीिं
ो सकता और न
ोता
ै उसका लाभ उनके अपने मसवा आपस में दोनों में
ी इस बारे में उनसे पछ ू कर
ी पता लगाया जा सकता
ै तयोंकक मानमसक
आनिंद को िब्दों के द्वारा न ीिं बताया जा सकता। श्लोक-14. किमेतदप ु लम्यत इतत चेत्सपरु ु षो हि रततमधधगम्या ्वेच्छया त्वरमतत न स््त्रयमपेक्षते, न त्सवेवं ्त्रीत्सयौद्दालककः।। अथि- इस वज
से इस बात को कैसे मान मलया जाए कक स्त्री को परु ु ष की तर
सिंभोग का चरम सख ु प्राप्त न ीिं
ोता।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | इस बारे में आचायि औद्दामलक अपना मत दे ते ु ए क ते की उिेजना समाप्त
ो जाती
ैं कक एक बार सिंभोग किया में स्खमलत
ोने के बाद परु ु ष
ै और उसे स्त्री की जरूरत न ीिं र ती लेककन स्त्री की प्रववृ ि ऐसी न ीिं
ै।
श्लोक-15. तत्रैत्यात ्। धचरवेगे, नायके स््त्रयोऽनरु ज्यन्ते, शीघ्रवेग्य भावमनासाद्यावसानेऽभ्यसतू यन्यो भवस्न्त। तत्ससवग भावप्राप्तेरप्राप्तेश्च लक्षणम ्।। अथि- य ािं एक बात और भी जानने वाली य जस्त्रयािं उससे ब ु त लगाव रखती
जस्त्रयािं उनकी ननन्दा करती
ै कक जो परु ु ष सिंभोग किया को ब ु त तेजी और दे र तक करता
ै । लेककन जो परु ु ष सिंभोग किया के समय कुछ
ै । इसमलए स्त्री अगर परु ु ष को कुछ ज्यादा
ी दे र में स्खमलत
ी प्यार कर र ी
चाह ए कक स्त्री को सिंभोग किया का परू ा सख ु ममल र ा
ो जाता
ै ै
ै तो उसे समझ जाना
ै।
श्लोक-16. तञ्ञ न। कण्डूततप्रतीकारोऽत्प हि दीघगकालं त्प्रय इतत। एतदप ु पद्यत एव। त्मात्ससंहदग्धत्सवादलक्षणागमतत।। अथि- लेककन य न ीिं
स ी न ीिं माना जा सकता तयोंकक स्त्री के द्वारा परु ु ष को ज्यादा प्यार आहद करने से य
ो सकता कक उसकी काम-उिेजना िािंत
साबबत
ो गई ै । वैसे भी अगर परु ु ष स्त्री के साथ ब ु त दे र तक सिंभोग करता
ै तो इससे कार्ी दे र तक स्त्री की सिंभोग की खुजली तो िािंत र े गी तो व र े गी
परु ु ष से प्यार आहद करने में मिरूर्
ी।
श्लोक-17. संयोगे योत्षतः पस ु ां कण्डूततरपनद् ु यते। तञ्ञाशभमानसंसष्ृ ट सख ु शमत्सयशभधीयते।। अथि- इसमलए इस बात को मसद्ध करने के मलए आचायि ने एक श्लोक का उदा रर् हदया ै । परु ु षों के साथ सिंभोग करने से जस्त्रयों की खज ु ली दरू
ो जाती
ै और आमलिंगन, चम् ु बन आहद सिंभोग की स ायक कियाएिं ममलकर सिंभोग सख ु क लाती
ैं।
श्लोक-18. सातत्सयाद्यव ु ततराम्भात्सप्रभतृ त भावमधधगच्छतत। परु ु षः पन ु रन्त एव। एतद ु प ु पन्नतरम ्। नह्यसत्सयां भावप्राप्तौ गभगसम्भव इतत वाभ्रवीयाः।। अथि- बभ्रु आचायि के मिष्यों के अनस ु ार परु ु ष जजस समय स्खमलत लगता स्खमलत र ती
ोने पर समाप्त
ै। य
ो जाता
बात ब ु त अच्छी तर
ै उसे उसी समय आनिंद आता
ै । लेककन स्त्री को सिंभोग की िरू ु आत से से साबबत
ो चक ु ी
ी बराबर आनिंद की अनभ ु नु त
ै कक सिंभोग करने की इच्छा न
गभि जस्थर न ीिं
ै और ोती
ो तो कभी भी स्त्री को
ो सकता ै ।
श्लोक-19. अत्रात्प तावेवाशङापररिारौ भय ू ः।। अथि- बाभ्रव्य आचायों के हदए गए मत में भी उसी तर क ी जा चक ु ी
ै । उन समस्याओिं का
की ििंकाएिं पैदा ल भी प ले की
ोती
ै जो आचायि औद्दामलक के मत में
ी तर
करना चाह ए।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-20. तत्रैतत्स्यात ् सातत्सयेन रसप्राप्तावारम्भकाले मध्यरिधचतता नाततसहिष्णत ु ा च। ततः क्रमेणाधधको रागयोगः शरीरे तनरपक्षेत्सवम ् अन्ते च त्वरामाभीप्सेत्सयेतदप ु पन्नशमतत।।
अथि- य ािं पर इस बात पर सवाल उठ सकता ककस वज र ती
ै। व
मना करती
ै कक अगर स्त्री को लगातार आनिंद की अनभ ु नू त ु आ करती
से सिंभोग की िरु ु आत में परु ु ष ब ु त ज्यादा उिेजजत
ोकर बेचैन
ो जाता
ै तो
ै और स्त्री िािंत सी लेटी
परु ु ष के द्वारा अपने िरीर पर नाखूनों को गढ़ाना, दािंतों से काटना और स्तनों को दबाना आहद के मलए ै और मसर्ि य ी चा ती कक य
क ना गलत
ै कक परु ु ष उसके साथ सिंभोग करता र े । इस बात से एक चीज पता चलती ै कक स्त्री को आहद से अन्त तक आनिंद की अनभ ु नू त
ै
ोती ै ।
श्लोक-21. क्या वा भ्रान्तावेव वतगमान्य प्रारम्भे मन्दवेगता तत्सपश्च क्रमेण परू णं वेग्येत्सयप ु पद्यते। धातक्ष ु याच्च त्वरामाभीप्सेतत। त्मादनाक्षेपः।। अथि- स्त्री की सिंभोग करने की इच्छा िरू ु में कम और कर्र धीरे -धीरे तेज के बाद िािंत
ो जाती
ै । इस प्रकार क ा जाता
ोती जाती
ै और परु ु ष के स्खमलत
ोने
ै कक सिंभोग किया के िरू ु से लेकर वीयि-स्खलन तक स्त्री की सिंभोग
करने की इच्छा लगातार बनी र ती
ै।
श्लोक-22. सरु तान्ते सख ु ं पस ुं ां ्त्रीणां तु सततं सख ु म ्। धातक्ष ु यतनशमता च त्वरामेच्छोपजायते।।
अथि- सिंभोग किया के अिंत में परु ु ष के स्खमलत किया की िरू ु आत से
ी सख ु म सस ू
ोने पर
ोने लगता
ी परु ु ष को चरम सख ु ममलता
ै और स्खलन
ै लेककन जस्त्रयों को इस
ोने के बाद रुक जाने की इच्छा
ोती
ै।
श्लोक-23. त्मात्सपरु ु षवदे व योत्षतोऽत्प रसव्यस्क्तद्रष्टव्या।। अथि- आणखर में वात्सस्यायन जी का क ना इससे य ी बात पता चलता ै कक परु ु षों की
ी तर
ै कक-
जस्त्रयों को भी सिंभोग किया के अिंत में चरम सख ु की प्राजप्त ोती
ै।
श्लोक-24. कि हि समानायामेवाकृतावेकािगमशभप्रपन्नयोः कायगवल ै क्षण्यं ्यात ्।। अथि- एक
ी जानत और एक
ी मकसद में लगे ु ए स्त्री और परु ु ष का सख ु एक-दस ू रे से अलग कैसे श्लोक-25. उपायवैलक्षण्यादशभमानवैलक्षण्याच्च।।
अथि- या जस्थनत तथा अनभ ु नू त में अिंतर पडने पर आनिंद में अिंतर आ सकता
ै।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ो सकता
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-26.. किमप ु ायवैलक्षण्यं तु सगागत ्। कताग हि परु ु षोऽधधकरणं यव ु ततः। अन्यिा हि कताग कक्रयां प्रततपद्यतेऽन्यिा चाधारः। त्माच्चोपायवैलक्षण्यात्ससगागदशभमानवैलक्षण्यमत्प भत्वत। अशभयोक्तािशमतत परु ु षोऽनरु ज्यते। अशभयक् ु तािमनेनेतत यव ु ाततररतत वात्स्यायनः।।
अथि- आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक सिंभोग किया के दौरान ममलने वाला भेद ककस प्रकार तो जन्म से
ी
ोता
ै। य
बात तो सभी जानते ै कक परु ु ष करने वाला
ोता
ो सकता
ै । अवस्था भेद
ै और स्त्री कराने वाली
ोती
ै।
परु ु ष की किया और स्त्री की किया अलग-अलग
ोती ै जैसे- सिंभोग किया के समय परु ु ष चरम सख ु के दौरान य
सोचता
सोचती
ै कक मैं सिंभोग कर र ा ूिं और स्त्री य
तथा अनभ ु नू त के अलग
ोने से मसर्ि इतना अिंतर
ै कक मैं परु ु ष से सिंभोग करा र ी ूिं । इस प्रकार अवस्था
ोता
ै लेककन सिंभोग में कोई अिंतर न ीिं
ोता
ै।
श्लोक-27. तत्रैत्यादप ै क्षण्यमत्प क्मान्न ्याहदतत। तच्च न। िे तम ु ायवैलक्षण्यवदे व हि कायगवल ु दप ु ायवैलक्षण्यम ्। तत्र कत्रागधारयोशभगन्नलक्षणत्सवादिेतम ै क्षण्यमन्याय्यं ्यात ्। आकृतेरभेदाहदतत।। ु त्सकायगवल अथि- अब दब ु ारा य
आक्षेप पेि ककया जा र ा
ममलने वाले सिंभोग के समय में अिंतर तयों न ीिं और परु ु ष के अिंगों में भेद
ै कक जब स्त्री और परु ु ष की जस्थनतयों में भेद ोगा। आक्षेप का जवाब य
ोगा तो उनकी जस्थनत में तो भेद
सिंभोग किया के र्ल और चरमसख ु में अिंतर सिंभव न ीिं
ोगा
ो सकता
ै कक ऐसा न ीिं
ी। लेककन बबना कारर्
ै तो कर्र उनको
ो सकता। अगर स्त्री ी स्त्री और परु ु ष के
ै तयोंकक स्त्री और परु ु ष एक
ी जानत के न ीिं
ैं।
श्लोक-28. तत्रैत्यात ्। संित्सय कारकैरे कोऽिोऽशभतनवगत्सयगत।े पि ु ररमौ तदयक् ु तशमतत। ृ क्पि ृ क््वािगसाधकौ पन अथि- अब सवाल य करते
ैं तो एक
पैदा
ोता
ी काम परू ा
तब य
ै कक जब अलग-अलग यानी कक करने वाला और कराने वाला ममलकर कोई काम ोता
ै और जब स्त्री और परु ु ष ममलकर एक
ी किया अथाित सिंभोग किया करते
क ना कक उन् ें इसमें अलग-अलग प्रकार का चरम सख ु प्राप्त
ोता
ै, स ी न ीिं
ैं
ै।
श्लोक-29. तच्च न। यग ु पदनेकािगशसद्धधरत्प द्दश्यते। यिा मेषयोरशभघाते कत्पत्सियोभ़ेदे मल्लयोयद् ुग ध इतत। न तत्र कारकभेद इतत चेहदिात्प न व्तभ ु ेद इतत। उपायवैलक्षण्यं तु सगागहदतत तदशभहितं परु ्यात ्। तेनोभयोरत्प सृशी सख ु प्रततपत्तररतत।। अथि- ऐसा बबल्कुल स ी न ीिं
ै तयोंकक वैसे तो एक साथ कई सारे कामों को मसद्ध
ोते दे खा गया
की लडाई में , 2 पके ु ए र्लों को एकसाथ तोडने में और प लवानों की कुश्ती में एक
जाए कक मेढ़ों, र्लों और प लवानों में स्त्री और परु ु षों की तर अिंतर न ीिं ोता
ै तयोंकक दोनों
ै । इसमलए य
ी मनष्ु य
बात साबबत
ोती
ै और य
प ले
मलिंग का अिंतर न ीिं
ी बताया जा चक ु ा
ी र्ल ममलता
ै । यहद क ा
ै तो स्त्री और परु ु ष में भी वस्तु
ै कक मलिंग में अिंतर तो स्वाभाववक
ै कक सिंभोग किया के समय स्त्री और परु ु ष दोनों को चरम सख ु ममलता
ै जैसे 2 मेढ़ों
ी एक
ी प्रकार का
ै।
श्लोक-30. जातेरभेदाद्दे म्पत्सयोः सृशं सख ु शमष्यते। त्मातिोपचयाग ्त्री यिाग्रे प्राप्नय ु ाद्रततम ्।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इसके अिंतगित म वषि वात्सस्यायन मनु न ने सिंभोग में ममलने वाले चरम सख ु को प्राप्त करने की पद्धनत बताई गई एक
ी जानत के
ै।
ोने के कारर् स्त्री और परु ु ष को सिंभोग में बराबर सख ु ममलता ै इसमलए सिंभोग के समय में
चुिंबन, आमलिंगन और स्तनों को दबाना आहद बा रीय सिंभोग द्वारा स्त्री को इस तर से प ले स्त्री को चरम सख ु प्राप्त
से िववत करना चाह ए कक परु ु ष
ो जाए। कर्र अपनी सिंभोग करने की इच्छा को परू ी करने के मलए तेज गनत से सिंभोग करना चाह ए।
श्लोक-31. सद्दशत्सव्य शसद्धत्सवात,् कालयोगीन्यात्प भावतोऽत्प कालतः प्रमाणवदे व नव रतातन।। अथि- ननष्कषि में सिंभोग के 9 प्रकार बताए गए परु ु ष और स्त्री में बराबरी साबबत
ैं-
ोने पर समय, भाव तथा प्रमार् के अनस ु ार स्त्री और परु ु षों के 9 तर ोते
के सिंभोग
ैं।
श्लोक-32. रसो रततः प्रीततभागवो रागो वेगः समास्प्तररतत रततपयागयः। संप्रयोगो रतं रिः शयनं मोिनं सरु तपयागया।। अथि- इसके अिंतगित सिंभोग िब्दों के पयाियवाची िब्दों की पररगर्ना करते समाजप्त। य
िब्द सिंभोग में प्रयत ु त
ोते
ैं- रस-रनत, प्रीनत, भाव, राग, वेग और
ैं और सम्प्रयोग, रत, र ः (अकेले में सोना), ियन मो न य सिंभोग में इस्तेमाल
ोते
िब्द सरु त
ैं।
श्लोक-33. प्रमाणकालभावजानां संप्रयोगाणामेकैक्य नवत्वद्यत्सवातेषां यततकरे सरु तसंख्या न शक्यते कतम ुग ्। अततबिुत्सवात ्।। अथि- रत (सिंभोग) के मख् ु य प्रकारमलिंग और योनन के प्रमार्, सिंभोग के समय तथा मानमसक भाव इनसे पैदा ममलकर कई प्रकार के बनते
ैं। ये ब ु त ज्यादा की सिंख्यािं में
ोते
ोने वाले
र प्रकार के रत ै और य ी
ैं इसमलए इनकी धगनती न ीिं की जा सकती
ै।
श्लोक-34. तेषु तकागदप ु यारान्प्रयोजयेहदतत वात्स्यायनः।। अथि- वात्सस्यायन के मत ु ाबबक इन कई प्रकारों के रतों में परू ी तर
से हदमाग का प्रयोग करके सिंभोग किया में लगना
चाह ए। श्लोक-35. प्रिमरते चण्डवेगता शीघ्रकालता च परु ु षयत, तद्त्वपरीतमत ु रे ष।ु योत्षतः पन ु रे तदे व त्वपरीतम ्। आ धातक्ष ु यात ्।। अथि- प्रथम रत (प ली बार सिंभोग करना) के समय जब तक वीयि स्खमलत न ीिं ज्यादा
ोती
ै जजसके कारर् उसकी सिंभोग करने की इच्छा जल्दी
परु ु ष दब ु ारा सिंभोग करता
ै तो व
ी समाप्त
इस किया को कार्ी दे र तक कर लेता
ोता तब तक परु ु ष की गनत ब ु त
ो जाती
ै लेककन उसी रात में जब
ै । जस्त्रयों की प्रवनृ त इसके ववपरीत
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ोती
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | ै । उनकी काम-उिेजना प ले कम दे र तक न ीिं ठ र पाती
ोती
ै और कर्र धीरे -धीरे तेज
ोकर ठ रती ै लेककन दस ू री बार में व
ै । स्त्री और परु ु ष की काम-उिेजना में य ी स्वाभाववक अिंतर
ोता
ज्यादा
ै।
श्लोक-36. प्राक् च ्त्रीधातक्ष ु यात्सपरु ु षाधातक्ष ु य इतत प्रायोवादः।। अथि- इसमलए म वषि वात्सस्यायन क ते ऐसा पाया गया
ैं-
ै कक सिंभोग किया के समय में स्त्री से प ले परु ु ष स्खमलत
ो जाता
ै।
श्लोक-37. मद ु मद् ु न्त्सयाशु ताः प्रीततशमत्सयाचायाग व्यवस््िताः।। ृ त्सु वादप ृ यत्सवास्न्नसगागच्चैव योत्षतः। प्राप्तव अथि- कामिास्त्र में सभी आचायों का मानना करती
ैं तयोंकक व
स्वभाव से
ी नाजुक
ै कक सिंभोग किया के दौरान जस्त्रयािं परु ु षों से प ले चरम सख ु को प्राप्त ोती
ैं। चब ुिं न और आमलिंगन करने से उनकी कामो-उिेजना जल्दी तेज जाती
ो
ै।
श्लोक-38. एतावदे व यक् ु तानां व्याख्यातं सांप्रयोधगकम ्। मन्दानामवबोधािग त्व्तरोऽतः प्रवक्ष्यते।।
अथि- य ािं पर स्त्री और परु ु ष के बारे में जो बताया जा र ा
ै मसर्ि बद् ु धधमान लोगों के मलए
मलए इसका वर्िन ववस्तार से ककया गया
ै । साधारर् मनष्ु यों के
ै।
श्लोक-39. अभ्यासाशभमानाच्च तिा संप्रत्सययादत्प। त्वषयेभ्यश्च तन्त्रज्ञाः प्रीततमािुश्चुतत्वगधाम ्।। अथि- कामसत्र ू के आचायों के अनस ु ार प्रेम 4 प्रकार से उत्सपन्न
ोता
ै-
अभ्यास से। ववचारों से। याद रखने से। ववषयों से। श्लोक-40. शब्दाहदभ्यो बहिभत ूग ा या कमागभ्यासलक्षणा। प्रीततः साभ्याशसकी ज्ञेया मग ृ याहदषु कमगस।ु । अथि- जो प्रेम अभ्यास करने से बढ़ता
ै उसे अभ्यामसकी क ते
ववषयों से
ैं जैसे मिकार, सिंगीत, नत्सृ य, नाटक आहद। य
ोने वाले प्रेम से मभन्न
ोती
प्रेम
ै।
श्लोक-41. अनभ्य्तेष्वत्प परु ा कमग्वत्वषयास्त्समका। संकलपाञ्ञायते प्रीततयाग सा ्यादाशभमातनकी।। अथि- ककसी अभ्यास को करे बबना मसर्ि सोचने से ववषयों से
ी जो प्रेम पैदा
ोता ै उसे अमभमानी क ा जाता
ोने वाले प्रेम से मभन्न
ोता
ै।
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ै। य
प्रेम भी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-42. प्रकृतेयाग तत ृ ीय्याः स््त्रयाश्चैवोपररष्टके। तेषु तेषु च त्वज्ञेया चुम्बनाहदषु कमगस।ु । अथि- वेश्याओिं तथा ककन्नरों (ह जडे) को मख ु मैथुन करने में जजस तर इसी तर
चुिंबन-आमलिंगन आहद से
का सख ु ममलता
ोने वाली प्रीनत भी
ोती
ै व
मानमसक क लाता
ै।
ै।
श्लोक-43. नान्योऽशमतत यत्र ्यादन्यस््मन्प्रीततकारणे। तन्त्रज्ञैः कथ्यते सात्प प्रीततः संवत्सधयास्त्समका।। अथि- अचानक ऐसे इिंसान को दे खकर जजसकी सरू त उस इिंसान से ममलती आपको उसी की याद आ जाती
ो जजसको आप ब ु त पसिंद करते थे तो
ै । इसको सम्प्रययात्समक प्रीनत क ा जाता
ै।
श्लोक-44. प्रत्सयक्षा लोकतः शसद्धा या प्रीततत्वगषयास्त्समका। प्रधानतलवत्त्वात्ससा तदभागश्चेतरा अत्प।। अथि- इजन्ियों के ववषयों से
ोने वाली प्रीनत के बारे में उन सभी लोगों को मालम ू
प्रीनत प्रधान
ोता
ै लेककन इजन्िय ववषयजन्य
ोने के कारर् बाकी सारी प्रीनतयािं इसी के अिंतगित आती
ैं।
श्लोक-45. प्रीतीरे ताः परामश्ृ य शा्त्रतः शा्त्रलक्षणाः। यो यिा वतगते भाव्तं तिैव प्रयोजयेत ्।। अथि- जो स्त्री और परु ु ष कामिास्त्र के बारे में जानकारी रखते
ैं उनको चाह ए कक इन चारों तर
की प्रीनतयों को
िास्त्र में बताए गए तरीकों से समझकर स्त्री, परु ु ष के और परु ु ष, स्त्री के भावों के अनस ु ार इस तर
का बतािव करें कक
उनमें आपस में प्रीनत बढ़ती जाए। वात्सस्यायन ने य
सब उन लोगों के बारे में बताया
ै जजनकी सोच साधारर् ककस्म की
ोती
ै । उनके अनस ु ार
अभ्यास के द्वारा, ववचार करने से, याद रखने से तथा ववषयों से स्त्री और परु ु ष में आपसी प्रेम को बढ़ाया जा सकता ै।
इतत श्री वात्स्यायनीये कामसत्र ू े सांप्रयोधगके द्त्वतीयेऽधधकरणे रताव्िापन प्रीततत्वशेष प्रिमोऽध्यायः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 2 आशलंगन त्वचार प्रकरण श्लोक-1. संप्रयोगाअंग चतःु षस्ष्टररत्सयाचक्षते। चतःु षस्ष्टप्रकरणत्सवात ्।। अथि- कामसत्र ू के ववद्वानों ने सिंभोग कला के 64 अिंगों के बारे में बताया
ै।
श्लोक-2. शा्त्रमेवेदं चतःु षस्ष्टररत्सयाचायगवादः।। अथि- ब ु त से आचायि क ते
ैं कक परू े काम-िास्त्र के
ी 64 अिंग
ैं।
श्लोक-3. कलानािं चतःु षजष्टत्सवािासािं च सिंप्रयोगाअिंगभत ू त्सवात्सकलासमू ो वा चतःु षष्टररनत। ऋचािं दितयीनािं च सिंक्षज्ञतत्सवात ृ्। इ ावप तदथिसम्बन्धात ृ्। पञ्ञालसिंबन्धाच्च बह्रचैरेषा पज ू ाथि सिंज्ञा प्रवनतिता इत्सयेके।। अथि- य
64 कलाओिं की सिंख्या ै तयोंकक कलाएिं सिंभोग का अिंग मानी जाती ।ैं कलाओिं की सिंख्या ोने से
कामिास्त्र को भी 64 कलाओिं वाला माना जाने लगा ै । जजस प्रकार से ऋग्वेद में दिमिंडल जाता
ोने से उसे दितयी क ा
ै।
श्लोक-(4)-आशलंगनचुम्बननखच्छे द्यदशनच्छे द्यसंवेशनसीत्सकृतपरु ु षातयतौपररष्यकानामष्टानामष्टाधा त्वकल्पभेदादष्टावष्टाकाश्चतःु षस्ष्टररतत बाभ्रवीयाः।।
अथि- बाभ्रवीय आचायों के मत ु ाबबक आमलिंगन, चुिंबन, नखक्षत (नाखूनों से काटना), दिं तक्षतों (दािंतों से काटना), सिंवेिन (साथ-साथ सोना), सीत्सकृत, परु ु षानयत (ववपरीत आसन) तथा मख ु मैथुन 8 प्रकार की सिंभोग किया भी 8-8 भेद
ोने से 64 प्रकार की सिंभोग कलाएिं
ोती
ोती
ै और इनके
ैं।
श्लोक-5. त्वकल्पवगागणामष्टानां न्यन ू ाधधकत्सवदशगनात ् प्रिणनहदरुतपरु ु षोपयप ृ तधचत्ररतादीनामन्येषामत्प वगागणाशमि प्रवेशनात्सप्रायोवादोऽयम ्। यिा सप्तपणो वक्ष ृ । पञ्ञवणों बशलररतत वात्स्यायनः।।
अथि- वात्सस्यायनः के मत ु ाबबक बाभ्रवीय आचायों का सिंभोग कला के 64 भेदों के बारे में हदया गया मत गलत तयोंकक इनमें से सबसे 8-8 भेद न ीिं
ोते बजल्क ककसी के कम
ोते
ैं तो ककसी के ज्यादा
ोते
ै
ैं। इसके अलावा इन
आठों से अलग प्र र्न, ववरुत परु ु षोपसत ृ , धचत्ररत आहद नाम के और भी सिंभोग बाभ्रवीयों के साम्प्रयोधगक अधधकरर् में सजन्नववष्ट
ैं। इसमलए साम्प्रयोधगक अधधकरर् में 64 अिंगों को मानना स ी न ीिं
ै।
इसके अलावा वात्सस्यायन मनु न किंु वारे और मनचले लोगों के मलए और वववाह त लोगों के मलए आमलिंगन भेद बताते श्लोक-6. तत्रासमागतयोः प्रीततशलंगद्योतनािगमाशलंगन चतष्ु टयम ्। ्पष्ृ टकम,् त्वद्धकम, उदधष्ृ टकम, प्रीडडतकम,् इतत।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- जो स्त्री और परु ु ष मनचले और किंु वारे
ोते
ैं उन् ें आपस में अपने प्यार को प्रकट करने के मलए चार प्रकार के
आमलिंगन करने चाह ए- स्पष्ृ टक, बबद्वक, उदृघष्ृ टक और पीडडतक। श्लोक-7. सवगत्र संज्ञाि़ेनव ै कमागततदे शः।। अथि- स्पष्ृ टक, ववद्वक आहद पाररभावषक अल्र्ाज अपने नाम से इसके अिंतगित
ी अपने कमािजप्तदे ि को सधू चत करते
र आमलिंगन का लक्षर् बताते
ैं।
ैं-
श्लोक-8. संमख े े गच्छे तो गात्रेण गात्र्य ्पशगन ्पष्ृ टकम ्।। ु ागतायां प्रयोज्यायामन्यापदे शन अथि- स्पष्ृ टकअपने सामने से आती ु ई स्त्री के जजस्म को ककसी ब ाने से छूना स्पष्ृ टक आमलिंगन क लाता
ै।
श्लोक-9. प्रयोज्यं स््ितमप ु त्वष्टं वा त्वजने ककं धचद् गह् ु णीयाहदतत ृ णती पयोधरे ण त्वद्धयेत ्। नायकोऽत्प तामवपीडय्च गह् त्वद्धकम ्।।
अथि- ववद्वकजब स्त्री परु ु ष को ककसी एकािंत स्थान में बैठे ु ए या खडे ु ए दे खती ै तो ककसी वस्तु को उठाने के ब ाने अपने
स्तनों को उसके िरीर से छुआ दे तथा परु ु ष भी उसके स्तनों को कसकर दबाए। इसको ववद्वक आमलिंगन क ा जाता ै। श्लोक-10. तदभ ु यमनततप्रतसंभाषणयोः।। अथि- इन दोनों प्रकार के आमलिंगनों का प्रयोग तभी करना चाह ए जब स्त्री और परु ु ष आपस में ज्यादा वातािलाप न कर र े
ो।
श्लोकृ-11. तमशस जनसंबाधे त्वजने वाि शनकैगगच्छतोनागतति्वकालमद् ु धपगणं पर्पर्य गात्राणामद ु घष्ृ यकम ्।। अथि- उदघष्ृ टकअगर भीड-भाड में , अिंधेरे में या एकािंत में दोनों के
ी िरीर एक-दस ू रे से रगड खाते क ते
ैं।
ैं तो उसे उदघष्ृ टक आमलिंगन
श्लोक-12. तदे व कुडचसंदंशन ्तम्भसंदंशन े वा ्तुटकमवपीडयेहदतत पीडडतकम ्।। अथि- ककसी खिंभे या दीवार के स ारे खडे से दबाते
ोकर जब स्त्री और परु ु ष एक-दस ू रे के िरीर के कामक ु अिंगों को जोर-जोर ैं तो उसे पीडडतक आमलिंगन क ा जाता
ै।
श्लोक-13. तदभ ु यमवगतपर्पराकारयोः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- उदघष्ृ टक और पीडडतक आमलिंगन ऐसे स्त्री और परु ु षों के मलए लेककन उनके बीच में ककसी तर
ोते
ैं जो आपस में तो ब ु त प्यार करते
का िारीररक सिंबध िं न बना
ैं
ो।
इसमें िादीिद ु ा स्त्री और परु ु षों के आमलिंगनों के बारे में बताया गया
ै-
श्लोक-14. लतावेस्ष्टकं वक्ष ृ ाधधरूढकं ततलतण्डुलकं क्षीरनीरकशमतत चत्सवारर संप्रयोगकालें।। अथि- सिंभोग किया के समय लतावेजष्ठतक, वक्ष ृ ाधधरूढक, नतलत्रण्डुक और क्षीरनीरक आमलिंगनों को सबसे ज्यादा अच्छा माना गया
इसके अिंतगित
ै।
र व्यजतत के लक्षर् अलग-अलग बताए जा र े
ैं-
श्लोक-15. लतेव शालमावेष्टयन्ती चुम्बनािग मख ु मवनमयेत ्। उद्धत्सय मन्दसीत्सकृता तमाधश्रता वा ककं धचद्रामणीयकं पश्येतल्लातावेस्ष्टतकम ्।।
अथि- इसमें लतावेजष्टक- जजस तर सा झुकाकर थोडा
र एक के लक्षर्ों को बताया जा र ा
से एक पेड के ऊपर एक लता मलपट जाती
ै वैसे
ै-
ी स्त्री परु ु ष से मलपटकर मुिं
को
ल्का
टकर मससकाररयािं लेती ु ई उसके मख ु -सौंदयि का अवलोकन करें तो इसको लतावेजष्टक आमलिंगन क ते
ैं।
श्लोक-16. चरणेन चरणामाक्रम्य द्त्वतीयेनोरुदे शामाक्रमन्ती वेष्टयन्ती वा तत्सपष्ृ ठसक्तैकबािुद्त्वतीयेनांसमवनमयन्ती ईषन्मन्द सीत्सकृतकूस्जता चम् ु बनािगमेवाधधरोढुशमच्छे हदतत वक्ष ृ ाधधरूढकम ्।।
अथि- वक्ष ृ ाधधरूढकम- जजस तर के पैर को दबाती एक
से पेड पर चढ़ते
ैं उसी तर
वक्ष ु ष ृ ाधधरूढकम आमलिंगन में स्त्री अपने एक पैर से परु
ैं और अपने दस ू रे पैर से परु ु ष के दस ू रे पैर को परू ी तर
ाथ को परु ु ष की पीठ पर रखकर दस ू रे
धीरे -धीरे से परु ु ष को चूमने लगती
से लपेट लेती
ैं। इसके साथ
ाथ से उसके किंधे तथा गदि न को नीचे की तरर् झक ु ाती
ैं और उस पर चढ़ने की कोमिि करती आमलिंगन क ा जाता
ै।
ी अपने
ैं और कर्र
ैं। इस आमलिंगन को वक्ष ृ ाधधरूढकम
श्लोक-17. तदभयं स््ितकमग।। अथि- लतावेजष्टक और वक्ष ृ ाहदरूढक आमलिंगनों को सिंभोग किया करने से प ले
ी खडे-खडे ककया जाता ै ।
श्लोक-18. शयनगतावेवोरुव्यत्सयांस भज ु व्यत्सयासं च ससंघषगशमव घनं सं्वजेते तत्तलतण्डुलकम ्।। अथि- नतलतण्डुलकपलिंग पर लेटा ु आ परु ु ष अगर स्त्री के दाईं ओर लेटा
तथा बाएिं
ोता
ै तो उसे अपनी बाईं टािंग को स्त्री की जािंघों के बीच
ाथ को उसकी दाईं कािंख के बीच डालना चाह ए और कर्र स्त्री को भी परु ु ष की
ी तर
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आमलिंगन करना
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | चाह ए। इस प्रकार के आमलिंगन में दोनों की टािंगें तथा भज ु ाएिं उस तर
ममल जाती
इसमलए इसको नतलतण्डुलकम आमलिंगन क ते
ैं जैसे कक चावल में नतल
ैं।
श्लोक-19. रागान्धावनपेक्षक्षतात्सययौ परस्परमनवु वित इवोत्ससङिंगतायाममभमख ु ोपववष्टायािं ियने वेनत क्षीरजलकम ृ्।।
अथि- क्षीरजलकज्यादा काम-उिेजजत
ोने के बावजूद भी ककसी चीज की परवा
जाने की कोमिि में मजबत ू आमलिंगन करते मम ु ककन
ो सकता
न करते ु ए जब स्त्री और परु ु ष एक-दस ू रे में समा
ैं तो उसे क्षीरजलक आमलिंगन क ा जाता
ै। य
आमलिंगन तभी
ै जब स्त्री परु ु ष की गोद में बैठकर अपनी दोनों टािंगों को उसकी कमर में र्िंसा ले तथा दोनों
अपनी-अपनी छाती को आपस में ममलाकर जोर-जोर से दबाएिं। न ीिं तो दोनों पलिंग पर एक-दस ू रे की तरर् मुिं
करके
लेटे र ें । श्लोक-20. तदभ ु यिं रागकाले।।
अथि- नतलतण्डुलक और क्षीर जलक आमलिंगन तभी करने चाह ए जब दोनों की काम-उिेजना चरम सीमा पर प ुिं चने वाली
ो।
श्लोक-21. इत्सयप ु गू नयोगा बाभ्रवीयाः।।
अथि- आचायि वाभ्रवीय द्वारा बताए गए आमलिंगन के भेद समाप्त
ोते
ैं।
श्लोक-22. सव ु र्िनाभस्य त्सवधधकमेकाङगोपगू नचतष्ु टयम ृ्।।
अथि- इसमें सव ु र्ािनाभ जी के बताए गए चार प्रकार के आमलिंगनों को बताया जा र ा
ै।
श्लोक-23. तत्रोरुसन्दिं िन े क ै मरु ू मरु ू द्वयिं वा सविप्रार्िं पीडयेहदत्सयरू ू पगू नम ृ्।।
अथि- अरुपगू नस्त्री और परु ु ष को एक-दस ू रे की तरर् मिंु
करके लेट जाना चाह ए तथा अपनी एक जािंघ से स भागी के एक जािंघ
को ब ु त जोर से या दोनों जािंघों से उसकी दोनों जािंघों को जोर से दबाने को अरुपगू न आमलिंगन क ा जाता ै ।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-24. जघनेन जघनमवपीडय्च प्रकीयिमार्केि स्ता नखदिनप्र र्नचुम्बनप्रयोजनाय तदप ु रर लङघयेिञ्ञघनोपगू नम।।
अथि- जघनोपगू न- लेटी ु ई अवस्था में जब स्त्री काम-उिेजना को तेज करने के मलए परु ु ष की जािंघ को अपनी जािंघ से दबाती ु ई उसके ऊपर लेट जाती
ै और कर्र उसके मुिं
नाखून गढ़ाती
को चूमती
ै, उसके िरीर पर दािंतों से काटती
ैं तो उसे जघनोपगू न आमलिंगन क ते
ैं और
ैं।
श्लोक-25. स्तनाभ्यामरु ः प्रववश्य तत्रैय भारमारोपयेहदनत स्नामलङगनम ृ्।।
अथि- स्तनामलिंगनजब स्त्री अपने स्तनों को परु ु ष की छाती से लगाकर उनका सारा वजन परु ु ष की छाती पर डाल दे ती बाद जोर से दबाती
ै तो उसे स्तनामलिंगन आमलिंगन क ते
ै और उसके
ैं।
श्लोक-26. मख ु े मख ु मासज्याक्षक्षर्ी अक्ष्र्ोलिलाटे न ललाटमा न्यात्सयात्ससाललाहटका।।
अथि- ललाहटकाअपने स भागी के मिंु
के सामने अपना मिंु
और उसकी आिंखों के सामने अपनी आिंखें करके उसके मस्तक से अपने
मस्तक को दबाने को ललाहटका आमलिंगन क ा जाता ै । श्लोक-27. सिंवा नमप्यप ु गू नप्रकारममत्सयेके मन्यन्ते। सिंस्पिित्सवात ृ्।।
अथि- कुछ कामिाजस्त्रयों के अनस ु ार अपने मट् ु ठी से अपने स भागी के िरीर को दबाने की किया को भी आमलिंगन क ा जाता
ै तयोंकक इससे भी स्पिि सख ु ममलता ै ।
श्लोक-28. पथ ृ तकालत्सवाद्धधन्नप्रयोजनत्सवादसादारर्त्सवान्नेनत वात्सस्यायनः।।
अथि- आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक मट् ु ठी से िरीर को दबाने की किया को आमलिंगन न ीिं क ा जा सकता तयोंकक य
मसर्ि थकावट दरू करने के मलए
ोता
ै न कक सिंभोग किया के मलए।
श्लोक-29. पच् ृ छतािं श्ण्ृ वतािं वावप तथा कथयतामवप। उपग ृ ववधधिं कृत्सस्निं रररिं सा जायते नर् ृ ाम ृ्।।
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ो जाएगी और जो लोग इस ववधध को प्रयोग में लाएिंगें तो व
सिंभोग के समय
ममलने वाले परू े आनिंद को प्राप्त करें गे।
श्लोक-30. येऽवप ह्यिाजस्त्रताः केधचत्ससिंयोगा रागवधिनाः। आदरे र्ैव तेऽप्यत्र प्रयोज्याः सािंप्रयोधगकाः।।
अथि- इनके अलावा ब ु त से अिास्त्रीय लेककन काम-उिेजना को बढ़ाने वाले आमलिंगन बताया न ीिं जा र ा
ै । सिंभोग किया में प्रयत ु त
ोने वाले
र तर
ैं लेककन उनके बारे में य ािं पर
के और ब ु त से स्थानों में प्रचमलत आमलिंगन को
यथास्थान और यथावसर प्रयोग में लाना चाह ए।
श्लोक-31. िास्त्रार्ािं ववषयस्तावद्यावन्मन्दरसा नराः। रनतचिे प्रवि ृ े तु नैव िास्त्रिं न च िमः।।
अथि- िास्त्र के ववषय की उसी समय तक जरूरत
ोती ै जब तक कक व्यजतत काम-उिेजना में अिंधा न ीिं
ो जाता।
तयोंकक इसके बाद तो िास्त्र और िास्त्र की बताई ू ई ककसी भी ववधध का उपयोग न ीिं ककया जा सकता स्त्री को सिंभोग करने के मलए तैयार करने की प्राकिीडा आमलिंगन ै । सिंभोग करने से प ले एक प्राकृनतक किया
ी न ीिं बजल्क इस किया का एक िभ ु चरर् भी
आचायि पद्मश्ी अपने नागरसविस्व में
ै व
र बार प्राकिीडा ा़ करना
ै । सामान्य तौर पर इस बात को दे खा गया
कक सिंभोग किया से प ले की जाने वाली प्राकिीडा को परु ु ष द्वारा
आचायि वात्सस्यायन ने जजन 64 कलाओिं के बारे में बताया
ी प ल करके िरु ु करना
ोता
ै
ै।
उन् ें सिंभोग किया की प्रमख ु भमू मका समझता
ै।
े लाववजच्छनत ववब्बोक, ककलककिं धचत, ववभ्रम लीला, ववलास, ावववक्षेप, ववकृत, मद
मो ानयत, कुट्टाममनत, मग्ु धता, तपन और लमलत अथाित इन 16 भावों को सिंभोग की प्रववृ ि समझते ऊपर हदए गए 16 भाव स्त्री के अिंदर काम-उिेजना जागत ृ
ोने पर पैदा
ोते
ैं।
ैं। परु ु ष को स्त्री के इन भावों को
समझकर सिंभोग करने से प ले की कियाएिं जैसे आमलिंगन, चिंब ु न आहद करने चाह ए। जो व्यजतत स्त्री के इन भावों को न समझकर ठिं डा पडा र ता ककए आमलिंगन के मलए तैयार
ै।
ो जाता
ै तथा जब खद ु के अिंदर काम-उिेजना जागत ृ ै तो ऐसे परु ु षों को न तो स्त्री का
ोती
ी सख ु प्राप्त
ाव-
ै तो बबना भाव प्रकट ोता ै और न
ी सिंभोग
का सख ु । ब ु त से ववद्वानों के अनस ु ार सविगर् ु सिंपन्न और सिंभोग की 64 कलाओिं में ननपर् ु स्त्री गर् ु ीन और सिंकेत ीन पनत को ऐसे र्ेंक दे ती
परु ु ष चा े
र तर
ैं जैसे कक ककसी मरु झाई ु ई र्ूलों की माला को र्ेंक दे ते
की कला में सबसे ज्यादा ननपर् ु
ैं।
ो लेककन अगर स्त्री उसे काम-कला में अनाडी समझकर
धधतकार दे ती ै तो उसे अपना जीवन बेकार समझना चाह ए।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अिंगसिंकेत- ज्ञानवद् ृ धक सवाल तथा कुछ क ने में काम का स्पिि, कामोिेजजत अवस्था में बालों का स्पिि, प्यार का इज ार करने में स्तनों का स्पिि
ाथों के द्वारा करना चाह ए।
स ी अवसर को जानने के मलए मध्यमा ( ाथ की बीच वाली उिं गली) उिं गली को तजिनी उिं गली पर चढ़ाना तथा मौका ममलने का सिंकेत करने के मलए दोनों
ाथों में अिंजली बािंध लेनी चाह ए और कर्र बल ु ाने के मलए उसी उिं गली को उल्टी कर लेनी चाह ए।
पव ू ि हदिा के सिंकेत के मलए अिंगठ ू े को प्रयोग ककया जाता
ै । तजिनी उिं गली का दक्षक्षर् हदिा के मलए, पजश्चम हदिा के
मलए मध्यमा उिं गली का और उिर हदिा के मलए अनाममका उिं गली का प्रयोग करना चाह ए। कननष्का की जड से िरू ु
ोकर अिंगठ ू े की ऊध्वि रे खा तक
र उिं गमलयों में 3-3 रे खा करके 15 रे खा
रे खाओिं के द्वारा प्रनतपदा से लेकर 15 नतधथयों का सिंकेत हदया जाता नतधथयों का और दाएिं
ै । बाएिं
ोती
ैं और इन् ीिं
ाथ की रे खाओिं से ित ु ल पक्ष की
ाथ की रे खा के द्वारा कृष्र् पक्ष की नतधथयों का सिंकेत
ोता
ै।
पोटली सिंकेत- प्रेम की खबर प ुिं चाने में खुिबद ू ार सप ु ारी, आनत्य प्रेम की सच ू ना प ुिं चाने में कत्सथा और छोटी इलायची, जायर्ल और लौंग से सिंकेत हदया जाना चाह ए।
मग ूिं ा प्रेम को भिंग करने का सिंकेत
ै । ब ु त हदनों के बाद सिंभोग करने पर 2 मग ूिं े. कम बख ु ार में कडवी वस्त,ु सिंभोग के सिंकेत के मलए मन ु तका
ोता
ै।
िरीर के समपिर् के मलए कपास, प्रार्ों को समवपित करने में जीरा, डर का इिारा करने में मभलावा और अभय सिंकेत में
रड का सिंकेत
ोता
ै।
मोम की एक गोल सी हटककया बना लें। कर्र उसमें पािंचों उिं गमलयों के नाखूनों के ननिान बना दें और उसको लाल धागे से बािंध दें । इसको पोटली सिंकेत क ा जाता बिंधन और कामदे व द्वारा जख्मी
ै । मदन-िीडा के सिंकेत में मोम, अनरु ाग के मलए लाल धागे का
ोने की सच ू ना में पािंचों उिं गमलयों के नाखन ू का ननिान बनाया जाता ै । इसी वज से इसे पोटली सिंकेत क ा जाता
वस्त्र सिंकेत- जजसका िरीर कामदे व के बार् से कटा-र्टा हदखाकर ककया जाता जद ु ाई के समय र्टे
ो, ऐसी
ै।
ालत का सिंकेत र्टे
ु ए लेककन अच्छे कपडे
ै । उत्सकट प्रेम को हदखाने के मलए पीले या गेरुए रिं ग का कपडा दे ना जरूरी
ै।
ु ए कपडों से और ममलन के समय धागे के साथ बिंधन भेजकर सिंकेत करना चाह ए। एक के प्रेम
में एक कपडा और दो के प्रेम में दो कपडे दे कर प्रेम का सिंकेत करना चाह ए। तािंबल ू सिंकेत- पान का बीडा 5 प्रकार का
ोता
ै-
पलिंग के आकार का चौकोना
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अिंकुि के आकार का कौिन या श्लाका।
स्ने
की ज्यादती का सिंकेत करने के मलए कौिल पान (जजसको कलात्समक तरीके से लगाया जाता
ै ) का प्रयोग
करना चाह ए। मदन व्यथा में किंदपि (नतकोना) बीडा ा़ दे ना चाह ए और सिंभोग करने का सिंकेत दे ने के मलए पलिंग के आकार का बीडा दे ना चाह ए। चौकोर पान की बीडा हदखाना अनसर का सिंकेत ै । प्रेम के अभाव में बबना सप ु ारी का पान तथा प्रेम के सिाव में इलायची के साथ पान दे ना चाह ए। जुदाई में
ोने वाली
एक पान के मुिं
ालत का सिंकेत पान उल्टा लगाकर काले धागे से बािंधकर करना चाह ए। सिंयोग की
को दस ू रे पान के मुिं
ालत में
से ममलाकर लाल धागे से बािंधकर हदखाना चाह ए। त्सयाग की सच ू ना में पान
को बीचों-बीच से र्ाडकर काले धागे से बािंधकर सिंकेत करना चाह ए। अधधक अनरु ाग
ो जाने पर पान के टुकडे-टुकडे करके जोड दे ना चाह ए। बीच में केिर भर दी जाए और बा र चिंदन का लेप कर दे ना चाह ए।
र्ूलों की माला का सिंकेत- अनरु ाग में लाल, ववयोग में गेरुआ और स्ने
की कमी के कारर् काले धागे की गथ िंू ी ु ई
माला का उपयोग करना चाह ए। कामिास्त्र के लेखकों ने स्त्री की चिंिकािंत मणर् से उपमा दी ै । जजस प्रकार चिंिकािंत मणर् चिंिमा की िीतल ककरर्ों का स्पिि पाते ो जाती कामोिेजजत
ै । इसी वज
ी वपघल जाती
ै उसी तर
से स्त्री परु ु ष का सिंस्पिि करते
से बद् ु धधमान परु ु ष को स्त्री का उपभोग ब ु त
ोने के साथ-साथ उसमें वववेक उद्दे श्य से की
ोना ब ु त जरूरी
ी िववत
ी समझदारी के साथ करना चाह ए।
ै । काम के ववद्वानों ने काम के ग्रिंथों की रचना उसी
ै कक सिंभोग के समय में जानवर की तर
सिंभोग न ीिं करना चाह ए।
आमलिंगन-चिंब ु न तथा सिंकेतों आहद सिंस्पिों और स्त्री के स्वभाव आहद का मनोवैज्ञाननक िारीररक अध्ययन करके सिंभोग किया में लीन
ोना चाह ए।
श्लोक- इनत श्ीवात्सस्यायनीये कामसत्र ू े साम्प्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े आमलिंगनववचाराः द्ववतीयोध्यायः।
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ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 3 चुम्बन त्वकल्प प्रकरण श्लोक(1)- चुम्बननखदिनच्दे द्यानािं न पौवािपयिमजस्त। रागयोगात ृ् प्रातसिंयोगादे षािं प्राषान्येन प्रयोगः। प्र र्नसीत्सकृतयोश्च सिंप्रयोगे।
अथि- नखक्षत (नाखूनों को गढ़ाना), दन्तक्षत (दािंतों से काटना), चुम्बन आहद का प्रयोग अतसर सिंभोग किया करने से स भागी की काम-उिेजना को जागत ृ करने से प ले ककया जाता सिंभोग किया से प ले ककसी चीज के मलए ननयम न ीिं
ै। य
तीनों एक-दस ू रे से पीछे न ीिं
ोते
ैं तयोंकक
ोता कक प ले चुिंबन करे या कोई और किया करें । सिंभोग के
समय तो मसर्ि स्रोक और सीत्सकार का
ी प्रयोग
ोता ै ।
श्लोक(2)- सवि सवित्र। रागस्यानपेक्षक्षतत्सवात ृ्। इनत वात्सस्यायनः।।
अथि- वात्सस्यायन के मत ु ाबबक उिेजना ककसी ननयमों में बिंधी न ीिं
ोती
ै । इसी वज
से चुम्बन, नाखूनों को गढ़ाना
और दािंतों से काटना आहद कियाएिं ककसी भी समय की जा सकती
ै।
श्लोक(3)- तानन प्रथमरते नानतव्यततानन ववश्जब्धकायािं ववतलपेन च प्रयञ् ु ञीत। तथाभत ू त्सवािागस्य। ततः परमनतत्सवरया वविेषवत्ससमच् ु चयेन रागसिंधक्ष ु ेर्ाथिम ृ्।।
अथि- प ली बार सिंभोग किया करते समय चम् ु बन, नाखूनों को गढ़ाना और दािंतों से काटना आहद कियाओिं को एकसाथ न ीिं करना चाह ए। जजस तर
से िरीर में उिेजना बढ़ती
ै उसी तर
चम् ु बन आहद कियाओिं को करना चाह ए।
उिेजना बढ़ जाने के बाद चुम्बन आहद का एकसाथ और जल्दी-जल्दी प्रयोग करना चाह ए। इसकी वज उिेजना तेज
ोती
ै और सिंभोग किया में आनिंद आता
से काम-
ै।
श्लोक(4)- ललाटालककपोलनयनवक्षः स्तनोष्ठान्तम ि ेषु चम् ु ख ु बनम ृ्।।
अथि- गाल, आिंख,े छाती, माथा, स्तन, नीचे वाला बा ु मल ू और नामभ को भी चम ू ते भेद
ोंठ और जीभ को चम ू ा जा सकता ै । लाटदे ि के लोग स्त्री की जािंघ,
ैं। काम-उिेजना के न्यन ू ाधधतय के कारर् और दे िाचार भेद चम् ु बन के स्थानों में
ै । वात्सस्यायन के मत ु ाबबक य ािं पर सभी मनष्ु यों के चिंब ु न स्थानों की गर्ना की गई
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | वात्सस्यायन के मत ु ाबबक सिंभोग के समय काम-उिेजना को बढ़ाने के मलए चुम्बन करना चाह ए। लेककन चम् ु बन के साथ नाखूनों को गढ़ाना और दािंतों से काटना स्वाभाववक समय य
ो जाता
ै । जब परु ु ष कामोिेजजत
ो जाता ै तो उसे उस
ध्यान में न ीिं र ता कक प ले तया करें और तया न करें ।
आचायि वात्सस्यायन ने य ािं पर राग (उिेजना) िब्द दे कर अपनी साविभौम काम-िास्त्रीय पजश्चम चारुता का पररचय हदया
ै । सिंभोग किया करने से प ले रनत की पािंचवीिं अवस्था को राग क ते ै और जब य
रनत धीरे -धीरे बढ़ती
ै तो व
ैं। सिंभोग की प्रौढ़ इच्छा का नाम रनत
प्रेम क लाती
ै।
श्लोक(5)- ऊरुसिंधधबा ु नामभमल ू योलािटानाम ृ्।।
अथि- लाट दे ि के र ने वाले लोग स्त्री के गप्ु त स्थानों जैसे
ोंठों, जािंघ के जोड, कािंख और नामभ को चूमते
ैं।
श्लोक(6)- रागविाद्दे िप्रदृिेश्च सजन्त तानन तानन स्थानानन, न तु सविजनप्रयोज्यानीनत वात्सस्यायनः।।
अथि- आचायि वात्सस्यायन के मत ु ाबबक जो लोग ऐसे अिंगों को चम ू ते
ैं उनका य
चम् ु बन दे िाचार के अनक ु ूल
श्लोक(7)- तद्यथा-ननममिकिं स्र्ुररतकिं घट्हटतकममनत त्रीणर् कन्या चम् ु बनानन।।
अथि- जजस लडकी ने अभी यव ु ावस्था में कदम रखा
ो उसका चम् ु बन 3 तर
का
ोता
ननममिक स्र्ुररतक घट्हटतक श्लोक(8)- बलात्सकारे र् ननयत ु ता मख ु े मख ु माधिे न तु ववच्षेटत इनत ननममिकम ृ्।।
अथि- ननममिक-
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ै-
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | जब परु ु ष सबसे प ले िमािने वाली स्त्री से अपने ाथ रख तो दे ती
ै लेककन अपने
ोंठों पर जबरदस्ती चुिंबन कराता
ै तो स्त्री परु ु ष के मुिं
ोंठों को चूमने के मलए बबल्कुल भी न ीिं ह लाती। इस तर क ा जाता
पर अपना
के चुिंबन को ननममिक
ै।
श्लोक(9)- वदने प्रवेमितिं चौष्ठिं मनागपत्रपावग्र ीतमु मच्छन्ती स्पन्दयनत स्वमोष्ठिं नोिरमत्सु स त इनत स्र्ुररतकम ृ्।।
अथि- स्र्ूररतकएकबार जब सिंभोग किया िमािती ु ई स्त्री पनत के
ो जाती
ै तो उसके बाद परु ु ष अपने
ोंठों को अपने
लेककन िमि के कारर् उसके
ोंठों को जब स्त्री के
ोंठों से दबाना भी चा ती
ोंठ धचपके र
जाते
ोंठों पर रख दे ता
ै और अपने नीचे वाले
ैं। इस तर
ै तब
ोंठ को ह लाती भी
के चुम्बन को स्र्ुररतक क ते
ै
ैं।
श्लोक(10)- ईषत्सपररगह् ृ मा ववननमीमलतनयना करे र् च तस्य नयने अवच्छादयन्ती जजह्वाग्रेर् घट्टयनत इनत घट्हटतकम ृ्।।
अथि- घट्हटतकसिंभोग किया का आनिंद प्राप्त करने के बाद स्त्री अपने मारे आिंखें बिंद कर लेती
ै तथा अपने
ोंठों पर रखे ु ए परु ु ष के
ोंठों को पकडती
ै लेककन िमि के
ाथों से पनत की दोनों आिंखों को बिंद करके जीभ के आगे के भाग से पनत के
ोंठ को रगडती
ै । इस प्रकार के चम् ु बन को घट्हटतक क ते
ैं।
श्लोक(11)- समि नतयिगद् ु धान्तमवपीडडतकममनत चतवु वधमपरे ।।
अथि- 4 तर
के चिंब ु न इस तर
सम अथाित पनत और पत्सनी एक-दस ू रे के सामने मुिं नतयिक अथाित ृ् मुिं
को थोडा सा मोडकर तथा
से
ैं-
करके एक-दस ू रे के
ोंठों को चूसते
ैं।
ोंठों को गोल-गोल आकार में बनाकर आपस में पकडना।
उदभ्रान्त अथाित स्त्री की पीठ की तरर् बैठकर अपने
ाथों से उसका मसर तथा ठुड्डी पकडकर अपनी तरर् घम ु ाकर
ोठों को चूमना। अवपीडडतक अथाित प ले हदए गए तीनों तर
के चुिंबनों में
ोठों को ब ु त जोर से दबाया जाए।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक(12)- अङमलसिंपट ु े न वपण्डीकृत्सय ननदि िनमोष्ठोपट ु े नावपीडयेहदत्सयवपीडडतकिं पञ्ञममवप करर्म ृ्।।
अथि- पािंचवा भेदपरु ु ष को अपने दोनों जोर से इस तर
ाथों की उिं गमलयों से स्त्री के दोनों गालों को दबाकर उसके
ोंठों को अपने मुिं
में लेकर ब ु त
से दबाना चाह ए कक उसके दािंत न गडने पाए। इस प्रकार के चुिंबन को अवपीडडतक क ा जाता
ै।
श्लोक(13)- द्यत ू चात्र प्रवतियेत ृ्।।
अथि- चुम्बन द्यत ू चुिंबन करते समय स्त्री और परु ु ष को आपस में बाजी लगानी चाह ए। श्लोक(14)- पव ि धरसम्पादनेन जजतममदिं स्यात ृ्।। ू म
अथि- परु ु ष या स्त्री में से जो भी आपस में से ककसी के
ोंठ को प ले पकड लेता
ै उसी की जीत मानी जाती
ै।
श्लोक(15)- तत्र जजता साधिरुहदतिं करिं ववधुनय ु ात्सप्रर्द ु े द्दिेतपररवतियेद्वलादाह्ता वववदे त्सपन ु रप्यस्तु पर् इनत िय ू ात ृ्। तत्रावप जजता द्ववगर् ु मायस्येत ृ्।।
अथि- चम् ु बन कल अगर चम् ु बनों की बाजी परु ु ष मार लेता
ै तो स्त्री को
चाह ए, दािंतों से काटना चाह ए तथा दस ू री तरर् मिंु
ाथ-पैरों को पटकना चाह ए, पनत को धतका मारकर करके सो जाना चाह ए। अगर परु ु ष स्त्री का मिंु
करना चा े तो उसे उससे क ना चाह ए कक चलो एक बार
ो जाए और अगर स्त्री कर्र भी
टा दे ना
अपनी तरर्
ार जाती ै तो उसे प ले
से ज्यादा तलेि आहद उत्सपन्न कर दे ने चाह ए। श्लोक(16)- ववश्ब्धस्य प्रमिस्य वाधरमवगह् ृ य दिनान्तगितमननगिमे कृत्सवा
सेदत्सु िोिेिजियेद्वल्गेदाह्लयेन्नत्सृ येतप्रननतितभ्रर् ु ा च ववचलनयनेन मख ु ेन वव सन्ती तानन तानन च िय ू ात ृ्। इनत चम् ु बनयत ु कल ः।।
अथि- कपटघत ू -
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | चुिंबनों की बाजी लगाने पर दस ू री बार भी को अपने दािंतों से दबा लेना चाह ए। ऐसा
ार जाने पर स्त्री को परु ु ष के जरा सा भी असावधान ोने पर स्त्री को जोर से
ोते
ी उसके
ोंठ
िं सना चाह ए और परु ु ष को क ना चाह ए कक
अगर छुडाने की कोमिि करोगे तो काट लग ूिं ी। इसके बाद अपनी जीत पर इतराती ु ई परु ु ष को ताना मारे , जो हदल में ो व ी बोले, आिंखों को घम ु ाकर और िं सते ु ए परु ु ष को चुनौती दें । य ािं पर चुम्बन द्यत ु सम्बन्धी प्रेमकलेि समाप्त ोता
ै।
श्लोक(17)- एतेन नखदिनच्दे द्यप्र र्नद्यत ू कल
अथि- चुम्बन कलेि की
ी तर
व्याख्याताः।।
स्त्री को परु ु ष से नखक्षत (नाखूनों को गढ़ाना), दन्तक्षत (दािंतों से काटना) तथा प्र ार
करने की बाजी भी लगानी चाह ए तथा
ारने के बाद उसी तर
से गस् ु सा करना चाह ए।
श्लोक(18)- चण्डवेगयोरे व त्सवेषािं प्रयोगः तत्ससात्समयात ृ्।।
अथि- य
प्रेम कल
ऐसे स्त्री-परू ु षों के मलए
ी ठीक
ै जो ब ु त
तक ठ रते
ैं।
ी तेज गनत से सिंभोग किया करते ु ए ब ु त समय
श्लोक(19)- तस्यािं चम् ु बन्त्सयामयमप्यि ु रिं गह् ु रचजु म्बतम ृ्।। ृ र्ीयात ृ्। इत्सयि
अथि- जजस समय स्त्री, परु ु ष के
ोंठों को चम ू र ी
ो उस समय परु ु ष को भी स्त्री के ऊपर वाले
से दबा लेना चाह ए। इस तर
के चुम्बन को उिर चम् ु बन क ते
ोंठ को अपने
ोठों
ैं।
श्लोक(20)- ओष्ठसिंदिंिन े ावगह्ृ यौष्ठद्वयमवप चुम्बेत। इनत सिंपट ु किं जस्त्रयाः, पस ुिं ो वाऽजातव्यञ्ञनस्य।।
अथि- परु ु ष को स्त्री के दोनों पकडकर चूम सकती
ोंठों को पकडकर चम् ु बन करना चाह ए। इसी तर
ै । लेककन य
उन् ी परू ु षों के साथ सिंभव सम्पहु टकल क ते
स्त्री भी परु ु ष के दोनों
ै जजनके मछ ूिं े न ीिं
ोती
ै । इस चुम्बन को
ैं।
श्लोक(21)- तजस्मजन्नतरोऽवप जजह्वयास्या दिनान्घट्टयेिालु जजह्वािं चेनत जजह्वायद् ु धम ृ्।।
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ोंठों को
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अथि- जीभ, मुिं परु ु ष जब सम्पट ु चम् ु बन करता ु आ स्त्री के मुिं
और दािंत यद् ु ध-
के तालु और दािंतों में अपनी जीभ को जोर से रगडता
जजह्वायद् ु ध (जीभ का यद् ु ध) क ते
ै तो उसे
ैं।
श्लोक(22)- एतेन बलाद्वदनरदनग्र र्िं दानिं च व्याख्यातम ृ्।।
अथि- इसी तर
मख ु यद् ु ध (मुिं
का यद् ु ध) और दन्तयद् ु ध (दािंतों को यद् ु ध) भी
ोता
ै।
श्लोक(23)- समिं पीडडतमजञ्ञतिं मद ु बन स्थानवविेषयोगात ृ्। इनत चम् ु बनवविेषाः।। ृ ु िेषाङेषु चम्
अथि- खास प्रकार के चम् ु बन- इन चम् ु बनों के अलावा 4 प्रकार के चम् ु बन
ोते
-ैं
सम- इस प्रकार के चम् ु बन में स्त्री और परु ु ष को एक-दस ू रे के सामने बैठकर या लेटकर एक-दस ू रे की जािंघों, छाती और बगल को चम ू ना या गद ु गद ु ाना
ोता
ै।
पीडडत- स्त्री के गालों, नामभ और ननतम्बों को जोर से दबाना या उनको नोचना। अजन्चत- स्तनों के नीचे और बा ू मल ू में धीरे से गद ु गद ु ी करना या कर्र मद ृ -ु स्त्री के स्तनों में, गालों में , ननतिंबों तथा पीठ पर
आचायि वात्सस्यायन चुिंबन में बाजी लगाने के बारे में बताते चूमता
ै या पकडता
भरते ु ए अपने
ै । अगर इसमें स्त्री
ार जाती
ल्के से चम ू ना।
ाथ र्ेरना या स लाना।
ैं अथाित स्त्री या परु ु ष में से कौन प ले ककसका
ै तो उसे रनत कल
करने की राय दी
ाथों को पटके, परु ु ष को धतका मारकर अपने से दरू कर दे , अपने मुिं
ै जैसे व
ोंठ
मससककयािं
को दस ू री तरर् घम ू ा ले। अगर
कर्र भी परु ु ष जबदिस्ती उसे अपनी तरर् करना चा े तो स्त्री को उससे झगडा करते ु ए क ना चाह ए कक चलो एक बाजी कर्र से
अगर स्त्री दब ु ारा से चुिंबनों की बाजी अचानक धोखे से परु ु ष के
ार जाती
ो जाए।
ै तो उसे प ले से भी ज्यादा िोर मचाना चाह ए। इसके बाद
ोठों को अपने दािंतों से दबाकर
िं सते ु ए अपने जीतने की घोषर्ा करनी चाह ए। परु ु ष को
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क कर डराए कक अगर छुडाने की कोमिि की तो काट लग ूिं ी। आिंखों के इिारे से अपनी जीत को जाह र करे । इसी तर
दािंत और नाखूनों से भी चोट प ुिंचाने की कला के भेद
आचायि वात्सस्यायन ने इस तर तलेि करने के बारे में बताया इस तर
के तलेि की जो सीख स्त्री को दी
ै। य
के रगड-झगड, वाद-वववाद से स्त्री और परु िं सिंभोग किया से र ता ु ष की उन ग्रिंधथयों से (जजनका सिंबध
ै)
लेककन इस तर
ै और िरीर में रोमािंच, मन में स्र्ूनति और गप्ु त अिंगों में उिेजना बढ़ती
का प्रेम तलेि
किया करने वाले
ोते
बढ़ जाता
ोकर मसर्ि काम-उिेजना को बढ़ाने वाले प्रेम तलेि
जो ै।
ोता र ता
असली झगडा न
ै उसका अथि उिेजना को बढ़ाना
ोता
स्राव
ै व
ैं।
र ककसी स्त्री और परु ु ष के मलए स ीिं न ीिं
ैं या इस किया के समय जल्दी स्खमलत न ीिं
ै, सिंभोग िजतत की बढ़ोतरी
ोते
ै।
ै । जो स्त्री-परु ु ष ब ु त तेजी से सिंभोग
ैं, इस तर
के तले
आहद से उनका सिंवेग
ोती ै और िारीररक तथा मानमसक आनिंद प्राप्त
ोता
ै।
श्लोक(24)- सप्ु तस्य मख ु मवलोकयन्त्सया स्वामभप्रायेर् चम् ु बनिं रागदीपनम ृ्।।
अथि- गप्ु त चम् ु बन नतधथअगर स्त्री सोए ु ए परु ु ष के मुिं
को ताकती ु ई चूम लेती
जाता
ै । इस तर
ै तो व
परु ु ष तरु िं त उसकी भावनाओिं को समझकर जाग
के चम् ु बन को रागदीपन क ते
ैं।
श्लोक(25)- प्रमिस्य वववदमानस्य वाऽन्यतोऽमभमख ु स्य सप्ु तामभमख ु स्य वा ननिाव्याघाताथि चमलतकम ृ्।।
अथि- अगर परु ु ष ककसी तर
के झगडे आहद के कारर् स्त्री की तरर् बबल्कुल ध्यान न ीिं दे र ा
अपनी ओर आकवषित करने के मलए स्त्री को साधारर् तरीके का चम् ु बन करना चाह ए। इस तर कम क ा जाता
ो तो उसका ध्यान के चम् ु बन को चमलत
ै।
श्लोक(26)- धचररात्रावागतस्य ियनसप्ु तायाः स्वामभप्रायचम् ु बनिं प्रानतबोधधकम ृ्।।
अथि- यहद परु ु ष ककसी कारर् से रात को दे र से घर आता मकसद भी पता चलता
ै और स्त्री भी जाग जाती
ै और सोती ु ई स्त्री को चम ू ता
ै तो इससे परु ु ष का
ै । इस प्रकार के चुम्बन को प्रानतबोधधक क ते
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक(27)- सावप तु भावजजज्ञासाधथिनी नायकस्यागमनकालिं सिंलक्ष्य व्याजेन सप्ु ता स्यात ृ्।।
अथि- परु ु ष का इस तर
चम् ु बन करके जगाने वाली स्त्री को चाह ए कक व
उसके प्यार की परीक्षा लेने के मलए उसके
आने पर ब ाना बनाकर सोती र े ।
श्लोक(28)- आदिे कुडये समलले वा प्रयोज्यायायश्छायाचुम्बनमा-कारप्रदििनाथिमेवकायिम ृ्।।
अथि- पानी में, आईने में, दीवार पर अगर स्त्री की परछाई हदख र ी
ो तो परु ु ष को अपने प्यार का इज ार करने के
मलए उस परछाई का चुम्बन करना चाह ए।
श्लोक(29)- बालस्य धचत्रकमिर्ः प्रनतमायाश्च चम् ु बनिं सिंिान्तकमामलिंगनिं च।।
अथि- ककसी छोटे बच्चे को, तस्वीर को या मनू ति आहद को चम ू ने या आमलिंगन करने के ब ाने अपने मन के भावों को स्त्री पर प्रकट ककया जा सकता
ै।
श्लोक(30)- तथा ननमि प्रेक्षर्के स्वजनसमाजे वा समीपे गतस्य प्रयोज्याया
स्तािंङमलचम् ु बनिं सिंववष्टस्य वा
पादाङमलचम् ु बनम ृ्।।
अथि- रात में जजस स्थान पर कोई खेल आहद स्त्री पास
ी बैठी
ो तो चप ु के से उसके
ो र ा
ो या कर्र सारे ररश्तेदार इकट्ठे
ो र े
ों और व ािं पर अगर
ाथ या पैरों की उिं गमलयों को चूमकर अपने प्यार को प्रकट करना चाह ए।
श्लोक(31)- सिंवाह कायास्तु नायकमाकारयन्त्सया ननिाविादकामाया इव तस्योवोविदनस्य ननधानमरु ु चुम्बनिं चेत्सयामभयोधगकानन।।
अथि- अगर परु ु ष के पैरों को दबाने वाली स्त्री उससे प्रेम करती उसकी जािंघ पर अपने मुिं दे खता
ो तो अपने प्यार को प्रकट करने के मलए स्त्री को
को रख दे ना चाह ए या उसके पैर को अिंगठ ू े को चूसना चाह ए। लेककन अगर कोई स्त्री को
ै तो उसे य ी लगना चाह ए कक स्त्री को नीिंद आ र ी
ै इसमलए उसका मुिं
परु ु ष की जािंघ पर पडा ै ।
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श्लोक(32)- कृते प्रनतकृतिं कुयाििाडडते प्रनतताडडतम ृ्। करर्ेन च तेनव ै चुजम्बते प्रनतचुजम्बतम ृ्।।
अथि- सिंभोग किया करने से प ले काम-उिेजना को तेज करने के मलए जजस तर स्त्री को भी करना चाह ए। जजस चीज से परु ु ष स्त्री पर प्र ार करता चाह ए। जजस प्रकार परु ु ष चुम्बन करता
ै उसी तर
का बतािव परु ु ष करता
ै, वैसा
ी
ै उसी से स्त्री को भी परु ु ष पर प्र ार करना स्त्री को भी चूमना चाह ए।
जानकारीएक-दस ू रे के करीब आना, एक-दस ू रे का भरोसा जीतना, चुम्बन में तलेि, प्र रर्, दन्तक्षत, नखाघात आहद स्त्री और परु ु ष के प्रेम, भरोसे तथा सिंभोग-किया को सख ु दायी बनाते चुम्बन के मलए
ोठों को खास अिंग इसमलए माना जाता
ोंठों के अिंदर ऐसी तरिं गे ब ती खोल दे ती
ै जो बा री स्पिि पाते
ै जजनमें कक अिंदर स्राव
ोता
ये तरिं गे इतनी ज्यादा तेज और गनतिील समय व
ककसी तर
ोंठ िरीर के ब ु त
ै । इसके साथ ोती
ैं।
ै तयोंकक िरीर में सबसे ज्यादा कोमल अिंग य ीिं
तरिं गे ब ु त ज्यादा िजततिाली
ोती
ोते
ी प ले सख ु का ए सास भी इसी ववद्यत ु धारा से
ै कक यव ु क और यव ु ती इसके असर में आनिंद में भरे र ते
ैं इसी वज
ैं।
ी उन नाडडयों और ग्रिंधथयों को उिेजजत करके उनका मुिं
के अच्छे या बरु े पररर्ाम को न सोचते ु ए मसर्ि सिंभोग सख ु के मलए बेचैन र ते
ी कोमल अिंग
ोते ोता
ै।
ैं। इस ैं।
से कोमल भावों को और कोमल प्रभाव डालने में इस अिंग की
ै । जजस समय स्त्री और परु ु ष एक-दस ू रे को चम् ु बन करते
ैं उस वतत उनके
सािंस लेना और सािंस छोडना, उनकी आिंखों की रोिनी, िारीररक ऊजाि सब कुछ कोमल भावों और प्रभावों से व्याप्त र ता
ै तथा इन भावों प्रभावों का आदान-प्रदान स्त्री और परु ु ष में
इन् ीिं के द्वारा आपस में प्यार, भरोसा और उिेजना की बढ़ोतरी असर इतना पडता
ै कक उनमें अगर कोई बरु ाई
ोती
ोता
ै।
ै । य ािं तक कक स्त्री और परु ु ष पर इसका
ोती ै तो दस ू रे को उसकी व
बरु ाई भी अच्छी लगती
स्त्री और परु ु षों की जजिंदगी में नई िािंनत पैदा करने में चम् ु बन को सबसे प ला माध्यम माना जाता म सस ू करने का मख् ु य द्वार चम् ु बन
ी
ोता
ै।
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ै।
ै । आनिंद को
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 4 नखरदन जाततप्रकरण श्लोक (1)- रागवद् ृ धौ सिंघषाित्समकिं नखववलेखनम ृ्।।
नखच्छे द अथि- उिेजना के अधधक बढ़ जाने पर स्त्री और परु ु ष एक-दस ू रे के िरीर पर नाखन ू ों को गढ़ाते
ैं।
श्लोक (2)- तस्य प्रथमसमागमे प्रवासप्रत्सयागमने प्रवासगमने िुद्धप्रसन्नायािं मत्त्यािं च प्रयोगः। न ननत्सयमचण्डवेगयोः।।
अथि- अपने अिंदर की काम-उिेजना को स्त्री को हदखाने के मलए मन्दवेगी (सिंभोग किया में परू ी तर सिंपन्न न ीिं
से जो परु ु ष
ोता) परु ु ष क ीिं दस ू रे दे ि आहद से वापस आने के बाद, सु ागरात के हदन, स्त्री के गस् ु से में आने के बाद, काम से खाली
ोने के बाद या खुि
ोने के बाद नाखन ू ों से स लाते और खुजलाते
ैं।
श्लोक (3)- तथा दिनच्छे द्यस्य सात्सम्यविाद्धा।।
नखच्छे द के भेद अथि- जजस तर
से सिंभोग किया के समय नाखूनों से स भागी के िरीर पर से भी की जा सकती
मला ककया जाता
ै वैसी
ी किया दािंतों
ै।
श्लोक (4) – तदाच्छुररतकमधिचन्िो मिंडल रे खा व्याघ्रनखिं मयरू पदकिं ििप्लत ु कमत्सपलपत्रकममनत रूपतोऽष्टववकल्पम ृ्।।
अथि- ननिानों के अनस ु ार नखच्छे द 8 प्रकार के
ोते
-ैं
आच्छुररतक। अधिचन्ि। मिंडल। रे खा।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | व्याघ्रनख। मयरू पदक। ििप्लत ु क। उत्सपलपत्रक।
श्लोक (5)- कक्षौ स्तनौ गलः पष्ृ ठिं जघनमरू ु च स्थानानन।।
नखच्छे द स्थान अथि- दोनों बगलों में, दोनों स्तन, गला, पीठ, जािंघों और जािंघों के जोड नाखून गढ़ाने के स्थान
ोते
ैं।
श्लोक (6)- प्रवि ु र्िनाभः।। ृ रनतचिार्ािं न स्थानमस्थानिं वा ववद्यत इनत सव
अथि- सव ु र्िनाभ के ववचार कोई भी स्त्री और परु ु ष जब सिंभोग किया में लीन
ो जाते
ैं तो उन् ें इस बात का कोई ध्यान न ीिं र
जाता कक
स भागी के िरीर में ककस स्थान पर नाखन ू ों को गडाना चाह ए या ककस स्थान पर न ीिं गडाना चाह ए।
श्लोक (7)- तत्र सव्य स्तानन प्रत्सयग्रमिखराणर् द्ववबत्रमिखराणर् चण्डवेगयोनिखानन स्यःु ।।
अथि- ऐसे व्यजतत जजनमें काम-उिेजना ब ु त ज्यादा आकार के रखते
ोती
ैं। कोई तो तो अपने
ै व
अपने बाएिं
ाथ के नाखूनों को नक ु ीले तथा लिंबे
र नाखून में 2-3 नोकें रखता
ै।
श्लोक (8)- अनग ु तराजज सममज् ु जवलमममलनमववपाहटतिं वववधधिष्र्ु मद ु ा।। ृ जु स्त्रग्धदििनममनत नखगर्
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- ऩाखूनों के 8 गर् ु
1. नाखून के बीच में जो लाइने ोती ैं व नाखून के रिं ग की ी ोनी चाह ए। 2. नाखून मेिा चमकदार ोने चाह ए। 3. नाखूनों को सार् करके रखना चाह ए। 4. सारे नाखून एक ी आकार के ोने चाह ए न तो कोई ऊिंचा-नीचा ोना चाह ए और न ी कोई टे ढ़ा-मेढ़ा ोना चाह ए।
5. नाखून र्टे ु ए न ीिं चाह ए। 6. नाखून बढ़ने वाले ोने चाह ए। 7. नाखून मेिा मल ु ायम ोने चाह ए। 8. नाखून दे खने में धचकने ोने चाह ए। श्लोक (9)- दीघािणर्
अथि- एक गौड नाम का दे ि जाते
स्तिोभीन्यालोके च योवषतािं धचिग्रा ीणर् गौडानािं नखानन स्यःु ।।
ै ज ािं के लोगों के नाखन ू लिंबे
ैं। इन नाखूनों को दे खकर
ोते
ैं और य ी लिंबे नाखून उनके
ी व ािं की यव ु नतयािं व ािं के यव ु कों की ओर आकवषित
ाथों की िोभा माने ोती
ैं।
श्लोक (10)- मध्यमान्यभ ु यभाजञ्ञ म ाराष्रकार्ाममनत।।
अथि- म ाराष्र में र ने वाले ननवामसयों के नाखन ू मध्यम आकार के
ोते
ैं।
श्लोक (11)- तैः सनु नयममतै िनद ु े िे स्तनयोरधरे वा लघक ु रर्मनितलेखिं स्पििमात्रजननािोमाञ्ञकरमिंते सिंननपातवधिमानिब्दमाच्छुररतकम ृ्।।
अथि- नखच्छे द के लक्षर् अपने दोनों
ाथों की उिं गमलयों को एकसाथ ममलाकर गालों, स्तनों और
ोंठों पर इतने
ल्के से स्पिि करना चाह ए कक
िरीर में उिेजना सी भर जाए। इसके बाद अिंगठ ू े से दस ू रे नाखन ू ों का खट ु का मारकर स्पिि करना आच्छुररतक नखच्छे द क लाता
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (12)- प्रयोज्यायािं च तस्याग्ङसिंवा ने मिरसः कण्डूयने वपटकभेदने व्याकुलीकरर्े भीषर्ेन प्रयोगः।।
अथि- आच्छुररतक का प्रयोग जब स्त्री परु ु ष के िरीर को दबा र ी उिेजना भरनी
ो कक व
बेचैन
ो, मसर खज ु ला र ी
ो, मु ािंसों को र्ोड र ी
ो या जब स्त्री के िरीर में इतनी
ो जाए तो उस समय आच्छुररतक नखच्दे द्य का इस्तेमाल करना चाह ए।
श्लोक (13)- ह्यस्वानन कमिसह ष्र्ूनन ववकल्पयोजनासु च स्वेच्छापातीनन दाक्षक्षर्ात्सयानाम ृ्।।
अथि- दक्षक्षर् दे ि में र ने वाले लोग अतसर छोटे नाखन ू रखते सकते
ैं। ऐसे नाखून न तो टूटते
ैं। उनके ऐसे नाखून ै और न
ी मड ु ते
र तर
के नखच्छे द्य कर
ैं।
श्लोक (14)- ग्रीवायािं स्तनपष्ृ ठे च विो नखपदननवेिोऽधिचन्िकः।।
अथि- अधिचन्ि सिंभोग किया के जब स्तनों तथा गदि न पर अधिचन्ि की तर
नाखन ू ों को गढ़ाकर ननिान बनाया जाता
अधिचन्ि नखच्छे द्य क ा जाता
ै तो उसे
ै।
श्लोक (15)- तावैव द्वौ परस्परामभमख ु ौ मण्डलम ृ्।।
अथि- मिंडल जब दो अधिचन्िों को एक-दस ू रे के आमने-सामने पास
ी पास ककया जाता
ै तो उसे मण्डल नखच्छे द क ते
श्लोक (16)- नामभमल ू ककुन्दरविंक्षर्ेषु तस्य प्रयोगः।।
अथि- प्रयोग
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | सिंभोग किया के समय स भागी के पेडू में ककिंु दर और जािंघों के जोडो में मण्डल नाम का गोल नखक्षत करना चाह ए।
श्लोक (17)- सविस्थानेषु नानतदीघाि लेखा।।
अथि- रे खा सिंभोग किया के समय स भागी के िरीर के ककसी भी अिंग में अपने नाखूनों के द्वारा रे खा सी बनाई जा सकती
ै
लेककन कुछ ज्यादा बडी न ीिं।
श्लोक (18)- सैवा विा व्याघ्रनखकमास्तनमख ु म ृ्।।
अथि- अगर उस रे खा को थोडा सा टे ढ़ा खीिंच करके स्तन के या मुिं
के पास खीिंची जाए तो उसे व्याघ्ररे खा क ा जाता
ै।
श्लोक (19)- पञ्ञमभरमभमख ै ेखा चच ु ल ु क ु ामभमख ु ी मयरू पदकम ृ्।।
अथि- मयरू पदक सिंभोग किया के समय जब स्त्री के स्तनों के ननप्पलों को जाता
ाथ की पािंचों उिं गमलयों से पकडकर जब अपनी तरर् खीिंचा
ै तो उस समय जो रे खािंए बनती
ै उन् ें मयरू पदक क ा जाता
ै।
श्लोक (20)- तत्ससिंप्रयोगश्र्लाघायाः स्तनचच ू ुके सिंननकृष्टानन पञ्ञनखपदानन ििप्लत ु कम ृ्।।
अथि- ििप्लत ु क सिंभोग किया के समय जब स्त्री मयरू पदक नखक्षत की इच्छा करती
ै तो उस समय उसके स्तनों के ननप्पलों को
पािंचों उिं गमलयों से दबाकर जो ननिान बना हदया जाता ै तो उसे ििलत ु क क ते
ैं।
श्लोक (21)- स्तनपष्ृ ठे मेखालापथे चोत्सपलपत्राकृतीत्सयप ु लपत्रकम ृ्।।
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अथि- उत्सपल पत्रक सिंभोग किया के समय जब स्त्री के स्तन और कमर पर कमल की पिंखुडडयों की तर ैं उसे उत्सपलपत्रक क ा जाता
नाखूनों से ननिान बनाए जाते
ै।
श्लोक (22)- ऊवािः स्तनपष्ृ ठे च प्रवासिं गच्छतः स्मारर्ीयके सिं ताश्र्चतस्त्रजस्तस्त्रो वा लेखाः। इनत नखकमािणर्।।
अथि- जजस समय परु ु ष अपनी पत्सनी से दरू जा र ा
ोता
ै तो व
स्त्री के स्तनों तथा जािंघों के जोडों पर अपने
नाखूनों से ननिान बना दे ता ै ताकक स्त्री को उन ननिानों को दे खकर उसकी याद आती र े ।
श्लोक (23)- आकृनतववकारयत ु तानन चान्यान्यवप कुवीत।।
अथि- इनके अलावा स्त्री के िरीर पर दस ू रे कई तर
के ननिान बनाए जा सकते
।ैं
श्लोक (24)- ववकल्पानामनन्तत्सवादानन्तयाच्च कौिलववधेरभ्यासस्य च सविगाममत्सवािागात्समकत्सवाच्छे द्यस्य प्रकारन ृ् कोऽमभसमीक्षक्षतम ु ितीत्सयाचायािः।।
अथि- कामिास्त्र की रचना करने वाले लेखकों ने य
क ा
के अलग-अलग भेदों की कोई धगनती न ीिं की जा सकती करने में लीन
ो जाता
ै कक अभ्यास तथा कौिल से व्यापकता के कारर् नखक्षत ै । इसके अलावा काम-उिेजना में भरकर व्यजतत नखक्षत
ै । इस अवस्था में उसे नखक्षत करने की कला और नखक्षत के भेदों का ध्यान न ीिं र ता
श्लोक (25)- भववत ह
ै।
रागेऽवप धचत्रापेक्षा। वैधचत्र्याच्च परस्परिं रागो जननयत्सवयः। वैचक्षर्ययत ु ताश्र्च गणर्कास्तत्सकाममनश्र्च ककिं पन ु रर े नत वात्सयायनः।।
अथि- इस बताए ु ए कथन के मत ु ाबबक आचायि वात्सस्यायन का क ना
ववधचत्र कियाएिं करने की इच्छा बनी
ी र ती
ै कक उिेजजत अवस्था में कई तर
ै । जो लोग सिंभोग करने की ब ु त सी कलाओिं में ननपर् ु
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की धचत्रोते
ैं उनसे
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ैं जो इस कला में ब ु त
ी ज्यादा ननपर् ु
की इच्छा इस कला में ननपर् ु परु ु ष भी ककया करते
ोती
ैं और ऐसी
ी जस्त्रयों
ैं।
श्लोक (26)- न तु परपररग ृ ीतास्वेव।िं प्रच्छे न्नेषु प्रदे िष े ु तासामनस् ु मरर्ाथि रागवधिनाच्च वविेषान्दिियेत ृ्।।
अथि- पराई जस्त्रयों के साथ नखक्षत (नाखूनों से काटना), दन्तक्षत (दािंतों से काटना) आहद न ीिं करना चाह ए बजल्क यादगार के मलए तथा उिेजना को बढ़ाने के मलए उनके गप्ु त स्थानों में नाखूनों के द्वारा ननिान बना दे ने चाह ए।
श्लोक (27)- नखक्षतानन पश्यन्त्सया गढ ृ ाप्यमभनवा प्रीनतभिवनत पेिला।। ृ ास्थानेषु योवषतः धचरोत्ससट
अथि- स्त्री जब अपने गप्ु त अिंगों में नाखन ू ों के ननिान दे खती
ै तो उसे अपने परु ाने प्रेमी की याद आ जाती ै ।
श्लोक (28)- धचरोत्ससष्ृ टे षु रागेषु प्रीनतगिच्छे त्सपराभवभ ृ्। रागायतनसिंस्मारर यहद न स्यान्नखक्षतम ृ्।।
अथि- स्त्री के िरीर पर अगर रूप, गर् ु , यौवन की याद हदलाने वाले परु ु ष के नाखन ू ों के ननिान न ीिं कारर् उसका कार्ी हदनों से छूटा ु आ प्यार बबल्कुल
ी समाप्त
ो जाता
ोते
ैं तो इसके
ै।
श्लोक (29)- पश्यतो यव ु नतिं दरू ान्नखोजच्छष्टपयोधराम ृ्। ब ु मानः परस्यावप रागयोगश्र्च जायते।।
अथि- परु ु ष ने जजस स्त्री के िरीर पर नाखूनों के ननिान हदये
ो उसे जब व
उसके प्रनत सम्मान और काम-उिेजना पैदा
दरू से
ो जाती
ी दे खता ै तो उसके अिंदर
ै।
श्लोक (30)- परषश्र्च प्रदे िष ु ु नखधचह्रै वविधचहह्रतः। धचतिं जस्थरमवप प्रायश्र्चलयत्सयेव योवषतः।।
अथि- अपने िरीर के अलग-अलग अिंगों में परु ु ष के द्वारा लगाए गए नाखूनों के ननिान दे खकर अतसर स्त्री का हदल खुि
ो जाता ै ।
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श्लोक (31)- नान्यत्सु पटुतरिं ककिं धचदजस्त रागवववधिम ृ्। नखदन्तसमत्सु थानािं कमिर्ािं गतयो यथा।।
अथि- स्त्री और परु ु ष की काम-उिेजना को सबसे ज्यादा नखक्षत और दिं तक्षत किया तेज करती
ै।
जानकारीवात्सस्यायन ने कामसत्र ू में खासतौर पर 8 तर
के नखक्षतों को बताया
ककस समय, ककस जग
और ककस तर
सिंभोग किया के समय नखक्षत करना एक कला माना जाता सिंभोग करते समय परु ु ष को तरीके से करता
ै और य
भी बताया
ै कक नखक्षतों को
का करना चाह ए।
ै । वात्सस्यायन का य
र किया स ी तरीके से करने की इच्छा
ै जस्त्रयािं भी उसी परु ु ष को सबसे ज्यादा प्यार करती
ोती
ववचार सबसे अच्छा लगता
ै कक
ै । जजस कायि को परु ु ष सबसे अलग
ै और उसको पाने की कोमिि में लगी र ती
ैं। वात्सस्यायन के मत ु ाबबक सिंभोग किया के समय नखक्षत मसर्ि सिंभोग किया को याद करना कारर् से अपने प्रेमी को छोड दे ती दे खती
ै व
ै। य
ैं। अगर उस तर
ै । जो स्त्री ककसी
अगर अपने िरीर के गप्ु त स्थानों में परु ु ष के द्वारा हदए ु ए ननिानों को
ै तो उसके हदल में प्रेमी के मलए कर्र से प्यार उमड पडता
नखक्षत और दिं तक्षत किया के र्लस्वरूप स्त्री के िरीर पर जो ननिान हदलाते
ी
के ननिान न ीिं
ोते
ैं व
ै।
उसको उसके यौवनवास्था की याद
ोते तो स्त्री लिंबे समय से अपने छोडे ु ए प्रेमी को बबल्कुल
ी भल ू जाती
ी ननिान स्त्री को अपने रूप, यौवन और सिंभोग किया में बबताए ु ए पलों को आिंखों के सामने ले आते
िरीर के उन भागों में काम-उिेजना बढ़ाने वाले केंि
ोते
ैं जो सिंभोग से प ले की जाने वाली चिंब ु न, आमलिंगन या
नखक्षत िीडा की प्रकिया में यौनरूप से ज्यादा अनभ ु नू तिील नखक्षत करने का ववधान बताया
ै व
मौके पर सिंवेदनिील
ो जाते
प्रेमी का कतिव्य
करे जजसकी वज
ोते
ैं। यौवन के समय य
अमभवद् ू ि अनभ ु नू त और तजृ प्त ककस तर ृ धध, पर् करना चाह ए। य
ोते
सभी काम-उिेजना के केंि
िरीर के दस ू रे अिंगों की अपेक्षा ज्यादा सिंवेदनिील
ोता
से प्रेममका में परू ी तर
ै कक व
ैं। आचायि वात्सस्यायन ने िरीर के जजन अिंगों में ैं। यौन दृजष्ट के मत ु ाबबक
ैं। राग की
ै - इसकी मिक्षा में नखक्षत आहद का ज्ञान जरूर
ामसल
प्राकिीडा के स्त्री के िरीर के उन अिंगों को तलाि करके ववकमसत
से काम-उिेजना पैदा
ो जाए। आचायि वात्सस्यायन ने इसी दृजष्टकोर् को
ै कक आचायि वात्सस्यायन ने जजस तर
को िि या मग ृ ी आहद की सिंज्ञा दी ै उसी तर
अिंग
ैं जो ककसी खास
काम-उिेजना के केंि ज्यादा खास स्थान रखते
अपने ध्यान में रखकर नखक्षत और दिं तक्षत अध्याय की रचना की य ािं पर एक बात बताना और भी जरूरी
र इिंसान के य
ैं। इनके अलावा उसके कुछ ऐसे अिंग भी
से ममलती
ैं।
ै।
सिंभोग करने के मलए परु ु ष और स्त्री
िारीररक ववज्ञान और मनोववज्ञान के दृजष्टकोर् से नखक्षत प्रयोग के
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | मलए भी उसे वगीकरर् करना चाह ए था तयोंकक
र इिंसान का सािंचा बराबर अलग
ोता
ै।
ोते ु ए भी आवयववक गठन अलग-
श्लोक- इनत श्ीवात्सस्यायनीये कामसत्र ू े सािंप्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े चतथ ु ेऽध्यायः।
ध्याय 5 दिन छे द्यववधध प्रकरर्
श्लोक(1)- उिरौष्ठमन्तमख ुि िं नयनममनत मि ु वा चम् ु बनवद्दिनरदन स्थानानन।।
अथि- ऊपर वाला
ोंठ, आिंख और जीभ को छोडकर बाकी सभी व
अिंग जजनमें चब िंु न ककया जा सकता
से भी काटा जा सकता
ै उनको दािंतों
ै।
श्लोक(2)- गर् ु ाना - समाः जस्नग्धच्छाया रागग्राह र्ो यत ु तप्रमार्ा ननजश्छिास्तीक्ष्र्ाग्रा इनत दिनगर् ु ाः।।
अथि- दािंतों के गर् ु दािंत ऊिंचे-नीचे न
ोकर बबल्कुल समान
ोने चाह ए। दािंत न तो ब ु त ज्यादा बडे
ोने चाह ए। दािंतों में चमक ोने चाह ए और न
ोना चाह ए। दािंत एक-दस ू रे से बबल्कुल सटे
ोनी चाह ए, पान आहद खाने से दािंत लाल न ीिं
ी ज्यादा छोटे
ोने चाह ए। दािंतों के बीच में छे द न ीिं
ोने चाह ए और तेज
ोने चाह ए।
श्लोक(3)- कुण्ठा राज्यि ु ताः परु ु षाः ववषमाः श्लक्ष्र्ाः पथ ृ वो ववरला इनत च दोषाः।।
अथि- दािंतों के अवगर् ु दािंतों का छोटा-बडा
ोना, बा र की तरर् ननकलना, एक-दस ू रे से दरू ी पर
ोना, खुरदरे
ोना, पीलापन छाना आहद।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक(4)- गढ ू कमच् ु छूनकिं बबन्दबु बिन्दम ु ाला प्रवालमणर्मिणर्माला खण्डाभ्रकिं वरा चववितकममनत दिनच्छे दनववकल्पाः।।
अथि- दािंतों से काटने वाले 8 भेदगढ ू क, उच्छूनक, बबन्दम ु ाला, बबन्द,ु प्रवासमणर्, मणर्माला, खण्डाभ्रक तथा वरा चववित दािंतों से काटने वाले 8 भेद
ोते
ैं।
श्लोक(5)- नानतलोह तेन रागमात्रेर् ववभावनीयिं गढ ू कम ृ्।।
अथि- गढ़ ू क जब
ोंठों को दािंतों से
ल्का सा दबाया जाता
ै तो
ोंठ में
ल्का सा लालपन आ जाता
ै लेककन ननिान न उभरे तो
उसे गढ़ ू क क ा जाता ै ।
श्लोक(6)- तदे व पीडनादच्ु छूनकम ृ्।।
अथि- उच्छूनक ोंठ को जोर से काटने को उच्छूनक क ा जाता
ै।
श्लोक(7)- तदभ ु यिं बबन्दरु धरमध्य इनत।।
अथि- उच्छूनक गढ ु क और बबन्द ु ोंठों के बीच में ककये जाते
ैं।
श्लोक(8)- उच्छूनकिं प्रवालमणर्श्च कपोले।।
अथि- उच्छूनक और प्रवालमणर् गालों पर
ी ककये जाते
ैं।
श्लोक(9)- कर्िपरू चुिंबन नखदिनच्छे द्यममनत सव्यकपोलमण्डनानन।।
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अथि- दािंतों और नाखून से काटना, चुिंबन तथा कर्िपरु बाएिं गाल के श्िंग ृ ार क लाते
ैं।
श्लोक(10)- दन्तौष्ठसिंयोगाभ्यासननष्पादनात्सप्रवालमणर्मसद्धधः।।
अथि-
र बार एक
ी जग
को दािंतों और
ोंठों से दबाने की किया को प्रवालमणर् क ते
ैं।
श्लोक(11)- सविस्यैयिं मणर्मालायाि ृ् च||
श्लोक(12)- अल्पदे िायाश्च त्सवचो दिनद्वचसिंदिंिजा बबन्दमु सद्धधः।
अथि- िरीर के ब ु त से अिंगों पर बार-बार दािंतों से काटने पर जब रे खा सी उभर आती
ै तो उसे मणर्माला क ते
श्लोक(13)- अल्पदे िायाश्च त्सवचो दिनद्बयसिंदिंिजा बबन्दमु सद्धधः।।
अथि- दािंतों से गदि न आहद की खाल को खीिंचकर
ल्का सा ननिान बना दे ने को बबिंद ु क ते
श्लोक(14)- सवैंबबिन्दम ु ालायाश्च।। अथि- ऐसे
ी िरीर में एक
ी जग
पर ब ु त सारे बबिंदओ ु िं को बबिंदम ु ाला क ते
ैं
श्लोक(15)- तस्यान्मालाद्वयमवप गलकक्षविंक्षर्प्रदे िष े ।ु ।
अथि- जािंघों और माथे पर भी बबिंदम ु ाला
ो सकती
ै।
श्लोक(16)- मण्डलममव ववषमकूटकयत ु तिं खण्डाभ्रकिं स्तनपष्ृ ठ एव।।
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ैं।
ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- दािंतों से स्तनों पर बादल के टुकडे की तर
ननिान बनाने को खण्डाभ्रम क ते
ैं।
श्लोक(17)- सिं ताः प्रदीघाि बह्वयो दिनपदराजयस्ताम्रान्तराला वरा चववितकम ृ्। स्तनपष्ृ ठ एव।।
अथि- स्तनों पर दािंत गडाने की वज
से लाल रिं ग के ब ु त सारे ननिान बनने को वरा चववितक क ा जाता
ै।
श्लोक(18)- तदभ ु यमवप च चण्डवेगयोः। इनत दिनच्छे द्यानन।।
अथि- खण्डाभ्रक और वरा चववितक दािंतों से काटने की कियाओिं को व ी स्त्री और परु ु ष कर सकते ै जजनमें सिंभोग किया के समय काम-उिेजना ब ु त ज्यादा
ो जाती
ै। य ािं पर दािंतों से काटने के भेद समाप्त
ोते
ैं।
श्लोक(19)- वविेषका कर्िपरू े पष्ु पापीडे ताम्बल ू पलािे तमालपत्रे चेनत प्रयोज्यागाममषु नखदिनच्छे द्यादीन्यामभयोधगकानन।।
अथि- स्त्री के मलए मलए जा र े पान के बीडे पर, तमालपत्र पर, कानों में प नने वाले नीलकमल पर और श्िंगार के मलए माथे पर लगाने वाले भोजपत्र पर परु ु ष को अपने दािंतों तथा नाखूनों से ननिान बनाकर अपने प्यार का इज ार करना चाह ए।
श्लोक(20)- दे िासात्समयाच्च योवषत उपचरे त ृ्।। अथि- दे िोपचार-प्रकरर् इसमें अलग-अलग दे िों की जस्त्रयों के नाखूनों और दािंतों से काटने के ररवाज बताए जा र े
== = श्लोक(21)-मध्यदे श्या आयिप्रायाः िच् ु यप ु चाराश्चचुम्बननखदन्तपदद्वेवषण्यः।।
अथि- ववन्द्ययाचल और ह माचल के मध्य प्रदे ि की आयि जानत की जस्त्रयािं पववत्र प्यार पर ववश्वास करती सिंभोग किया के समय ऩाखन ू गढ़ाना, दािंतों से काटना या चुिंबन आहद से घर् ृ ा करती श्लोक(22)- बाह्लीकदे श्या आवजन्तकाश्च।।
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ैं।
ैं। व
ैं।
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अथि- बाह्लीक और अविंती दे ि की जस्त्रयों को भी सिंभोग किया के समय चुिंबन आहद करना पसिंद न ीिं
ोता
ै।
श्लोक(23)- धचत्ररतेषु त्सवासाममभननवेिः।।
अथि- लेककन बाह्लीक और अविंती दे ि की जस्त्रयों को धचत्ररत में खास रुधच र ती ै ।
श्लोक(24)- पररष्वङग्चुिंबननखदन्तचूषर्प्रधानाः क्षतवजजिताः प्र र्नसाध्या मालव्य आभीयिश्च।।
अथि- मालवा और आभीर दे ि की जस्त्रयों को आमलिंगन, नाखन ू ों को गढ़ाना, दािंतों से काटना, चिंब ु न और मख ु मैथन ु ज्यादा पसिंद
ोता
ै । लेककन इनके नाखन ू ों या दािंतों से परु ु ष के िरीर पर ककसी तर
के जख्म न ीिं
किया के समय परु ु ष द्वारा प्र ार आहद करने पर भी इन् ें चरमसख ु की प्राजप्त
ोती
ोते
।ैं सिंभोग
ै।
श्लोक(25)- मसन्धष ु ष्ठानािं च नदीनामन्तरालीया औपररष्टकसात्सम्याः।।
अथि- मसिंधु नदी तथा सतलज ु नदी के आसपास र ने वाली जस्त्रयािं मख ु मैथन ु करना ज्यादा पसिंद करती
ैं।
श्लोक(26)- चण्डवेगा मन्दसीत्सकृता आपराजन्तका लाटयश्च।।
अथि- सरू त, भरौंच, अपरान्तक आहद के पास र ने वाली जस्त्रयों में काम-उिेजना ब ु त ज्यादा करते समय मुिं
से
ल्की- ल्की सी-सी की आवाजें ननकाला करती
ोती
ै और व
सिंभोग
ैं।
श्लोक(27)- दृढप्र र्नयोधगन्यः खरवेगा एव, अपिव्यप्रधानाः स्त्रीराज्ये कोिलायािं च।।
अथि- जजन दे िों में जस्त्रयों की सिंख्या ज्यादा के मलए ऐसे परू ु षों की जरूरत
ोती
ोती
ै या कौिल दे ि में जस्त्रयों को अपनी काम-उिेजना को िािंत करने
ै जो सिंभोग कला में परू ी तर
से ननपर् ु
ोते
ैं। उनको िािंत करने के मलए
ननममि किया अथाित उनकी योनन में परु ु ष को अपने मलिंग द्वारा तेज प्र ार करने पडते न ीिं
ोती तो उन् ें नकली मलिंग का प्रयोग करना पडता
ैं। कर्र भी जब स्त्री िािंत
ै।
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श्लोक(28)- प्रकृत्सया मद् ृ या रनतवप्रया अिधु चरुचयो ननराचाराश्चान्ध्रयः।।
अथि- आिंध्र प्रदे ि की जस्त्रयािं वैसे तो स्वभाव से नाजुक
ोती
ै लेककन व
सिंभोग किया को पसिंद करने वाली, मन में
अश्लील ववचार रखने वाली, चररत्र ीन गर् ु ी वाली
ोती ै ।
श्लोक(29)- सकलचतःु षजष्टप्रयोगराधगण्योऽश्लीलपरुषवातयवप्रयाः ियने च सरभसोपिमा म ाराजष्रकाः।।
अथि- म ाराष्र दे ि की जस्त्रयािं सिंभोग की 64 कलाओिं को पसिंद करती ैं और सिंभोग की िरु ु आत ब ु त
ै, व
गिंदे और अश्लील और कडवे बोल बोलती
ी जोि के साथ करती
ैं।
श्लोक(30)- तथाववधा एव र मस प्रकािन्ते नागररकाः।।
अथि- पाटमलपत्र ु की जस्त्रयािं भी म ाराष्र की जस्त्रयों की तर
ी
ी करती
ोती
ैं लेककन व
64 कलाओिं का अभ्यास अकेले में
ैं।
श्लोक(31)- मद् ृ यमानाश्चामभयोगान्मिंद मिंदिं प्रमसञ्चन्ते िववडय।।
अथि- सिंभोग किया की िरू ु आत
ोने के बाद िववड दे ि की जस्त्रयों में धीरे -धीरे रजस्राव (मामसकस्राव)
ोने लगता
ै।
श्लोक(32)- मध्यमवेगाः सविस ाः स्वाङग्प्र ामसन्यः कुजत्ससताश्लीलपरुषपरर ाररण्यो वानवामसकाः।।
अथि- कोंकर् दे ि की जस्त्रयािं सिंभोग किया में ब ु त
ी मिधथल
गढ़ाना, दािंतों से काटना, आहद सभी कुछ करवा लेती ै लेककन व ै और दस ू रों के अिंगों की िं सी उडाती
ैं। य
ोती ै । व
इस किया में चुिंबन, आमलिंगन, नाखूनों को
अपने िरीर के अिंगों को ढककर रखना पसिंद करती
जस्त्रयािं दष्ु ट, गस् ु सैल, गिंदे लोगों को नापसिंद करती
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक(33)- मद ु ावषण्योऽनरु ागवत्सयो मद् ृ भ ृ वयङग्यश्च गौडयः।।
अथि- पजश्चमी बिंगाल की जस्त्रयािं कोमल अिंगों वाली और अपने पनत से प्यार करने वाली
ोती
ैं।
श्लोक(34)- उपग ृ नाहदषु च रागवधिनिं पव ू ं पव ू ं ववधचत्रमि ु रमि ु रिं च।।
अथि- आमलिंगन, चुिंबन, दािंतों से काटना, नाखूनों को गढ़ाना, प्र र्न और सीत्सकार में से उिेजना बढ़ाने वाला
ोता ै और प ले से ज्यादा अनोखा
र एक के बाद एक काम-
ोता
ै।
श्लोक(35)- वायिमार्श्च परु ु षो यत्सकुयाििदनु क्षतम ृ्। अमष्ृ यमार्ा द्ववगर् ु िं तदे व प्रनतयोजयेत ृ्।।
अथि- अगर परु ु ष स्त्री के मना करने के बाद भी उसे नाखन ू ों से नोचता या दािंतों से काटता
ै तो स्त्री को परु ु ष के
िरीर पर उससे ज्यादा तेज नोचना और काटना चाह ए।
श्लोक(36)- बबन्दोः प्रनतकिया माला मालायाश्चाभ्रखण्डकम ृ्। इनत िोधाहदवाववष्टा कल ान्प्रयोजयेत ृ्।।
अथि- बबिंद ु के बदले माला, माला के बदले अभ्रखण्डक का ननिान स भागी के िरीर पर दािंतों से इस तर चाह ए जैसे कक गस् ु से में बनाया गया
बनाना
ो। इसके अलावा और भी कई प्रकार के प्रेमयद् ु ध भी ककये जा सकते
श्लोक(37)- वायिमार्ि ृ् च परु ृ् ु षो यत ृ् कुयाित ृ् तद् अनु क्षतम|ृ् अमष्ृ यमार्ा द्ववगर् ु िं तद् एव प्रनतयोजयेत||
श्लोक(38)- बबन्दोः प्रनतकिया माला मालायाि ृ् चअभ्रखण्डकम|ृ् इनत िोधआहदवाववष्टा कल ान ृ् प्रनतयोजयेत|| ृ्
श्लोक(39)- सकचग्र मत्र ु म्य मख ु िं तस्य ततः वपबेत ृ्। ननलीयेत दिेच्चैव तत्र तत्र मदे ररता।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- स्त्री को एक
ाथ से परु ु ष के बाल पकडकर और दस ू रे
ाथ से उसकी ठोढ़ी को पकडकर उसके
चाह ए और इतने जोर से उसका आमलिंगन करना चाह ए कक जैसे दोनों एक-दस ू रे में समा र े
ोंठों को चूसना
ो। इसके अलावा िरीर
में ब ु त से स्थानों पर दािंतों से काटना भी चाह ए।
श्लोक(40)- ववधानान्तमा - उन्नम्य कण्ठे कान्तस्य सिंधश्ता वक्षसाः स्थलीम ृ्। मणर्मालािं प्रयञ् ु ञीत यच्चान्यवप लक्षक्षतम ृ्।
अथि- इसके बाद परु ु ष की छाती के ऊपर बैठकर एक
ाथ से उसके मुिं
को ऊपर उठाकर और दस ू रे
ाथ को उसके
गले में डालकर उसकी गदिन तथा उसके आसपास के भाग में अपने दािंतों से मणर्माला के ननिान बना दें ।
श्लोक(41)- हदवावप जनसिंबाधे नायकेन प्रदमिितम ृ्। उद्हदश्य स्वकृतिं धचह्निं
सेदन्यैरपक्षक्षता।।
अथि- परु ु ष अपने दोस्तों के साथ बैठे ु ए जब उन् ें अपने िरीर पर अपनी पत्सनी के द्वारा बनाए गए ननिानों को हदखाता ै तो उस समय स्त्री को दस ू री तरर् मिंु
करके
िं सना चाह ए।
श्लोक(42)- ववकूर्यन्तीव मख ु िं कुत्ससयन्तीव नायकम ृ्। स्वगात्रस्थानन धचह्नानन सासय ू ेव प्रदिियेि ृ्।।
अथि- इसके बाद स्त्री को मिंु
बनाते ु ए और परु ु ष को णझडकी दे ते ु ए अपने िरीर पर परु ु ष द्वारा बनाए गए ननिानों को हदखाना चाह ए।
श्लोक(43)- परस्परानक ु ु ल्येन तदे विं लज्जमानयोः। सिंवत्ससरितेनावप प्रीवपनि पररह यते।।
अथि- एक-दस ू रे के प्रनत िमि का और प्रेम का भाव रखते ु ए स्त्री और परु ु ष का प्रेम कई सौ सालों तक भी कम न ीिं ो सकता।
जानकारी-
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि वात्सस्यायन ने दिं तक्षत (दािंतों से काटना) और नखक्षत (नाखूनों से काटना) के सिंबध िं ी दे िाचार का उल्लेख करते ु ए मध्य दे ि, वाह क, अवन्ती, मसिंधु-सतलज का अिंतराल, मालव, स्त्री-राज्य कौिल, अपरान्तक, म ाराष्र नगर, आिंध्र, िववड, बन, लाट, गौड, कोकर् और आभीर दे िों का वर्िन ककया
आचायि वात्सस्यायन के इस वर्िन के द्वारा मसर्ि भारत का मानधचत्र
ी प्रस्तत ु न ीिं
प्रववृ ियों का भी पररचय ममलता
ै।
ोता बजल्क
र दे ि के लोगों की
ै।
श्लोक- इनत श्ीवात्सस्यायनीये कामसत्र ू े साम्प्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े दिनच्छे द्यववधयो दे श्योश्चोपचाराः पञ्ञमोऽध्यायः।।
अध्याय 6 संवेशन प्रकरण (संभोग कक्रया के अलग-अलग आसन) श्लोक (1)- रागकाले वविाल यन्स्येव जघनिं मग ृ ी सिंवविेदच्ु चरे त।।
अथि- इसमें सिंभोग किया करने के अलग-अलग तरीकों को बताया जाएगा।
श्लोक (2)- अव ासयन्तीव
अथि- अगर बडी योनन वाली
जस्तनी नीचरते।।
जस्तनी स्त्री छोटे मलिंग वाले िि परु ु ष के साथ सिंभोग करती
ै तो उसे अपनी जािंघों को
मसकोड लेना चाह ए। श्लोक (3)- न्याय्यो यत्र योगस्तत्र समपष्ु ठम ृ्।।
अथि- अगर स्त्री और परु ु ष के योनन और मलिंग एक
ी आकार के
ो तो ऐसे में सिंभोग किया के समय स्त्री को अपनी
जािंघों को समेटने की जरूरत न ीिं
ै।
श्लोक (4)- आभ्यािं वडवा व्याख्याता।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- प ले बताई गई दोनों तर
की जानतयों की तर
परु ु ष अगर अश्व जानत से सिंबधिं धत
ी बढ़वा जानत की जस्त्रयों के बारे में समझा जाता
ै। जैसे
ै तो बढ़वा जानत की स्त्री को सिंभोग करते समय अपनी जािंघों को चौडा कर लेना
चाह ए लेककन अगर परु ु ष वष ृ जानत से सिंबधिं धत
ै तो स्त्री को अपनी जािंघों को समान्य
ी रखना चाह ए।
श्लोक (5)- तत्र जघनेन नायकिं प्रनतगह् ृ वीयात ृ्।
अथि- सिंभोग करते समय स्त्री को लेटने के बाद अपनी दोनों जािंघों से परु ु ष को जकड लेना चाह ए।
श्लोक (6)- अपिव्याणर् च सवविेषिं नीचरते।।
अथि- अगर सिंभोग करने वाले परु ु ष का मलिंग छोटा
ै और व
स्त्री की काम-उिेजना को िािंत करने में असमथि र ता
ै तो इसके मलए स्त्री नकली मलिंग का प्रयोग कर सकती
ै।
श्लोक (7)- उत्सर्ुल्लकिं ववजजृ म्भतकममन्िाणर्किं चेनत बत्रतयिं मग्ृ याः प्रायेर्।।
अथि- उत्सर्ुल्लक, ववजजृ म्भतक और इन्िाणर्क तरीकों से मग ृ ी स्त्री को अपनी योनन चौडी करनी चाह ए।
श्लोक (8)- मिरो ववननपात्सयोध्वि जघनमत्सु र्ुल्लकम ृ्।।
अथि- उत्सर्ुल्लक मग ृ ी स्त्री अगर अपने मिरोभाग को नीचा करके कहट वाले भाग को ऊिंचा कर लेती ो जाता
ै । इसे उत्सर्ुल्लक क ते
ै तो इससे उसका योननद्वार चौडा
ैं। इसके मलए स्त्री को अपनी कमर के नीचे तककया रख लेना चाह ए।
श्लोक (9)- तत्रापसारिं दद्यात ृ्।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- जब स्त्री का मिरोभाग नीचा
ो जाए और ननतिंब वाला भाग ऊिंचा उठ जाए तो उस समय स्त्री और परु ु ष को
सिंभोग करते समय थोडा पीछे
टते जाना चाह ए।
श्लोक (10)- अनीचे सजतथनी नतयिगवसज्य प्रतीच्छे हदनत ववजजृ म्भतकम ृ्।।
अथि- ववजजृ म्भतक स्त्री की दोनों जािंघों को र्ैलाकर ऊिंचा उठाने से उसका योननद्वार चौडा
ो जाता ै । ऐसे में अगर परु ु ष अपने मलिंग
को नतरछा करके स्त्री की योनन में प्रवेि कराता ै तो उसे ववजजृ म्भतक क ा जाता
ै।
श्लोक (11)- पाश्र्वियोः सममरू ू ववन्यस्य पाश्र्वियोजािनन ु ी ननदध्याहदत्सयभ्यासयोगाहदन्िार्ी।।
अथि- सबसे प ले इस सिंभोग किया की इस ववधध को इिंिार्ी ने ककया था जजसकी वज इस ववधध का थोडे हदनों तक अभ्यास करने से य
परू ी तर
से आ जाती
से इसका नाम इन्िार्ी पडा।
ै । परु ु ष को स्त्री की जािंघों को अपने दोनों
ाथों से पकड लेना चाह ए और उसके पैरों को अपनी दोनों कािंखों से लगा लेना चाह ए।
श्लोक (12)- तयोच्चतररतस्यावप पररग्र ः।।
अथि- अगर परु ु ष अश्व जानत का
ो और स्त्री मग ृ ी जानत की
ो तो भी इन्िाणर् आसन के जररये दोनों सिंभोग के
चरम सख ु पर प ुिं च सकते
ैं।
श्लोक (13)- सिंपट ु े न प्रनतग्र ो नीचरते।।
अथि- नीचरत में स्त्री को अपनी योनन को मसकोड लेनी चाह ए।
श्लोक (14)- एतेन नीचतररतेऽवप
जस्तन्याः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- ऐसे
ी अगर
जस्तनी स्त्री िि जानत के परु ु ष के साथ सिंभोग करती र ता
ै तो उनके मलए सम्पट ु क आसन अच्छा
ै।
श्लोक (15)- सिंपट ु किं पीडडतकिं वेष्टतकिं वाडवकममनत।।
अथि- नीची जानत में सिंपट ु क, पीडडतक, वेजष्टतक तथा वाडलक चार तर
के उपवेिन
ोते
ैं।
श्लोक (16)- ऋजुप्रसाररतावभ ु ावप्यभ ु योश्र्चर्ाववनत सिंपट ु ः।।
अथि- सिंभोग किया के समय जब पनत और पत्सनी दोनों अपनी-अपनी टािंगों को सीधे पसारकर ममलाते सम्पट ु क क ते
ैं तो उसे
ैं।
श्लोक (17)- स द्ववववधः पाश्र्चसिंपट ु उिानसिंपट ु श्र्च। तथा कमियोगात ृ्।।
अथि- पाश्विसम्पट ु - उिानसम्पट ु सम्पट ु क दो तर मिंु
का
ोता ै - पाश्वि सम्पट ु तथा उिान सम्पट ु । जब स्त्री और परु ु ष करवट लेकर एक-दस ू रे के सामने
करके सिंभोग करते
लेटकर सिंभोग करता
ैं तो उसे पाश्वि सम्पट ु क ा जाता ै तो उसे उिान सम्पट ु क ते
को दाईं तरर् लेटना चाह ए। सिंभोग करने की य
ै । जब स्त्री बबल्कुल सीधी लेटी
ो और परु ु ष उसके ऊपर
ैं। अगर दोनों करवट लेकर सिंभोग करना चा े तो ऐसे में परु ु ष ववधध
र तर
के परु ु षों और जस्त्रयों के मलए समान
श्लोक (18)- पाश्र्चेर् तु ियानो दक्षक्षर्ेन नारीमधधियीतेनत साविबत्रकमेतत ृ्।।
अथि- सिंभोग के समय परु ु ष को स्त्री को अपनी बाईं तरर् सल ु ाना चाह ए।
श्लोक (19)- सिंपट ु कप्रयत ु तयन्त्रेर्ैव दृढमरू ू पीडयेहदनत पीडडतकम ृ्।।
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- पीडडतक सिंभोग करते ु ए स्त्री-परु ु ष जब सम्पट ु क आसन का प्रयोग करते दबाते
ैं तो व
ैं। इसे पीडडतक क ते
ैं।
एक-दस ू रे की जािंघों को ब ु त जोर से
श्लोक (20)- ऊरू व्यत्सयस्येहदनत वेजष्टतकम ृ्।।
अथि- वेजष्टतक सिंभोग किया के समय जब स्त्री अपनी योनन को मसकोडने के मलए एक जािंघ को दस ू री जािंघ पर रखती वेजष्टतक क ते
ै तो उसे
ैं।
श्लोक (21)-वडवेव ननष्ठुरमवगजृ ह्वयाहदनत वाडवकमाभ्यामसकम ृ्।।
अथि- वाडवक जजस तर
से घोडी अपनी योनन के द्वारा घोडे के मलिंग को ब ु त तेजी से कस लेती
से परु ु ष के मलिंग को जकड लेती इसके मलए खास तर
ै तथा अमलिंगन, चिंब ु न आहद करती
के अभ्यास की जरूरत
ोती
ै उसी तर
से स्त्री अपनी योनन
ै तो इस आसन को वाडवक क ा जाता
ै जजसमें वेश्याएिं ब ु त ज्यादा ननपर् ु
श्लोक (22)- तदाऩ्घ्घ्रीषु प्रायेर्, इनत सिंवेिनप्रकारा बाभ्रवीयाः
अथि- इस आसन को ज्यादातर आिंध्रप्रदे ि की जस्त्रयािं प्रयोग करती
ैं।
सौवर्िनाभास्त।ु । इसके अिंतगित म ावषि सव ु र्िनाभ के ववचार प्रकट कर र े
ैं।
श्लोक (23)- उभावप्यरू ु ऊध्वािववनत तद्धुग्नकम ृ्।।
अथि-भग्ु नक
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ोती
ैं।
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | आचायि सव ु र्िनाभ का मानना
ै कक भग्ु नक नाम का एक और आसन दे ती
ै जजसमें स्त्री अपनी दोनों जािंघों को ऊपर तान
ै।
श्लोक (24)- चरर्ावध् ू वि नायकोऽस्या धारयेहदनत जजृ म्भतकम ृ्।।
अथि- जजृ म्भतक जब परु ु ष स्त्री की दोनों टािंगों को अपने किंधों के ऊपर ऱख लेता
ै तो उसे जजम्भतक क ा जाता
ै।
श्लोक (25)- तत्सकुञ्चतावत्सु पीडडतकम ृ्।।
अथि- पीडडतक जजस समय बबल्कुल सीधी लेटी ु ई स्त्री अपनी पसारी ु ई टािंगों को मोडकर अपने ऊपर लेटे ु ए पनत की छाती के नीचे मोडकर अडा लेती ै और परु ु ष छाती से उन् ें दबाकर सिंभोग करता ै तो उसे उत्सपीडडतक क ते
ैं।
श्लोक (26)- तदे कजस्मप्रसाररतेऽधिपीडडतकम ृ्।।
अथि- अधिपीडडतक।। अपनी दोनों टािंगों को र्ैलाकर लेटी ु ई स्त्री जब अपनी एक टािंग को मोडकर परु ु ष की छाती से लगाकर सिंभोग करती ै तथा कर्र उसे धीरे से र्ैलाकर अपनी दस ू री टािंग को मोडकर बारी-बारी से सिंभोग किया कराती पीडडतक क ा जाता
ै तो उसे अधि
ै।
श्लोक (27) -नायकस्यािंस एको द्ववतीयकः प्रसाररत इनत पन ु ः पन ु व्यित्सयासेन वेर्ुदाररतकम ृ्।।
अथि- वेर्ुदाररतक जब लेटी ु ई स्त्री अपने ऊपर लेटे ु ए परु ु ष के किंधे पर एक टािंग रखती
ै तथा कर्र प ली टािंग को र्ैलाकर दस ू री
टािंग को परु ु ष के दस ू रे किंधे पर ऱखकर सिंभोग करती ै तो उसे वेर्ुदाररतक क ते
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (28)- एकः मिरस उपरर गच्छे द्ववतीयः प्रसाररत इनत िल ू ाधचतक- माभ्यामसकम ृ्।।
अथि- िल ू ाधचतक स्त्री जजस समय अपनी एक टािंग को परु ु ष के मसर पर ऱखकर और दस ू री टािंग को र्ैलाकर सिंभोग करती दस ू री टािंग को मसर पर रखकर प ली टािंग को र्ैलाकर सिंभोग किया करती आसन भी लगातार अभ्यास करने से सर्ल
ै तथा कर्र
ै तो उसे िल ू ाधचतक क ा जाता ै । य ोता
ै।
श्लोक (29)- सिंकुधचतौ स्वजस्तदे िो ननदध्याहदनत काकिटकम ृ्।।
अथि- काकिटक जजस तर
से केकडा अपने पैरों को परू ी तर
से मसकोड लेता
ै उसी तर
मसकोडकर परु ु ष की नामभ में लगाकर जब सिंभोग किया करती
से स्त्री भी लेटकर अपनी टािंगों को
ै तो उस आसन को काकिटक क ते
ैं।
श्लोक (30)- ऊध्वािवरू ू व्यत्सस्येहदनत पीडडतकम ृ्।।
अथि- पीडडतक सिंभोग किया के समय जब स्त्री अपनी एक जािंघ को दस ू री जािंघ से ब ु त तेजी से दबाती पीडडतक क ते
ै तो उस आसन को
ैं।
श्लोक (31)- जङघाव्यत्सयासेन पद्मासनवत ृ्।।
अथि- पद्मासन पलिंग पर लेटी ु ई स्त्री जब अपने बाएिं पैर को दाएिं पैर के जोड में और दाएिं पैर को बाएिं पैर के जोड में रखकर सिंभोग किया करती
ै तो उसे पद्मासन क ते
ैं।
श्लोक (32)- पष्ृ ठे पररष्वजमानायाः पराङ्मख ु ेर् परावि ृ कमाभ्यामसकम ृ्।।
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अथि- परावि ृ क स्त्री और परु ु ष जब मजबत ू अमलिंगन में जकडकर आमने-सामने बैठकर सिंभोग किया करते ै तो सिंभोग के समय में ी थोडी दे र के बाद अमलिंगनबद्ध अवस्था में चाह ए। इसे परावि ृ क आसन क ते
ैं। य
ी परु ु ष को स्त्री के पीछे घम ू जाना चाह ए और सिंभोग करते र ना
आसन ब ु त
ी कहठन
ोती
ोता
ै और इसके मलए लिंबे अभ्यास की जरूरत
ै।
श्लोक (33)- जले च सिंववष्टोपववष्यजस्थतात्समकाजश्र्चत्रान्योगानप ु लक्षयेत ृ्। तथा सक ु रत्सवाहदनत सव ु र्िनाभः।।
अथि- जलसिंयोग आचायि सव ु र्िनाभ का क ना
ै कक पानी में भी खडे
किया की जा सकती
ोकर, बैठकर, लेटकर आहद कई तर
के आसनों के द्वारा सिंभोग
ै । जमीन से ज्यादा पानी में सिंभोग करना ब ु त अच्छा र ता
ै।
श्लोक (34)- वाति तु तत ृ्। मिष्टै रपस्मत ृ त्सवाहदनत वात्सस्यायनः।।
अथि- आचायि वात्ससायन पानी में सिंभोग किया करने का ववरोध करते
ैं। व
सिंभोग करना गलत माना जाता
क ते
ैं मिष्टों, आचायों द्वारा पानी में
ै।
श्लोक (35)- अथ धचत्ररतानन।।
अथि- धचत्रर् प्रकरर् इसके अिंतगित सिंभोग किया करने की ब ु त
ी अदभत ु ववधधयािं बताई जाती
ैं।
श्लोक (36)- ऊध्विजस्थतयोयन ूि ोः परस्परापाश्ययोः कुडयस्तम्भापाधश्तयोवाि जस्थतरतम ृ्।।
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ोकर या कर्र दीवार आहद का स ारा लेकर सिंभोग किया करती
ैं
तो उसे जस्थरता क ा जाता ै ।
श्लोक(37)-कुडयापाधश्तस्य (कण्ठावसततबा ु पािायास्तद्धस्तपञ्ञरोपववष्टाया) ऊरुपािेन जघनममभवेष्टयन्त्सया कुड्ये चरर्िमेर् वलन्त्सया अवलजम्बतकिं रतम ृ्।।
अथि- अवलजम्बतक जब परु ु ष दीवार की आड लेकर खडा तथा पत्सनी अपने दोनों
ो तथा अपने दोनों
ाथों की उिं गमलयों को आपस में जोडकर पत्सनी को बैठा लें
ाथों से पनत की गदि न को पकडकर अपनी दोनों टािंगों को दीवार पर हटका दे और झल ू ती अवस्था में सिंभोग किया करे तो उसे अवलजम्बतक आसन क ते
ैं।
श्लोक (38)- भम ू ौ वा चतष्ु पदवदाजस्थताया वष ु म ृ्।। ृ लीलयावस्किंदनिं धेनक
अथि- धेनक ु जजस समय स्त्री अपने दोनों
ाथ और पैरों को जमीन पर हटकाकर जानवर की तर
आसन बनाकर खडी
और परु ु ष उसके पीछे से सिंभोग किया करे तो उसे धेनक ु आसन क ते
ो जाए
ैं।
श्लोक (39)- तत्र पष्ृ ठमरु ः कमािणर् लभते।।
अथि- धेनक ु आसन में छाती के बदले पीठ को दबाया जाता
ै।
श्लोक (40)- एतेनव ै योगेन िौनमैर्ेयिं छागलिं गदि भािान्तिं माजािरमलमलतकिं व्याघ्रावस्कन्दनिं गजोपमहदित वरा घष्ृ टकिं तरु गाधधरूढकममनत यत्र-यत्र वविेषो योगोऽपव ि ति ु पलक्षयेत ृ्।। ू स्
अथि- जजस तर
से जानवर सिंभोग करने के मलए जोर लगाता
ै उसी तर
सिंभोग किया के समय स्त्री और परु ु ष को
भी कोमिि करनी चाह ए जैसे स्त्री के ऊपर चढ़ना, स्त्री को रौंदना, जोर से आवाज ननकालना, धतके मारना। इस तर से सिंभोग करने से सिंभोग के नए-नए तरीकों के बारे में पता चलता
ै।
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श्लोक (41)- ममश्ीकृतसद्धावाभ्यािं द्वाभ्यािं स
सिंघाटकिं ग्तम ृ्।।
अथि- जब आपस में अच्छा सिंबध िं ऱखने वाली दो जस्त्रयों के साथ परु ु ष सिंभोग करता क ते
ै तो इस आसन को सिंघाटक
ैं।
श्लोक (42)- बह्मीमभश्र्च स
गोयधू थकम ृ्।।
अथि- गोयधू थक जब ब ु त सारी जस्त्रयों के साथ इस तर
की सिंभोग किया की जाती ै तो उसे गोयधू थक क ते
ैं।
श्लोक (43)- बाररिीडडतकिं छागलमैर्ेयममनत तत्सकमािनक ु ृ नतयोगात ृ्।।
अथि- जजस तर
से बकरा-बकरी, ह रन-ह रनी सिंभोग किया करते से गोयधू थक आसन को कई तर
ैं या
ाथी और
से ककया जाता
धथनी जलिीडा करते
ैं उसी तर
ै।
श्लोक (44)- ग्रामनारीववषये स्त्रीराज्ये च बाह्मीके ब वो यव ु ानोऽन्तः परु सधमािर् एकैकस्याः पररग्र िं भत ू ाः।।
अथि- प ाडी दे ि ग्राम नारी नागा दे ि में और बह्यीकर में अन्तःपरु वामसनी जस्त्रयािं अपने ियनकक्ष में ब ु त से परु ु षों को छुपाकर रखती
ैं।
श्लोक (45)- तेषामेकैकिो यग ु पच्च यथासात्सम्यिं यथायोगिं य रञ्ञयेयः।।
अथि- उन जस्त्रयों के द्वारा छुपाए गए व
यव ु क अकेले या कई और यव ु कों के साथ ममलकर उनकी सिंभोग की इच्छा को परू ा करते
ैं।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (46)- एको धारयेदेनामन्यो ननषेवेत। अन्यो जघनिं मख ु मन्यो मध्यमन्य इनत वारिं वारे र् व्यनतकरे र् चाननु तष्ठे यःु ।।
अथि- एक यव ु क उस अन्तःपरु वामसनन स्त्री को गोद में बबठाता ै , दस ू रा दािंतों और नाखूनों को उसके िरीर में गडाता ै , तीसरा उससे सिंभोग करता
ै , चौथा मुिं
को चूमता ै , पािंचवािं उसके स्तनों में दािंतों को गडाता
बारी-बारी करके सारे यव ु क तब तक उस स्त्री के साथ सिंभोग करते र ते
ैं जब तक कक व
किया के चरम सख ु को न ीिं पा लेती
ै । इसी तर
स्त्री परू ी तर
से
से सिंभोग
ै।
श्लोक (47)- एतया गोष्ठीपररग्र ा वेश्या राजयोषापररग्रा श्र्च व्याख्यातः।।
अथि- इस तर
के ममलकर सिंभोग करने का सख ु ज्यादातर वेश्याएिं
भी इस तर
ी मलया करती
ैं। कभी-कभी राजाओिं की जस्त्रयािं
का सिंभोग सख ु पाने के मलए अपने य ािं ककसी यव ु क को रख मलया करती थी। श्लोक (48)- अधोरतिं पायाववप दाक्षक्षर्ात्सयानाम ृ्। इनत धचत्ररतानन।।
अथि- सबसे ज्यादा बरु ी सिंभोग किया गद ु ामैथन ु
ोती
ै। गद ु ामैथन ु ज्यादातर दक्षक्षर् भारत में मि ू र
ै।
श्लोक (49)- परु ु षोपसप्ृ तकानन परु ु षानयते वक्ष्यामः।।
अथि- परु ु ष को स्त्री के करीब प ुिं चने के और उसे आकवषित करने के मलए तया करना तया चाह ए। य प्रकरर् के अिंतगित आता
परु ु षानयत्सव
ै।
श्लोक (50)- भवतश्र्चात्र श्लोकों- पिन ू ािं मग ृ जातीनािं पतग्ङानािं च ववभ्रमैः। स्तैरूपायैश्जच्यिज्ञो रनतयोगाजन्ववधियेत ृ्।।
अथि- इसके अिंतगित दो श्लोक प्रमसद्ध परु ु ष को चाह ए कक व
पि-ु पक्षक्षयों तथा जानवरों की तर
ै-
सिंभोग करने की कलाओिं को सीखकर उनका प्रयोग स्त्री
के साथ करके उसके प्यार और आकषिर् को बढ़ाना चाह ए।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (51)- तस्सात्सम्याद्दे िसात्सम्याच्च तैस्तैभािवःै प्रयोजजतैः। स्त्रीर्ािं स्ने श्र्च रागश्र्च ब ु मानश्र्च जायते।।
अथि- जो परु ु ष स्त्री की इच्छा के मत ु ाबबक दे िाचार के मत ु ाबबक और समयोधचत भावनाओिं के अनस ु ार सिंभोग किया में ननपर् ु
ोता
ै । जस्त्रयािं उस पर ज्यादातर स्ने
रखती
ैं और व
परु ु ष के द्वारा ज्यादा सम्माननत
ोता
ै।
जानकारीआचायि वात्सस्यायन ने कामसत्र ू के इस अध्याय में सिंभोग किया, सिंवेिन प्रकार और धचत्ररत के बारे में बताया ववषय की दृजष्ट से दे खा जाए तो य और धचत्ररत दो भागों में बािंटा गया बताया गया
अध्याय एक
ै लेककन अगर किया की दृजष्ट से दे खा जाए तो सिंवेिन प्रकार
ै । सिंवेिन प्रकार वाला जो भाग
ै इसमे सिंभोग की उन कियाओिं के बारे में
ै जो सामान्य और मिष्ट समाज के मलए ववह त क ी जा सकती
ननकृष्टतम कियाओिं के बारे में बताया गया
ै । लेककन धचत्ररत वाले भाग में जजन
ै उन् े नीच से नीच स्वभाव और चररत्र के लोग
आचायि वात्सस्यायन का अमानवु षक, अप्राकृनतक कियाओिं के बारे में बताने का अथि तया र ा इच्छा ज्यादातर
कोई भी िास्त्र एकदे िीय न ीिं
ोता
र कामसत्र ू पढ़ने वाले के मन में
ै बजल्क व
ोती
ी प्रयोग में लाते ोगा- य
अपने ववषय का अखिंड, पररपर् ू ँ धचत्रर् और परू ी जानकारी र ती
ै। व
जानने की
ोता
ै । उसके अिंदर
अपने बारे में हदए जा र े ववषय के
कोई मकसद न ीिं
ै कक व
ैं।
ै।
तो समजष्ट का बोधक, प्रनतपादक और समथिक
की यथाथि व्याख्या करता ै । उसका य
ै।
अच्छा
ै और य
र प लू
बरु ा।
अच्छाई और बरु ाई का ववश्लेषर्, ननराकरर् करना तो उन लोगों की इच्छा और बद् ु धध पर ननभिर करता ै जो लोग िास्त्र को पढ़कर या सन ु कर उसमें बताए गए मसद्धािंतों पर चलना चा ते दे ता
ै कक य
मसद्धान्त या रास्ता मजु श्कल
ै, मिष्टजन सम्मत
पढ़ने के मलए उपयोगी इस अध्याय में आचायि वात्सस्यायन ने य
सार् कर हदया
वाला म ान ववद्वान स्वयिं इस कायि को गलत समझता तयोंकक सिंसार में
र प्रववृ ि के इिंसान पाए जाते तर
ैं। िास्त्र मलखने वाला सावधान जरूर कर
ै या मसर्ि पररचय चारूता बढ़ाने के मलए मसर्ि ै।
ै कक धचत्ररत सिंभोग करना गलत
ै । जब कामसत्र ू मलखने
ै तो भी उसने इसको अपने िास्त्र में जग
ैं जजनमें से कुछ लोग जानवरों की नस्ल के भी
के धचत्ररत सिंभोग में
ी पर् ू ि आनिंद ममलता
ोते
इसमलए दी ैं जजन् ें इस
ै।
आचायि वात्सस्यायन ने इन् ीिं भावों को नजर में रखते ु ए सिंभोग किया, मान्मथ किया या आसन न क कर धचत्ररत सिंभोग को भोग का नाम हदया
ै।
श्लोक- इनत श्ीवात्सस्यायनीये कामसत्र ू े सािंप्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े सिंवेिनप्रकाराजञ्ञत्ररतानन च षष्ठोध्यायः।
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ै
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अध्याय 7 प्रिणनीसीत्सकार प्रकरण श्लोक (1)- कल रूपिं सरु तामाचक्षते। वववादात्समकत्सवाद्वा मिीलत्सवाच्च कामस्थ।। अथि- इसके अन्तगित सिंभोग किया करते समय प्यार को बढ़ाने वाले सख ु -कल तयोंकक काम स्वभाव से
को बताया जा र ा
ी वववादास्पद तथा जहटल
ै । इसमलए
ै।
श्लोक (2)- तस्मात्सप्र र्नस्थानमङम ृ्। स्कन्धौ मिरः स्तानातरिं पष्ृ ठिं जघनिं पाश्वि इनत स्थानानन।।
अथि- इसी वज
से सिंभोग किया के समय एक-दस ू रे पर प्र ार करना भी सिंभोग का
ी एक अिंग माना जाता ै । इस
प्र ार के मलए दोनों किंधे, दोनों स्तनों के बीच का भाग, पीठ, जािंघे, मसर और दोनों बगलें उपयत ु त र ती
श्लोक (3)- तच्चतवु विधम-अप स्तकिं प्रसत ृ किं मजु ष्टः समतलकममनत।।
अथि- 4 तर
के आघात
अप स्तक- उल्टी प्रसत ृ क-
ोते
ैं-
थेली से थपकी मारना।
ाथ र्ैलाकर मारना।
मजु ष्ट- मत ु का मारना। समतल-
थेली से मारना।
श्लोक (4)- तदद् ु धविं च सीत्सकृतम ृ्। तस्यानतिरूपत्सवात ृ्। तदनेकववधम ृ्।।
अथि- सीत्सकार
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | सिंभोग किया के समय स्त्री पर प्र ार करने से उसे ददि तो जरूर मससकी ननकलती
ै उसी को सीत्सकार क ा जाता
ोता
ै लेककन उस ददि की वज
ै । सीत्सकार कई प्रकार के
ोते
से जो आवाज या ।ैं
श्लोक (5)- ववरुतानन चाष्टौ।।
अथि- सीत्सकार से 8 तर
की अलग-अलग आवाजें ननकलती
ैं।
श्लोक (6)- ह क िं ारस्तननतकूजजतरुहदतसत्सू कृतदत्सू कृत्सर्ूत्सकृतानन।।
अथि- 8 तर
की आवाजें-
1. ह क िं ार (ह िं ह िं की आवाज ननकालना) 2. स्तननत ( िं) 3. कूजजत (धीरे -धीरे कुकुवाना) 4. रुहदत (रोने की आवाज ननकालना) 5. सत्सू कृत (सी-सी की आवाज ननकालना)
श्लोक (7)- अम्बाथािः िब्दा वारर्ाथि मोक्षर्ाथािश्चलमथािस्ते ते चाथियोगात ृ्।
अथि- उई मािं अब बस करो, ब ु त
ो चक ु ा, मर गई मािं, छोड दो प्लीज, धीरे -धीरे करो ना आहद ददि के िब्द
श्लोक (8)- पारावतपरभत ू ारीतिु कमधुकरदात्सयू
ोते
ैं।
िं सकारण्डवलावकववरुतानन सीत्सकृतभनू यष्ठानन ववकल्पिः प्रयीञ्ञीत।।
अथि- सिंभोग किया के समय परु ु ष द्वारा प्र ार करने पर सीत्सकार करती ु ई स्त्री को कोयल, िं स, कबत ू र, कारण्डव (बिख), गधे आहद की आवाजें बदल-बदलकर ननकालनी चाह ए।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (9)- उत्ससङोपववष्टायाः पष्ृ ठे मजु ष्टना प्र ारः।।
अथि- अगर स्त्री परु ु ष की गोद में बैठी
ोती
ै तो परु ु ष को उसकी पीठ पर मत ु कों से प्र ार करना चाह ए।
श्लोक (10)- तत्र सासय ु ाया इव स्तननतरुहदतकूजजतानन प्रनतघातश्चस्यात ृ्।।10।।
अथिः अपनी पीठ पर मत ु का पडते
ी स्त्री को अस निील
ोकर ' ' की आवाज ननकालकर, 'उसािंस'ें भरकर तथा लिंबी-
लिंबी सािंसें भरकर परु ु ष पर उल्टा प्र ार करना चाह ए।
श्लोक (11)- यत ु तयन्त्रायाः स्तनान्तरे ऽप स्तकेन प्र रे त ृ्।।
अथि- बबल्कुल सीधी लेटकर सिंभोग कराती ु ई स्त्री के दोनों स्तनों के बीच वाले स्थान पर उल्टी
थेली से प्र ार
करना चाह ए।
श्लोक (12)- मन्दोपिमिं वधिमानरागमा पररसमाप्तेः।
अथि- सिंभोग किया के समय धीरे -धीरे से मत ु कों से प्र ार करना िरू ु कर दे ना चाह ए और कर्र जैस-े जैसे उिेजना बढ़ती जाए वैसे
ी प्र ारों में भी तेजी लानी चाह ए।
श्लोक (13)- तत्र ह क िं ारादीनामननयमेनाभ्यासेन ववतलपेन च तत्सकालमेव प्रयोगः।।
अथि- ह -िं ीिं, ूिं , र्ुसकारना, ािंर्ना आहद ददि वाली आवाजें ननकालने का न तो कोई ननयम िम। सिंभोग करते समय मत ु का लगने की िरू ु आत
ोता
ै और न
ी कोई
ोने से लेकर आणखरी तक ददि वाली आवाजें ननकालते र ना
जरूरी
ै।
श्लोक (14)- मिरमस ककिं जजदाकुजञ्ञताङमलना करे र् वववदन्तयाः र्ूत्सकृत्सय प्र र्निं तत्सप्रसत ृ कम ृ्।।
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अथि- अगर उल्टी चाह ए कक व
थेली के प्र ार से स्त्री को सख ु न ीिं ममलता
ो तथा व
कोई और प्र ार चा ती
उिेजना के अनस ु ार धीरे से या जोर से उिं गमलयों को सािंप के र्न की तर मारने चाह ए। इस तर
ो तो परु ु ष को
बनाकर स्त्री के मसर पर
के प्र ार को प्रसत ृ क (खोटका) क ा जाता
ै।
श्लोक (15)- तत्रान्तमख ुि ेन कुजजिंत र्ूत्सकृतिं च।।
अथि- सिंभोग किया में जजस समय परु ु ष स्त्री को मत ु का मारे उस समय उसे
ाय राम या
ाय- ाय की आवाजें न
ननकालकर किंू किंू सूिं सूिं र्ूिं र्ूिं आहद आवाजें ननकालनी चाह ए।
श्लोक (16)- रतान्ते च श्वमसतरुहदते।।
अथि- सिंभोग किया के समाप्त
ो जाने के बाद स्त्री जब
ािंर्ती
ै तो उसे रूदन (रोना) क ा जाता ै ।
श्लोक (17)- वेर्ोररव स्र्ुटतः िब्दानकरर्िं दत्सु कृतम ृ्।।
अथि- सिंभोग किया के समय जब स्त्री के मख ु से 'चट-चट' की आवाजें ननकालती ै । इसे दत्सू कृत क ते
ैं।
श्लोक (18)- अप्सु बदरस्येव ननपततः र्ूत्सकृतम ृ्।।
अथि- जजस तर
ककसी र्ल को पानी में धगराने के बाद 'डुब्ब' की आवाज करते समय स्त्री के मुिं
से ननकलती
ोती
ै उसी तर
ै तो उसे र्ूत्सकृत क ते
की आवाज जब सिंभोग
ैं।
श्लोक (19)- सवित्र चम् ै प्रत्सयि ु बनाहदष्विान्तायाः ससीत्सकृतिं तेनव ु रम ृ्।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- परु ु ष द्वारा स्त्री के िरीर पर नाखून मारने पर, दािंत गढ़ाने पर या चम् ु बन आहद करने पर जजस तर स्त्री ननकालती
ै वैसी
की आवाज
ी आवाज परु ु ष को भी ननकालनी चाह ए।
श्लोक (20)- रागविात्सप्र र्नाभ्यासे वारर्मोक्षर्ालमथािनािं िब्दानामम्बाथािनािं च सतान्तश्वमसतरुहदतस्तननतममश्ीकृतप्रयोगा ववरुतानािं च। रागावसानलकाले जघनपाश्वियोस्ताडनममत्सयनतत्सवरया चापररसमाप्तेः।।
अथि- काम-उिेजना तेज
ोने के बाद जब परु ु ष बार-बार जोर-जोर से स्त्री पर प्र ार करने लगे तो स्त्री को 'अरीरी',
'अरी मरी', ऊई मािं, अब बस भी करो, र ने दो ना, छोड दो ना आहद आवाजों को भी ािंर्ने और मसमसयाने के साथ ननकालते र ना चाह ए।
श्लोक (21)- तत्र लावक िं सववकूजजतिं त्सवरयैव। इनत स्तननप्र र्नयोगाः।।
अथि- ऐसे समय में स्त्री को
िं स और लवा आहद पक्षी की आवाज की नकल करके आवाज ननकालते र ना चाह ए।
श्लोक (22)- भवतश्चात्र श्लोकौ- पारुष्यिं रभस्तविं च पौरुषिं तेज उच्यते। अिजततरानतिव्यािववृ िरबलत्सविं च योवषतः।।
अथि- इस ववषय में 2 श्लोक परु ु ष के स्वाभाववक गर् ु धैय,ि सख्ती, ब ादरु ी और मजबत ू ी जस्त्रयों के स्वाभाववक गर् ु
ोते
ैं। इसी वज
ोते
-ैं
ैं और कमजोरी, कोमलता, असमथिता पीडडत
से जब परु ु ष स्त्री पर प्र ार करता ै तो व ननकालती र ती
सी-सी की आवाज
ै।
श्लोक (23)- रागात्सप्रयोगसात्सम्याच्च व्यत्सययोऽवप कधचद्धवेत ृ्। न धचरिं तस्य चैवान्ते प्रकृतेरेव योजनम ृ्।।
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ोना
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- लेककन य
गर् ु स्त्री और परु ु ष में
मेिा न ीिं
ोते
सीमा तक उिेजना के प ुिं च जाने पर स्त्री परु ु ष की तर परु ु ष स्त्री की
ैं। दे ि, समय और पररजस्थनतयों की वज
से दब ु ारा चरम
सख्त और ढीठ बनकर उस पर प्र ार करने लगती ै तथा
ी तर
मसमसयाता र ता
ै।
श्लोक (24)- कीलामरु मस कतिरीिं मिरमस ववद्धािं कपोलयोः सिंदिंमिकािं स्तनयोः पाश्चियोश्चेनत पव ू ेः स प्र र्नमष्टववधममनत दाक्षक्षर्ात्सयानाम ृ्। तद्यव ु तीनामरु मस कीलानन च तत्सकृतानन दृश्यन्ते। दे िसात्सम्यमेतत ृ्।
अथि- छाती में कीला, गालों में ववद्धा, मसर में कतिरी और स्तन तथा दोनों बगलों में सिंदमिका और प ले के चार ममलाकर 8 तर
के प्र र्न दक्षक्षर् दे ि के र ने वालों में प्रचमलत
ैं।
श्लोक (25)- कष्टमनायिवि ृ मनादृतममनत वात्सस्यायनः।।
अथि- वात्सस्यायन के अनस ु ार इस तर
के प्र ारों को अनायिवि ृ क ते लोगों के मलए न ीिं
ैं। उनके क ने के अनस ु ार ऐसा व्यव ार अच्छे ै।
श्लोक (26)- तथान्यदवप दे िसात्सम्यात्सप्रयत ु तमन्यत्र न प्रयञ् ु जीत ृ्।।26।।
अथिः एक दे ि के रीनत-ररवाज मसर्ि उसी दे ि के मलए लागू की प्रथा को दस ू री जग
ोते
ैं दस ू रे दे ि के मलए न ीिं। इसी वज
से एक जग
प्रयोग न ीिं करना चाह ए।
श्लोक (27)- आत्सयनयकिं तु तत्रावप परर रे त ृ्।।
अथि- सिंभोग किया के समय ऐसे प्रयोग जजनमें स्त्री के अिंग खराब
ोने के या उसकी मत्सृ यु
उनका प्रयोग व ािं पर भी न ीिं करना चाह ए ज ािं उनका ररवाज
श्लोक (28)- रनतयोगे ह
ोता
ो जाने का डर र ता ो।
कीलया गणर्कािं धचत्रसेनािं चोलराजो जघान।।
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ै
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अथि- इस तर
के प्र ारों के दष्ु पररर्ाम-
अथि- चोलदे ि के राजा ने धचत्रसेना नाम की वेश्या की छाती पर सिंभोग करते समय ऐसा प्र ार ककया था जजससे उसकी मत्सृ यु
ो गई।
श्लोक (29)- कतियाि कुन्तलः िातकणर्िः िातवा नो म ादे वीिं मलयवतीम ृ्।।
अथि- कुन्तल दे ि के राजा ने काम-उिेजना में आकर राजा िातकणर्ि सातवा न ने म ादे वी मलयवती पर प्र ार करके उसे मार डाला।
श्लोक (30)- नरदे वः कुपाणर्िवविद्धया दष्ु प्रयत ु तया नटीिं कार्ािं चकार।।
अथि- पािंडव दे ि के राजा के सेनाध्यक्ष नरदे व ने नाच करने वाली नतिकी के, अपना आिंख में मार हदया और व
कानी
ाथ गालों पर मारने के चतकर में
ो गई।
श्लोक (31)- भवजन्त चात्र श्लोकाः- नास्त्सयत्र गर्ना काधचन्न च िास्त्रपररग्र ः। प्रवि ृ े रनतसिंयोगे राग एवात्र कारर्म ृ्।
अथि- इस ववषय में कुछ परु ाने श्लोक प्रचमलत जजस समय मनष्ु य उिेजना में भरकर सिंभोग करने में मग्न बारे में सोचता
ै और न
ो जाता
ी बाद के पररर्ामों के बारे में । इस तर ी
-ैं
ै तो उस समय न तो व
िास्त्र के वचन के
के बरु े पररर्ामों की एकमात्र कारर् मसर्ि उिेजना
ै।
श्लोक (32)- स्वप्नेष्ववप न दृश्यन्ते ते भावास्ते च ववभ्रमाः। सरु तव्यव ारे षु ये स्यस् ु तत्सक्षर्कजल्पतः।।
अथि- सिंभोग किया के समय मनष्ु र्य का हदमाग भटक जाता
ै । उस समय उसके हदल में जो भाव पैदा
उसको सपने में भी न ीिं हदखाई दे त।े
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ोते
ैं व
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (33)- यथा ह
पञ्ञमीिं धारामास्थाय तरु गः पधथ। स्थार्ुिं श्वभ्रिं दरीिं वावप वेगान्धो न समीक्षते।। एविं सरु तसिंमदे रागान्धौं काममनाववप। चण्डवेगौ प्रवतेते समीक्षेते न चात्सययम ृ्।।
अथि- जजस तर हदखाई न ीिं दे ते
से कोई घोडा तेज गनत से भागता ैं। ऐसे
ै तो उसे अपने बीच में आने वाले गड्ढे , पानी, पेड आहद कुछ
ी उिेजना में आकर स्त्री और परु ु ष ब ु त तेज गनत से सिंभोग करते ु ए नाखूनों को गढ़ाने
के, दािंतों से काटने के या प्र ार करने के कारर्
ोने वाले बरु े पररर्ामों के बारे में न ीिं सोचते
ैं।
श्लोक (34)- तस्मान्मत्सृ विं चण्डत्सविं यव िास्त्रववत ृ्।। ु त्सया बलमेव च। आत्समन्श्च बलिं ज्ञात्सवा तथा यञ्ञीत ु ा़
अथि- इसी तर
स्त्री के िरीर की कोमलता, सिंभोग की तेजी तथा उसकी स निजतत को समझते ु ए और जीवनिजतत का अनम ु ान करके
ी परु ु ष को सिंभोग किया में लगना चाह ए।
श्लोक (35)- न सविदा न सवािसु प्रयोगाः सािंप्रयोधगकाः। स्थाने दे ि च काले च योग एषािं ववधीयते।।
अथि- सिंभोग किया के समय
र किया को
र समय
ो और जो सभी के ह साब से स ी
र ककसी स्त्री के साथ न ीिं ककया जा सकता। जो स्त्री को पसिंद ो उसी के अनस ु ार सिंभोग किया करनी चाह ए। जानकारी-
सिंभोग किया के समय काम-उिेजना में भरकर परु ु ष स्त्री के मसर, किंधे, स्तनों के बीच में, पीठ पर और जािंघों में प्र ार करता
ै । अगर स्त्री के इन अिंगों में प्र ार करता
चाह ए कक स्त्री पर इस तर
ै तो स्त्री सीत्सकार करती
के प्र ार चट ु की काटकर, चपत लगाकर या
ै और आनिंद में भर जाती ै । परु ु षों को थेमलयों से थपथपाकर करने चाह ए।
श्लोक- इनत श्ीवात्ससायायनीये कामसत्र ू े सािंप्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरने प र्नप्रयोगास्तद्यत ु ताश्च सीत्सकृतिमाः सप्तमोऽध्यायः।
अध्याय 8 पुरूषातयत प्रकरण (त्वपरीत रतत)
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-(1)- नायकस्य सिंतताभ्यासात्सपररश्ममप ु लभ्य रागस्य चानप ु िमम,ृ् अनम ु ता तेन तमधोऽवपात्सय परू ु षानयतेन सा ाय्यिं दद्यात ृ्।।
अथि- सिंभोग किया में जजस समय स्त्री, परु ु ष की तर
का व्यव ार करती
साथ कार्ी दे र से सिंभोग करते ु ए जब परु ु ष थक जाता
ै तो उसे ववपरीत रनत क ते
ैं। स्त्री के
ै , लेककन स्त्री की तब तक भी काम-इच्छा िािंत न ीिं ु ई
ोती तो ऐसे में स्त्री, परु ु ष की मजी से उसके ऊपर लेटकर सिंभोग किया करती ै ।
श्लोक-(2)- स्वामभप्रयाद्वा ववकल्पयोजनाधथिनी।। अथि- स्त्री स्वयिं अपनी इच्छा से भी परु ु ष के साथ य
किया कर सकती
ै।
== = श्लोक-(3) नायककुतू लाद्वा।।
अथि- अगर परु ु ष थक भी न ीिं
ो र ा
ोता तो भी मसर्ि आनिंद के मलए व लेटकर सिंभोग की किया करती
नीचे लेट जाता
ै और स्त्री उसके ऊपर
ै।
श्लोक-(4)- तत्र यत ै ेतरे र्ोत्सथाप्यमाना तमधः पातयेत ृ्। एविं च रतमववजच्छन्नरसिं तथा प्रवि ु तयन्त्रेर्व ृ मेव स्यात ृ्। इयेकोऽयिं मागिः।।
अथि- सिंभोग किया के समय स्त्री अगर ववपरीत रनत की इच्छा रखकर परु ु ष के ऊपर लेटना चा ती तर
से परु ु ष के ऊपर लेटना चाह ए कक परु ु ष का ध्यान बबल्कुल भी सिंभोग किया से न करने से न तो उन दोनों की उिेजना
ी कम
ोती
ै तो उसे इस
टे । इस तर
से सिंभोग
ै और आणखरी तक इस किया का आनिंद बना र ता
ै।
श्लोक-(5)- पन ु रारम्भेर्ाहदत एवोपिमेत ृ्। इनत द्ववतीयः।।
अथि- अगर एक बार सिंभोग किया परू ी तर
ो जाने के बाद दब ु ारा करने की इच्छा
ोती
ै तो उसकी िरू ु आत में
स्त्री को परु ु ष के ऊपर लेटकर ववपरीत सेतस करना चाह ए।
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ी
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-(6)- सा प्रकीयिमार्केिकुसम ु ा श्र्वासववजच्छन्न ामसनी वतत्रसिंसगािथि स्तनाभ्यामरु ः पीडयनिंती पन ु ः पन ु ः मिरो नामयन्ती याश्र्चेष्टाः पव ि सौ दमिितवािंस्ता एव प्रनतकुवीत। पानतता प्रनतपातयामीनत ू म
सन्ती तजियन्ती प्रनतघ्नती च
िय ू ात ृ्। पन ु श्र्चव्रीडािं दिियेत ृ्। श्मिं ववरामाभीप्सािं च। परु ु षोपसप्ृ तै रे वोपसपेत ृ्।।
अथि- इसके अिंतगित स्त्री जब परु ु ष के ऊपर लेटकर सिंभोग किया करती जाते
ैं। व
ल्का सा भी िं सती
ै तो उसकी सािंस र्ूलने लगती
उसे चूमने के मलए ले जाती ै तो अपने स्तनों से व व
तेजी से ह लती
ो जाती ु ए क ती
ै। व
ै । जब व
अपने मुिं
परु ु ष की छाती को भी दबाती
ै तो उसका मसर भी तेजी के साथ ह लने लगता
उसी की तर
ै तो उसके बालों में गथ ुिं े ु ए र्ूल बबखर को परु ु ष के मुिं
ै । सिंभोग किया के समय जब
ै । इस समय स्त्री बबल्कुल
नाखूनों को गढ़ाना, दािंतों से काटना, चुिंबन आहद करती
के पास
ी परु ु ष की तर
ै । इसके बाद व
जोर से
िं सते
ै कक प ले तम ु ने मझ ु े धगराया था अब मैं तम् ु े नीचे धगराकर बदला ले र ी ूिं । लेककन जब स्त्री की काम-
उिेजना बबल्कुल
ी समाप्त
ो जाती
ै तो व
िमािकर और मसकुडकर आिंखें बिंद कर लेती लेट जाती
ै और थककर पलिंग पर
ै।
श्लोक-(7) तानन च वक्ष्यामः।।
अथि- इसके अिंतगित परु ु ष सिंभोग किया के समय ककस तर
स्रोक लगाता
ै य
बताया गया
ै।
श्लोक-(8)- परु ु षः ियनस्थाया योवषतस्तद्वचनव्याक्षक्षप्तधचिाया इव नीवीिं ववश्लेषयेत ृ्। तत्र वववदमानािं कपोलचिंब ु नेन पयािकुलयेत ृ्।।
अथि- पलिंग पर लेटी ु ई स्त्री जब परु ु ष की बातों में परू ी तर
से खोई ु ई
की गािंठ को ढीली कर दे नी चाह ए। अगर इसके बीच में स्त्री मना करती
ोती
ै तब परु ु ष को धीरे से उसकी साडी
ै तो परु ु ष को उसका मिंु
चम ू कर उसे बेचैन
कर दे ना चाह ए।
श्लोक-(9)- जस्थरमलङग्श्च तत्र तत्रैनािं पररस्पि े ृ्।। ृ त
अथि- जब परु ु ष का मलिंग परू ी तर
से उिेजजत अवस्था में आ जाए तब उसे स्त्री के िरीर के कोमल अिंगों को धीरे धीरे से स लाना चाह ए।
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श्लोक-(10)- प्रथमसिंगता चेत्ससिं तोवोरन्तरे घट्टनम ृ्।।
अथि- सु ागरात के समय अगर स्त्री िमि के मारे अपने पेटीकोट में समेट लेती
ै । ऐसी जस्थनत में परु ु ष को उसकी जािंघों पर
ाथ न ीिं लगाने दे ती और अपनी दोनों जािंघों को ाथ र्ेरते ु ए उन् ें खोल दे ना चाह ए।
श्लोक-(11)- कन्यायाश्च।।
अथि- अगर ककसी किंु वारी लडकी से सिंभोग करते
ैं तो दसवें सत्र ू में बताई गई प ली समागम ववधध से सिंभोग करना चाह ए।
श्लोक-(12)- तथा स्तनयोः सिं तयो िस्तयोः कक्षयोरिं सयोग्रीिंवायममनत च।।
अथि- उसी तर
स्त्री की कािंख, स्तनों, कमर, गदि न और जािंघों में
ाथ र्ेरना चाह ए।
श्लोक-(13)- स्वैररण्यािं यथासात्सम्यिं यथायोगिं च। अलके चम् िंु े न।। ु बनाथिमेनािं ननदि यमवलम्बेत ृ् नद ु े िे चाङठ्मलसिंपट
अथि- जो जस्त्रयािं मनचली ककस्म की उनके बालों में
ाथ डालकर उनका मुिं
ोती
ैं उनके साथ तो जैसा स ी लगे वैसा
ी करना चाह ए। मुिं
चूमने के मलए
अपनी तरर् घम ु ाकर चूमना चाह ए या गालों में धीरे से चुटकी काटनी चाह ए।
श्लोक-(14)- तत्रेतरस्या वीडा ननमीलनिं च। प्रथमसमागमे कन्यायाश्च।।
अथि- जो स्त्री प ली बार ककसी परु ु ष से ममलती
ै तो िमि के मारे अपनी आिंखों को बिंद कर लेती
श्लोक-(15)- रनतसिंयोगे चैना कथमनरु ज्यत इनत प्रवत्त्ृ या परीक्षेत।।
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- नई-नवेली दल् ु न को सु ागरात के हदन सिंभोग किया करने के मलए ककस तर प्रववृ ि को दे खकर और समझकर
राजी ककया जाए य
उसकी
ी करना चाह ए।
श्लोक-(16)- यत े त एवैनािं पीडयेत ृ्। एति स्यिं यव ु तयन्त्रेर्ोपसप्ृ यमार्ा यतो दृजष्टमावतियि ु तीनाममनत सव ु र्िनाभः।।
अथि- सिंभोग किया के समय स्त्री, परु ु ष द्वारा अपने जजस अिंग को दबाने पर उिेजना में भरकर अपनी आिंखों की पत ु मलयों को घम ु ाने लगती ै तो उसके उसी अिंग को बार-बार दबाना चाह ए। इससे स्त्री तरु िं त जाती
ी काम-उिेजजत
ो
ै।
श्लोक-(17)- गात्रार्ािं स्त्रिंसन नेत्रननमीलनिं वीडानािः समधधका च रनतयोजनेनत स्त्रीर्ािं भावलक्षर्म ृ्।।
अथि- सिंभोग किया के समय अिंगों का ढीला पड जाना, आिंखों को बिंद कर लेना, िमि का दरू मलिंग को अपनी योनन से धचपकाए रखना आहद जस्त्रयों के भाव के लक्षर्
ो जाना तथा परु ु ष के
ै । उस समय स्त्री ज्यादा भावक ु
ो जाती
ै।
श्लोक-(18)- स्तौ ववद्यन ु ोनत जस्वद्यनत दित्सयत्सु थातिंु न ददनत पादे ना जन्त रतावमाने च परू ु षानतवनतिनी।।
अथि- जब स्त्री सिंभोग किया के आणखरी चरर् में परु ु ष को दािंतों से काटती से तप्ृ त न ीिं ु ई
ै, नाखन ू ों से नोचती
ोती। ऐसे में व
ाथों और पैरों को पटकती
ै , परू ी तर
ै । इस जस्थनत में परु ु ष तो स्खमलत
परु ु ष को जोर से दबा लेती
से पसीने में भीग जाती
ो जाता
ै लेककन स्त्री परू ी तर
ै , उसे बबल्कुल भी उठने न ीिं दे ती
य्या को छोडकर परू ी जान से स्रोक लगाती
ै,
ै तथा सारी िमों-
ै।
श्लोक-(19)- तस्याः प्राग्यन्त्रयोगात्सकरे र् सिंबाधिं गज इव क्षोभयेत ृ्। आ मद ु ावात ृ्। ततो यन्त्रयोजनम ृ्।। ृ भ
अथि- सिंभोग किया के समय स्त्री को जल्दी स्खमलत करने के मलए प ले उसकी योनन के अिंदर अपनी उिं गमलयों को जोर-जोर से कर्राना चाह ए। जब ऐसा म सस ू
ो कक उसकी योनन गीली
ो गई ै तो उसके बाद सिंभोग किया िरू ु
करनी चाह ए।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-(20)- उपसप्ृ तकिं मन्थनिं ु लोऽवमदि निं पीडडतकिं ननघािता वरा घातो वष ु इनत ृ ाघातश्चटकववलमसतिं सिंपट परु ु षोपसप्ृ तानन।।
अथि- सिंभोग किया में 10 तर
के स्रोक, उपसप्ृ तक, मिंथन, ु ल, अवमदि न, ननघाित वष ृ ाघात, वरा घात, चटकववलमसत
तथा सम्पट ु ये परु ु षोपसप्ृ त पीडडतक माने जाते
ैं।
श्लोक-(21)- न्याय्यमज ु सप्ृ तकम ृ्।। ृ जस्मश्र्मप
अथि- वात्सस्यायन ने सिंभोग किया में मसर्ि उपसप्ृ तक (साधारर् स्रोकों) की इसके अिंतगित मसर्ि साधारर् प्रकार से
ी स ी बताया
ै बाकी को बेकार तयोंकक
ी इजन्ियों को ममलाया जाता
ै।
श्लोक-(22)- स्तने मलिंग सवितो भ्रामयेहदनत मन्थनम ृ्।।
अथि- मन्थनजजस समय परु ु ष द्वारा अपने मलिंग को पकडकर स्त्री की योनन के चारों ओर घम ु ाया जाता मन्थन क ते
ै तो उस किया को
ैं।
श्लोक-(23)- नीचीकृत्सय जघनमप ु ररष्याद्धट्टयेहदनत ु लः।।
अथि- ु लजजस समय परु ु ष, स्त्री की जािंघों को नीचा करके उन पर प्र ार करता
ै तो उसे ु ल क ते
ैं।
श्लोक-(24)- तदे व बबपरीतिं सरभसमवमदि नम ृ्।।
अथि- स्त्री के ननतिंबों के नीचे तककया रखकर परु ु ष द्वारा जोर से स्रोक मारना अवमदि न क लाता
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ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक-(25)- मलिंङेग्न समा त्सय पीडयिंजश्चरमवनतष्ठे तनत पीडडतकम ृ्।।
अथि- पीडडतकपरु ु ष जब अपने मलिंग को स्त्री की योनन में प्रवेि कराके कार्ी दे र तक जोर से दबाए रखता ै तो उसे पीडडतक क ा जाता
ै।
श्लोक-(26)- सद ु रू मत्सु यकृण्य वेगेन स्वजघनमवपातयेहदनत ननघाितः।।
अथि- ननघाितापीछे
टकर जोरों से अपनी जािंघों को धगराने को ननघाित क ा जाता
ै।
श्लोक-(27)- एकत एव भनू यष्ठमवमलखेहदनत वरा घातः
अथि- परु ु ष के द्वारा अपने मलिंग को स्त्री की योनन में डालकर एक
ी तरर् स्रोक लगाने को वरा घात क ते
ैं।
श्लोक-(28)- स एवोभयतः पयाियेर् वप ृ ाघातः।।
अथि- वष ृ ाघातस्त्री की योनन के अिंदर परु ु ष के अपने मलिंग के द्वारा इधर-उधर स्रोक मारना वष ृ ाघात क लाता
ै।
श्लोक-(29)- सकृजन्मधश्तमननष्िमय्य द्ववजस्त्रश्चतरु रनत घट्टयेहदनत चटकववल-मसतम ृ्।।
अथि- चटकववलमसतपरु ु ष द्वारा स्त्री की योनन में प्रवेि कराए गए मलिंग से अिंदर य
सब स्त्री को चरम सख ु की प्राजप्त
ी अिंदर 2-3 धतके लगाने चटकववलमसत क लाता ोने पर समाप्त
ो जाता
ै।
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ै।
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श्लोक-(30) रागावसाननकिं व्याख्यातिं करर्िं सिंपट ु ममनत।।
अथि- सम्पट ु सम्पट ु सिंभोग किया करते समय स्खलन
ोने पर
ोता
ै।
श्लोक-(31)- तेषािं स्त्रीसात्समयाद्ववकल्पेन प्रयोगः।।
अथि- स्त्री के आनिंद और सख ु को ध्यान में रखकर
ी इनमें से ककसी एक का प्रयोग ककया जा सकता
श्लोक-(32)- परू ु षानयते तु सिंदिंिो भ्रमरकः प्रेङखोमलतममत्सयधधकानन।।
अथि- ववपरीत सिंभोग के भेद- सन्दिं ि, भ्रमरक और प्रेङखोमलत ववपरीत सेतस के 3 प्रकार
ै।
श्लोक-(33)- वाडवेन मलिंग्ङमवगह् ृ म ननष्कषिन्त्सयाः पीडयन्त्सया वा धचरावस्थानिं सिंदिंिः।।
अथि- सन्दिं िस्त्री जब परु ु ष के मलिंग को अपनी योनन में ब ु त दे र तक र्िंसाकर रखती
ै तो उसे सन्दिं स क ते
श्लोक-(34)- यत ु तायन्त्रा चिद्भमेहदनत भ्रमरक आभ्यामसकः।।
अथि- भ्रमरकभ्रमर (भिंवरा) की तर
घम ू ने को भ्रमरक क ते
ैं।
श्लोक-(35)- तत्रेतरः स्वजघनमजु त्सक्षपेत ृ्।।
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ैं।
ै।
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अथि- भ्रमरक ववपरीत सेतस के समय परु ु ष को अपनी जािंघों को ऊपर उठा लेना चाह ए।
श्लोक-(36)- जघनमेव दोनायमानिं सवितो भ्रामयेहदनत प्रेङखोमलतकम ृ्।।
अथि- प्रेङखोमलतकम ृ्सिंभोग किया करते समय थक जाने के बाद स्त्री को अपनी इजन्ियों को सिंलग्न करते ु ए अपने माथे को परु ु ष के माथे पर रखकर आराम करना चाह ए।
श्लोक-(37)- ववश्ान्तायािं च परु ु षस्य पन ु रावतिनम ृ्। इनत परू ु षानयतानन।।
अथि- अगर स्त्री आराम करने के बाद भी तप्ृ त न ीिं
ोती तो उसे कर्र से नीचे की ओर आ जाना चाह ए तथा परु ु ष
को उसके ऊपर लेटकर सिंभोग किया करनी चाह ए।
श्लोक-(38)- भवजन्त चात्र श्लोकाः-
अथि- इस ववषय के परु ाने प्रमाणर्क श्लोक य
ै-
(39 )प्रच्छाहदतस्वभावावप गढ ू ाकारावप काममनी। वववर् ु ररवनतिनी।। ृ ोत्सयेव भाविं स्विं रागादप
जो जस्त्रयािं िमि आहद की वज
से अपने भावों को प्रकट न ीिं कर पाती
ै व
भी ववपरीत सेतस किया के समय
काम-उिेजना में आकर अपने असली रूप में आ जाती ै ।
श्लोक-(40)- यथािीला भवेन्नारी यथा च रनतलालसा। तस्या एव ववचेष्टामभस्तत्ससविमप ु लक्षेयेत ृ्।।
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का िािंत स्वभाव स्त्री का
ोता
ै और जजस तर
के द्वारा प्रकट
की उनकी काम-उिेजना
ो जाता
ोती
ै व
ववपरीत सेतस
ै।
श्लोक-(41)- न त्सवेवतो न प्रसत ू ािं न मग ु षानयते।। ृ ीिं न च गमभिर्ीम ृ्। न चानतव्यायतािं नारीिं योजयेत्सपरु
अथि- गभिवती स्त्री, छोटी योनी वाली स्त्री, जजस स्त्री का मामसकधमि आया
ो और मोटी स्त्री को ववपरीत सेतस न ीिं
करना चाह ए। जानकारीआचायि वात्सस्यायन के कामसत्र ू का ज्ञाता अमिव (बरु े ) दोनों
ी पक्षों को पेि करता
ोने की वज ै, लेककन व
से जजस प्रसिंग के बारे में बताया चारों तरर् मिव (अच्छे ) पक्ष का
ै , उसके मिव (अच्छे ) और ी समथिन करते नजर आते
ैं। आचायि वात्सस्यायन ने इस प्रकरर् में उपसप्ृ त और ववपरीत सेतस, इन दो ववषयों का प्रनतपादन खासतौर से ककया ै। आचायि वात्सस्यायन ने इस अननवियनीय आनिंद की अनभ ु नू त को ब ु त ज्यादा सरल बनाने के मलए सिंभोग तथा उसके योगों, प्रयोगों और उसकी प्रनतकियाओिं को वविदरूप से वर्िन ककया ै । उनके मत ु ाबबक इन कियाओिं को व मनोरिं जन का साधन न ीिं मानता
ै । भोग आसनों का मकसद जीवन की मसद्धध और जीवन कला का अमभज्ञान ामसल करना
आचायि वात्सस्यायन ने अच्छे और बरु े दोनों तर परु ु ष दोनों की िभ ु ननयजु तत का इच्छुक
ै।
की प्रववृ ियों और प्रयोगों का वर्िन ककया
ै । उनका स्वयिं का मानना
अगर व्यजतत और समाज को सरु क्षक्षत करना इस आठवें अध्याय के 2 मख् ु य प्रनतपाद्य दो प्रकरर्ों में बािंटा गया
ै लेककन व
ै तो उसके मलए पन ु ीत वातावरर् तथा िभ ु ननयजु तत
ोता।
ी स ी ै।
ै- परू ु षानयत और परु ु षोपसप्ृ त। दोनों ववषयों को अपने नाम के आधार पर मारे आध्याजत्समक जीवन से
ै । व्याव ाररक पक्ष में सिंभोग को कला के रूप में बताया गया
सिंभोग किया करते समय जब परु ु ष थक जाए और स्त्री की उिेजना बढ़ र ी के मलए और परु ु ष को आराम दे ने के मलए काम-उिेजजत परु ु ष की तर
जािंच करता
ै।
ी बतािव करके ववपरीत सेतस करना चाह ए।
ो। जबकक स्त्री की काम-उिेजना कार्ी बढ़ र ी
पर, स्त्री को परु ु ष के ऊपर लेट जाना चाह ए और परु ु ष को स्त्री की तर
ै उससे
ो तो उस समय स्त्री को अपनी तजृ प्त
लेककन स्त्री को उसी जस्थनत में ववपरीत सेतस करना चाह ए जब कक परु ु ष सिंभोग करते-करते िािंत
सिंभोग किया के समय नागरक य
स्त्री और
ै कक िास्त्र, ननयम-ववधान से कुछ न ीिं
ै। इन दोनों प्रकरर्ों के ववषय का प्रयोजन जजतना
क ीिं ज्यादा व्याव ाररक जीवन से भी
उसकी उिेजना कम न ु ई
मसर्ि
ो गया
ो लेककन
ो। ऐसे समय में परु ु ष के ननवेदन करने
नीचे लेटकर सिंभोग की किया करनी चाह ए।
ै कक स्त्री की जननेजन्िय के अिंदर ककस स्थान पर मलिंग के स्पिि से
या रगड से अपनी उिेजना को आिंखों के द्वारा प्रकट करती
ै । खासतौर पर उसी जग
पर जब परु ु ष उपसपिर् करता
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | ै तो अन्तःउपसपिर् ककया जाता साथ सिंभोग किया की जा र ी उपसप्ृ तक- य
ै । उपसपिर् करते ु ए परु ु ष को इस बात का ध्यान रखना चाह ए कक जजस स्त्री के ै व
अक्षतयोनन कुमारी
ै या स्वैररर्ी या दस ू री तर
की
ै । परू ु षानर्यत और
दोनों प्रयोग पनत-पत्सनी या प्रेमी-प्रेममका के बीच में काम-उिेजना बढ़ाने में ब ु त ज्यादा मददगार साबबत
ोते
ैं।
श्लोक- इनत श्ीवात्ससायायनीये कामसत्र ू े साम्प्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े परु ु षोपसप्ृ तानन परू ु षानयतिं चाष्टमोऽध्यायः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 9 औपररष्टक प्रकरण (मुख मैिुन) श्लोक (1)- द्ववववधा तत ु षरूवपर्ो च।। ृ ीया प्रकृनतः स्त्रीरूवपर्ी परू
अथि- अब तक आपको चारों प्रकार की जस्त्रयों के बारे में आमलिंगन से लेकर ववपरीत सेतस के बारे में बताया गया अब आपको तीसरी प्रकार अथाित ककन्नरों के मलए औपररष्टक योग बताया जा र ा ककन्नर प्रकृनत 2 तर
की
ोती
ै।
ै-
ै स्त्री और परू ु ष।
== = श्लोक (2)- तत्र स्त्रीरूवपर्ी जस्त्रया वेषमालापिं लीलािं भाविं मव ु ु वीत।। ृ त्सविं भीरुत्सविं मग्ु धतामसह ष्र्ुता व्रीडािं चानक
अथि- जजसकी चाल-ढाल, रिं ग-रूप, िरीर की बनावट बबल्कुल स्त्री की तर सिंभोग करने में ववर्ल
ो तो उस ककन्नर को चाह ए कक व
ी
ो लेककन उसके यौन अिंग परू ु ष के साथ
जस्त्रयों की तर
ी कपडे प ने और उसी की तर
भाव, िमो- य्या, डर आहद को प्रकट करे ।
श्लोक (3)- तस्या वदने जघनकमि। तदौपररष्टकमोचक्षते।।
अथि- औपररष्टकककन्नर स्त्री के मख ु में जो बरु ा काम ककया जाता ै उसे औपररष्टक क ा जाता ै । र्लमा -
श्लोक (4)- सा ततो रनतमामभमाननकीिं ववृ ििं च मलप्सेत ृ्।।
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ाव-
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- ऐसी ककन्नर स्त्री को स्तनों को दबाना, चुिंबन करना आहद कियाओिं द्वारा अमभमाननी का सिंभोग सख ु प्राप्त करने के साथ
ी मख ु मैथन ु द्वारा
ी अपना जीवन बबता सकती
ै।
श्लोक (5)- वेश्यावच्चररतिं प्रकाियेत ृ्। इनतिं स्त्रीरूवपर्ी।।
अथि- ककन्नर स्त्री को
रदम वेश्याओिं जैसा व्यव ार
ी करना चाह ए। य ािं पर ककन्नर का ववषय समाप्त
ोता
ै।
श्लोक (6)- परू ु षरूवपर्ी तु प्रच्छन्नकामा परु ु षिं मलप्समानािं सिंवा क-भावमप ु जीवेत ृ्।।
अथि- जो ककन्नर परू ु ष जैसे
ोते
ैं व
परू ु ष से सिंभोग करने की इच्छा रखते
ककन्नर
ोने की वज
से अपनी इच्छाओिं को दबाकर रखते
ैं लेककन व
ैं। ऐसे में उस ककन्नर को परू ु ष के पािंव आहद दबाने का काम करना चाह ए।
श्लोक (7)- सिंवा ने पररष्वजमानेव गात्रैरूरू नायकस्य मद् ृ गीयात ृ्।।
अथि- परू ु ष के पािंव दबाते समय अपने िरीर को परू ु ष के िरीर से छुआते र े और उसकी जािंघों को भी दबाए।
श्लोक (8)- प्रसतपररचया चोरुमल े ृ्।। ू िं सजघनममनत सिंस्पि ृ त
अथि- इसके बाद धीरे -धीरे करके परू ु ष की जािंघों के जोडो तथा जािंघों को धीरे -धीरे स लाते ु ए मसलना चाह ए।
श्लोक (9)- तत्र जस्थरमलङग्तामप ु लभ्य चास्य पाणर्मऩ्घ्थेन पररघट्टे येत ृ्। चापलमस्य कुत्ससन्तीव
अथि- इस तर
करने से अगर परू ु ष के मलिंग में उिेजना आ जाती
सेत ृ्।।
ै तो उसकी चापलस ू ी करते ु ए उसके मलिंग को
अपनी मट् ु ठी में दबाकर ह लाएिं।
श्लोक (10)- कृतलक्षर्ेनाप्यप ु लब्धवैकृतेनावप न चोद्यत इनत चेत्सस्वयमप ु िमेत ृ्।।
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अथि- परू ु ष का मलिंग उसी अवस्था में उिेजजत
ो सकता
ै जब उिेजना पैदा
उिेजना पैदा करने और इस बात की जानकारी दे ते ु ए भी कक व
ककन्नर को मख ु मैथुन करने के मलए क े लेककन ककन्नर को खद ु
ोती
ै । इस तर
मख ु मैथुन करना चा ता
ककन्नर द्वारा
ै कर्र भी परू ु ष उस
ी मख ु मैथुन करने के मलए आगे बढ़ना चाह ए।
श्लोक (11)- परु ु षेर् च चोद्यमाना वववदे त ृ्। कृच्रे र् चाभ्यप ु गच्छे त ृ्।।
अथि- कभी-कभी अगर परू ु ष प ले
ी ककन्नर से मख ु मैथुन करने के मलए क ता ै तो ककन्नर को आनाकानी करते ु मैथुन करना चाह ए। ु ए ब ु त मजु श्कल के मख
श्लोक (12)- तत्र कमािष्टववधिं समच् ु चयप्रयोज्यम ृ्।।
अथि- औपररष्टक काम 8 तर
के
ोते
ैं इसमलए उनका बारी-बारी से प्रयोग करना चाह ए।
श्लोक (13)- ननममतिं पाश्चितोदष्टिं बह ःसिंदिंिोऽन्तःु सिंदिंिश्चजु म्बतकिं पररमष्ृ टकमाम्रचवू षतकिं सिंगर इनत।।
अथि-
ननममि पाश्वोदष्टिं बह ःसिंदिंि अिंतःसिंदिंि चुजम्बतक पररमष्ृ टक आम्रचवू षतक
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श्लोक (14)- तेष्वेकैमभ्यप ु गम्य ववरामाभीप्सािं दिियेत ृ्।।
अथि- इन 8 कियाओिं में से ककन्नर को एक-एक किया करते ु ए आराम करना चाह ए जजससे कक परू ु ष ज्यादा उत्ससक ु ो जाए।
श्लोक (15)- इतरश्च पव ू जि स्मन्नभ्यप ु गते तदि ु रमेवापरिं ननहदिेत ृ्। तजस्मन्नवप मसद्धे तदि ु रममनत।।
अथि- परू ु ष को एक किया के परू ी
ो जाने के बाद ककन्नर से दस ू री किया करने के मलए क ना चाह ए। इसी तर
से
उससे बाकी कियाएिं करने के मलए क ना चाह ए।
श्लोक (16)- करावलजम्बतमोष्ठयोरुपरर ववन्यस्तमपववध्य मख ु िं ववधन ु य ु ात ृ्। तजन्नममतम ृ्।।
अथि- ननममत परू ु ष के मलिंग को अपने
ाथों से पकडकर उस ककन्नर को
चाह ए और कर्र अपना मिंु
ोठों को गोल-गोल आकार में बनाकर मलिंग पर रख दे ना
ह लाना चाह ए। इसे ननममत मख ु मैथन ु क ते
ैं।
श्लोक (17)- स्तेनाग्रमवच्छाद्य पाश्वितो ननदि िनमोष्ठाभ्यामवपीडय भवत्सवेतावहदनत सान्वयेत ृ्। तत्सपाश्वितोदष्ट।
अथि- पाश्वितोदष्टककन्नर को परू ु ष के मलिंग के आगे वाले भाग को अपने
ाथ से दबाकर तथा उसके दोनों भागों को मसर्ि
दबाकर छोड दे ना चाह ए और क ना चाह ए कक अब इतना
ी करना
ै । इसे पाश्वितोदष्ट क ते
श्लोक (18)- भय ू श्चोहदता सिंमीमलतौष्ठी तस्यािंग्र ननष्पीडच्य कषियन्तीव चुम्बेत ृ्। इनत बह ःसिंदिंि।।
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ोठों से ैं।
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अथि- बह ःसिंदिंि अगर परू ु ष दब ु ारा से ककन्नर को य दोनों
किया करने के मलए क ता
ै तो उसे परू ु ष के मलिंग को मुिं
ोठों से दबाकर खीिंचते ु ए उसे चूमना चाह ए। इस किया को बह ःसिंदिंि क ते
के अिंदर लेकर ैं।
श्लोक (19)- तजस्मभेवाभ्यथिनया ककजञ्ञदधधकिं प्रवेियेत ृ्। सावप चाग्रमोष्ठायािं ननष्पीडय ननष्ठीवेत ृ्। इत्सयन्तःसिंदिंिः।।
अथि- अन्तःसिंदिंि परू ु ष के कर्र दब ु ारा से क ने पर ककन्नर को परू ु ष के मलिंग के आगे के भाग को थोडा ा़ मुिं दबाकर ननकाल दे ने को अन्तःसिंदिंि क ते
के अिंदर रखकर
ोठों से
ैं।
श्लोक (20)- करावलजम्बतस्यौष्ठवद्ग्र र्िं चजु म्बतकम ृ्।।
अथि- चजु म्बतक अपने
ाथों में परू ु ष के मलिंग को पकडकर
ोठों को गोल आकृनत में बनाकर मलिंग को उनसे चम ू ने को चजु म्बत क ते ैं।
क (21)- तत्सकृत्सवा जजह्वाग्रेर् सवितो घट्टनमग्रे च व्यधनममनत
अथि- पररमष्ृ टकम ृ् चुजम्बतक किया को करते समय मलिंग को जीभ से रगडना या उस पर जीभ से प्र ार करने को पररमष्ृ टक क ते
श्लोक (22)- तथाभत ू मेव रागविादधिप्रववष्टिं ननदि यमवपीडयावपीडय मञ् ु ञेत। इत्सयाम्रसवु षतकम ृ्।।
अथि- आम्रचूवषतक
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ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | परू ी तर
से उिेजना के बढ़ जाने के बाद मलिंग को मुिं
में थोडा सा परू ा डालकर आम की गठ ु ली की तर
आम्रचवू षतक क ते
चस ू ने को
ैं।
श्लोक (23)- परू ु षामभप्रायादे व धगरे त्सपीडयेच्चपररसमाप्तेः। इनत सिंगरः।।
अथि- सिंगरककन्नर को परू ु ष की इच्छा के मत ु ाबबक
ी मलिंग को मुिं
में डालकर स्खमलत
ोने तक दबाने को सिंगर क ते
ैं।
श्लोक (24)- यथाथि चात्र स्तननप्र र्नयोः प्रयोगः। इत्सयौपररष्टकम ृ्।।
अथि- उिेजना के अनस ु ार
ी कम या तेज गनत से मख ु मैथुन करते समय ककन्नर को मससककयािं तथा प्र र्न किया करनी चाह ए।
श्लोक (25)- कुल्टाः स्वैररण्यः पररचाररकाः सिंवाह काश्चाप्येतत ृ् प्रयोजयजन्त।।
अथि- ककन्नरों के अलावा कुल्टा आहद जस्त्रयों के मख ु मैथन ु कमि कुल्टा, स्वैररर्ी, पररचाररका तथा सिंवाह का जस्त्रयािं भी मख ु मैथन ु कराती
ै।
श्लोक (26)- तदे तिु न कायिम ृ्। समयववरोधासभ्यत्सवाच्च। पन िं गे स्वयमेवनतं प्रपद्येत। इत्सयाचायािः।। ु रवप ह्यासािं वदनिंसस
अथि- आचायों के मतानस ु ारइस मख ु मैथुन जैसे कायि को बबल्कुल भी न ीिं करना चाह ए। िास्त्रों नें भी इस काम को गलत बताया ककन्नर मख ु मैथुन करवाते
ैं इसको करने के बाद अगर इनका मुिं
ै । जो स्त्री या
चूमा जाता ै तो ब ु त ज्यादा दख ु
श्लोक (27)- वेश्याकाममनोऽयमदोषः। अिंतयतोऽवप परर ायिः स्यात ृ्। इनत वात्सस्यायनः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ोता
ै।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- आचायि वात्सस्यायन के अनस ु ार वेश्यागमन करने वालों के मलए िास्त्रों को न मानना गलत न ीिं माना जा सकता। इसके अलावा य
भी क ा जाता
ै कक जानवरों का
जजस दे ि में इस काम को करना जायज माना जा सकता
ै तथा ऐसी जस्त्रयों के मुिं
ै व ािं के लोगों को य
को चूमने से दख ु
ोता
ै।
काम करने पर दोषी न ीिं ठ राया
जा सकता।
श्लोक (28)- तस्माद्यास्तवौपररष्टकमाचरजन्त न तामभः स
सिंसज् ृ यन्ते प्राच्याः।
अथि- प्राच्य दे ि के लोग मख ु मैथुन न करवाने वाली जस्त्रयों के साथ सिंभोग न ीिं करते
ैं।
श्लोक (29)- वेश्यामभरे व नसिंसज् ु कमि तासािं परर रजन्त।। ृ यन्ते आह च्छबत्रकाः सिंसष्ृ टा अवप मख
अथि- अह च्छत्र दे ि में र ने वाले लोग वेश्यावनृ त न ीिं करते
चम ू ा जाता
ैं और अगर कोई स्त्री करती भी ै तो उसका मिंु ै।
श्लोक (30)- ननरपेक्षाः साकेताः सिंसज् ृ यन्ते।।
अथि- साकेत दे ि के लोगों की प्रववृ िअवध (साकेत) दे ि के लोग अपनी मनमजी के मत ु ाबबक वेश्यावनृ त करते
ैं।
श्लोक (31)- न तु स्वयमौपररष्टकमाचरजन्त नागरकाः।।
अथि- नागरक दे ि के लोग अपने आप में कोई बरु ा काम न ीिं करते
ैं।
श्लोक (32)- सविमवविङतया प्रयोजयजन्त सौरसेनाः।।
अथि- सरू सेन दे ि के लोग
र काम को बबना डरे करते
ैं।
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न ीिं
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (33)- एविं ह्या ु ः- को ह
योवपतािं िीलिं िौजमाचारिं चररत्रिं प्रत्सययिं वचनिं वा श्द्धातम ु िनत। ननसगािदेव ह
ममलनदृष्टयो भवन्त्सयेता न पररत्सयाज्याः। तस्मादासािं स्मनृ तत एव िौचमन्वेष्टव्यम ृ्। एविं ह्या ु ः- वत्ससः प्रस्त्रवर्े मेध्यः श्वा मग ु िं रनतसिंगमें ।। ृ ग्र र्े िधु चः। िकुनन र्लपाते तु स्त्रीमख
अथि- इसी वज
से क ा जाता
तयोंकक जस्त्रयािं स्वभाव से
ै कक ऐसा कौन
ै जो जस्त्रयों के िील, िौच, आचार, चररत्र और वचन पर भरोसा करे गा
ी ममलन स्वभाव की
ोती ै कर्र भी छोडने लायक न ीिं
ोती
ै । इसमलए इनकी पववत्रता
को धमििास्त्रों में ढूिंढना चाह ए। धमििास्त्रों के मत ु ाबबकदध ू ननकालते समय बछडा पववत्र पववत्र
ोता
ोता
ै, ह रन को पकडते समय कुिा पववत्र
ै और सिंभोग किया के समय स्त्री पववत्र
ोती
ै । इसी वज
ोता
ै , र्लों के धगरने के समय पक्षी
से सिंभोग के समय जस्त्रयों के मख ु को
पववत्र समझना चाह ए।
श्लोक (34)- मिष्टाववप्रनतपिेः स्मनृ तवातयस्य च सावकाित्सवाद्दे िाजस्थतेरात्समनश्च ववृ िप्रत्सययानरू ु पिं प्रवतेत। इनत वात्सस्यायनः।।
अथि- आचायि वात्सस्यायन क ते
ैं-
मिष्टजनों के अनस ु ार जस्त्रयों का मख ु न ीिं चम ू ना चाह ए लेककन धमििास्त्र में सिंभोग किया के समय मख ु को चम ू ना ब ु त जरूरी
ै । ऐसे में अपनी इच्छा और स्त्री के भरोसे के अनस ु ार
ी बतािव करना चाह ए।
श्लोक (35)- भवजन्त चात्र श्लोकः- प्रमष्ृ टकुण्डलाश्चावप यव ु ानाः पररचारकाः। केपािंधचदे व कुविजन्त नरार्ामौपररष्टकम ृ्।।
अथि- इस ववषय में 4 श्लोक बताए गए
ै-
कानों में किंु डल आहद प नने वाले या सजकर र ने वाले परू ु ष भी मख ु मैथुन करते
ैं।
श्लोक (36)- तथा नागरकाः केधचदन्योन्यस्य ह तैवषर्ीः। कुविजन्त रूहढववश्वासाः परस्परपररग्र म ृ्।।
अथि- इसी तर
कुछ भोगववलासी तथा एक-दस ू रे के प्यारे बनने वाले लोग भी आपस में मख ु मैथुन करते
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ैं।
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श्लोक (37)- परू ु षाश्च तथा स्त्रीसु कमैंतजत्सकल कुवित।े व्यासम्चत्सस्य च ववज्ञेयो मख ु चुम्बनबद्ववधधः।।
अथि- ब ु त से परू ु ष भी स्त्री के साथ मख ु मैथुन करते ै मतलब की व से चाटते
स्त्री की योनन का चुिंबन लेते ै या उसे जीभ
ैं।
श्लोक (38)- पररवनतितद े े ौ तु स्त्रीपस ुिं ौ यत्सपरस्परम ृ्। यग ु पत्ससिंप्रयज् ु येते स कामः काककलः स्मत ृ ः।।
अथि- जजस किया में स्त्री और परू ु ष एक-दस ू रे के सामने मुिं परू ु ष के मलिंग का चिंब ु न करती
करके लेट जाते
ैं और परू ु ष स्त्री की योनन का और स्त्री
ै तो उस मख ु मैथन ु को काककल क ते
ैं।
श्लोक (39)- तस्माद गर् ु वतस्त्सयततवा चतरु ािंस्त्सयाधगनो नरान ृ्। वेश्याः खलेषु रज्येन्ते दास् जस्तकाहदप।ु ।
अथि- इसी वज
से ज्यादातर वेश्याएिं मिष्ट, कलाकुिल और गर् ु ी व्यजततयों को छोडकर नौकरों, साइसों आहद खल व्यजततयों में ज्यादा हदलचस्पी रखती ै ।
श्लोक (40)- न त्सवेतदिाह्मर्ो ववद्वान्मन्त्री वा राजधध ू रि ः। ग ृ ीतप्रत्सययो वावप कारचेदौपररष्टकम ृ्।।
अथि- मख ु मैथुन जैसे कायों को ववद्वानों को, िाह्मर्ों को, राज्य के मिंत्री को तथा जजससे सब प्यार करते
ैं आहद को
न ीिं करना चाह ए।
श्लोक (41)- न िास्त्रमस्तीत्सयेतावत्सप्रयोगे कारर्िं भवेत ृ्। िास्त्राथािन्व्यावपनो ववद्यात्सप्रयोगािंस्तवेकदे मिकान ृ्।।
अथि- इस ववषय का िास्त्र बना ु आ
िास्त्र तो व्यापक
ोता
ै मसर्ि य ीिं न ीिं, इन ववषयों के प्रयोग का कारर् न ीिं ु आ करता तयोंकक
ै उनके अिंतगित अच्छाई बरु ाई सभी कुछ र ती
ै, लेककन प्रयोग सीममत तथा दे िीय
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ोते
ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (42)- रसवीयिववपाका ह
श्वमािंसस्यावप वैद्यके। कीनतिता इनत तजत्सक स्याद्धक्षर्ीयिं ववचक्षर्ैः।।
अथि- आयव ु ेद में तो कुिे के मािंस को भी वीयि और रस बढ़ाने वाला बताया गया ै तयोंकक जब मािंस के गर् ु और दोषों के बारे में बताया जाता
ै तो उसमें कुिे के मािंस के गर् ु और दोष भी बताने चाह ए लेककन तया इतना बता दे ने से लोगों को कुिे का मािंस खाना चाह ए।
श्लोक (43)-सन्त्सयेव परु ु षाः केधचत्ससजन्त दे िास्ताथाववधाः। सजन्त कालाश्च येष्वेते योगा न स्यनु निरथिकाः।
अथि- कुछ इस प्रकार के दे िों में , इस प्रकार के लोगों पर इस प्रकार का समय आता बरु ा न ीिं
ोता
ै जब उनके मलए ऐसे काम कोई
ै।
श्लोक (44)- तस्माद्दे ििं च कालिं च प्रयोगिं िास्त्रमेव च। आत्समनिं चावप सिंप्रेक्ष्य योगान्यञ् ु ञीत वा न वा।।
अथि- इसी वज
से दे ि, समय, िास्त्र तथा अपने आपको दे खकर जो स ी लगे उन् ीिं ववधधयों और योगों को अपनाना चाह ए और जो स ी न ीिं लगे उन् े छोड दे ना चाह ए।
श्लोक (45)- अथिस्यास्य र स्यत्सवाच्चलत्सवान्मनसस्तथा। कः कदा ककिं कुतः कुयािहदनत को ज्ञातम ु ह नि त।।
अथि- इस प्रकार की मख ु मैथन ु की किया को नछपाकर
ी करना चाह ए और ककसी को इसके बारे में बताना भी न ीिं
चाह ए। मन तो वैसे भी कब, तया करा डाले य
कोई न ीिं जान सकता।
जानकारीमख ु मैथुन को औपररष्टक क ा जाता ब ुत
ी बरु ा बताया गया
ै। य
किया ज्यादातर ककन्नर करते
ैं। ववद्वानों के मत ु ाबबक मख ु मैथुन को
ै और इसका ववरोध धमििास्त्रों में भी ककया गया ै । इसी वज
करनी चाह ए। जो लोग इस किया को करने में आनिंद प्राप्त करते ैं।
ैं व
लोग ब ु त
से इस किया को न ीिं
ी दष्ु ट प्रवनृ त के क े जा सकते
श्लोक- इनत श्ीवात्सस्यायनीये कामसत्र ू े साम्प्रयोधगके द्ववतीयेऽधधकरर्े औपररष्टकिं नवमोऽध्यायः।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अध्याय 10 रतारम्भावसातनक प्रकरण श्लोक (1)- नागरकः स ममत्रजनेन पररजारकैक्ष कृतपष्ु पोप ारे सिंचाररतसरु मभधूपे रत्सयावासे प्रसाधधते वासग ृ कृतस्त्रानप्रसाधनािं यत ु तयापीतािं जस्त्रयिं सान्त्सवनैः पन ु ः पानेन चोपिमत ृ्।।
अथि- नागरक को अपने नौकरों तथा दोस्तों द्वारा र्ूलों से सजाए गए सग ु धिं धत सिंभोग किया करने वाले कमरे में अपनी खूबसरू त, म िं गे वस्त्रों में सजी, ग नों से लदी ु ई, िराब का सेवन की ु ई स्त्री के पास जाकर बैठे तथा उससे दब ु ारा उससे िराब पीने के मलए क ें ।
श्लोक (2)- दक्षक्षर्तक्ष्चास्या उपवेिनम ृ्। केि स्ते वस्त्रान्ते नीव्याममत्सयवलम्बनम ृ्। रत्सयथि सव्येन बा ु नानद् ु धतः पररष्वग्ड।।
अथि- स्त्री के दाईं तरर् बैठ जाएिं। कर्र उसके बालों को साडी की गािंठ पर
ाथों से स लाएिं, उसके कपडों पर
ाथ र्ेरें । इसके बाद उसकी
ाथ लगाएिं। सिंभोग किया का आनिंद बढ़ाने के मलए अपनी बाईं भज ु ा से उसको मजबत ू ी से जकड लें।
श्लोक (3)- पव ि करर्सिंबद्धैः परर ासानरु ागैवच ि ोमभरनव ू प्र ु वृ िः। गढ ू ाश्र्लीलानािं च वस्तन ू ािं समस्यया पररभाषर्म ृ्।।
अथि- सिंभोग के समय के आनिंद को बढ़ाने के मलए ककसी ग री तथा अश्लील बात को ककसी भी समस्या के रूप में बात करें । इसके साथ
ी
िं सी-मजाक भी जारी र ना चाह ए।
श्लोक (4)- सनि ु ः पानेनोपच्छन्दनम ृ्।। ृ मनि ृ िं व गीतिं वाहदन्नम ृ्। कलासु सिंकथाः। पन
अथि- ककसी तर
के सिंगीत को बजाने की व्यवस्था करें चा े तो नाच भी करवा सकते तर
ैं, सक ु ु मार कलाओिं पर ककसी
की बातचीत करें और कर्र िराब का सेवन कराकर उसका उत्ससा
बढ़ाएिं।
श्लोक (5)- जातानरु गायािं कुसम ु ानल ु ेपनताम्बल ू दानेन च िेषजनववसजृ ष्टः। ववजने च यथोततैरामलग्डनाहदमभरे नामद् ु धषियेत ृ्।ततो नीवीववश्र्लेषर्ाहद यथोततमप ु िमेत। इत्सययिं रतारम्भः।।
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
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की खुिब,ू इत्र, परफ्यम ू आहद को स्त्री के ऊपर नछडककर उसकी उिेजना को बढ़ाए। र्ालतू बैठे ु ए
लोगों को ववदा कर दें । इसके बाद ककसी खाली कमरे में उसकी उिेजना को और बढ़ाने के मलए उसके साथ आमलिंगन, ा़ चुिंबन आहद करें । इसके बाद सिंभोग करने से प ले की कियाएिं साडी खोलना, कपडे उतारना आहद करें ।
श्लोक (6)- रतावसाननकिं रागमनतवाह्यासिंित ु योररव सव्रीडयोः परस्परमपश्यतोः पथ ृ तपथ ृ गाजारभमू मगमनम ृ्। प्रनतननवत्त्ृ यचाव्रीडायमानयोरुधचतदे िो- पववष्टयोस्ताम्बल ू ग्र र्मच्छीकृतिं चिंदनमन्यद्वानल ु ेपनिं तस्या गात्रे स्वयमेव ननवेियेत ृ्।।
अथि- सिंभोग किया की समाजप्त के बाद काम-उिेजना को बढ़ाने वाली कियाओिं को छोडकर दोनों को एक-दस ू रे से अिंजान बने ु ए िमि सी करते र ें और एक-दस ू रे को न दे खते ु ए अलग-अलग िौचालयों में जाकर मत्र ू त्सयाग करें तथा अपने-अपने जननािंगों को सार् करें । इसके बाद िमो- य्या को छोडकर सिंभोग करने वाले स्थान के अलावा ककसी
दस ू रे स्थान पर बैठकर पान का सेवन करें । कर्र अपने
ाथों से स्त्री के िरीर पर चिंदन का या ककसी दस ू रे तेल आहद
को लगाएिं। श्लोक (7)- स्वयेन बा ु ना चैनािं परररभ्य चषक स्तः सान्त्सवयन ृ् पापयेत ृ्। जलानप ु ानिं वा खण्डखाद्दकमन्यद्धा प्रकृनतसात्सम्ययत ु तमभ ु ावप्यञ् ु ञयाताम ृ्।।
अथि- इसके बाद अपने बाएिं
ाथ से स्त्री का अमलिंगन करके उसे सािंत्सवना दें । कर्र अपनी पसिंद तथा मौसम के अनस ु ार मीठे पदाथि या र्ल आहद का सेवन करें ।
श्लोक (8)- अच्छरसकयष ू मम्यलयवागिंू भष्ृ टमािंसोपदिं िानन पानकानन चत ू र्लानन िष्ु कामािंसिं मातल ु ग्ु डिंचि ु काणर् सिकिराणर् य यथादे िसात्सम्यिं च। तत्र मधरु ममदिं मद ु ा रे त ृ्।। ृ ु वविदममनत च ववदश्य ववदश्य तिदप
अथि- स्त्री को कोई भी खाने वाला र्ल आहद य ै, य
ककतना सद ुिं र और बडा
क कर कक इस आम मे ककतना रस भरा ु आ
ै, य
ककतना मीठा
ै , इसे चखकर और चूसकर दे खो क कर दे ते र ें ।
श्लोक (9)- म्यिलजस्थतयोवाि चजन्िकासेवनाथिमासनम ृ्।तत्रानक िं ीनायाश्र्चन्िमसिं ु ू लामभः कथामभरनव ु तेत। तदतडिंसल पश्यन्त्सया नक्षत्रपिंडडततव्यततीकरर्म ृ्। अरुन्धतीध्रुवसप्तवषिमालादििनिं च। इनत रतावसाननकम ृ्।।
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अथि- स्त्री और परू ु ष दोनों को मौसम का या चािंदनी रात का आनिंद लेने के मलए घर की छत पर बैठ जाना चाह ए और प्यार भरी बातें करनी चाह ए। कर्र स्त्री को परू ु ष की गोद में अपना मसर रखकर लेट जाना चाह ए और चािंद की रोिनी को दे खते र ना चाह ए। परू ु ष को स्त्री को नक्षत्रमालाओिं के नाम बताते ु ए क ना चाह ए कक दे खो व
अरुिं धती
ै, व
ध्रुव तारा
ै, व
सप्तवषि ै और व
आकाि गिंगा
ै । इस तर
िरीर और मन को िािंत और सजु स्थर
बनाकर अलग-अलग पलिंग पर सो जाना चाह ए।
श्लोक (10)- तत्रैतद्धवनत- अवसानेऽवप च प्रीनतरुपचारै रुपस्कृता। ववस्त्रम्भकथायोगै रनतिं जनयते पराम ृ्।।
इस ववषय में क ी गई क ावते प्रमसद्ध
ै-
अथि- अमलिंगन, चुिंबन और मीठी-मीठी प्यार भरी बातों से और प्यार की क ाननयों से दोबारा िरीर में काम-उिेजना पैदा
ो जाया करती
ै।
श्लोक (11)- परस्परप्रीनतकरै रात्समभावानव ु तिनःै क्षर्ात्सिधपरावि ृ ःै क्षर्ािप्रीतववलोककतैः।।
अथि- प्यार पैदा करने वाले भावों को हदखाने से थोडी ा़ ी दे र में नाराज
ोकर मिंु
प्यार भरी नजर से दे खने से आपस में प्यार बढ़ता
मोडने और दस ू रे
ी पल
िंसकर
ै।
श्लोक (12)- ल्लीसिंकिीडनकैगाियनैलािटरासकैः। रागलोलािि नयनैश्चन्िमिंडलवीक्षर्ैः।।
अथि- स्त्री और परू ु ष के प ली बार ममलने पर मन में ककस प्रकार की भावनाएिं पैदा ु ई थी या प ली बार एक-दस ू रे से बबछडने पर ककतना दख ु ु आ। इस प्रकार की बातें करने से िरीर में उिेजना बढ़ती
ै।
श्लोक (13)- आद्ये सिंदििने जाते पव ू ि ये स्यु ृ्मिनोरथाः पन ु ववियोगे दःु खिं च तस्य सविस्य कीतिनः।। कीतिनान्ते च रागेर् पररष्बग्ङैः सचम् ु बनैः। तैस्तैश्र्च भावैः सिंयत ु तो यन ू ो रागो वववधित।े ।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- इस तर
से प्यार भरी बातें करने से और आपस में एक-दस ू रे को अमलिंगन और चब ुिं न आहद करने से आनिंद और उिेजना बढ़ जाते
ैं।
श्लोक (14)- रागवदा ायिरागिं कृबत्रमरागिं व्यवह तरागिं पोटारतिं खलरतमयजन्त्रतरतममनत रतावविेषाः।।
अथिरागवत- सबसे प ले एक-दस ू रे को दे खने से
ी आपस में प्यार पैदा
ो जाता
ै।
आ ायिराग- ककसी स्त्री से धीरे -धीरे प्यार बढ़ाकर उसके साथ सिंबध िं जोड लेना चाह ए। कृबत्रमराग- प्यार के बबना
ी ककसी खास मकसद से सिंबध िं जोडना चाह ए।
व्यवह तराग- ककसी कारर् से अपनी पत्सनी के अलगाव तर
ो जाने पर ककसी दस ू री स्त्री के साथ अपनी पत्सनी की
ी
सिंबध िं रखने चाह ए।
पोटारत- काम-उिेजना में अिंधे
ोकर ककसी दष्ु ट स्त्री के साथ सिंबध िं जोडना।
खलरत- अपने अिंदर उठने वाली काम-उिेजनाओिं को िािंत करने के मलए ककसी छोटी जानत की स्त्री या नीच व्यजतत से सिंबध िं जोडना। अयजन्त्रतरतम- जजन परु िं जड ु षों और जस्त्रयों के आपस में सिंबध ु ने में ककसी तर
की परे िानी न ीिं आती
ै।
श्लोक (15)- सिंदििनात्सप्रभत्सृ यभ ु योरवप प्रवद् ृ धरागयोः प्रयत्सनकृते समागमे प्रवासप्रत्सयागमने वा कल ववयोगयोगे तिागवत ृ्।।
अथि- सबसे प ले स्त्री और परू ु ष की आपस में बातचीत, एक-दस ू रे को दे खना, एक-दस ू रे की आिंखों में दोनों को समा जाना, एक-दस ू रे से ममलने के मलए हदल में तडप पैदा
ोना, दोनों की तडप बढ़ने से ब ु त मजु श्कलों से आपस में सिंभोग
करना, ककसी दरू दे ि से वावपस आने पर बबछडने की तडप को भल ू कर दोबारा से उिेजना भरी ु ई बातें करना रागावत क लाया जाता
ै।
श्लोक (16)- तत्रात्समामभप्रायाद्यावदथि च प्रववृ िः।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- रागावत (उिेजना) अपने आप
ी बढ़ती
ै । इस प्रकार स्त्री और परू ु ष सिंभोग करते ु ए जब तक स्खमलत न ीिं
ोते तब तक सिंभोग करने में लगे र ते
ैं।
श्लोक (17)- मध्यस्थरागयोरारब्धिं यदनरु ज्यते तदा ायिरागम ृ्।।
अथि- जब स्त्री या परू ु ष एक-दस ू रे को दे ख लेते
ैं तो उनमें एक-दस ू रे के प्रनत मसर्ि चा त पैदा
की काम-उिेजना न ीिं। इसे मध्यस्थराग क ा जाता उिेजना पैदा
ै। इस तर
ोती
ै ककसी तर
से मध्यस्थराग के द्वारा ककए गए उपायों से
ोने से जजस समय दोनों आपस में ममल जाते
ैं तो उसे आ ायिराग क ते
ैं।
श्लोक (18)- तत्र चातःु षजष्टकैयोगैः सात्समयानवु वद्धैः सिंघक्ष् ु य सिंघक्ष् ु यरागिं प्रवतेत।।
अथि- इस तर
के अवसर ममलने पर प ले के अनभ ु व के आधार पर ककये गए अमलिंगन आहद के जररये अपनी तथा स्त्री की काम-उिेजना को जगाकर सिंभोग किया में लीन
ो जाना चाह ए।
श्लोक (19)- तत्सकायिपेतोरन्यत्र सततयोवाि कृबत्रमरागम ृ्।।
अथि- अगर परू ु ष ककसी और पर कर्दा
ो जाए तथा स्त्री भी ककसी और पर कर्दा
जब दोनों आपस में सिंभोग करते
ो जाए तो इस मकसद के त त
ैं तो उसे कृबत्रम राग क ा जाता
ै।
श्लोक (20)- तत्र समच् ु चयेन योगाञ्िास्त्रतः पश्येत ृ्।।
अथि- कृबत्रम आहद उिेजनात्समक सिंभोग किया में कामिास्त्रीय योगों या तरीकों का प्रयोग करना चाह ए।
श्लोक (21)- परू ु षस्तु ह्रदयवप्रयामन्यािं मनमस ननधाय व्यव रे त ृ्। सिंप्रयोगात्सप्रभनृ त रनतिं यावत ृ्। अतस्तद्यवह तरागम ृ्।।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- परू ु ष जजस स्त्री से प ले प्यार करता था, उसकी छवव को अपने मन में रखकर दस ू री स्त्री के साथ सिंभोग करते समय सिंभोग की सारी कियाओिं का इस्तेमाल करें और स्त्री भी अपने प ले की प्रेमी को मन में बसाकर दस ू रे परू ु ष के साथ सिंभोग किया करे । इसे रत व्यवह तराग क ते
ैं।
श्लोक (22)- न्यन ू ायािं कुम्भदास्यािं पररचाररकायािं वा यावदथि सिंप्रयोगस्तत्सपोटारतम ृ्।।
अथि- नीची जानत की स्त्री के साथ या अपने घर आहद में काम करने वाली स्त्री के साथ जब सिंभोग किया की जाती ै उसे पोटारत क ते
ैं।
श्लोक (23)- तत्रोपचारात्राहियेत।।
अथि- इस प्रकार की जस्त्रयों के साथ सिंभोग करते समय चिंब ु न, अमलिंगन आहद का प्रयोग न ीिं करना चाह ए तयोंकक इस तर
की सिंभोग किया मसर्ि प्रयोजनपरक (ककसी उदे श्य को परू ा करने के मलए) श्लोक (24)- तथा वेश्याया ग्रामीर्ेन स
ी मानी जाती
ैं।
यावदथि खलरतम ृ्।।
अथि- इसी प्रकार वेश्या का ककसी गिंवार के साथ मसर्ि सिंभोग करने तक मतलब र ता
ै । इसे खलरत क ते
ैं।
श्लोक (25)- ग्रामव्रयप्रत्सयन्तयोवषद्धधकश्च।।
अथि- ककसी गिंवार स्त्री, गाय चराने वाली स्त्री, भीलनी आहद के साथ सिंभोग किया में ननपर् ु व्यजतत जब सिंभोग करता ै तो उसे भी खलरत क ते
ैं।
श्लोक (26)- उत्सपन्नववस्त्रम्भयोश्र्च परसपरानक ु ू ल्यादयजन्त्रतरतम ृ्। इनत रतानन।।
अथि- स्त्री और परू ु ष जब कार्ी हदनों से एक-दस ू रे को जानने के कारर् आपस में एक-दस ू रे पर ब ु त भरोसा करने लग जाते
ैं तो उन दोनों का एक साथ सिंभोग करना अयजन्त्रतरत क लाता
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (27)- वधिमानप्रर्या तु नानयका सपत्सनीनामग्र र्िं तदाश्यमालापि वा गोत्रस्खमलतिं वा न मषियेत ृ्। नायकव्यलीकिं।
अथि- जो प्रेमी अपनी प्रेममका पर ब ु त ज्यादा भरोसा करने लग गया
ो ऐसे में प्रेममका को अपने प्रेमी द्वारा अपनी
सौतनों का नाम लेना, उनके बारे में बात करना या उनके नाम से खद ु को बल ु ाया जाना आहद को बदािश्त न ीिं करना चाह ए।
श्लोक (28)- तत्र सभ ु ि ृ ः कल ो रुहदतामायासः मिरोरु ार्ामवक्षोदनिं प्र र्नमासनाच्छयनाद्वा मह्यािं पतनिं माल्यभष ू र्ावमोक्षो भम ू ौ िय्या च।।
अथि- ऐसी जस्थनत आ जाने पर जस्त्रयािं बोलकर तथा दस ू री क
हदया न कक दब ु ारा ऐसी बात मत करना, य को पटकना य
सब दस ू री तर
रकतों के जररये अपना गस् ु सा जाह र करती
बोली द्वारा गस् ु सा जाह र करना
से गस् ु सा जाह र करना
ोता
ै जैसे मैने
ै । रोना, धचल्लाना, ाथ-पैरों
ै । िरीर का गस् ु से में कािंपना, मसर में ददि
ोना आयास
क लाता
ै । अपने बालों को खोलकर बबखेर दे ना, परू ु ष के बालों को पकडकर खीिंच दे ना अवक्षोदन क लाता ै । अपनी
छाती को
ाथों से पीटना प्र र्न क लाता
जाती
ै तो उसे कोई दख ु न ीिं
ोता
ै । इस प्रकार के तलेि में स्त्री जब पलिंग आहद से उतरकर जमीन पर लेट ै । जमीन पर लेटना, ग ने उतारकर र्ैं क दे ना आहद तलेि पैदा करते
ैं।
श्लोक (29)- तत्र यत ु तरूपर् साम्रा पादपतनेन वा प्रसन्नमनास्तामनन ु यन् ु नप ु िम्य ियनमारो येत ृ्।।
अथि- स्त्री के इस तर
गस् ु से में आकर तलेि करने पर परू ु ष को चाह ए कक व
प्यार भरी बातों से या उसके पैरों में
पडकर उसे ब ला-र्ुसलाकर पलिंग पर सल ु ा दे ।
श्लोक (30)- तस्य च वचनमि ु रे र् योजयन्ती वववद् ु नमय्य पादे न बा ौ मिरमस वक्षमस पष्ृ ठे ृ धिोधा सकचग्र मस्यास्यमन् वा सकृदद्ववजस्त्ररव न्यात ृ्। द्वारदे ि गच्छे त ृ्। तत्रोपववश्यश्ुकरर्ममनत।।
अथि- परू ु ष की पैरों से उसके
र बात पर गस् ु से में लडती ु ई स्त्री, परू ु ष के बालों को पकडकर उसके मुिं
ाथों, मसर, छाती या पीठ में 2-3 बार ठोकर मारकर दरवाजे तक चली जाती ब ाती र ती
को ऊपर उठाकर अपने ै और व ािं बैठकर आिंसू
ै।
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | श्लोक (31)- अनतिद्धावप तु न द्वारदे िाद्धूयो गच्छे त ृ्। दोषवत्त्वात ृ्। इनत दिकः। तत्र यजु तततोऽनन ु ीयमाना प्रसादमाकािंक्षेत ृ्। प्रसन्नानत तु सकषायैरेव वातयैरेनिं तद ु तीव प्रसन्नरनतकाक्षक्षर्ी नायकेन परररभ्येतः।।
अथि- म ान आचायि दिक का क ना ी घर के बा र
ै कक ब ु त
ी ज्यादा गस् ु से में व
ी कदम रखे। उसे व ीिं घर के अिंदर दरवाजे पर खुि
स्त्री जब न तो घर के अिंदर ो जाना चाह ए। खुि
ी जाए और न
ो जाने के बाद स्त्री को
अपनी तीखी बोली के प्र ारों से परू ु ष के ह्रदय को चीरती ु ई सिंभोग किया करने की लालसा में परू ु ष से परररम्भर् िरू ु करना चाह ए।
श्लोक (32)- स्वभवनस्था तु ननममिात्सकलाह ता तथाववधचेष्टै व नायकममभगच्छे त ृ् ।।
अथि- अपने सगे-सिंबधिं धयों के घर पर र ने वाली स्त्री, परू ु ष से दरू ी में तडपती ु ई उससे ममलने की कोमिि करते ु ए उस तक प ुिं च
ी जाए।
श्लोक (33)- तत्र पीठमदि ववटववदष े ै नाियकप्रयत ू क ु तैरूपिममतरोषा तैरेवानन ु ीता तैः स ै व तद्धवनमधधगच्छे त ृ्। तत्र च वसेत ृ्। इनत प्रर्यकल ः।।
अथि- इस तर
के दरू ी में तडपते ु ए अवसरों पर अगर परू ु ष अपने दोस्तों या जानने वालों को उसको मनाने के मलए
भेजे तो स्त्री को गस् ु सा छोडकर परू ु ष के पास चले जाना चाह ए तथा परू ी रात परू ु ष के पास प्रर्य कल
समाप्त
ी र ना चाह ए। अब
ोता ै ।
श्लोक (34)- भवजन्त चात्र श्लोकाः- एवमेतािं चतःु षजष्टिं बाभ्रव्येर् प्रकीनतिताम ृ्। प्रयञ् ु ञानो वरस्त्रीथु मसद्धधिं गच्छनत नायकः ।।
अथि- वाभ्रव्य आचायों के द्वारा बताई गई पान्वामलकी चतःु षजष्ट का इस्तेमाल स्त्री पर करके परू ु ष सर्लता कर सकता
ै।
श्लोक (35)- वजजिंतोऽप्यन्यववज्ञानैरेतया यस्त्सवलिंकृतः। स गोष्ठयािं नरनारीर्ािं कथास्वग्रिं ननगा ते।।
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ामसल
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | अथि- जो परू ु ष ब ु त सी ववद्याओिं का ज्ञाता जानता
ै तो व
ोते ु ए भी अमलिंगन, चुिंबन आहद जैसी सिंभोग की 64 कलाओिं को न ीिं
ववद्वानों की अथि, धमि, काम की गोजष्ठयों में सम्मान न ीिं
ामसल न ीिं कर पाता।
श्लोक (36)- िव ु न्नप्यन्यिास्त्राणर् चतःु षजष्टवववजजितः। ववद्वत्ससिंसहद नात्सयथि कथासु पररपज् ू यते।।
अथि- दस ू री ववद्याओिं में ननपर् ु न
ोने के बावजूद भी जो परू ु ष काम-िास्त्र का ज्ञान रखता
कामववषयक गोजष्ठयों में सम्मान के अधधकारी बनते
ै व
स्त्री-परू ु षों की
।ैं
श्लोक (37)- ववद्वद्धधः पजू जतामेनािं खलैरवप सप ु जू जताम ृ्। पजू जतािं गणर्कासड्गननिननन्दीिं को न पज ू येत ृ्।।
अथि- तीनों लोकों के ज्ञाता ववद्वान सिंभोग की इन 64 कलाओिं को स्त्री की रक्षा का उपाय समझकर सम्मान दे ते गणर्काएिं (वेश्याएिं) भी इनको जीववका का साधन मानकर पज ू ती जानकर इनका सम्मान करते
ैं।
ैं। जब ऐसे बरु े लोग भी इनकी उपयोधगता को
ैं तो भला ऐसे म ान कलाओिं को कौन न ीिं पज ू ेगा।
श्लोक (38)- नजन्दनी सभ ु गा मसद्धा सभ ु गिंकरर्ीनत च। नारीवप्रयेनत चाचायिः िास्त्रेप्वेषा ननरुच्यतें ।।
अथि- सिंभोग की इन 64 कलाओिं का ज्ञान सिंभग िं करर्ी
ै, जस्त्रयों को प्यारी
र पनत-पत्सनी को करना चाह ए। तयोंकक य
कलाएिं सभ ु र्ा
ै तथा आचायों ने िास्त्रों के अिंतगित इनकी इस तर
ै, मसद्धा
की व्याख्या की
ै,
ै।
श्लोक (39)- कन्यामभः परयोवषद्धगिणर्कामभश्च भावतः। वीक्ष्यते ब ु मानेन चतःु षजष्टववचक्षर्ः।।
अथि- जो परू ु ष सिंभोग की 64 कलाओिं में परू ी तर तथा गणर्काएिं ब ु त
से ननपर् ु
ोते
ैं उन् ें पन ु भूि लडककयािं, परजस्त्रयािं (पराई जस्त्रयािं)
ी सम्मान की नजर से दे खती
ै।
प्राकृ् िीडाप्राकृ् िीडा को यौन-जीवन की नीिंव क ा जा सकता
ै तयोंकक इसका सिंबध िं क ीिं न क ीिं स्खलन और सिंभोग के समय
ममलने वाले चरम सख ु से
ोता
ै।
स्पिि-
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eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | जीवन का एक ब ु त नखरें करती
ी प्रमख ु उपादान
ोता
ै स्पििभाव। प्राकृ् िीडा के समय वैसे तो जस्त्रयािं ब ु त ज्यादा िमािती
ै, परू ु ष की बाजुओिं से छूटने की कोमिि करती
स्पिि बबिंदओ ु िं को बढ़ाने का
ी मकसद मौजद ू र ता
ै । लेककन उनके इस तर
के ववरोध में उनकी
ै । इस बात को तो सभी को मानना पडेगा कक स्पिि
काम-उिेजना को जगाने की प ली सीढ़ी
ै,
र न में
ी असल में
ै।
चुिंबनम ान आचायि वात्सस्यायन नें प्राकृ् िीडा तथा सिंभोग करने के समय में चुिंबन को ब ु त ज्यादा म त्सव हदया वज
य
ै । इसकी
ै कक यौन-क्षेत्र में स्नायववक, िजतत को जागत ू रा साधन न ीिं ृ करने के मलए चुिंबन से बढ़कर कोई दस
ै।
ोंठोठों की त्सवचा तथा श्लैजष्मक णझल्ली के बीच में एक ब ु त
योनन तथा योननगह्वर के बीच के भाग की तर स्त्री के िरीर में एक ब ु त
ी अनभ ु नू तपर् ू ि भाग
ोता
ै जो ज्यादातर नजररये से
ोता ै । इस भाग में जब परू ु ष अपनी जीभ से स्पिि करता
ी उिेजना की ल र दौड पडती
ै जो सिंभोग किया में ब ु त
ै तो
ी खास भमू मका ननभाती
ै।
गिंधर स्त्री और परू ु ष के िरीर में अपनी-अपनी एक अलग तर िरू ु आत में
ी पैदा
इच्छा को तेज करती से वववा
ो जाती
की गिंध
ोती ै जो परू ु ष या स्त्री में यव ु ावस्था की
ै । य ी गिंध परू ु ष या स्त्री के स्नायओ ु िं में उिेजना पैदा करके उनकी सिंभोग करने की
ै । ब ु त बार दे खने या सन ु ने में आता
ै कक ककसी ब ु त
ी सद ुिं र स्त्री ने ककसी साधारर् लडके
कर मलया या ककसी बडी उम्र की स्त्री ने ककसी छोटी उम्र के लडके के साथ भागकर वववा तर
की खबरों के पीछे ज्यादातर इस तर
की गिंध का
ी
ाथ
ोता
कर मलया। इस
ै।
ास्य-व्यिंगककसी तर
का
िं सी-मजाक, सिंगीत, क ाननयािं आहद िरीर में एक प्रकार की उिेजना पैदा करती
कारर्ों से आनिंद की छिं द-प्रवनृ त बढ़ती पडता
ै। य
बात परू ी तर
ै उनका
म पर ननजश्चत रूप से उिेजक तथा उत्ससा
से सामने आ चक ु ी
ै । इस प्रकार जजन बढ़ाने वाला प्रभाव
ै कक सिंगीत में जस्त्रयों का असीम प्यार भरा
ोता
ै।
आवाजपरू ु ष की आवाज का स्त्री पर ब ु त ज्यादा असर पडता ै । असल जजिंदगी में ब ु त बार जस्त्रयों को मसर्ि परु ु षों की
आवाज सन ु कर
ी कर्दा
ोते पाया गया
ै । इसमलए वात्ससयायन ने सिंभोग किया में आनिंद बढ़ाने के मलए आवाज पर ज्यादा जोर हदया ै । नजर-
नजर से एक-दस ू रे के प्रनत आसतत
ोकर सिंभोग किया तक प ुिं चने का एक ब ु त बडा अिंग माना जाता
और परू ु ष एक-दस ू रे के प्यार में पडते
ैं तो उनकी सबसे प ले नजरें
ी आपस में ममलती
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ै । जब स्त्री ैं।
eBook ed From – http://pdfbooks.ourhindi.com | सबसे तेजी से बढ़ने वाली ह द िं ी साईट | बढ़ ू ा
ो या जवान
र कोई ककसी न ककसी प्रकार के उिेजक दृश्यों को दे खने के मलए बेचैन र ते दे खने की प्यास
र आिंख को र ती
ैं। सद ुिं र चीज को
ैं।
आचायि वात्ससयायन ने सिंभोग किया करने के बाद अमलिंगन, चुिंबन या प्यार भरी बातों के बारे में क ा खावसाननक क ा जाता इसके मलए व
ै । अगर वववेक के नजररये से दे खा जाए तो काम-वासनाएिं अपनी प्यास बझ ु ाना चा ती
र समय बेचैन र ती
पाती। उस सिंक्षोम से
ै । इसे
ै । परू ु ष की काम-िजतत ऐसी वासनाओिं की प्यास बझ ु ाने में कामयाब न ीिं
ी उन दोनों की काम-िजतत में कमी आती
ै । जीवन में खुिी तथा उत्ससा
बनाने के मलए
चुस्ती-र्ुती तथा खोई ु ई ताकत को दब ु ारा पाने के मलए रतावसाननक कियाएिं ब ु त जरूरी
ह द िं ी की समस्त प्रकार की पुस्तकों को डाउनलोड करने का एकमात्र स्थान – http://pdfbooks.ourhindi.com | एक बार जरूर पधारें |
ैं।
ैं। ो